अमित शाह समझ गये कि अब आपरेशन राजस्थान जरूरी
ऐसी क्या वजह है कि शाह को राजस्थान की जमीन पर उतरना पड़ रहा है?#राजस्थान भाजपा विधायकों द्वारा मीरा कुमार के पक्ष में क्रॉस वोटिंग से अमित शाह समझ गये कि आपरेशन राजस्थान जरूरी है
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राजनीति में हवा का रुख बदलने में समय अधिक नहीं लगता है. वसुंधरा राजे महारानी के खिलाफ हवा का कुछ रुख बता रहा है कि उनकी कुर्सी पर संकट है- वसुंधरा के रिपोर्ट कार्ड से टीम मोदी-अमित शाह खुश नही है- वसुंधरा के काम बीजेपी की मुश्किले बढा रहे हैं, ऐसे मे विधानसभा चुनाव से पहले भी वसुंधरा को मुख्यमंत्री पद से हटाया जा सकता है, वसुंधरा अब हटे या बाद में हटे, हटना तय है- वह अमित शाह के रडार पर है-
राजस्थान में बीजेपी विधायकों ने मीरा कुमार के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की है जिसको लेकर केंद्रीय नेतृत्व चिंतित है। सूबे में अगले साल विधानसभा चुनाव होने है ऐसे में विधायकों के मन में असंतोष पार्टी के लिए अच्छे संकेत नहीं है। इससे वसुंधरा सरकार की साख पर भी सवाल उठ रहे हैं। उधर बीजेपी चीफ अमित शाह मिशन राजस्थान पर जयपुर पहुंचे हैं।
असम, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मणिपुर आदि राज्यों में मिली अप्रत्याशित सफलताओं के बाद भी शाह आराम करते बिलकुल नहीं नज़र आते हैं अब उनका मिशन राजस्थान है-
राजस्थान बीजेपी में चल रही गुटबाजी को खत्म करने के लिये बीजेपी चीफ अमित शाह जयपुर पहुंचे हैं। जहां बीजेपी कार्यकर्ताओं ने उनका जोरदार स्वागत किया। अमित शाह यहां विधायकों, सांसदों और कुछ बीजेपी पदाधिकारियों के साथ मुलाकात करेंगे। माना जा रहा है कि अगले साल के विधानसभा चुनाव और 2019 लोकसभा चुनाव की तैयारियों के सिलसिले में चर्चा होगी। अमित शाह राजस्थान बीजेपी के अंदर चल रही गुटबाजी को भी खत्म करने की कोशिश करेंगे। आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव पार्टी की तैयारियों और रणनीति पर चर्चा के लिहाज से अमित शाह का यह दौरा बेहद अहम माना जा रहा है।अपने राजस्थान दौरे पर अमित शाह पार्टी के शीर्ष नेताओं से लेकर ब्लॉक स्तर के सदस्यों तक से मुलाकात करेंगे। मंत्रियों के साथ भी शाह की मैराथन बैठकें प्रस्तावित हैं।
राजस्थान की सियासत में 3 दिन गहमागहमी से भरे होंगे. इसकी बड़ी वजह बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का दौरा है. अमित शाह के दौरे के लेकर पहले से ही सियासी कयास लगाना कभी सही साबित नहीं हो पाया है. लेकिन उनकी रणनीति का अंदाजा उनके कार्यक्रमों से लगाया जा सकता है. जिस तरह से अमित शाह इस बार महारानी के शासन में अपने कार्यक्रमों को लेकर गंभीर दिखाई दे रहे हैं उससे एक इशारा महारानी के खिलाफ उपजे असंतोष की भी तरफ इशारा करता है. राजस्थान पर अमित शाह का फोकस न सिर्फ राज्य में बीजेपी की दशा-दिशा पर एक निगरानी कार्यक्रम है बल्कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव के लिये रणनीतियों का भी आगाज़ है.
तीन दिन के दौरे में अमित शाह का पार्टी पदाधिकारियों से मिलने का कार्यक्रम है. केवल ऊपर के पदाधिकारी ही नहीं बल्कि निचले स्तर के कार्यकर्ताओं से भी शाह सीधे फीडबैक ले रहे हैं. यही नहीं, इस बार शाह का कार्यक्रम विधायकों-सांसदों के साथ ही निगम और बोर्डों के अध्यक्षों से भी सीधे मिलने का है. रविवार तक शाह कुल मिलाकर 14 बैठक करेंगे. इससे भी खास बात ये कि शाह तीन दिन में कम से कम एक बार का खाना किसी दलित के यहां खाएंगे. इस शेड्यूल से एक बात तो साफ है कि बीजेपी अध्यक्ष राजस्थान में पार्टी को ऊपर से नीचे तक हर स्तर पर चुस्त-दुरुस्त और मजबूत कर देना चाहते हैं. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि इस पूरी कवायद की जरूरत आखिर पड़ी क्यों?
