अपरा एकादशी; पारण का समय: 31 मई – सुनने मात्र से पाप हो जायेगे दूर
हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अपरा एकादशी के रूप में मनाया जाता है. इस बार अपरा एकादशी 30 मई को है. अपरा एकादशी के दिन अनजाने में हुई गलतियों और पापों को नष्ट के लिए भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है. पद्म पुराण के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने से मुनष्य भवसागर तर जाता है और उसे प्रेत योनि के कष्ट नहीं भुगतने पड़ते. अचला एकादशी व्रत कथा चारों दिशाओं में प्रसिद्धि देती है व सन्तान की उन्नति करने वाली है ।
युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन! ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का क्या नाम है तथा उसका माहात्म्य क्या है सो कृपा कर कहिए?
अपरा एकादशी पर विष्णु यंत्र की पूजा अर्चना का भी अपना अलग महत्व होता है. अपरा एकादशी पर श्रद्धालु पूरा दिन व्रत रहकर शाम के समय भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करते हैं जिससे उनको मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि अपनी गलतियों की क्षमा प्राप्ति के लिए अपरा एकादशी पर विधि विधान से पूजा अर्चना करने से भगवान विष्णु की कृपा अवश्य मिलती हैं.
अपरा एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त-
एकादशी तिथि प्रारंभ: 29 मई 2019 को दोपहर 03 बजकर 21 मिनट
एकादशी तिथि सामाप्त: 30 मई 2019 को शाम 04 बजकर 38 मिनट तक
पारण का समय: 31 मई 2019 को सुबह 05 बजकर 45 मिनट से 08 बजकर 25 मिनट
अपरा एकादशी के दिन ये उपाय करके ग्रह पीड़ा, वास्तुदोष और पारिवारिक कलह से पा सकते हैं छुटकारा-
– अपरा एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा उससे एक दिन पहले दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत नियम को लेकर शुरू हो जाती है. – दशमी तिथि के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए.- सुबह सूर्योदय से पहले उठें और अपने स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें और साफ कपड़े पहन कर विष्णु भगवान का ध्यान करना चाहिए. – पूर्व दिशा की तरफ एक पटरे पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की फोटो को स्थापित करें. इसके बाद धूप दीप जलाएं और कलश स्थापित करें.
– भगवान विष्णु को अपने सामर्थ्य के अनुसार फल फूल पान सुपारी नारियल लौंग आदि अर्पण करें और स्वयं भी पीले आसन पर बैठ जाएं.
– अपने दाएं हाथ में जल लेकर अपनी मुश्किलों को खत्म करने की प्रार्थना भगवान विष्णु से करें. – पूरा दिन निराहार रहकर शाम के समय अपरा एकादशी की व्रत कथा सुनें और फलाहार करें. – शाम के समय भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने एक गाय के घी का दीपक जलाएं. – अब दूसरे दिन सुबह ब्राह्मणों को भोजन कराकर तथा दक्षिणा देकर उसके बाद स्वयं खाना खाना चाहिएं.
–अपरा एकादशी पर घर मे धन की बरकत के लिए करें ये उपाय-
– अपरा एकादशी पर सूर्योदय से पहले उठें. – साफ हलके पीले रंग के कपड़े पहने. – ग्यारह पीले जनेऊ और ग्यारह ही केले लें. – अब तुलसी की माला से पीले आसन पर बैठकर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का तीन या पांच माला जाप करें. – जाप के बाद जनेऊ और केले भगवान कृष्ण के मंदिर में अर्पण कर दें.- स्वयं प्रसाद के रूप में एक केला घर पर ले आएं और परिवार के सभी सदस्यों को दे.
युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन! ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का क्या नाम है तथा उसका माहात्म्य क्या है सो कृपा कर कहिए?
भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! यह एकादशी ‘अचला’ तथा’ अपरा दो नामों से जानी जाती है। पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी है, क्योंकि यह अपार धन देने वाली है। जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, वे संसार में प्रसिद्ध हो जाते हैं।
इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है। अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भूत योनि, दूसरे की निंदा आदि के सब पाप दूर हो जाते हैं। इस व्रत के करने से परस्त्री गमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं।
जो क्षत्रिय युद्ध से भाग जाए वे नरकगामी होते हैं, परंतु अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी स्वर्ग को प्राप्त होते हैं। जो शिष्य गुरु से शिक्षा ग्रहण करते हैं फिर उनकी निंदा करते हैं वे अवश्य नरक में पड़ते हैं। मगर अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी इस पाप से मुक्त हो जाते हैं।
जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। मकर के सूर्य में प्रयागराज के स्नान से, शिवरात्रि का व्रत करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोमती नदी के स्नान से, कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान से, स्वर्णदान करने से अथवा अर्द्ध प्रसूता गौदान से जो फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत से मिलता है।
यह व्रत पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए अग्नि, पापरूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान, मृगों को मारने के लिए सिंह के समान है। अत: मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। अपरा एकादशी का व्रत तथा भगवान का पूजन करने से मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णु लोक को जाता है।
इसकी प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा।
एक दिन अचानक धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया।
दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।
हे राजन! यह अपरा एकादशी की कथा मैंने लोकहित के लिए कही है। इसे पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है।
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