भाजपा को 99 सीटो पर रोकने वाला चाणक्य कौन?
राजनीति का ‘जादूगर’ ; कौन है वो- जिसे नाम दिया गया है- हिमालयायूके न्यूज पोर्टल की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
TOP HIGH LIGHTER भाजपा को उस तरह से जीत नहीं मिली, जिसकी उसे उम्मीद थी # पिछले चुनाव के मुकाबले सीटों का इजाफा कांग्रेस पार्टी के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं #कांग्रेस ने सुधारा प्रदर्शन #पिछले चुनाव में हुए चुनाव में कांग्रेस ने 61 सीटें जीती थी। वहीं, इस बार पार्टी ने लगभग 80 सीटों पर कब्जा किया # गुजरात विधानसभा चुनावो में, बीजेपी ने 99 सीट जबकि कांग्रेस व सहयोगी 82 सीटे प्राप्त की है, जबकि बीजेपी ने 150 सीट की अपेक्षा की थी, 100 अंक तक भी नही पहुंच पायी, गुजरात विधानसभा चुनावो के आचार संहिता लागू होने से लेकर परिणाम आने तक के घटनाक्रम पर नजर डाली जाये तो यह विजय कोई महाविजय नही मानी जा सकती, आचार संहिता लागू होने में अनावश्यक देरी से शुरू हुआ घटनाक्रम के बाद प्रधानमंत्री की ताबडतोड घोषणाये, रैलियां, वोट देने के लिए लाइन में लगने से लेकर अनेक घटनाक्रम साबित करते हैं कि भाजपा को 99 सीटे पर रोकने वाले चाणक्य ने अब राजस्थान के चक्रव्यूह की तैयारी कर ली है, कौन है वो जिसने भाजपा को बहुत ज्यादा खुश होने से रोक दिया, और करीबन 20 सीटे घटा दी,#गहलोत बीते छह महीने से गुजरात में थे और कांग्रेस चुनाव की रणनीतिक भूमिका के अग्रणी थे। चुनाव के नतीजो से स्पष्ट हो गया कि इस बार गहलोत की रणनीति पर बीजेपी के चाणक्य की धार कुंद हो गई।
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वही शिवसेना ने इस पर कहा है
गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों पर तंज कसते हुए शिव सेना ने सोमवार को कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपेक्षित जीत हासिल नहीं कर सकी है. शिव सेना सांसद और प्रवक्ता संजय राउत ने मीडिया से कहा, “भाजपा को गुजरात में जीतना ही था. वह राज्य में 22 वर्षो से सत्ता में है. उन्होंने धनबल का इस्तेमाल किया और अभियान के दौरान 14 मुख्यमंत्रियों को भेजा.”
राउत ने कहा, “उनकी जीत पहले से तय थी, लेकिन भाजपा को उस तरह से जीत नहीं मिली, जिसकी उसे उम्मीद थी.” उन्होंने कहा, “देश में माहौल बदल रहा है और सेना कांग्रेस को एक प्रमुख विपक्षी दल के रूप में देखती है.”उन्होंने आगे कहा, “हम भाजापा और कांग्रेस दोनों को बधाई देते हैं. गुजरात के नतीजे पूरे देश की सोच निर्धारित करेंगे.” भाजपा 1995 से गुजरात में सत्ता में है और 99 सीटों के साथ उसके चुनाव जीतने की संभावना है. गुजरात की 182 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए 92 सीटों की आवश्यकता है.
