‘सम भवते सम ग्रह’। जो प्रभावित करता है वह ग्रह है
मानवीय जीवन की कुछ घटनाओं के बारे में कहा जाता है कि इनके बारे में केवल ईश्वर ही जानता है, कोई साधारण मनुष्य इसकी पूर्ण गणना नहीं कर सकता परन्तु ज्योतिष के समक्ष यह चुनौती के रूप में खड़ी होती है। जातक के भूत, भविष्य एवं वर्तमान से संबंधित जानकारी बताता है ज्योतिष शास्त्र। यह पूर्ण विज्ञान है। जातक के जन्म के समय मौजूदा ग्रह, नक्षत्र, इत्यादि का ख्याल रखते हुए उसके जीवन काल की गणना की जाती है।
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‘सम भवते सम ग्रह’। जो प्रभावित करता है वह ग्रह है
फलित ज्योतिष उस विद्या को कहते हैं जिसमें मनुष्य तथा पृथ्वी पर, ग्रहों और तारों के शुभ तथा अशुभ प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। ज्योतिष शब्द का यौगिक अर्थ ग्रह तथा नक्षत्रों से संबंध रखनेवाली विद्या है। इस शब्द से यद्यपि गणित (सिद्धांत) ज्योतिष का भी बोध होता है, तथापि साधारण लोग ज्योतिष विद्या से फलित विद्या का अर्थ ही लेते हैं।
ग्रहों तथा तारों के रंग भिन्न-भिन्न प्रकार के दिखलाई पड़ते हैं, अतएव उनसे निकलनेवाली किरणों के भी भिन्न भिन्न प्रभाव हैं। इन्हीं किरणों के प्रभाव का भारत, बैबीलोनिया, खल्डिया, यूनान, मिस्र तथा चीन आदि देशों के विद्वानों ने प्राचीन काल से अध्ययन करके ग्रहों तथा तारों का स्वभाव ज्ञात किया। पृथ्वी सौर मंडल का एक ग्रह है। अतएव इसपर तथा इसके निवासियों पर मुख्यतया सूर्य तथा सौर मंडल के ग्रहों और चंद्रमा का ही विशेष प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी विशेष कक्षा में चलती है जिसे क्रांतिवृत्त कहते हैं। पृथ्वी फलित ज्योतिष उस विद्या को कहते हैं जिसमें मनुष्य तथा पृथ्वी पर, ग्रहों और तारों के शुभ तथा अशुभ प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। ज्योतिष शब्द का यौगिक अर्थ ग्रह तथा नक्षत्रों से संबंध रखनेवाली विद्या है। इस शब्द से यद्यपि गणित (सिद्धांत) ज्योतिष का निवासियों को सूर्य इसी में चलता दिखलाई पड़ता है। इस कक्षा के इर्द गिर्द कुछ तारामंडल हैं, जिन्हें राशियाँ कहते हैं। इनकी संख्या है। मेष राशि का प्रारंभ विषुवत् तथा क्रांतिवृत्त के संपातबिंदु से होता है। अयन की गति के कारण यह बिंदु स्थिर नहीं है। पाश्चात्य ज्योतिष में विषुवत् तथा क्रातिवृत्त के वर्तमान संपात को आरंभबिंदु मानकर, 30-30 अंश की 12 राशियों की कल्पना की जाती है। भारतीय ज्योतिष में सूर्यसिद्धांत आदि ग्रंथों से आनेवाले संपात बिंदु ही मेष आदि की गणना की जाती है। इस प्रकार पाश्चात्य गणनाप्रणाली तथा भारतीय गणनाप्रणाली में लगभग 23 अंशों का अंतर पड़ जाता है। भारतीय प्रणाली निरयण प्रणाली है। फलित के विद्वानों का मत है कि इससे फलित में अंतर नहीं पड़ता, क्योंकि इस विद्या के लिये विभिन्न देशों के विद्वानों ने ग्रहों तथा तारों के प्रभावों का अध्ययन अपनी अपनी गणनाप्रणाली से किया है। भारत में 12 राशियों के 27 विभाग किए गए हैं, जिन्हें नक्षत्र कहते हैं। ये हैं अश्विनी, भरणी आदि। फल के विचार के लिये चंद्रमा के नक्षत्र का विशेष उपयोग किया जाता है।
