आयुर्वेद की दृष्टि से कोरोना वायरस
नॉवेल कोरोना वायरस एक नया वायरस है जो पहले मनुष्यों में पहचाना नहीं गया है। आमतौर पर ऊपरी श्वसन प्रणाली को संक्रमित करता है| श्वसन प्रणाली में नाक, साइनस, मुंह, गला (ग्रसनी), आवाज बॉक्स (स्वरयंत्र), विंडपाइप (श्वासनली), और फेफड़े शामिल हैं। वायरस हवा के माध्यम से खांसी और छींकने से फैलते हैं, व्यक्तिगत संपर्क ,वायरस से दूषित किसी वस्तु या सतह को छूते हैं और इसका सबसे आम लक्षण बुखार, खांसी, सांस की तकलीफ और सांस लेने में कठिनाई हैं। युर्वेद द्वारा वायरस के खिलाफ लड़ाई में सबसे जरूरी – हल्दी (हल्दी), जीरा (जीरा), धनिया (धनिया) और लहसून जैसे मसाले। खाना पकाने की सिफारिश।
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सब्जियों से करोना वायरस बिल्कुल धोया जा सकता है। सब्जियों को साबुन से नहीं धोना चाहिए क्योंकि सब्जियों की ऊपर की स्किन में छोटे-छोटे छेद होते हैं जो आंखों से दिखाई नहीं देते, साबुन और गंदा पानी उन छेदों से सब्जी के अंदर चला जाएगा और यह सब्जी को खराब भी करेगा और बाद में सब्जी से हमारे मुंह में जाएगा। आप जानते हैं साबुन बाहरी स्किन को साफ करने के लिए इस्तेमाल होता है ना कि खाने के लिए।यह नुकसान पहुंचा सकता है। अब बात करते हैं कि धोना किस से चाहिए। सब्जियों को बेकिंग सोडा के घोल में पांच मिनट रखकर निकाल लें और सादे पानी से धो लें । आप बेकिंग सोडा के इलावा vinegar का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
सबसे शक्तिशाली प्राकृतिक एंटीबायोटिक कौन सी है और यह कैसे प्रयोग की जा सकती है? प्राकृतिक एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल का सबसे अधिक फायदा यह है कि इनके इस्तेमाल के कोई साइड इफेक्ट नही होते। बैक्टेरिया पर इनका असर खत्म नहीं होता जैसा एंटीबायोटिक्स के लंबे समय तक इस्तेमाल से होता है। इसके अलावा अगर आप हमेशा इस प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल करते हैं तो बीमारियां आपको नहीं घेर पाती हैं।
लहसुन : लहसुन एक प्राकृतिक एंटीबायोटिक है। इसमें एंटीफंगल और एंटीवायरल तत्व मौजूद होते हैं। एक अध्ययन के अनुसार लहसुन में पाया जाने वाला सल्फर कंपाउंड एलीसिन प्राकृतिक एंटीबायोटिक के समान कार्य करते हैं। इसके अलावा, लहसुन में कई प्रकार के विटामिन, न्यूट्रिएंट्स और मिनेरल्स होते हैं जो संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं। लहसुन आंतों में होने वाले पैरासाइट्स को खत्म करता है। प्रतिदिन खाली पेट लहसुन की 2 से 3 कलियां खाई जा सकती हैं। लहसुन को विभिन्न प्रकार की डिश में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। कुछ लोग बाजार में उपलब्ध लहसुन सप्लीमेंट भी ले सकते हैं परंतु बाजार में उपलब्ध सप्लीमेंट लेने के पहले डॉक्टरी सलाह ले लेनी चाहिए।