राजस्थान में 25 में से 25 सांसद और 200 में से 163 विधायक बीजेपी के हैं. सरकार बनने के चौथे साल में भी पार्टी ने हाल ही में हुए धौलपुर विधानसभा उपचुनाव में अब तक के सबसे ज्यादा वोट हासिल किए हैं. विपक्ष की भूमिका में कांग्रेस को भी कमजोर माना जा रहा है. फिर ऐसी क्या वजह है कि शाह को जमीन पर उतरना पड़ रहा है?
दरअसल, ऊपर से मजबूत दिख रही पार्टी के अंदरूनी हालात मंझधार में हिलोरे खाती नाव के जैसे हैं. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ असंतोष कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है. रह-रह कर सीएम बदलने की मांग उठती रहती है. इस संबंध में कई बार पार्टी मुख्यालय के बाहर ओम माथुर के लिए पोस्टर तक लग चुके हैं. हालांकि, अभी तक राजे अपनी कुर्सी बचा पाने में कामयाब रही हैं लेकिन ये भी सच है कि राजनीति में हवा का रुख बदलने में समय अधिक नहीं लगता है.
2018 की राह नहीं आसान!
हाल ही में गैंगस्टर आनंदपाल एनकाउंटर केस के बाद बीजेपी का विश्वसनीय वोट बैंक यानी राजपूत समाज पार्टी से छिटकता सा दिखा है. एनकाउंटर के चार हफ्ते बाद सरकार ने सीबीआई जांच की मांग पर सहमति दे दी है लेकिन ये कदम भी डैमेज कंट्रोल कर पाने में पूरी तरह कामयाब नहीं हो सका है. बीजेपी नेता और पूर्व उपराष्ट्रपति भैंरो सिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी ने तो इस संबंध में अमित शाह को चिठ्ठी भी लिखी थी. अब राजपूत मंत्रियों की गुप्त बैठक का एक वीडियो भी सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है जिसके बाद सभी मंत्रियों को अमित शाह का दौरा पूरा होने तक चुप्पी साधने का हुक्म सुनाया गया है.
उधर, कांग्रेस ने राजपूतों को अपने पाले में करने की कवायद भी शुरू कर दी है. पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी वसुंधरा राजे पर राजपूतों की उपेक्षा का आरोप लगाया. हालांकि वसुंधरा राजे की कोशिश है कि शाह को दौरे पर सब अच्छा ही अच्छा दिखाया जाए. जयपुर में पहुंचने से लेकर पार्टी मुख्यालय तक शाह का भव्य स्वागत भी किया गया.
लेकिन वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी का मानना है कि मौजूदा दौरा मोदी-शाह की जोड़ी का वसुंधरा में कम हुए भरोसे की तरफ ही इशारा देता है.
सरकार के लिए मुश्किल आनंदपाल एनकाउंटर से उपजे हालात ही नही हैं. मुख्यमंत्री से नाराज चल रहे सांगानेर विधायक घनश्याम तिवाड़ी भी अपना अलग रास्ता बनाते नजर आते हैं. तिवाड़ी ब्राह्मण समुदाय से आते हैं लेकिन अब समाज की उपेक्षा को लेकर ब्राह्मण वोटर तिवाड़ी के पीछे लामबंद हो रहे हैं. तिवाड़ी इन दिनों एक नई सोशल इंजीनियरिंग पर भी काम कर रहे हैं. वे अपने साथ बीजेपी में रहे और अब अलग पार्टी बना चुके किरोड़ी लाल मीणा और खींवसर विधायक हनुमान बेनीवाल को जोड़ने की कोशिश में हैं. अगर ऐसा होता है तो बीजेपी के ब्राह्मण, मीणा और जाट वोट बैंक में बड़ी सेंध लग सकती है. इसके अलावा, यूपी, एमपी और गुजरात में हुई कथित दलित उत्पीड़न की घटनाओं ने राजस्थान में भी असर दिखाना शुरू कर दिया है. राजस्थान में लगभग 17℅ जनसंख्या अनुसूचित जाति की है. 2008 के विधानसभा चुनावों में बीएसपी ने राजस्थान में 6 सीट जीती थी.
ऐसे में अगर बीजेपी का कोर वोटर यानी सवर्ण वोट बैंक छिटकता है और दलितों के बीच बीएसपी मजबूत होती है तो 2018 के विधानसभा चुनाव में ही नहीं बल्कि राज्य में सरकार न बनने पर 2019 के लोकसभा चुनाव में भी ये सबसे बड़ा आघात हो सकता है. राजस्थान की राजनीतिक फ़िज़ां ऐसी रही है कि राज्य में जिसकी सरकार होती है उसे 20 से अधिक सांसदों की सौगात मिलती रही है. यही कारण है कि शाह निचले स्तर के कार्यकर्ताओं से फीडबैक लेने को मजबूर हुए हैं तो दलित के घर भोजन कर उन्हें साधने की कोशिश भी कर रहे हैं.