राजनीति का ‘जादूगर’ ;अशोक गहलोत ऐसा नहीं है कि बीजेपी के पास ही चाणक्य हैं। कांग्रेस को गुजरात में संजीवनी दिलाना वाला असली चेहरा राजस्थान का था। जिसे जब कांग्रेस आलाकमान और राहुल गांधी ने गुजरात का प्रभारी बना कर भेजा तो पार्टी के अंदर उसके सियासी प्रतिद्वंद्वियो के चेहरे पर मुस्कान तैर गई। अप्रैल 26, 2017 को कांग्रेस ने राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को गुजरात के लिए पार्टी का प्रभारी महासचिव बनाया गया, उसके सियासी प्रतिद्वंद्वियो की सोच थी इस नेता का राजनीति जीवन दांव हैं। इतना ही नहीं गुजरात का प्रभारी बनना इस नेता को राजस्थान की सियासत से उसे दूर करने की साजिश समझा जाने लगा। मगर गुजरात के चुनाव अभियान ने उन्हें फिर मज़बूत भूमिका में खड़ा कर दिया। वो इस कदर चुनाव अभियान में जुटे कि दिवाली पर भी अपने घर नहीं लौटे। वो ना तो किसी प्रभावशाली जाति से हैं, ना ही किसी प्रभावशाली जाति से उनका नाता है, वो दून स्कूल में नहीं पढ़े। वो कोई कुशल वक्ता भी नहीं हैं। वो सीधा-सादा खादी का लिबास पहनते हैं और रेल से सफ़र करना पसंद करते हैं। राजस्थान के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अशोक गहलोत – जिसे राजस्थान की राजनीति का ‘जादूगर’ भी कहा जाता है।
“यूँ वे बहुत सीधे-सादे दिखते हैं, लेकिन 2003 में प्रवीण तोगड़िया को उस वक्त गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जब उत्तर भारत की सरकारें उन पर हाथ डालने से बचती थीं। ऐसे ही आसाराम बापू के मामले में पुलिस को सख्त कार्रवाई का निर्देश दिया और यही कारण है कि आसाराम बापू अब तक जेल में है।” अशोक गहलोत अपना राजनैतिक बयान खुद लिखते हैं और एक-एक शब्द पर गौर करते हैं। बीजेपी के एक पूर्व मंत्री कहते है, “गहलोत के बयान बहुत मारक होते हैं।” गहलोत उस वक्त पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने जब सूबे की सियासत में स्वर्गीय भैरों सिंह शेखावत का जलवा था। विपक्ष में रहते गहलोत स्वर्गीय शेखावत के प्रति बहुत आक्रामक थे। लेकिन जब शेखावत बीमार हुए तब गहलोत उन लोगों में से थे जो लगातार उनकी देखरेख करने जाते रहे।
राजस्थान में चक्रव्यूह की तैयारी में जुटे अशोक गहलौत
वही गहलौत ने राजस्था न की घेराबंदी शुरू कर दी है- राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार पर भ्रष्टाचार में डूबे होने का आरोप लगाते हुए तंज कसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘वसुंधरा मॉडल’ का निरीक्षण करना चाहिए और कालाधन वापस लाने के लिए इसका इस्तेमाल करना चाहिए। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आरोप लगाया है कि आजादी के बाद पूरे देश में वसुंधरा राजे शायद पहली नेता होंगी, जिन्होंने देश के एक भगोड़े के पक्ष में विदेशी सरकार को हलफनामा दिया। इतना बड़ा अपराध करने के बाद तो राजे का नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए था। गहलोत ने कहा कि वसुंधरा राजे के धौलपुर के महल में जो पैसा लगा है वह पैसा मॉरीशस से आया था। वही पैसा लखनऊ और दिल्ली में भी लगा है। उन्होंने कहा कि यह करोड़ों रुपये का मामला है। धौलपुर में 7 स्टार होटल बन गया है, उसकी जांच करे तो वास्तव में मॉरीशस के रास्ते आए पैसे का कैसे उपयोग हुआ है, जांच में सामने आ जाएगा। यह किसी से छिपा नहीं है कि ललित मोदी के जमाने में ‘पावर ब्रोकर’ के रूप में जो पैसा लूटा गया था, वही पैसा मॉरीशस के रास्ते इनकी कम्पनियों में आया है। