“सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय”; साधक इस बार अमरकंटक

श्रीबगुलामुखी के साधक का स्‍थान इस बार अमरकंटक  #और मॉ दशम महाविद्या ‘ मॉ पीताम्‍बरा-श्रीबगुलामुखी के साधक ने इस बार कठोर साधना के लिए स्‍थाना चुना है उत्‍तराखण्‍ड से दूर अमरकंटक पवित्र तीर्थनगरी अमरकंटक नर्मदा नदी,सोन नदी का उदगम स्थान जो मध्य प्रदेश के अनूपपूर जिले में है, जहां वह 36 दिन की कठोर साधना के उपरांत 27 जून को विशाल हवन के बाद साधना पूर्ण होगी- मॉ मॉ दशम महाविद्या सभी भक्‍तो की मनोकामना पूर्ण करेगी, दुष्‍टो का नाश करेगी- अत्‍याचारी लोगों को दण्‍ड देगी-#  अंतिम अस्‍त्र है मॉ बगुलामुखी माई का ब्रहमास्‍त्र# हिमालयायूके को वह सौभाग्‍य प्राप्‍त हुआ है  कि  95 प्रतिशत  प्रकाशित भविष्‍यवाणी सटीक साबित #  A Special Report by; CHANDRA SHEKAR JOSHI- EDITOR; 

अमरकंटक  (मध्य प्रदेशा)  सेे  रमाकान्त पन्त ने हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल को भेजी रिपोर्ट में वर्णन किया है कि इस बार जिस स्‍थान पर मॉ बगुलामुखी के साधक परम आदरणीय बिजेन्‍द्र पाण्‍डे जी महाराज ने साधना के लिए चुना है, वह स्‍थान के बारे मे मान्‍यता है कि भगवान शिव की पुत्री नर्मदा जीवनदायिनी नदी रूप में यहां से बहती है। माता नर्मदा को समर्पित यहां अनेक मंदिर हैं, जिन्‍हें शक्ति की प्रतिमूर्ति माना जाता है। नर्मदा पुराण के अनुसार नद सोनभद्र से विवाह टूटने के बाद गुस्से और जिद में मां नर्मदा ने अनंतकाल तक अकेले ही बहने का निर्णय लिया और पश्चिम दिशा की ओर मुड़ गईं। इस विषय पर पुराणों में विस्तार के साथ कहानियां पढ़ी जा सकती है; यहां माईं की बगिया काफी मनभावन है कहा जाता ह्रै कि यहां मां नर्मदा खेला करती थीं। यहां गुल बकावली नामक अति दुर्लभ पुष्प पाया जाता है दंतकथाओं के अनुसार यह पुष्प माँ नर्मदा की सहेली है। जिसका प्रयोगनेत्र रोग में किया जाता है

