मोदी के भ्रष्टाचार मुक्त भारत के संकल्प से भरोसा उठ गया ;अन्ना हजारे
” सरकार या प्रधानमंत्री ही जनता के साथ धोखाधड़ी करने लगे तो इस देश और समाज का क्या उज्ज्वल भविष्य रहेगा ?”; अन्ना हजारे
हिमालयायूके ब्यूरो
आंदोलन करने को कहकर बार-बार पलटी मारने वाले विख्यात समाजसेवी अन्ना हजारे एक बार फिर आंदोलन की हुंकार भर रहे हैं। कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करने वाले अन्ना आजकल उनसे खासे नाराज हैं। मोदी को उन्होंने अब सबसे नाकारा पीएम तक कह डाला है, जिसकी अहम वजह अन्ना के खत का पीएम का जबाव न देना है। लोकपाल के मुद्दे पर वह प्रधानमंत्री को लगातार खत लिख रहे हैं, पर मोदी उनके किसी खत का जवाब नहीं दे रहे हैं। इसलिए अन्ना ने अब 2011 जैसे आंदोलन की फिर से चेतावनी दी है। अन्ना इससे पहले भी वह कई बार आंदोलन करने की बात कह चुके हैं, जो बाद में हवा-हवाई साबित हुई। लेकिन इस बार उन्होंने महात्मा गांधी की समाधि पर जाकर, कसम खाकर आंदोलन करने की बात कही, इसलिए भरोसा किया जाना चाहिए। इस मौके उन्होंने विस्तृत बातचीत की।
(उत्तम हिन्दू न्यूज):
सुप्रसिद्ध समाजसेवक अन्ना हजारे ने लोकपाल कानून के क्रियान्वयन को लेकर सरकार की उदासीनता पर निराशा जाहिर करते हुए आज कहा कि उनका प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भ्रष्टाचार मुक्त भारत के संकल्प से भरोसा उठ गया है और वह अगले वर्ष जनवरी/फरवरी में दिल्ली में आंदोलन आरंभ करेंगे। हजारे ने यहां जारी एक विज्ञप्ति में सरकार की आलोचना करते हुए सवाल किया,” सरकार या प्रधानमंत्री ही जनता के साथ धोखाधड़ी करने लगे तो इस देश और समाज का क्या उज्ज्वल भविष्य रहेगा ?”
उन्होंने कहा कि लोकपाल, लोकायुक्त जैसे कानून तुरंत अमल में लाए जाएं जो जनता को शीघ्रता से किफायती न्याय दे सके, शासन-प्रशासन मे बढ़ते भ्रष्टाचार को नियंत्रण में लाए, बढ़ती अनियमितताओं और मनमानी पर प्रतिबंध लगा सके, स्वच्छ प्रशासन का निर्माण हो तथा शासन और प्रशासन की जनता के प्रति जवाबदेही तय हो। उन्होंने कहा कि जनता इस देश की मालिक है। शासन-प्रशासन में बैठे सभी लोग जनता के सेवक हैं। इसलिए प्रशासनिक व्यवस्था लोकतांत्रिक हो तथा लोगों के काम में सरकार का सहयोग हो। यह परिवर्तन लाने की शक्ति लोकपाल और लोकायुक्त कानून में हैं।
हजारे ने कहा कि लोकपाल, लोकायुक्त पर सरकार का नियंत्रण न रहते हुए जनता का नियंत्रण रहे। इसलिए प्रधानमंत्री सहित सभी मंत्री, सांसद, विधायक, सभी अधिकारी, कर्मचारी लोकपाल, लोकायुक्त के दायरे में होने चाहिए। अगर जनता सबूत के साथ शिकायत करे तो लोकपाल इन सबकी जाँच कर सकता है। दोषी पाए जाने पर सजा हो सकती है। इसलिए कोई भी पक्ष लोकपाल, लोकायुक्त कानून लाना नहीं चाहता। उन्होंने कहा कि उनकी टीम ने लोकपाल, लोकायुक्त कानून का बहुत अच्छा मसौदा बनाया था। उससे देश के भ्रष्टाचार पर सौ प्रतिशत नहीं लेकिन 80 प्रतिशत से ज़्यादा रोक लग जाती। इसलिए 2011 में पूरी देश की जनता लोकपाल, लोकायुक्त कानून की मांग को लेकर सड़कों पर उतर गई थी। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री, उनकी सरकार और संसद ने जनता को लिखित आश्वासन दिया था कि हम लोग जल्द ही एक सशक्त लोकपाल, लोकायुक्त कानून पारित करेंगे। इस आशय का एक संकल्प संसद से पारित किया गया था। उसके बाद ही देश की जनता ने आंदोलन वापस लिया और उन्होंने (श्री हजारे ने) अपना अनशन तोड़ा था।