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि वसुंधरा राजे ने एक बार भी मीडिया को अपने ऊपर लगे आरोपों का जवाब नहीं दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी मौन धारण किए हुए हैं। उन्होंने विदेशमंत्री सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा है। उन्होंने कहा कि उनकी दृष्टि से या तो उनका भी मानना यही होगा कि ये तीनों दोषी हैं अथवा वह राजनैतिक कारणों से बचाने में लगे हुए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि राजस्थान में आज सरकार नाम की कोई चीज नहीं है। यह एक निकम्मी और भ्रष्ट सरकार है। राजे की पिछली सरकार के समय ललित मोदी मौजूद था। आज वह अदृश्य रूप से मौजूद है। उन्होंने कहा, आश्चर्य इस बात का है कि वसुंधरा राजे आज भी कुर्सी पर बैठी हैं। मैं सोच रहा था कि नैतिकता के नाते विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले वह शायद इस्तीफा दे देंगी।
बेहतर प्रबंधन के लिए याद किया जाता
गहलोत को मुफ्त दवा योजना और अकाल राहत के बेहतर प्रबंधन के लिए याद किया जाता है। साल 2003 में विधानसभा के चुनाव हुए तो गहलोत अपनी वापसी के लिए ज़ोर लगा रहे थे। उस वक्त नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। मोदी ने चुनाव अभियान में भीलवाड़ा की एक सभा में गहलोत और उनकी कांग्रेस सरकार पर जम कर प्रहार किए। मोदी ने गहलोत के बोलने की शैली की खिल्ली उड़ाई, कहा, “मुख्यमंत्री क्या बोलते हैं, समझना मुश्किल है।”
गुजरात से गहलोत का पुराना रिश्ता रहा है। जब 2001 में गुजरात में भूकंप आया, उस वक्त शायद राजस्थान पहला राज्य होगा जो मदद के लिए सबसे पहले पहुंचा। उस वक्त गहलोत मुख्यमंत्री थे। उन्होंने तुरंत टीम गठित करवाई और अपने अधिकारियों को राहत सामग्री के साथ गुजरात भेजा। गुजरात दंगों के बाद राजस्थान में पीड़ितों के लिए राहत कैंप खोले। कांग्रेस ने 2005 में जब दांडी मार्च की हीरक जयंती मनाई और साबरमती से दांडी तक 400 किलोमीटर की यात्रा निकाली तो गहलोत को समन्वयक बना कर भेजा गया। राहुल गाँधी इस यात्रा में बोरसाद से शामिल हुए और कुछ किलोमीटर तक साथ चले।
गुजरात चुनाव में भले ही भाजपा लगातार पांचवी बार सत्ता को अपने कब्जे में कर लिया है। लेकिन पिछले चुनाव के मुकाबले सीटों का इजाफा कांग्रेस पार्टी के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है। 2012 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने 61 सीटें जीती थी। वहीं, इस बार पार्टी ने लगभग 80 सीटों पर कब्जा किया है। इस चुनाव में राहुल गांधी ने एग्रसिव प्रचार किया था लेकिन, सीटों में इस इजाफे का श्रेय कांग्रेस के गुजरात चुनाव के प्रभारी अशोक गहलोत को भी जाता है। राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने पर्दे के पीछे से इस चुनाव की रणनीति बनाईं थी।
साल 1982 में जब वो दिल्ली में राज्य मंत्री पद की शपथ लेने तिपहिया ऑटोरिक्शा में सवार होकर राष्ट्रपति भवन पहुंचे तो सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें रोक लिया था। मगर तब किसी ने सोचा नहीं था कि जोधपुर से पहली बार सांसद चुन कर आया ये शख्स सियासत का इतना लम्बा सफ़र तय करेगा। उनके साथ काम कर चुके पार्टी के एक नेता ने कहा कि गहलोत कार्यकर्ताओं के नेता हैं और नेताओं में कार्यकर्ता। उनकी सादगी, नम्रता, दीन दुखियारों की रहनुमाई और पार्टी के प्रति वफ़ादारी ही उनकी पूंजी है। मगर विरोधियों की नज़र में वो एक औसत दर्जे के नेता हैं जो सियासी पैंतरेबाज़ी में माहिर हैं। कांग्रेस में उनके विरोधी तंज़ के साथ कहते हैं, “गहलोत हर चीज़ में ‘मैसेज’ देने की राजनीति करते हैं। इसी मैसेज के चक्कर में दो बार कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा।” हिमालयायूके न्यूज पोर्टल के अनुसार- 2018 में राजस्थान विधानसभा चुनाव मे अशोक गहलौत एक नया इतिहास लिखने में सक्षम साबित हो सकते हैं-
शीघ्र प्रकाशित पूर्व-मुख्यमंत्री-अशोक-गहलोत की राजस्थान विजय की तैयारी – soon publish ; www.himalayauk.org (Newsportal)