हिन्दू पौराणिक कथाओं में ग्रह के बारे में कहा गया है- ‘सम भवते सम ग्रह’। इसका मतलब है जो प्रभावित करता है उसे ग्रह कहा जाता है। ‘बृहत पराशर होरा शास्त्र'(अध्याय 2, पद्य 3-4) के अनुसार भगवान विष्णु के कुछ अवतार धीरे-धीरे ग्रहों के रूप में विकसित हो गए। ये ग्रह और इनकी स्थिति ही व्यक्तियों को उनके कर्मों या कार्यों का फल देती है। ज्योतिष के अनुसार ग्रह वे खगोलीय पिंड हैं, जो पृथ्वी के साथ-साथ अंतरिक्ष में गतिमान हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि ये खगोलीय पिंड प्रकृति, पृथ्वी और पृथ्वी रहने वाले जीवों पर काफी हद तक अपना प्रभाव डालते हैं। वैदिक ज्योतिष के दृष्टिकोण से सूर्य सबसे चमकीला ग्रह है तथा चन्द्रमा उपग्रह है। इनके अलावा बाकी ग्रह शुक्र, बुध, मंगल, बृहस्पति और शनि हैं जबकि राहु और केतू को संवेदनशील या छाया ग्रह माना जाता है।
ज्योतिष के आधार पर शुभाशुभ फल ग्रहनक्षत्रों की स्थिति विशेष से बतलाया जाता है। इसके लिये गणित द्वारा ग्रह तथा तारों की स्थिति ज्ञात करनी पड़ती है, अथवा पंचांगों, या नाविक पंचागों, से उसे ज्ञात किया जाता है। ग्रह तथा नक्षत्रों की स्थिति प्रति क्षण परिवर्तनशील है, अतएव प्रति क्षण में होनेवाली घटनाओं पर ग्रह तथा नक्षत्रों का प्रभाव भी विभिन्न प्रकार का पड़ता है। वास्तविक ग्रहस्थिति ज्ञात करने के लिए गणित ज्योतिष ही सहायक है। यह फलित ज्योतिष के लिये वैज्ञानिक आधार बन जाता है।
सूर्य को सबसे पुराने ग्रहों में से एक के रूप में जाना जाता है। यह जीवन का प्रतिनिधित्व करता है। सूर्य असल में कोई ग्रह नहीं है भले ही इसे ज्योतिषीय गणना के लिए ग्रह के रूप में देखा जाता है। सूर्य अहंकार और जागरुकता के साथ-साथ शारीरिक ऊर्जा का भी प्रतीक है। इतिहास में इसे कई नामों से जाना जाता है। सूर्य को कई नामों से जाना जाता रहा है और ऐसा माना जाता है कि संसार को इसका ज्ञान स्वयं ब्रम्हा ने दिया है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सूर्य अदिति और ऋषि कश्यप के पुत्र हैं।
ज्योतिष की दृष्टि से एक कुंडली में सूर्य आत्मा, स्वास्थ्य, पिता, शक्ति, रॉयल्टी, सत्ता, शोहरत, नाम, साहस, विरासत, चिकित्सा, आत्म-बोध, प्रभाव, प्रतिष्ठा, ताकत, एहसान, ज्ञान और अन्य कई तथ्यों का प्रतीक है। सूर्य सभी व्यक्तियों की इच्छाशक्ति, ऊर्जा और सौभाग्य को बढ़ाता है। यह व्यक्तियों को बेहतर जीवन जीने में मदद करता है। किसी व्यक्ति, उसके व्यक्तित्व, ज्ञान और प्राप्तियों आदि सभी में सूर्य एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