हजारे ने कहा कि उसके बाद सरकार जाग गई और दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित भी किया गया लेकिन विधेयक को सदन में रखते हुए राज्यों में लोकायुक्त स्थापना से संबंधित सभी धारायें हटा दी गई और सरकार ने लोकायुक्त कानून को कमजोर कर दिया। यह देश की जनता के साथ धोखाधड़ी थी। क्या यह संसद का अपमान नहीं है? उन्होंने भी जनता से बार-बार कहा था कि भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए सरकार प्रतिबद्ध है फिर भी जनता के साथ धोखाधड़ी की गई। उन्होंने कहा कि 2014 में नयी सरकार सत्ता में आई। पहले सरकार ने लोकपाल, लोकायुक्त कानून कमजोर किया था। लेकिन जो कुछ बचा हुआ कानून था वह नई सरकार लागू करेगी ऐसे लगा था। लेकिन इस सरकार ने भी 18 दिसंबर 2014 को और एक संशोधन विधेयक संसद में पेश किया। वह प्रवर समिति के पास भेजा गया। प्रवर समिति ने अच्छे सुझाव देने के बाद भी इसे अब तक प्रतीक्षित रखा गया हैं। उसे तुरन्त पारित करना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं किया गया। प्रवर समिति के अच्छे सुझावों को छोड़ दिया गया और सिर्फ धारा 44 में बदलाव किया गया।
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मैंने सवाल किया, “आंदोलन करूंगा, ये कहकर आप खलबली मचा देते हैं और चुपचाप बैठ जाते हैं। ऐसे में तो आपकी गंभीरता कम हो जाएगी। क्या इस बार पक्का आंदोलन करेंगे?” उन्होंने कहा, “शत प्रतिशत होगा इस बार आंदोलन। मैं पलटी नहीं मारता था, नेता चालाकी से मुझे सभी मुद्दे पूरा करने को कहकर शांत करा देते थे। मुझे जनता में झूठा बनाने की ये उनकी सोची समझी तरकीब थी।” अन्ना ने कहा, “जिस उम्मीद के साथ देश की जनता ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर चुना था, उस पर वह खरा नहीं उतर सके। मौजूदा अर्थव्यवस्था डावांडोल हो गई है। काम-धंधे चौपट हो गए हैं। सरकारी कार्यालयों में बिना रिश्वत के काम नहीं होता। नोटबंदी के बाद मैंने सरकार के कई मंत्रियों से पूछा कि इससे विदेशों में जमा कितना काला धन भारत आया, तो कोई जबाव नहीं देता। ऐसे कई गंभीर मुद्दे हैं, जिनका मैं जवाब मांगता रहा हूं, लेकिन कोई जबाव देने को राजी नहीं। शायद प्रधानमंत्री ने मुझसे बात करने के लिए सभी को मना कर दिया है।”
उन्होंने कहा, “मैंने पिछले 6-7 महीनों में कई बार मोदी को खत भेजे हैं, किसी का उन्होंने जबाव देना उचित नहीं समझा। मैं पूछना चाहता हूं आखिर क्यों नहीं उत्तर देते हो। मैं अपने लिए थोड़ी न कुछ मांग रहा हूं। जीएसटी लगाने के बाद व्यापारियों को कितनी तकलीफ सहनी पड़ रही है, इसका अंदाजा भी नहीं है प्रधानमंत्री को। रोजाना व्यापारी मुझसे मिलते हैं और कहते हैं कि हमारी आवाज बुलंद करो, क्योंकि उनकी बात सरकार नहीं सुनती। आंदोलन करने की कोई तारीख तय की है? जवाब में अन्ना ने कहा, “इस साल दिसंबर के अंत में या शुरुआती साल के पहले महीने में मैं फिर से आपको रामलीला मैदान में बैठा दिखाई दूंगा।..और मुझे यह भी पता है कि इस बार आंदोलन को असफल बनाने के पूरे प्रयास किए जाएंगे। रामलीला मैदान में लोगों को पहुंचने से भी रोका जाएगा। मेरे पास इस तरह की खबरें आ रही हैं।”
उन्होंने कहा, “मौजूदा सरकार कांग्रेस सरकार से भी जहरीली दिख रही है। कांग्रेस सरकार में कम से कम बात सुनी तो जाती थी, वह अलग बात है कि उस पर अमल नहीं होता था। लेकिन मोदी सरकार अपने घमंड में इतनी चूर हो गई है कि किसी से बात करना भी उचित नहीं समझती।” वर्ष 2011 के आंदोलन में आपको अभूतपूर्व जनसमर्थन मिला था, जिसमें भाजपा-आरएसएस का भी समर्थन शामिल था। आपको उम्मीद है आगे भी ऐसा ही समर्थन मिलेगा?