शहद : प्राकृतिक चिकित्सा में शहद को सबसे कारकर एंटीबायोटिक्स में से एक माना जाता है। इसमें एंटीमाइक्रोबियल, एंटी-इंफ्लेमैटोरी (सूजन कम करने वाला) और एंटीसेप्टीक गुण होते हैं। अमेरिका में हुए एक अध्ययन के अनुसार शहद में इंफेक्शन से कई स्तरों पर लड़ने की ताकत होती है। इसके इस गुण के कारण बैक्टेरिया शहद के इस्तेमाल के बाद पनप नहीं पाते। शहद हाइड्रोजन पैरोक्साइड, एसिडिटी, ओस्मोटिक इफेक्ट, हाई शुगर (ज्यादा शर्करा) और पोलिफेनोल्स होते हैं जो बैक्टेरिया सेल को खत्म करते हैं। शहद का लाभ पूरी तरह से मिले इसके लिए कच्ची और जैविक शहद इस्तेमाल में ली जानी चाहिए। शहद में समान मात्रा में दालचीनी मिलाकर दिन में एक बार खाना चाहिए। इससे इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। इसके अलावा, चाय, फ्रूट स्मूदी और ज्यूस में शहद का इस्तेमाल किया जा सकता है।
अजवाइन : साल 2001 में हुए एक अध्ययन के अनुसार, अजवाइन के तेल में बैक्टेरिया से लड़ने की शक्ति भरपूर मात्रा में होती है। इसमें कार्वाक्रोल, एक केमिल्कल कंपाउंड, पाया जाता है जिससे इंफेक्शन में कमी आती है और अन्य किसी पारंपरिक एंटीबायोटिक्स की तरह यह प्रभावशाली होता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटीसेप्टिक, एंटीवायरल, एंटीफंगल, एंटी-इंफ्लेमैटोरी, एंटीपैरासिटिक और दर्द-निवारक गुण होते हैं। पैर या नाखून में होने वाले इंफेक्शन के लिए अजवाइन के तेल की कुछ बूंदे एक टब गर्म पानी में डालकर उसमें पैर डूबाना चाहिए। पैर कुछ मिनट तक पानी में रहने देने चाहिए। यह प्रक्रिया एक हफ्ते तक रोजाना की जानी चाहिए। सायनस या अन्य श्वसन संबंधी इंफेक्शन के लिए अजवाइन तेल की कुछ बूंदे गर्म पानी में डालकर इस भाप को सूंघना चाहिए। जब तक इंफेक्शन खत्म न हो यह प्रयोग करते रहना चाहिए।
जैतून : जैतून की पत्तियों के सत ( extract ) में विभिन्न प्रकार के बैक्टेरिया इंफेक्शन के इलाज के गुण होते हैं। जैतून की पत्तियों में काफी मात्रा में एंटीमाइक्रोबियल गुण होता है जिससे यह बैक्टेरिया और फंगी से बचाव करती हैं। इनमें एंटीइंफ्लेमैटोरी गुण भी होते है जिससे सूजन आसानी से उतर जाती है। जैतून की पत्तियों का सत आसानी से घर पर प्राप्त किया जा सकता है। पत्तियों को काटकर एक कांच के जार में डालना होता है। इस जार को वोडका से पत्तियां डूबने तक भरना है। इस जार को ढक्कन बंद करके अंधेरे में चार से पांच हफ्ते तक रखना होता है। नियत समय के बाद कपडे की मदद से छानकर द्रव्य निकाल सकते हैं। इस द्रव्य को अलग जार में स्टोर किया जा सकता है। यही जैतून की पत्तियों का सत है। जैतून की सप्लीमेंट भी कैप्सूल के रूप में बाजार में उपलब्ध हैं। परंतु इन्हें इस्तेमाल के पहले डॉक्टरी परामर्श आवश्यक है।
हल्दी : आयुर्वेद में हल्दी को गुणों की खान समझा जाता है। हल्दी में एंटीबायोटिक गुण भरपूर मात्रा में होते हैं जिनके कारण यह बैक्टेरिया का नाश करती है और शरीर के प्राकृतिक सुरक्षा तंत्र को मजबूती प्रदान करती है। इसके साथ ही यह घाव होने पर यह बैक्टेरिया इंफेक्शन होने से भी रोकती है। एक चम्मच हल्दी और पांच से छह चम्मच हल्दी को एक एयरटाइट जार में स्टोर करके रखना चाहिए। प्रतिदिन इस मिश्रण को आधा चम्मच मात्रा में लेना चाहिए। इसके अलावा बाजार में हल्दी के सप्लीमेंट कैप्सूल के रूप में भी मिलते हैं परंतु बिना डॉक्टरी सलाह के इनका इस्तेमाल हानिकारक हो सकता है।