एक व्यक्ति अपने जीवन में जो भी बनना चाहता है, जो कामना करता है, उसकी सोचने की दिशा, उसके मूलभूत प्रश्न, ये सब सूर्य से ही निश्चित होते हैं। यह जीवनशक्ति, नेतृत्व, रचनात्मकता और मानव जाति की विशालता का प्रतिनिधित्व करता है। सूर्य अपनी ऊर्जा किस प्रकार प्रकट करेगा यह सूर्य की स्थिति, उसके भाव (घर या स्थान) जिसमें में वह बैठा है, अन्य ग्रहों पर पड़ने वाला उसका प्रभाव और सूर्य पर पड़ने वाला बाकी ग्रहों के प्रभाव पर निर्भर करता है। किसी व्यक्ति की कुंडली में जिस भी स्थान या भाव में सूर्य बैठा होता है, उसी से पता चलता है कि व्यक्ति किस क्षेत्र में अपनी पहचान बनाएगा। व्यक्ति को आत्म-अनूभूति सूर्य के उसी घर के प्रभाव से होती है।
सूर्य और इसकी स्थिति किसी व्यक्ति की पहचान पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव को दर्शाती है। सूर्य की स्थिति या इसका भाव हम पर विशेष प्रभाव डालता है और एक विशिष्ट व्यक्ति बनने में हमारी मदद करता है। अगर सूर्य कुंडली में सही स्थान पर हो तो यह उपर वर्णित घटकों पर सकारात्मक प्रभाव डालते हुए व्यक्ति की जिन्दगी को बदल देता है। किंतु अगर यह सही स्थान पर न हो तो व्यक्ति को सचेत रहने की ज़रूरत होती है।
चन्द्रमा
ज्योतिष में चन्द्रमा को मस्तिष्क के रूप में देखा जाता है जो स्वभाव से ग्रहणशील है तथा व्यक्ति के अवचेतन, उसकी भावनाओं और उसके व्यवहार को नियंत्रित करता है। यह आंतरिक जीवन की शक्ति को दर्शाता है और व्यक्ति के दूसरों के प्रति व्यवहार को नियंत्रित करता है। चन्द्रमा एक विशेष प्रभाव छोड़ता है जो व्यक्ति के दिमाग में एक खास किस्म की संवेदनशीलता पैदा कर देता है। ज्योतिष में चन्द्रमा को कई नाम दिए गए हैं जैसे रोम के लोगों ने चन्द्रमा को लूना कहा है वहीं यूनानियों ने इसे सेलिन और आर्टेमिस का नाम दिया है। हरिवंश पुराण के अनुसार चन्द्रमा को ऋषि अत्रि का पुत्र माना गया है जिसका पालन-पोषण दस दिशाओं द्वारा किया गया।
ज्योतिष के अनुसार चन्द्रमा मां, यात्रा, दिल, मन, भावनाओं, तरल, बागवानी, परिवर्तन, लोकप्रियता, शैशव, व्यक्तित्व तथा अन्य कई के प्रति हमारी रूचियों और हमारे लगाव को दर्शाता है। चन्द्रमा को ही व्यक्ति की प्रजनन क्षमता, विकास, लंबी यात्रा, मानसिक शांति, स्मृति, माँ बनने और बच्चे के जन्म के लिए जिम्मेदार माना गया है। चन्द्रमा सहज ज्ञान से संबंधित है और यह व्यक्ति को उसके अवचेतन मन से जुड़ने में मदद करता है। यह इसी अवचेतन की वजह से किए जाने वाले हमारे व्यवहार को भी प्रभावित करता है। चन्द्रमा दर्शाता है कि हम स्वयं को तथा दूसरों को किसी विपदा से बचाने के लिए किस तरह से प्रतिक्रिया करते हैं।
किसी व्यक्ति पर चन्द्रमा अपना प्रभाव किस प्रकार छोड़ता है यह उस व्यक्ति की कुंडली पर निर्भर करता है। कुंडली में बैठा चन्द्रमा ही यह बताता है कि व्यक्ति किस तरह प्रतिक्रिया करता है और उसकी भावनात्मक जरूरतें क्या हैं? कुंडली में जिस स्थान पर चन्द्रमा विराजमान होता है वह दर्शाता है कि व्यक्ति सुरक्षा पाने के लिए किस दिशा या क्षेत्र में काम करेगा। इसी क्षेत्र में व्यक्ति सबसे कमजोर और बचाव की मुद्रा में होता है। इसीलिए इसी क्षेत्र विशेष में व्यक्ति सबसे ज्यादा विकास भी करता है।
