बदरीनारायण जी के दर्शन; कपाट बंद होने के दिन करने से?

पुण्य और यश का क्षय ; बदरीनारायण जी के दर्शन; कपाट बंद होने के दिन करने से- 

16 नवम्बर को सांय 4.30 बजे शांय विधि-विधान के साथ बद्रीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिये बंद

किवदंती ; गढवाल के मंदिरो के हक़ हकूक धारी ब्राह्मणों के ग्राम किमोठा के विद्वानों का भी यह मानना है कि आदि काल से मान्यता है कि बदरीनारायण के दर्शन कपाट बंद होने के दिन नहीं किया करते,  पुण्य और यश का क्षय होता है, जिससे सभी लोग इस अवसर से बचते हैं

प्रस्‍तुति- हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल- (www.himalayauk.org) Leading Newsportal

बदरीनाथ मंदिर , जिसे बदरीनारायण मंदिर भी कहते हैं, अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णुके रूप बदरीनाथ को समर्पित है। यह हिन्दुओं के चार धाम में से एक धाम भी है। ऋषिकेश से यह २९४ किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है।
ये पंच-बदरी में से एक बद्री हैं। उत्तराखंड में पंच बदरी, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिन्दू धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

##बद्रीनाथ धाम में कपाट बंद होने की प्रक्रिया

बद्रीनाथ धाम में कपाट बंद होने की प्रक्रियाओं की शुरुआत। पंच पूजाओं में प्रथम दिन भगवान गणेश जी को भगवान बद्री विशाल जी के अभिषेक एवं महाअभिषेक में पूर्ण विधि विधान से बद्रीनाथ रावल ईश्वरी प्रसाद नम्बोदरि एवं वेदपाठी सत्य प्रकाश चमोला सहित भंडारी एवं मेहता थोक के हकोकधारि एवं बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के मुख्य कार्य अधिकारी बी.डी.सिंह द्वारा गणेश जी की मूर्ति को प्राथना मंडप में शीतकालीन स्थान पर यथास्थापित किया गया । 13 नवंबर को सुबह 11 बजे विधि विधान से आदिकेदारेस्वर(शिवालय) के कपाट बंद किये गये। 14 नवम्बर को बद्रीनाथ मंदिर में उपयोग किये जाने वाली खड्ग पुस्तकों को भी शीतकालीन स्थानों पर विराजित किया जायेगा। 15 नवंबर को मंदिर परिक्रमा में में स्थित माँ लक्ष्मी जी के मंदिर में पूजा अर्चना कर विधि विधान रूप से माँ लक्ष्मी जी का मंदिर भी शीतकाल के लिए बंद कर दिया जायेगा। जबकि 16 नवम्बर को शायं 4.30 बजे शांय विधि-विधान के साथ बद्रीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिये बंद कर दिये जायेंगे।हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल- (www.himalayauk.org)

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बदरीनाथ उत्तर दिशा में हिमालय की उपत्यका में अवस्थित हिन्दुओं का मुख्य यात्राधाम माना जाता है। मन्दिर में नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है और अखण्ड दीप जलता है, जो कि अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है। यह भारत के चार धामों में प्रमुख तीर्थ-स्थल है। प्रत्येक हिन्दू की यह कामना होती है कि वह बदरीनाथ का दर्शन एक बार अवश्य ही करे। यहाँ पर शीत के कारण अलकनन्दा में स्नान करना अत्यन्त ही कठिन है। अलकनन्दा के तो दर्शन ही किये जाते हैं। यात्री तप्तकुण्ड में स्नान करते हैं। यहाँ वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी। सिद्ध, ऋषि, मुनि इसके प्रधान अर्चक थे। जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ तब उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरम्भ की। शंकराचार्य की प्रचार-यात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते हुए मूर्ति को अलकनन्दा में फेंक गए। शंकराचार्य ने अलकनन्दा से पुन: बाहर निकालकर उसकी स्थापना की। तदनन्तर मूर्ति पुन: स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार तप्तकुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बदरीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना। भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3,133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और माना जाता है कि आदि शंकराचार्य, आठवीं शताब्दी के दार्शनिक संत ने इसका निर्माण कराया था। इसके पश्चिम में 27 किमी. की दूरी पर स्थित बदरीनाथ शिखर कि ऊँचाई 7,138 मीटर है। बदरीनाथ में एक मंदिर है, जिसमें बदरीनाथ या विष्णु की वेदी है। यह 2,000 वर्ष से भी अधिक समय से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान रहा है।

