अरुणाचल प्रदेश में फिर से कांग्रेस की सरकार लड़खड़ा गई
सुप्रीम कोर्ट से बहाली के एक महीने बाद ही अरुणाचल प्रदेश में फिर से कांग्रेस की सरकार लड़खड़ा गई है। कांग्रेस के हाथ से फिर अरुणाचल प्रदेश निकलता हुआ नजर आ रहा है। खबर है कि 45 में से 44 विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। बड़ी बात ये है कि इसमें मुख्यमंत्री पेमा खांडू भी शामिल हैं। सभी बागी विधायकों ने क्षेत्रीय दल पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल का दामन थाम लिया है। खबर है कि पीपीए नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस का साथ दे सकता है। मई 2016 में भी पीपीए ने इस एलायंस का साथ दिया था जब राज्य में बीजेपी की सरकार बनी थी। पीपीए असम की बीजेपी सरकार में मंत्री हेमंत विस्वा शर्मा की पार्टी है।
—-कांग्रेस ने अरुणाचल प्रदेश में बागी विधायकों को वापस पार्टी में मिलाकर महीनों पुराने तख्तापलट को नाकाम कर दिया। छह महीने पहले ये विधायक कलिखो पुल की अगुआई में पार्टी छोड़कर चले गए। इसकी वजह से नवाम तुकी की सरकार गिर गई। हालांकि, अगर सूत्रों का भरोसा किया जाए तो कांग्रेस को इस कोशिश में रातोंरात कामयाबी नहीं मिली। वह बागी विधायकों लेकर बीते डेढ़ महीने से काम कर रही थी। सूत्रों ने बताया कि करीब डेढ़ महीने पहले राज्य के कांग्रेसी नेताओं को इस बात का एहसास हुआ कि कलिखो पुल के खेमे में सब कुछ सही नहीं है। पेमा खांडू और पुल के कैबिनेट में डिप्टी सीएम चौना मीन दोनों ही नाखुश थे। ये नाराजगी पुल के कथित ‘तानाशाही भरे तरीके’ और उनके फैसलों को लेकर थी। दुर्भाग्यवश उन्होंने ऐसे ही आरोप तुकी के खिलाफ भी लगाए थे। कांग्रेसी नेता खास तौर पर अरुणाचल ईस्ट के सांसद निनॉन्ग एरिंग ने तुरंत इन नाराज नेताओं से संपर्क साधा। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कहीं अता पता नहीं था। यह संदेश तुरंत कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी को दिया गया। सोनिया ने बागी खेमे से मोलतोल से खुद को दूर रखा। इसके बाद राज्य के नेताओं और कांग्रेस प्रभारी ने इस नाजुक हालात को संभाला। अनौपचारिक बातचीत करीब एक महीने तक चली। कई तरह की अफवाहें फैलीं लेकिन खांडू और मीन ने बयान जारी करके कहा कि सब कुछ ठीक है। कांग्रेस के मध्यस्थों ने उन दोनों से कहा कि दोनों की पसंद से ही उनमें में से कोई एक कांग्रेसी सरकार का सीएम होगा। इस बातचीत में और तेजी उस वक्त आ गई, जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया। सुप्रीम कोर्ट में तुकी के वकील सीनियर कांग्रेसी लीडर कपिल सिब्बल ने तुकी को मनाया कि पार्टी के हित में उन्हें किसी दूसरे के लिए रास्ता खाली करना होगा। सूत्रों के मुताबिक, इस योजना के बारे में तुकी को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अगले ही दिन बता दिया गया। वह राजी हो गए। कांग्रेसी सांसद एरिंग और अन्य मीन के के संपर्क में रहे। कांग्रेस के लिए अप्रत्याशित यह बात रही कि विद्रोहियों ने खुद से ही खांडू को अपना नेता चुन लिया। पार्टी के एक सीनियर नेता ने कहा, ‘यह फैसला उनके बीच से ही आया। और वे बागी नहीं हैं। वे सभी कांग्रेसी हैं।’ शुक्रवार सुबह यह प्रस्ताव सोनिया गांधी के पास पहुंचा, जिसे उन्होंने मंजूरी दे दी। यह संदेश बागी खेमे तक पहुंचाया गया जो गुवाहाटी से ईटानगर शाम को ही पहुंच गए। पूरी रात कांग्रेसी नेता बेचैन थे। वे जानते थे कि बीजेपी जवाबी हमला कर सकती है। हालांकि, सारी चीजें कांग्रेस के तयशुदा स्क्रिप्ट के मुताबिक ही हुईं और सभी विधायकों ने बैठक कर खांडू को अपना नेता चुन लिया।
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इस पार्टी की स्थापना 1979 में एक क्षेत्रीय दल के रूप में हुई थी। भूतपूर्व मुख्यमंत्री कालिखो पुल जो नबाम तुकी सरकार में मंत्री थे, फरवरी 2016 में पीपीए में शामिल हो गए थे। उस वक्त कांग्रेस के 24 विधायक उनके साथ पीपीए में शामिल हुए थे। शायद यही वजह है कि खांडू ने बीजेपी की जगह पीपीए को चुना है।
60 सदस्यीय अरुणाचल प्रदेश की विधानसभा में कांग्रेस के 46 विधायक हैं, जबकि बीजेपी के 11 विधायक हैं। पेमा खांडू पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत दोरजी खांडू के बेटे हैं। कांग्रेस में पहली बगावत नवंबर, 2015 में हुई थी। तभी से वहां राजनीतिक उथल-पुथल का दौर जारी है। उस समय कांग्रेस की सरकार गिर गई थी और कालिखो पुल की अगुवाई में नई सरकार बनी थी, जिसे बीजेपी के 11 विधायकों ने समर्थन दिया था। गौर हो कि खांडू के विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद दो निर्दलीयों और 45 पार्टी विधायकों के समर्थन से कांग्रेस ने एक बार फिर राज्य में सरकार बना ली थी। तेजी से बदले घटनाक्रम के बाद बागी नेता खालिको पुल अपने 30 साथी बागी विधायकों के साथ पार्टी में लौट आए थे। गौरतलब है कि पुल बागी होकर मुख्यमंत्री बने थे, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने अपदस्थ कर दिया था।