चन्द्रमा और इसकी स्थिति व्यक्ति के भावनात्मक अनुभवों को दर्शाती है जो उसे मानसिक तौर पर प्रभावित करते हैं। ये प्रभाव हमारी भावनात्मक प्रवृति के ज़रिए हमारे व्यवहार और आदतों पर भी असर डालते हैं। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में चन्द्रमा सही जगह पर बैठा हो तो यह अपने अंतर्गत आने वाले घटकों के प्रभावों को बढ़ा देता है लेकिन अगर यह सही स्थान पर न बैठा हो तो उस व्यक्ति को संबंधित क्षेत्र में सचेत रहना चाहिए।
मंगल
कहा जाता है कि मंगल ग्रह से संबंधित मामलों में अहंकार का भाव रहता है। यह एक आक्रामक ग्रह है जो मानव जाति के बीच विभाजन और बंटवारे का कारण बनता है। लेकिन साथ ही ये व्यक्ति को हौसला और शारीरिक शक्ति भी प्रदान करता है। यह व्यक्ति को सफल होने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति भी प्रदान करता है। मंगल व्यक्ति के पौरुष पक्ष को दर्शाता है। यह व्यक्ति को स्वभाव से आक्रामक, निर्णायक, उतावला और रूखा भी बनाता है। इसके साथ-साथ मंगल व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर बना देता है ताकि वो तमाम तरह की विसंगतियों का सफलतापूर्वक सामना कर सके। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मंगल को धरती पुत्र माना गया है। मिस्त्र के लोगों ने इसे हार्माकिस, बेबीलोवासियों ने नेरगाल और यूनानियों ने इसे अरेस यानी युद्ध का देवता कहा है जो ज़ीउस और हेरा का पुत्र है।
ज्योतिष के अनुसार मंगल सहन शक्ति, साहस, क्रोध, इच्छा, विरोधियों, अचल सम्पत्ति, दोस्त, दुश्मनी, ऊर्जा, हिंसा, क्रूरता, रक्त, शल्य चिकित्सा, आग, रक्षा, जुनून, घृणा, हिंसा, पाप, बहादुरी, शक्ति आदि का प्रतिनिधि है। अकसर इसे गुस्से और हिंसा से जोड़ा जाता है। यह ग्रह योद्धा का अर्थ दर्शाता है और व्यक्ति को स्वयं का सामना करने का हौंसला देता है। मंगल ग्रह व्यक्ति को स्वतंत्र व्यक्तित्व और आदर्शवाद प्रदान करता है। मंगल ही हमारे द्वारा चुने गए कार्य और उसे करने के तरीके को भी दर्शाता है।
यह ग्रह किसी पर भी अपनी ऊर्जा का प्रभाव कैसे छोड़ेगा यह व्यक्ति की कुंडली पर निर्भर करता है। जिस भी भाव में मंगल बैठा होगा वह व्यक्ति के उस मनोवैज्ञानिक क्षेत्र को दर्शाएगा जिसमें व्यक्ति अपनी ऊर्जा को व्यक्त करता है। साथ ही मंगल की स्थिति ही बताती है कि व्यक्ति किस दिशा में सबसे ज्यादा गतिशील है, कहां वो उलझ रहा है और कहां सत्ता(ताकत) के मुद्दों का सामना कर रहा है।
मंगल और इसकी स्थिति व्यक्ति की विशेष आकर्षण के प्रति या विशिष्ट यौन प्राथमिकताओं के प्रति रुचि को दर्शाती है। यह दिखाता है कि व्यक्ति अपनी ऊर्जा किस कार्य में इस्तेमाल कर रहा है। अगर आपकी कुंडली में मंगल सही स्थिति में हो तो यह अपने से संबंधित कार्यों में व्यक्ति के प्रभावों को बढ़ा देता है लेकिन अगर ये सही स्थिति में नहीं हो तो आपको इस ग्रह से संबंधित क्षेत्र में सचेत रहने की जरूरत है।