शक्ति साधना में दस महाविद्याओं की उपासना होती है यह सब महाविद्या ज्ञान और शक्ति प्राप्त करने के लिए करी जाती हैं। 1. काली 2. तारा 3. त्रिपुरसुंदरी 4. भुवनेश्वरी 5. त्रिपुर भैरवी 6. धूमावती 7. छिन्नमस्ता 8. बगला 9. मातंगी 10. कमला 
बगलामुखी-  वाक शक्ति से तुरंत परिपूर्ण करने वाली, दोडने वाली, शत्रुनाश, कोर्ट कचहरी में विजय, हर प्रकार की प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता के लिए, सरकारी कृपा के लिए माँ बगलामुखी की साधना मानी गयी है। इस विद्या का उपयोग केवल तभी किया जाता है जब कोई रास्ता ना बचा हो, अंतिम अस्‍त्र है मॉ बगुलामुखी माई का ब्रहमास्‍त्र। साधक हल्दी की माला से माई का जप कर कार्य सिद्व कराते हैं। इस विद्या को ब्रह्मास्त्र भी कहा जाता है और यह भगवान विष्णु की संहारक शक्ति है।
“ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै ह्लीं ॐ नम:”
ऊ ह्रीम बगुलामुखी, सर्वदुष्‍टानामां वाचम मुखम पदम, स्‍तम्‍भ-स्‍तम्‍भ, जिव्‍हाम किलय, किलय बुद्वि विनाशय, ह्रीम ऊ स्‍वाहा ;  किसी भी साधना की मुद्राएँ न्यास, यंत्र पुजन, माला पुजन, प्राण प्रतिष्ठा, पंचोपचार आदि की जानकारी गुरु करवाते है।साथ ही वो विधि प्रदान करते है जिससे साधना होगी और अवश्यकता होने पर यंत्र, माला भी आदि प्रदान करते है। केवल शरीर के त्याग के समय ही कोई गुरु अपनी सारी शक्ति को किसी शिष्य को दे सकता है। साधक स्वयं को श्री गुरु के चरणों में समर्पित कर अनवरत शक्ति-साधन हेतु यजन-पूजन धारा में बह चले तो फिर कुछ भी असंभव नहीं रहता है। कोई गुरु कृपा करे तो वह गुरु अपनी की गई साधना का कुछ अंश अपने शिष्य मे डाल देता है। दीक्षा भी ठीक ऐसे ही होती है जैसे किसी ने, अपनी मेहनत से कमाई सम्पति को किसी दूसरे व्यक्ति के नाम कर दिया। अब यह बात अलग है कि कितने प्रतिशत। मां बगुलामुखी दुष्टों का संहार करती हैं। साधना गुरु की आज्ञा लेकर ही करनी चाहिए और शुरू करने से पहले गुरु का ध्यान और पूजन अवश्य करना चाहिए। बगलामुखी के भैरव मृत्युंजय हैं, इसलिए साधना के पूर्व महामृत्युंजय मंत्र का एक माला जप अवश्य करना चाहिए। साधना उत्तर या पूर्व की ओर मुंह करके करनी चाहिए। इनकी आराधना (अनुष्ठान) करते समय ब्रह्मचर्य परमावश्यक है। इस मंत्र का जाप पीली हल्दी की गांठ की माला से की जाती है —

 ॐ ह्रीं बगलामुखी!  सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा।

मां नर्मदा को शिवजी की पुत्री और अमरकंटक को भगवान शिव का प्रियवास माना जाता है.।नर्मदा और सोन नदियों का यह उद्गम आदिकाल से ऋषि-मुनियों की तपस्या व आराधना का केंद्र रहा है। इसलिए यह तपोभूमि के नाम से प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में अनेक पावन स्थल मंदिरों की लंबी श्रंखला मौजूद है जिनमें जलेश्वर महादेव, सोनमुड़ा, भृगु कमंडल, स्थल भी काफी लोकप्रिय व मनभावन है।
इसके अतिरिक्त यहां घने जंगल में गर्म पानी का स्रोत भी है। जो औषधीय गुणों से भरपूर है।यहीं वह स्थान है। जहां संत कबीर व गुरु नानक देव जी ने वर्षों साधनाएं की*
ऐसेे पवित्र स्‍थान पर स्थित श्नद्वा व भक्ति का अद्भूत संगम कल्याणिका आश्रम में इन दिनों मां बगलामुखी के परम सत्य साधक श्री विजेंद्र पाण्डेय जी अखंड साधना कर रहे हैं यह पावन स्थल अपने आप में अद्वितीय व अनुपम है।

