क्या है अनुच्छेद 35A? सुप्रीम कोर्ट में 26 फरवरी को सुनवाई
अनुच्छेद 35ए की संवैधानिक स्थिति क्या है? यह अनुच्छेद भारतीय संविधान का हिस्सा है या नहीं? क्या राष्ट्रपति के एक आदेश से इस अनुच्छेद को संविधान में जोड़ देना अनुच्छेद 370 का दुरूपयोग करना है? इन्हीं तमाम सवालों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल है.
जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों पर व्यापक कार्रवाई के संकेतों के बीच शुक्रवार रात जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक को हिरासत में ले लिया गया. कहा जा रहा है कि मलिक को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली आर्टिकल 35ए पर सुनवाई से पहले हिरासत एहतियातन हिरासत में लिया गया है. ये सुनवाई 26 FEB. सोमवार को हो सकती है.
कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 35-A पर सुनवाई से पहले जम्मू-कश्मीर में सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स (सीएपीएफ) की 100 अतिरिक्त कंपनियां यानी करीब 10 हजार जवान तैनात किए गए हैं। बीती रात कश्मीर में ताबड़तोड़ छापेमारी की गई। यासीन मलिक और जमात-ए-इस्लामी संगठन के मुखिया अब्दुल हमीद फयाज और उसके करीब 150 सदस्यों को हिरासत में लिया गया।
जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार देने वाले आर्टिकल 35A की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में 26 फरवरी को सुनवाई होनी है। दरअसल अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर की विधान सभा को स्थाई नागरिक की परिभाषा तय करने का अधिकार देता है, जिसे कि राज्य में 14 मई 1954 को लागू किया गया था। यह अनुच्छेद संविधान की किताबों में देखने को नहीं मिलता है।
सवाल ये है कि यदि अनुच्छेद 35A असंवैधानिक है तो सर्वोच्च न्यायालय ने 1954 के बाद से आज तक कभी भी इसे असंवैधानिक घोषित क्यों नहीं किया? यदि यह भी मान लिया जाए कि 1954 में नेहरु सरकार ने राजनीतिक कारणों से इस अनुच्छेद को संविधान में शामिल किया था तो फिर किसी भी गैर-कांग्रेसी सरकार ने इसे समाप्त क्यों नहीं किया?
वैसे अनुच्छेद 35ए से जुड़े कुछ सवाल और भी हैं. यदि अनुच्छेद 35ए असंवैधानिक है तो सर्वोच्च न्यायालय ने 1954 के बाद से आज तक कभी भी इसकी संवैधानिकता पर बहस क्यों नहीं की? यदि यह भी मान लिया जाए कि 1954 में नेहरु सरकार ने राजनीतिक कारणों से इस अनुच्छेद को संविधान में शामिल किया था तो फिर किसी भी गैर-कांग्रेसी सरकार ने इसे आज तक समाप्त क्यों नहीं किया?
सुप्रीम कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 35 A पर सुनवाई से पहले घाटी में व्याप्त तनाव के कारण शुक्रवार और शनिवार की दरम्यानी रात छापेमारी के दौरान करीब 150 लोगों को हिरासत में लिया गया। इसमें मुख्यरूप से जमात-ए-इस्लामी जम्मू एंड कश्मीर के प्रमुख अब्दुल हमीद फैयाज सहित इसके सदस्य शामिल हैं। हालांकि, पुलिस ने इसे नियमित प्रक्रिया करार देते हुये कहा कि कुछ नेताओं और संभावित पत्थरबाजों को हिरासत में लिया गया है।
अधिकारियों का कहना है कि जमात-ए-इस्लामी पर यह पहली बड़ी कार्रवाई है। सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 35 A पर सोमवार को सुनवाई होने की संभावना है जिसके तहत जम्मू कश्मीर के निवासियों को विशेष अधिकार मिले हुए हैं। संगठन पूर्व में हिज्बुल मुजाहिदीन की राजनीतिक शाखा के तौर पर काम करता था। हालांकि, उसने हमेशा खुद को एक सामाजिक और धार्मिक संगठन बताया। राज्य में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी होने के बावजूद तनाव व्याप्त है। सड़कों पर लोगों को समूहों में आते जाते देखा जा रहा है।