बुध
बुध ग्रह का यह नाम शायद इसलिए पड़ा क्योंकि यह आकाश में बहुत तेजी से गति करता है। बुध व्यक्ति के ज्ञान को बढ़ाने वाला ग्रह है। यह ग्रह व्यक्ति को सोचने में, चीज़ों की पहचान करने में तथा विचार व्यक्त करने में मदद करता है। रोमन पौराणिक कथाओं के अनुसार बुध वाणिज्य, चोरी तथा यात्रा का देवता है। ग्रीक भाषा में इसे परमेश्वर का दूत कहा गया है और दो नाम दिए गए हैं- शाम के सितारे के रूप में इसे हर्मिस और सुबह के सितारे के रूप में अपोलो पुकारा जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार बुध का जन्म चन्द्रमा और देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा से हुआ। ज्योतिष के अनुसार बुध व्यवसाय, व्यापार, वैज्ञानिक शिक्षा, शिक्षण, खाते, बचपन, बुद्धि, भाषण, व्यवसाय, भेदभाव, मामा, अभिव्यक्ति आदि का प्रतीक है। यह तीक्ष्ण सोच, विभिन्न हितों, निहित चिंता, बदलते स्वभाव से संबंधित है। इसे आंदोलन में प्राण डालने वाला (एनिमेटर) कहा गया है। बुध हमारे नाड़ी तंत्र को भी नियंत्रित करता है और व्यक्ति को गंभीर व अतिसंवेदनशील बनाता है।
बुध ग्रह मस्तिष्क से संबंधित है। यह ज्ञान तथा बुद्धि देने वाला है जिसका उपयोग करके हम एक स्वस्थ और सार्थक जीवन जीते हैं। बुध विचारों, विभिन्न तरीकों, सूचना और प्रयोगों के जरिए विकास को दर्शाता है। यह संचार, व्याख्या और आत्म-अभिव्यक्ति के कारणों और समझ का प्रतिनिधित्व करता है। बुध किसी व्यक्ति पर क्या प्रभाव छोड़ेगा ये उस व्यक्ति की कुंडली पर निर्भर करता है। व्यक्ति की कुंडली में जिस भी स्थान पर बुध बैठा होगा वही स्थान दिखाएगा कि व्यक्ति अपने मानसिक गुणों का किस तरह और कहां पर इस्तेमाल करेगा। यही वह क्षेत्र है जिसमें व्यक्ति और ज्यादा कार्य करना चाहेगा और सीखना चाहेगा। बुध का स्थान ही दिखाता है कि व्यक्ति किस तरह से लोगों से संपर्क करता है और वह क्या बनना चाहता है।
बुध और इसकी स्थिति व्यक्ति के मानसिक गुणों और उसके संचार के ढ़ंग को दर्शाती है। इसकी स्थिति व्यक्ति की रुचि और उसकी योग्यताओं को प्रकट करती है। अगर कुंडली में बुध की स्थिति सही जगह हो तो यह अपने से संबंधित घटकों के प्रभाव को बढ़ा देता है लेकिन अगर यह सही स्थान पर न हो तो आपको संबंधित क्षेत्र में सचेत रहने की जरूरत है।
बृहस्पति
ज्योतिष के अनुसार बृस्पति को बहुत लाभदायक ग्रह माना जाता है। यह स्वभाव में शनि से ज्यादा लेकिन मंगल से कम गर्म होता है। यह ग्रह ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है। यह स्वतंत्रता, सहनशक्ति और खुशहाली का ग्रह है। इस ग्रह से सभी अच्छी चीजें प्राप्त होती हैं और इसे हंसमुख, उदार और दयालु ग्रह के तौर पर देखा जाता है। स्वतंत्रता के प्रति प्रेम, नए अनुभव, उदारता, व्यापकता, बच्चे, कानूनी न्याय, धर्म और दर्शन से संबंधित सभी चीज़ें यही ग्रह प्रदान करता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार बृहस्पति को देवताओं का गुरु माना जाता है। बृहस्पति को महाऋषि अंगीरा का पुत्र माना जाता है।
