कपाट बंद होने के दौरान गृहस्थ नहीं
संत और योगी जन ही दर्शन करे ; ऐसी परम्परा है, एक्सक्लूसिव रिपोर्ट- हिमालयायूके न्यूज पोर्टल
बद्रीनाथ जी के कपाट बंद होने के दौरान ग्रहस्थ नहीं संत और योगी जन ही दर्शन करे, ऐसी परम्परा है,
परन्तु राजनीतिज्ञ अक्सर मंदिरो की परम्परा की परवाह नहीं करते, और वेतन भोगी कारिंदे उनके सामने नतमस्तक होकर परम्परा का पालन करने में स्वयं को असमर्थ पाते है, तब कुदरत का कोप मानवमात्र को झेलना पड़ता है, भगवान बदरीनाथ के दरबार में 15 नवम्बर 2016 को कपाट बंदी के दिन धमाल का कार्यक्रम है, (हिमालयायूके की विशेष प्रस्तुति) फोटो- कैप्शन- 24-5;2012 को अजीज कुरैशी- उत्तराखण्ड के तत्कालीन राज्यपाल के रूप में- श्री बदरीनाथ जी मंदिर में दर्शन कर वापस आते हुए-
ज्ञात हो कि भगवान् बद्रीनाथ जी के मंदिर में छ माह तक कलियुग में मनुष्यों द्वारा पूजन होता है तथा अब कपाट बंद होने पर महर्षि नारदजी ही पूजन करेगें, ओर बदरीनारायण सिर्फ देवताओं को ही दर्शन देगे ।
कपाट खुलने एवं बंद करने की परम्परा जिन धामो में है , उनमें सबसे अंत में बदरीनाथ जी के कपाट बंद होने की परंपरा है , उस दौरान गृहस्थ जन भगवान के दर्शन नहीं करते हैं और योगी जन शंकराचार्य या रावल ही कपाट बंद करते हैँ, फिर वहां कोई रूकता नहीं है , पीछे मुड के भी नहीं देखते हैं । यह परम्परा आदि काल से है , इसके अलावा भगवान बदरीनाथ में शंखनाद भी बर्जित है ।बाकी सभी मंदिरों में शंख ध्वनि की जाती है, जिन राजाओं/ शासको ने इस परम्परा का उल्लघन किया उनकी यश कीर्ति समाप्त हुई ।
आदि जगत गुरु शंकराचार्य से पहले एक ही पडित बदरीनाथ एवं केदारनाथ जी का पूजन करते थे, दोनों मंदिर हिमालय के अगल बगल में हैं । कहते है कि बाद में रास्ता बंद हुआ था ।
(हिमालयायुके न्यूज़ पोर्टल की एक्सेक्लूसिव प्रस्तुति )
पुण्य और यश का क्षय ; बदरीनारायण जी के दर्शन; कपाट बंद होने के दिन करने से-
16 नवम्बर को सांय 4.30 बजे शांय विधि-विधान के साथ बद्रीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिये बंद
किवदंती ; गढवाल के मंदिरो के हक़ हकूक धारी ब्राह्मणों के ग्राम किमोठा के विद्वानों का भी यह मानना है कि आदि काल से मान्यता है कि बदरीनारायण के दर्शन कपाट बंद होने के दिन नहीं किया करते, पुण्य और यश का क्षय होता है, जिससे सभी लोग इस अवसर से बचते हैं
प्रस्तुति- हिमालयायूके न्यूज पोर्टल- (www.himalayauk.org) Leading Newsportal
बदरीनाथ मंदिर , जिसे बदरीनारायण मंदिर भी कहते हैं, अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णुके रूप बदरीनाथ को समर्पित है। यह हिन्दुओं के चार धाम में से एक धाम भी है। ऋषिकेश से यह २९४ किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है।
ये पंच-बदरी में से एक बद्री हैं। उत्तराखंड में पंच बदरी, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिन्दू धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।