अदरक : अदरक में प्राकृतिक एंटीबायोटिक गुण भरपूर होते हैं और इसके इन्हीं गुणों के कारण यह बैक्टेरिया जनित बहुत सी बिमारियों से बचाव करता है। ताजे अदरक में एक प्रकार का एंटीबायोटिक प्रभाव होता है जो खाने से पैदा होने वाले पैथोगेंस ( pathogens ), इंफेक्शन फैलाने वाले एजेंट, से हमें सुरक्षित रखता है। अदरक में श्वसन तंत्र और मसूडों पर होने वाले बैक्टेरियल हमले से बचाने के गुण भी भरपूर होते हैं। अदरक की चाय बैक्टेरियाअल इंफेक्शन से लड़ने में बहुत कारगर साबित होती है। अदरक की चाय बनाने के लिए एक इंच ताजा अदरक किस कर आधा कप पानी में करीब दस मिनिट तक उबालिए। इसे छानकर इसमें एक चम्मच और नीबू रस मिलाकर इसका सेवन करना चाहिए। इसके अलावा ताजा अदरक भी अन्य डिश में मिलाया जा सकता है। अदरक के भी कैप्सूल उपलब्ध होते हैं परंतु ताजा अदरक अधिक फायदेमंद है।
नीम : नीम की एंटीबायोटिक के रूप में पहचान हम सभी को है। नीम त्वचा संबंधी समस्याएं पैदा करने वाले बैक्टेरिया से लड़ता है। एंटीबायोटिक से पृथक नीम का गुण यह है कि इसके हमेशा इस्तेमाल के बाद भी बैक्टेरिया पर इसका असर खत्म नहीं होता। त्वचा के अलावा नीम मुख की समस्याओं जैसे केविटी, प्लांक़, जिंजिविटिस और अन्य मसूड़ों संबंधी बीमारियों से बचाव करता है। स्किन इंफेक्शन रोकने हेतु आजकल ऐसे कोस्मेटिक्स और स्किन केअर सामान चलन में हैं जिनमें नीम सबसे खास तत्व के रूप में शामिल किया जाता है। नीम की गोलियां भी मौजूद है जिससे शरीर के अंदर सफाई की जा सके। इनके उपयोग से पहले अपने डॉक्टर से जानकारी अवश्य लें। नीम के उपयोग हम सभी जानते हैं। शरीर के भीतर और बाहर दोनों ही क्षेत्रों में नीम के फायदे अनुपम हैं।
आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार, च्यवनप्राश का एक चम्मच रोजाना सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और यह वायरस के प्रसार को रोकने में मदद कर सकता है। योग गुरु रामदेव ने कहा कि कोविद -19 से लड़ने के लिए गिलोय और तुलसी मददगार हो सकते हैं
आयुष मंत्रालय ने कोरोना वायरस की बढ़ती घटनाओं के जवाब में प्रणाली की प्रतिरक्षा को बढ़ाने के लिए एक सलाह जारी की है जो विभिन्न देशों के साथ-साथ साझा की गई है। उपन्यास कोरोना वायरस रोग के मुख्य लक्षण बुखार, खांसी और सांस लेने में कठिनाई हैं। जनता को व्यक्तिगत स्वच्छता का पालन करने और साधारण उपचार के निवारक उपायों को अपनाने के लिए सलाह जारी की गई है जो आमतौर पर श्वसन लक्षणों को नियंत्रित करने और प्रतिरक्षा को मजबूत करने के लिए उपयोग किया जाता है