ज्योतिष के अनुसार बृहस्पति ज्ञान, शिक्षा, धर्म, धन, संतान, भाग्य, स्वास्थ्य, गुरु, बड़े भाई, पति, बुद्धि, शिक्षा, ज्योतिष, तर्क, शास्त्र, भक्ति, त्याग, समृद्धि, विश्वास आदि के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों में सम्मान प्राप्ति का भी प्रतीक है। कहा जाता है कि बृहस्पति भाग्य को सुधारता है। यह अपने दायरे में आने वाली सभी चीज़ों के प्रभाव को बढ़ा देता है। इसे किस्मत वालों के ग्रह के रूप में देखा जाता है। बृहस्पति ही जीवन के धार्मिक पहलुओं, सफलता, खुशियों और समझ के लिए जिम्मेदार है। यह बड़े सपनों, ज्ञान और योग्यता का प्रतीक है। बृहस्पति कानून और नैतिक अधिकारों संबंधी मामलों से जुड़ा है। यह चीज़ों को समझने तथा किसी मामले को लेकर राय बनाने के लिए व्यक्ति को मजबूत इच्छाशक्ति प्रदान करता है।
बृहस्पति किसी व्यक्ति पर क्या प्रभाव छोड़ेगा यह उस व्यक्ति की कुंडली पर निर्भर करता है। कुंडली में जिस विशिष्ट बिंदु पर यह स्थित होगा वहां व्यक्ति का भाग्य अच्छा होगा। यही स्थान दिखाएगा कि व्यक्ति को किस क्षेत्र में लाभ होगा। बृहस्पति और इसकी स्थिति व्यक्ति के मनोभावों के बारे में भी बताती है। ग्रह की स्थिति ही बताती है कि व्यक्ति को किस क्षेत्र में ज्ञान की जरूरत है। कुंडली में बृहस्पति की उत्तम स्थिति मनुष्य का भाग्य बदल देती है जबकि अगर यह सही जगह न हो तो व्यक्ति को सतर्क रहने की जरूरत है।
शुक्र
शुक्र ग्रह को सबसे चमकीले ग्रह के रूप में जाना जाता है। पहले लोग इसे दो अलग-अलग पिंड समझते थे जिसमें एस्फोरस को सुबह का सितारा और हेस्पेरस को शाम का सितारा कहा जाता था। लेकिन यूनान के खगोलज्ञ इसे बेहतर तरीके से जानते थे। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार शुक्राचार्य को ऋषि भृगु का पुत्र माना जाता है। वे राक्षसों के गुरु हैं। भगवान शिव ने केवल शुक्र को ही मृत-संजीवनी विद्या का ज्ञान प्राप्त करने के योग्य समझा था। इस ज्ञान की मदद से मरे हुए प्राणी को भी जिन्दा किया जा सकता था। रोमन मान्यता के अनुसार वीनस को जूपिटर की बेटी माना गया है, जबकि ग्रीक मान्यताओं के अनुसार इसे ज़ीउस की खूबसूरत बेटी एफ्रोडाइट माना गया है जो प्यार की देवी है।
ज्योतिष के अनुसार शुक्र पत्नी, विवाह, इंद्रियों के सुख, सुविधा, आरामदायक चीज़ों, जुनून, यौन इच्छाओं, वीर्य, आराम, महिला, विवाह, मनोरंजन, करिश्मा, प्यार, प्रेमिका और वाहन आदि से संबंधित है। यह ग्रह आनंद, सौंदर्य, सामाजिक संबंधों, शादी और अन्य प्रकार की भागीदारी से संबंधित है। यह रोमांस की ओर झुकाव का भी सूचक है। शुक्र हमें प्यार की कीमत, उसकी जरूरत और क्षमता का अहसास करवाता है। यह चीज़ों या व्यक्तियों के प्रति हमारे आकर्षण और चुनाव को दर्शाता है।