पौराणिक कथाओं और यहाँ की लोक कथाओं के अनुसार यहाँ नीलकंठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बाल रूप में अवतरण किया। यह स्थान पहले शिव भूमि (केदार भूमि) के रूप में व्यवस्थित था। भगवान विष्णुजी अपने ध्यानयोग हेतु स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा नदी के समीप यह स्थान बहुत भा गया। उन्होंने वर्तमान चरणपादुका स्थल पर (नीलकंठ पर्वत के समीप) ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के समीप बाल रूप में अवतरण किया और क्रंदन करने लगे। उनका रुदन सुन कर माता पार्वती का हृदय द्रवित हो उठा। फिर माता पार्वती और शिवजी स्वयं उस बालक के समीप उपस्थित हो गए। माता ने पूछा कि बालक तुम्हें क्या चहिये? तो बालक ने ध्यानयोग करने हेतु वह स्थान मांग लिया। इस तरह से रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती से यह स्थान अपने ध्यानयोग हेतु प्राप्त कर लिया। यही पवित्र स्थान आज बदरीविशाल के नाम से सर्वविदित है।

जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं । कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा।
जहाँ भगवान बदरीनाथ ने तप किया था, वही पवित्र-स्थल आज तप्त-कुण्ड के नाम से विश्व-विख्यात है और उनके तप के रूप में आज भी उस कुण्ड मंय हर मौसम में गर्म पानी उपलब्ध रहता है। हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल- (www.himalayauk.org)
बदरीनाथ में तथा इसके समीप अन्य दर्शनीय स्थल हैं-
• अलकनंदा के तट पर स्थित तप्त-कुंड
• धार्मिक अनुष्टानों के लिए इस्तेमाल होने वाला एक समतल चबूतरा- ब्रह्म कपाल
• पौराणिक कथाओं में उल्लिखित सांप (साँपों का जोड़ा)
• शेषनाग की कथित छाप वाला एक शिलाखंड–शेषनेत्र
• चरणपादुका :- जिसके बारे में कहा जाता है कि यह भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं; (यहीं भगवान विष्णु ने बालरूप में अवतरण किया था।)
• बदरीनाथ से नज़र आने वाला बर्फ़ से ढंका ऊँचा शिखर नीलकंठ।
• माता मूर्ति मंदिर :- जिन्हें बदरीनाथ भगवान जी की माता के रूप में पूजा जाता है।
• माणा गाँव- इसे भारत का अंतिम गाँव भी कहा जाता है।
• वेद व्यास गुफा, गणेश गुफा: यहीं वेदों और उपनिषदों का लेखन कार्य हुआ था।
• भीम पुल :- भीम ने सरस्वती नदी को पार करने हेतु एक भारी चट्टान को नदी के ऊपर रखा था जिसे भीम पुल के नाम से जाना जाता है।
• वसु धारा :- यहाँ अष्ट-वसुओं ने तपस्या की थी। ये जगह माणा से ८ किलोमीटर दूर है। कहते हैं की जिसके ऊपर इसकी बूंदे पड़ जाती हैं उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और वो पापी नहीं होता है।
• लक्ष्मी वन :- यह वन लक्ष्मी माता के वन के नाम से प्रसिद्ध है।
• सतोपंथ (स्वर्गारोहिणी) :- कहा जाता है कि इसी स्थान से राजा युधिष्ठिर ने सदेह स्वर्ग को प्रस्थान किया था।
• अलकापुरी :- अलकनंदा नदी का उद्गम स्थान। इसे धन के देवता कुबेर का भी निवास स्थान माना जाता है।
• सरस्वती नदी :- पूरे भारत में केवल माणा गाँव में ही यह नदी प्रकट रूप में है।
• भगवान विष्णु के तप से उनकी जंघा से एक अप्सरा उत्पन्न हुई जो उर्वशी नाम से विख्यात हुई। बदरीनाथ कस्बे के समीप ही बामणी गाँव में उनका मंदिर है।

एक विचित्र सी बात है।.. जब भी आप बदरीनाथ जी के दर्शन करें तो उस पर्वत (नारायण पर्वत) की चोटी की और देखेंगे तो पाएंगे की मंदिर के ऊपर पर्वत की चोटी शेषनाग के रूप में अवस्थित है। शेष नाग के प्राकृतिक फन स्पष्ट देखे जा सकते हैं। हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल- (www.himalayauk.org)

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