“मैं आज भी पहले जैसा ही फकीर हूं। उस वक्त मेरे साथ जो लोग थे, उनकी मंशा कुछ और थी। वे सभी आंदोलन की आड़ में अपना उल्लू सीधा करना चाहते थे, वैसा किया भी। मुझे दिखावे की भीड़ नहीं चाहिए। दूसरे आंदोलन के लिए मुझे नि:स्वार्थ आंदोलनकारियों की जरूरत होगी। लोग मेरे साथ आज भी हैं। देश के भीतर जो समस्या 2011 में थी, वह सभी ज्यों की त्यों हैं। कोई फर्क या सुधार नहीं हुआ। लोगों के भीतर फिर वैसी ही नाराजगी है।” “अब लोगों में मोदी के प्रति प्यार नहीं, बल्कि डर घुस गया है। उनके मंत्रियों की भी कोई मजाल नहीं कि उनके फैसले पर उंगली उठा सके। जिस-जिसने ऐसा किया, उसका हाल हम-आप देख ही चुके हैं।”
आपकी लोकपाल की मांग को सरकार ने तकरीबन नकार दिया है। इसकी कोई खास वजह? “ठंडे बस्ते में पड़ा है लोकपाल का मसौदा। छह बार संसद के पटल पर आ चुका है, लेकिन उसे लागू करने में सरकार के हाथ कांप रहे हैं। उनको पता है, लोकपाल को लागू करने का मतलब उनके खुद के गले में फांसी का फंदा डालना होगा। सरकार के आधे मंत्री जेल में होंगे। बाकी दलों के नेताओं की तो बात ही न करो।” “लोकपाल के लिए 2012 में हमने जो मसौदा तैयार करके भेजा था, उसे पूरा बदल दिया गया है। अब जो है, वह कूड़ा है। जिन राज्यों में लोकायुक्त नियुक्त किए गए हैं, वे सफेद हाथी के सिवाय कुछ नहीं हैं। मुझे कोई बताए कि मोदी के आने के बाद उन्होंने अपनी कार्रवाई से किसी नेता को जेल भेजा हो। सभी लोकायुक्त सरकारों के हिस्सा बन गए हैं।”
आंदोलन पार्ट-2 में क्या आप केजरीवाल या उनके साथियों को शामिल करेंगे? “मुझसे होशियारी दिखाके उनको जो हासिल करना था, उन्होंने हासिल कर लिया। लोकपाल बनाने की पहली मांग अरविंद की थी, पर दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने के बाद वह पलटी मार गए। आज वह इस मुद्दे पर बात करना भी मुनासिब नहीं समझते। उनके दूसरे साथी जो राजनीति को कभी कीचड़ कहते थे, आज सभी उसी दलदल में समाए हुए हैं। दरअसल, उन सबका मकसद राजनीति में ही जाना था, जिसे मैं भांप नहीं पाया। लेकिन आगामी आंदोलन में उनको शामिल नहीं किया जाएगा। सबको दूर रखा जाएगा।”
आप पर आंदोलन की सार्थकता को खत्म करने का आरोप लग चुका है, क्या कहेंगे? “मैं इस आरोप को काफी हद तक सही मानता हूं। दरअसल, 2011 का आंदोलन हाईजैक हुआ था। जो लोग उस आंदोलन में जुड़े थे, उन्होंने लोगों के विश्वास को तोड़ा है। अपने स्वार्थ के लिए लोगों की संवेदानाओं की भी हत्या कर दी। मैं मानता हूं कि लोगों का विश्वास आंदोलनों के प्रति कम हुआ है। मेरे आंदोलन का भी वही हश्र हुआ, जो कभी जेपी आंदोलन का हुआ था।”
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