किसी व्यक्ति को शुक्र किस हद तक या किस तरह से प्रभावित करेगा यह उस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र के स्थान पर निर्भर करता है। कुंडली में किसी खास स्थान पर बैठा शुक्र बताता है कि व्यक्ति ने अपने मूल्यों किस तरह से ग्रहण किया है और उसने किस तरह की विशिष्ट सौंदर्य शैलियों को अपनाया है। किसी व्यक्ति के जीवनसाथी के चुनाव पर भी शुक्र के स्थान का गहरा प्रभाव पड़ता है। यही स्थान बताता है कि हम जीवन के किस क्षेत्र में सहचर्य, भागीदारी, प्यार और शक्तिशाली भावात्मक सबंध प्राप्त करेंगे।
शुक्र और इसकी स्थिति प्यार के अनुभवों को दर्शाती है। साथ ही यह दर्शाती है कि किसी भी तरह का चुनाव करते समय व्यक्ति की मानसिक जरूरतें किस प्रकार की होंगी। अगर आपकी कुंडली में शुक्र सही जगह पर बैठा हो तो यह संबंधित स्थान के प्रभावों को बढ़ा देता है लेकिन अगर ये सही स्थान पर न बैठा हो तो आपको उस स्थान से संबंधित क्षेत्र में सचेत रहने की जरूरत है।
शनि
अगर कोई व्यक्ति अपना सही लक्ष्य तय नहीं कर पाता, या उसने अपने पिछले जन्म में कुछ गलत कार्य किए थे तो उसे इस जन्म में परेशानियों का सामना करना पड़ता है और इन परेशानियों का कारण होता है शनि ग्रह। आपकी कुंडली में शनि जिस स्थान पर बैठा होगा आपको उस स्थान से संबंधित कार्य पर विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत होगी। ऐसी स्थिति में या तो आपको अपने कार्य करने के तरीके में बदलाव करना होगा या फिर उसे करते समय बहुत सावधान रहना होगा। शनि को भाग्य का ग्रह और कर्म का देवता भी माना जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार शनि सूर्य और छाया के पुत्र हैं। मिस्र की पौराणिक कथाओं में शनि को स्वादेस ओसिरिस कहा गया है। कहा जाता है कि रोमनों ने क्रोनस को शनि में तबदील कर दिया था।
ज्योतिष के अनुसार शनि लम्बी आयु, दुख, आपदाओं, मृत्यु, गरीबी, पाप, भय, गोपनीयता, नौकरी, बेईमानी, कर्ज, कठिन परिश्रम, रोग, बाधा, बुढ़ापा, भाग्य, सीमाओं, गरीबी, दासता, क्रूर कर्मों आदि का प्रतीक है। शनि को महान स्वामी कहा जाता है। यह सीमाओं को दर्शाता है। शनि बताता है कि व्यक्ति को कहां पर कड़ी चुनौती और सबसे मुश्किल सबक मिलेगा। शनि आत्म सीमा, अनुशासन और योजना के माध्यम से शक्ति प्रदान करता है। यह व्यक्ति को अपने जीवन में की गई गलतियों से सीखने का मौका देता है और उसे बेहतर मनुष्य बनने में मदद करता है। शनि उम्र बढ़ने की प्रक्रिया और अंत में मौत का प्रतिनिधित्व करता है। यह निर्माण कार्यों से जुड़ा है और इसीलिए ज़मीन या भवन निर्माण आदि से जुड़े मामलों पर भी अपना प्रभाव डालता है।