धारा 35A; इस अनुच्छेद को लागू करने के लिए तत्कालीन सरकार ने धारा 370 के अंतर्गत प्राप्त शक्ति का इस्तेमाल किया था।इतिहास की माने तो इसे राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 14 मई 1954 को लागू किया था। इस आदेश के राष्ट्रपति द्वारा पारित किए जाने के बाद भारत के संविधान में इसे जोड़ दिया गया। अनुच्छेद 35A धारा 370 का हिस्सा है। इस धारा के तहत जम्मू-कश्मीर के अलावा भारत के किसी भी राज्य का नागरिक जम्मू-कश्मीर में कोई संपत्ति नहीं खरीद सकता इसके साथ ही वहां का नागरिक भी नहीं बन सकता। नागरिक वो ही माना जाएगा जो कि 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या उससे पहले के 10 वर्षों से राज्य में रह रहा हो या इससे पहले या इसके दौरान वहां पहले ही संपत्ति हासिल कर रखी हो। उदाहरण के तौर पर इसके साथ ही अगर जम्मू-कश्मीर की लड़की किसी बाहरी लड़के से शादी करती है तो उसके सारे अधिकार समाप्त हो जाएंगे। इसके साथ ही उसके बच्चों को भी किसी तरह के अधिकार नहीं मिलेंगे।
इसे खत्म करने की बात इसलिए हो रही है क्योंकि इस अनुच्छेद को संसद के जरिए लागू नहीं किया गया है, दूसरा कारण ये है कि इस अनुच्छेद के ही कारण पाकिस्तान से आए शरणार्थी आज भी राज्य के मौलिक अधिकार और अपनी पहचान से वंचित हैं।
कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए अर्द्धसैनिक बलों की 100 अतिरिक्त कंपनियां (10,000 जवान) कश्मीर घाटी भेजी गई हैं। अधिकारियों ने इस तरह की व्यापक तैनाती के बारे में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। जमात ने एक बयान जारी कर लोगों को हिरासत में लिए जाने की निंदा की है। कहा कि यह कदम इस क्षेत्र में और अनिश्चितता की राह प्रशस्त करने के लिए भली-भांति रची गई साजिश है।
पुलिस और अन्य एजेंसियों ने व्यापक गिरफ्तारी अभियान चलाया और घाटी में कई घरों पर छापेमारी की। उसके केंद्रीय और जिला स्तर के कई नेताओं को गिरफ्तार किया गया। इसमें अमीर (प्रमुख) डॉ. अब्दुल हमीद फैयाज और वकील जाहिद अली (प्रवक्ता) शामिल हैं। जमात ने सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 35 ए पर एक याचिका की सुनवाई के पहले हुई छापेमारी को ‘संशय में डालने वाली’ करार दिया।
जम्मू-कश्मीर में सीआरपीएफ के 65 हजार जवान पहले से तैनात हैं। इसके साथ ही राज्य में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षाबल (सीआईएसएफ), सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) की भी टुकड़ियां तैनात हैं। पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने छापेमारी की वैधता पर शनिवार को सवाल उठाते हुए कहा कि ‘मनमाने’ कदम से राज्य में ‘मामला जटिल’ ही होगा। महबूबा ने ट्वीट किया, पिछले 24 घंटों में हुर्रियत नेताओं और जमात संगटन के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है। इस तरह की मनमानी कार्रवाई को समझ नहीं पा रही हूं, इससे जम्मू कश्मीर में केवल हालात जटिल ही होंगे। उन्होंने कहा, किस कानूनी आधार पर उनकी गिरफ्तारी न्यायोचित ठहराई जा सकती है?
इधर, मुंबई के एयर इंडिया कंट्रोल रूम में पाकिस्तान जाने वाले विमान को हाईजैक करने की धमकी मिली। इसके बाद देशभर के सभी हवाई अड्डों को हाई अलर्ट पर रखा गया है। सुरक्षा एजेंसियों की तरफ से देश के सभी महत्वपूर्ण ठिकानों पर सुरक्षा बढ़ाने के निर्देश के साथ ही यह भी कहा गया है कि पार्किंग में आनेवाली सभी गाड़ियों की कड़ाई से जांच करें।
यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर विधानसभा को कई तरह के विशेषाधिकार तो देता है लेकिन इसके चलते वहां के लाखों लोग हाशिये पर भी धकेल दिए गए हैं. अनुच्छेद 35ए और इसके प्रभावों को शुरुआत से समझते हैं.
1947 में हुए बंटवारे के दौरान लाखों लोग शरणार्थी बनकर भारत आए थे. देश भर के जिन भी राज्यों में ये लोग बसे, आज वहीं के स्थायी निवासी कहलाने लगे हैं. लेकिन जम्मू-कश्मीर में स्थिति ऐसी नहीं है. यहां आज भी कई दशक पहले बसे लोगों की चौथी-पांचवी पीढ़ी शरणार्थी ही कहलाती है और तमाम मौलिक अधिकारों से वंचित है.
एक आंकड़े के अनुसार, 1947 में 5764 परिवार पश्चिमी पकिस्तान से आकर जम्मू में बसे थे. इन हिंदू परिवारों में लगभग 80 प्रतिशत दलित थे. यशपाल भारती भी ऐसे ही एक परिवार से हैं. वे बताते हैं, ‘हमारे दादा बंटवारे के दौरान यहां आए थे. आज हमारी चौथी पीढी यहां रह रही है. लेकिन आज भी हमें न तो यहां होने वाले चुनावों में वोट डालने का अधिकार है, न सरकारी नौकरी पाने का और न ही सरकारी कॉलेजों में दाखिले का.’
