आर्मी चीफ जनरल ने केंद्रीय मंत्री संगीन पर आरोप लगाए
आर्मी चीफ जनरल ने केंद्रीय मंत्री संगीन पर आरोप लगाए – सनसनी फेल गयी- आर्मी चीफ जनरल दलबीर सिंह सुहाग ने पूर्व आर्मी चीफ और केंद्रीय मंत्री (रिटायर्ड जनरल) वीके सिंह के खिलाफ संगीन आरोप लगाए हैं. दलबीर सिंह सुहाग ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया है. व्यक्तिगत रूप से दाखिल इस हलफनामे में कहा है कि वीके सिंह ने बाहरी कारणों के चलते रहस्यमयी तरीके से, दुर्भावनापूर्ण और मनमाने ढंग से सजा देने के लिए प्रमोशन को रोकने की कोशिश की.
पूर्व सेना प्रमुख वी के सिंह पर मौजूदा सेना प्रमुख दलबीर सिंह सुहाग ने आरोप लगाया है. सुहाग ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में कहा है “मुझे आर्मी कमांडर बनने से रोकने की साज़िश की गई. जिससे मैं आगे चल के सेना प्रमुख न बन सकूँ.” सेना प्रमुख ने ये हलफनामा उस याचिका के जवाब में लगाया जिसमें उनके सेना प्रमुख बनने की चुनौती दी गई है.
अब रिटायर हो चुके लेफ्टिनेंट जनरल रवि दस्ताने ने 2014 में सुहाग के खिलाफ याचिका दायर की थी. याचिका में कहा गया था कि मई 2012 में सुहाग पर अनुशासनात्मक रोक लगाई गई थी. इस रोक के रहते वो सेना की पूर्वी कमांड के प्रमुख नहीं बन सकते थे. लेकिन 1 जून 2012 को सेना प्रमुख बने विक्रम सिंह ने पक्षपात करते हुए ये रोक हटा दी. इसके बाद सुहाग को पूर्वी भारत का आर्मी कमांडर बना दिया गया.
रवि दस्ताने ने आरोप लगाया था कि इसी प्रमोशन की वजह से दलबीर सुहाग भविष्य में सेना प्रमुख बनने के दावेदार हो गए थे. चूँकि, उनका 2012 में हुआ प्रमोशन गलत था, इसलिए उन्हें सेना प्रमुख न बनने दिया जाए. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने तब ऐसा कोई भी आदेश देने से मना कर दिया था. तब से ये याचिका लंबित है.
सुहाग पर अनुशासनात्मक रोक जनरल वी के सिंह के सेना प्रमुख रहते लगाई गई थी. दिसंबर 2011 में सेना की 3 कॉर्प्स की तरफ से असम के जोरहाट में की गई कार्रवाई की वजह से ये रोक लगाई गई थी. 3 कॉर्प्स के कई अधिकारियों पर एक घर में घुसकर डकैती का आरोप लगा था. घटना के वक़्त दलबीर सिंह सुहाग 3 कॉर्प्स के कमांडिंग ऑफिसर थे.
दलबीर सिंह सुहाग ने अपने हलफनामे में कहा है कि ये बात साफ़ थी कि उनका इस घटना से कोई लेना-देना नहीं था. जिस वक्त ये घटना हुई वो छुट्टी पर थे. इसके बावजूद अचानक उन पर अनुशासनात्मक रोक लगा दी गई. सुहाग ने आरोप लगाया है कि इस घटना की आड़ में उन्हें पूर्वी भारत का आर्मी कमांडर बनने से रोकने की साज़िश रची गई. ये साज़िश खुद तत्कालीन सेना प्रमुख वी के सिंह ने रची. उनके बाद सेना प्रमुख बने जनरल विक्रम सिंह ने इस कार्रवाई की गलत मानते हुए निरस्त कर दिया.
इससे पहले जून 2014 में दाखिल हलफनामे में रक्षा मंत्रालय ने भी सुहाग के खिलाफ मई 2012 में हुई कार्रवाई को ‘साज़िश’ करार दिया था. हालाँकि, अब केंद्रीय मंत्री बन चुके वी के सिंह कई मौकों पर ये कह चुके हैं कि अगर सेना की कोई टुकड़ी डकैती जैसा अपराध करे तो उसके प्रमुख पर अनुशासनात्मक कार्रवाई होनी ही चाहिए. इसलिए, उन्होंने सुहाग पर रोक लगा कर बिल्कुल सही किया था.
सुहाग के हलफनामे में कहा गया है कि 2012 में जनरल वीके सिंह ने आर्मी चीफ रहते समय उन्हें प्रताड़ित किया ताकि वह आर्मी कमांडर न बन सकें. सुहाग का दावा है कि ये रक्षा मंत्रालय की जांच में भी साफ हो चुका है कि उन पर आरोप बेबुनियाद थे. इससे पहले जून 2014 में सुप्रीम कोर्ट लेफ्टिनेंट जनरल दलबीर सिंह सुहाग को आर्मी चीफ बनाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करने को राजी हो गया था. यह हलफनामा उसी याचिका पर दाखिल किया गया है.
लेफ्टिनेंट जनरल सुहाग, सेना प्रमुख जनरल विक्रम सिंह के रिटायर होने के बाद 1 अगस्त 2014 से नए सेना प्रमुख के रूप में कार्यभार संभाल चुके हैं. लेकिन एक अन्य वरिष्ठ सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल रवि दस्ताने ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा कि नए सेना प्रमुख का चयन पक्षपातपूर्ण है.
दरअसल जनरल वीके सिंह ने 2012 में सेना प्रमुख के अपने अंतिम दिनों के कार्यकाल के दौरान लेफ्टिनेंट जनरल दलबीर सिंह सुहाग पर अपनी खुफिया इकाई पर ‘कमान एवं नियंत्रण रखने’ में विफल रहने के लिए ‘अनुशासन एवं सतर्कता प्रतिबंध’ लगा दिए थे, जो तब तीन कोर के कमांडर थे.
बिक्रम सिंह के सेना प्रमुख बनते ही प्रतिबंध हटा लिए गए थे और सुहाग को पूर्वी सेना का कमांडर नियुक्त किया गया था. रक्षा मंत्रालय ने लेफ्टिनेंट जनरल रवि दस्ताने से संबंधित पदोन्नति मामले में एक हलफनामे में कहा था कि सुहाग के खिलाफ अनुशासनात्मक रोक के लिए जिन खामियों को आधार बनाया गया वे ‘जानबूझकर’, ‘अस्पष्ट’ और ‘अवैध’ थीं.