अमरकंटक पवित्र तीर्थनगरी से लौट कर वहां का वर्णन करते हुए श्री रमाकांत पंत हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल के लिए विशेष रूप से लिखते हैं कि अमरकंटक पवित्र तीर्थनगरी अमरकंटक नर्मदा नदी,सोन नदी का उदगम स्थान है। यह पावन स्थान मध्य प्रदेश के अनूपपूर जिले में स्थित है। यहां की पहाड़िया मैकाल की पहाडि़यों के नाम से प्रसिद्ध है।समुद्र तल से लगभग 1065 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह स्थान बेहद मनमोहक व रमणीक है। चारों ओर से टीक और महुआ के पेड़ो से घिरे अमरकंटक से ही नर्मद और सोन नदी प्रकट की होती है।नर्मदा नदी यहां से पश्चिम की तरफ और सोन नदी पूर्व दिशा में बहती है। यहां के खूबसूरत झरने, पवित्र तालाब, ऊंची पहाडि़यों और शांत वातावरण सैलानियों व यहां आने वाले आगन्तुको को मंत्रमुग्‍ध कर देते हैं। प्रकृति प्रेमी और धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को यह स्‍थान काफी पसंद आता है अमरकंटक का बहुत सी परंपराओं और किवदंतियों से संबंध रहा है।
यहां की पवित्र पहाड़ियों पर जड़ी बूटियों का अपार भंडार भरा हुआ है इस क्षेत्र को आम्रकूट के नाम से भी पुकारा जाता है यह तीर्थ आध्यात्मिक जगत के अनेक इतिहासों को अपने आप में समेटे हुआ है यहां श्राद्ध कर्म बड़े ही फलीभूत बताए जाते हैं** **और सिद्ध क्षेत्र के रूप में समूचे विश्व में प्रसिद्ध इस पावन स्थान पर जहां से नर्मदा प्रकट होती है उसे सोम पर्वत भी कहा जाता है अमरकंटक ऋक्षपर्वत का एक अलौकिक भाग है,* जिसका पुराणों में विस्तार के साथ वर्णन आता है*जो वर्णित सप्तकुल पर्वतों में से एक है।

अमरकंटक में अनेक मन्दिर और प्राचीन मूर्तियाँ हैं, जिनका सम्बन्ध खासतौर से महाभारत काल से माना जाता है है। यहां से एक किलोमीटर आगे नर्मदा की कपिलधारा स्थित है।जो कपिलमुनी की तपस्या का केन्द्र रहा है। यहां पर नदी 100 फ़ुट की ऊँचाई से नीचे गहराई में गिरती है। इसके थोड़ा और आगे दुग्धधारा है, .सोन नदी का उद्गम नर्मदा के उद्गम से एक मील दूर सोन-मूढ़ा नामक स्थान पर से हुआ है। यह भी नर्मदा स्रोत के समान ही पवित्र माना जाता है। यहां के उद्गम के पास ही वंशग़ुल्म नामक तीर्थ का उल्लेख पुराणों में मिलता है। अमरकंटक नर्मदा नदी, सोन नदी के अलावा जोहिला नदी का उदगम स्थान भी है। नर्मदा नदी यहां से पश्चिम की तरफ और सोन नदी पूर्व दिशा में बहती है। अमरकंटक के कण कण में नर्मदा और सोन की असफल प्रेम कहानी की आध्यात्मिक महिमां छिपी हुई है। पिगंला के पति व राजाविक्रमादित्य के बड़े भाई का यहां के वनों में एक प्राचीन कमंडल है जो हमेशा पानी से भरा रहता है।

साधनारत गुरू जी श्रद्वेय पाण्‍डेय जी से आशीर्वाद लेेेने के लिए आप उनको फोन कर सकते हैं- आप हमे अपना नाम पता- व्‍यवसाय- उददेश्‍य – हमारे whatsapp n. 9412932030 पर मैसेज करें- उचित समझाा गया तो आपको गुरूजी का न0 दे दिया जायेगा-
दस महाविद्या शक्‍तिपीठ का भूमि पूजन नंदादेवी एनक्‍लेव, बंजारावाला, देहरादून में हो चुका है-  दस महाविद्या केे आशीर्वाद से तथा  भक्‍तो के सहयोग से शीघ्र शक्‍तिपीठ पूर्ण होगा- ऐसी भावना और विश्‍वास के साथ-  चन्‍द्रशेखर जोशी-  

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