यह स्थिति सिर्फ पश्चिमी पकिस्तान से आए इन हजारों परिवारों की ही नहीं बल्कि लाखों अन्य लोगों की भी है. इनमें गोरखा समुदाय के लोग भी शामिल हैं जो बीते कई सालों से जम्मू-कश्मीर में रह रहे हैं. लेकिन सबसे बुरी स्थिति वाल्मीकि समुदाय के उन लोगों की है जो 1957 में यहां आकर बस गए थे. उस समय इस समुदाय के करीब 200 परिवारों को पंजाब से जम्मू-कश्मीर बुलाया गया था. कैबिनेट के एक फैसले के अनुसार इन्हें विशेष तौर से सफाई कर्मचारी के तौर पर नियुक्त करने के लिए यहां लाया गया था. बीते 60 सालों से ये लोग यहां सफाई का काम कर रहे हैं लेकिन इन्हें आज भी जम्मू-कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं माना जाता. ऐसे ही एक वाल्मीकि परिवार के सदस्य मंगत राम बताते हैं, ‘हमारे बच्चों को सरकारी संस्थानों में दाखिला नहीं दिया जाता. किसी तरह अगर कोई बच्चा किसी निजी संस्थान या बाहर से पढ़ भी जाए तो यहां उन्हें सिर्फ सफाई कर्मचारी की ही नौकरी मिल सकती है.’
यशपाल भारती और मंगत राम जैसे जम्मू-कश्मीर में रहने वाले लाखों लोग भारत के नागरिक तो हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर राज्य इन्हें अपना नागरिक नहीं मानता. लिहाजा ये लोग लोकसभा चुनाव में तो वोट डाल सकते हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर में पंचायत से लेकर विधानसभा तक किसी भी चुनाव में भाग लेने का अधिकार इन्हें नहीं है. सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता जगदीप धनकड़ बताते हैं, ‘ये लोग भारत के प्रधानमंत्री तो बन सकते हैं लेकिन जिस राज्य में ये कई दशकों से रह रहे हैं वहां के ग्राम प्रधान भी नहीं बन सकते. और इनकी यह स्थिति उस संवैधानिक धोखे के कारण हुई है जिसे हम अनुच्छेद 35ए के नाम से जानते हैं.’
‘जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र’ के निदेशक आशुतोष भटनागर बताते हैं, ‘14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा एक आदेश पारित किया गया था. इस आदेश के जरिये भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35ए जोड़ दिया गया. यही आज लाखों लोगों के लिए अभिशाप बन चुका है.’ आशुतोष आगे कहते हैं, ‘अनुच्छेद 35ए जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को यह अधिकार देता है कि वह ‘स्थायी नागरिक’ की परिभाषा तय कर सके और उन्हें चिन्हित कर विभिन्न विशेषाधिकार भी दे सके. यह अनुच्छेद परोक्ष रूप से विधानसभा को यह अधिकार भी दे देता है कि वह लाखों लोगों को ‘स्थायी नागरिक’ की परिभाषा से बाहर रख सके और उन्हें हमेशा के लिए शरणार्थी बनाए रखे.’
अनुच्छेद 35ए (कैपिटल ए) का जिक्र संविधान की किसी भी किताब में नहीं मिलता. हालांकि संविधान में अनुच्छेद 35ए (स्मॉल ए) जरूर है, लेकिन इसका जम्मू-कश्मीर से कोई सीधा संबंध नहीं है. जगदीप धनकड़ बताते हैं, ‘भारतीय संविधान में आज तक जितने भी संशोधन हुए हैं, सबका जिक्र संविधान की किताबों में होता है. लेकिन 35ए कहीं भी नज़र नहीं आता. दरअसल इसे संविधान के मुख्य भाग में नहीं बल्कि परिशिष्ट (अपेंडिक्स) में शामिल किया गया है. यह चालाकी इसलिए की गई ताकि लोगों को इसकी कम से कम जानकारी हो.’ वे आगे बताते हैं, ‘मुझसे जब किसी ने पहली बार अनुच्छेद 35ए के बारे में पूछा तो मैंने कहा कि ऐसा कोई अनुच्छेद भारतीय संविधान में है ही नहीं है. कई साल की वकालत के बावजूद भी मुझे इसकी जानकारी नहीं थी.’
भारतीय संविधान का बहुचर्चित अनुच्छेद – 370 जम्मू-कश्मीर को कई विशेष अधिकार देता है. 1954 के जिस आदेश से अनुच्छेद 35ए को संविधान में जोड़ा गया था, वह आदेश भी राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 370 की उपधारा (1) के अंतर्गत ही दिया था. लेकिन आशुतोष कहते हैं, ‘भारतीय संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ देना सीधे-सीधे संविधान को संशोधित करना है. यह अधिकार सिर्फ अनुच्छेद 368 के तहत भारतीय संसद को है. इसलिए 1954 का राष्ट्रपति का आदेश पूरी तरह से असंवैधानिक है.’