शनि किसी व्यक्ति पर अपना प्रभाव किस तरह छोड़ेगा यह उस व्यक्ति की कुंडली पर निर्भर करता है। कुंडली में जिस भी भाव या स्थान में शनि बैठा होगा वही स्थान बताएगा कि व्यक्ति को कहां पर कड़ी चुनौती और सबसे कठिन सबक मिलेगा। शनि की स्थिति ही व्यक्ति की राह में आने वाली कठिन चुनौतियों और सीमाओं को दर्शाती है। शनि और उसकी स्थिति उन क्षेत्रों को दर्शाती है जिसमें व्यक्ति को अपने आत्म-विश्वास में कमी महसूस होती है। इन क्षेत्रों में व्यक्ति दमित महसूस करता है और पहचान प्राप्त करने के लिए बेताब रहता है। अगर शनि आपकी कुंडली में सही जगह पर बैठा हो तो ये संबंधित स्थान के प्रभावों को बढ़ा देता है लेकिन अगर ये सही स्थान पर न बैठा हो तो व्यक्ति को उस स्थान से संबंधित क्षेत्र में सचेत रहने की जरूरत है।
राहु और केतू
वैदिक ज्योतिष के अनुसार राहु और केतू को ग्रह माना गया है। दरअसल राहु और केतू गणितीय भाषा में संवेदनशील बिंदू माने जाते हैं जो पृथ्वी के निवासियों पर काफी प्रभाव डालते हैं। ये दोनों ग्रह किसी भी कुंडली में हमेशा 180 डिग्री की दूरी पर स्थित होते हैं। उत्तर ओर सूर्य के रास्ते को जिस बिन्दु पर चन्द्रमा परस्पर काटता है उसी बिन्दू को राहु या ड्रैगन का सिर कहा जाता है। दूसरी और जहां चन्द्रमा दक्षिणी ओर सूर्य के रास्ते को परस्पर काटता है उस बिन्दु को केतू या ड्रैगन की पूंछ कहा जाता है।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार जब देवताओं और असुरों नें अमृत के लिए समुद्र मंथन किया था तब भगवान विष्णु के मामने अमृत को असुरों से बचाने का मुद्दा खड़ा हो गया था। सभी देवता चाहते थे कि असुरों को अमृत न मिले। इसी उद्देश्य से भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप भी धारण कर लिया था। लेकिन उनकी इस चाल का दानव स्वरभानू को पता चल गया गया था। उस समय भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया था। कहा जाता है कि उसी समय अनजाने में अमृत की कुछ बूंदें उसके कटे हुए सिर और धड़ दोनों पर गिर गईं और जिससे वो दोनों ही अमर हो गए। उसी के सिर के राहू और धड़ को केतू कहा जाता है।
ज्योतिष के अनुसार राहु शोध, कटु भाषण, विदेश, चीज़ों की कमी और उनकी चाहत, तर्क, झूठ, चालाकी, शक्ति, गरिमा, जुआ, झगड़ा, आत्महत्या, गुलामी, गलत तर्क आदि का प्रतीक है। वहीं केतू अंतिम मुक्ति, कारावास, मोक्ष, आत्महत्या, दोषी व्यक्ति, हत्या, व्यभिचार, जानवर, उपभोग, दर्दनाक बुखार, महान तपस्या, मन की अस्थिरता तथा विदेशी लोगों से संबंध का प्रतीक माना जाता है। राहु और केतू किसी व्यक्ति को किस तरह प्रभावित करेंगे ये उस व्यक्ति की कुंडली पर निर्भर करता है। कुंडली में जिस स्थान पर पर ये ग्रह बैठे होंगे और जिन भी ग्रहों की दृष्टि इन दोनों पर पड़ रही होगी उसी के अनुसार व्यक्ति के भाग्य पर प्रभाव पड़ेगा। अगर राहु और केतू आपकी कुंडली में सही जगह पर बैठे हों तो ये संबंधित स्थान के प्रभावों को बढ़ा देते हैं लेकिन यदि इनकी स्थिति विपरीत हुई तो व्यक्ति को संबंधित क्षेत्र में सचेत रहना आवश्यक है।
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