संकट के दौरान स्वयं की देखभाल के लिए आयुर्वेद की प्रतिरक्षा के उपायों कोविद 19 के प्रकोप के मद्देनजर, दुनिया भर में पूरी मानव जाति पीड़ित है। शरीर की प्राकृतिक रक्षा प्रणाली (प्रतिरक्षा) को बढ़ाना इष्टतम स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। “हम सभी जानते हैं कि रोकथाम इलाज से बेहतर है। हालांकि अभी तक कोविद-19 के लिए कोई दवा नहीं है, लेकिन निवारक उपाय करना अच्छा होगा जो इन समय में हमारी प्रतिरक्षा को बढ़ाते हैं।”
सलाहकार विज्ञापन आयुर्वेद में कहा गया है, जीवन का विज्ञान होने के नाते, स्वस्थ और खुश रहने के लिए प्रकृति के उपहारों का प्रचार करता है। निवारक देखभाल के बारे में आयुर्वेद का व्यापक ज्ञान आधार, “दिनचार्य” की अवधारणाओं से निकला है – दैनिक जीवन और “ऋतुच्यारा” – स्वस्थ जीवन को बनाए रखने के लिए मौसमी शासन। यह पौधों पर आधारित विज्ञान है। खुद के बारे में जागरूकता की सादगी और प्रत्येक व्यक्ति के उत्थान को बनाए रखने और अपनी प्रतिरक्षा को बनाए रखने से आयुर्वेद के शास्त्रीय शास्त्रों में जोर दिया जाता है। आयुष मंत्रालय निवारक स्वास्थ्य उपायों और श्वसन स्वास्थ्य के लिए विशेष संदर्भ के साथ प्रतिरक्षा को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित स्व-देखभाल दिशानिर्देशों की सिफारिश करता है। ये आयुर्वेदिक साहित्य और वैज्ञानिक प्रकाशनों द्वारा समर्थित हैं।
सामान्य उपाय- आयुष मंत्रालय की सलाह के अनुसार योगासन, प्राणायाम और ध्यान की कम से कम 30 मिनट की दैनिक प्रैक्टिस – हल्दी (हल्दी), जीरा (जीरा), धनिया (धनिया) और लहसून जैसे मसाले। खाना पकाने की सिफारिश।
आयुर्वेदिक प्रतिरक्षा बढ़ाने के उपाय- सुबह च्यवनप्राश 10gm (1tsf) लें। मधुमेह रोगियों को शुगर फ्री च्यवनप्राश लेना चाहिए। –
तुलसी (तुलसी), दालचीनी (दालचीनी), कालीमिर्च (काली मिर्च), शुंठी (सूखी अदरक) और मुनक्का (किशमिश) से बनी हर्बल चाय / काढ़ा (कढ़ा) दिन में एक या दो बार पिएं। यदि आवश्यक हो तो गुड़ (प्राकृतिक चीनी) और / या ताजा नींबू का रस अपने स्वाद में जोड़ें।
गोल्डन मिल्क- 150 मिली गर्म दूध में आधी चाय की चम्मच हल्दी (हल्दी) पाउडर – दिन में एक या दो बार।
सरल आयुर्वेदिक प्रक्रियाएँ
अनुनासिक अनुप्रयोग – तिल का तेल / नारियल का तेल या घी दोनों नथुने (प्रतिमा नस्य) में सुबह और शाम को लगाए
ऑयल पुलिंग थेरेपी- 1 टेबल स्पून तिल या नारियल का तेल मुंह में लें। नहीं पीते हैं, 2 से 3 मिनट के लिए मुंह में घुमाएं और इसे थूक दें, इसके बाद गर्म पानी से कुल्ला करें। यह दिन में एक या दो बार किया जा सकता है।
सूखी खांसी / गले में खराश के दौरान
ताज़े पुदीना (पुदीना) के पत्तों या अजवाईन (कैरवे के बीजों) के साथ भाप से साँस लेना एक दिन में एक बार किया जा सकता है। लवंग (लौंग) पाउडर को प्राकृतिक चीनी / शहद के साथ मिलाकर दिन में 2-3 बार खांसी या गले में जलन होने पर लिया जा सकता है। ये उपाय आम तौर पर सामान्य सूखी खांसी और गले में खराश का इलाज करते हैं। हालांकि, इन लक्षणों के बने रहने पर डॉक्टरों से परामर्श करना सबसे अच्छा है।
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