बर्फानी बाबा अमरनाथ उत्‍तराखण्‍ड में भी विराजते है

लुप्‍त हो जाते है लोगो के आने पर #शिवलिंग के पास शीतकाल के बाद बर्फ पिघलने के दौरान बर्फ का एक शिवलिंग आकार लेता – जोशीमठ-नीती हाईवे पर Execlusive Top Story; by Chandra Shekhar Joshi 

बर्फानी बाबा अमरनाथ गुफा के अलावा सीमांत चमोली जिले के अंतिम गांव नीति के पास टिम्मरसैंण स्थित एक गुफा में भी विराजते है?  कहा जाता है कि इस गुफा में भगवान शिव केवल 4 महीने के लिए विराजते हैं। इस शिवलिंग के दर्शन या तो कभी यहां के कुछ लोगों ने किए हैं या फिर सीमा की सुरक्षा में लगी सेना ने किए हैं। जबतक गांव के लोग यहां आते हैं, तबतक भगवान यहां से लुप्त हो जाते हैं।  विशालकाय पहाड़ों के बीच पहली नजर में देखकर आंखों को ऐसा लगता है कि जैसे हम कहीं बाबा अमरनाथ धाम तो नहीं आ गए। ये ताज्जुब की बात ही है कि चारों तरफ जहां बर्फ के अलावा किसी का नामोनिशान नहीं, उस जगह पर भगवान भोलेनाथ इस अनोखे स्वरूप में विराजमान हैं।

Himalaya Research & Development Team;  www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal)

अमरनाथ की तरह ही एक प्राकृतिक शिवलिंग ; लोहाघाट से कुछ किलोमीटर की दूर पर गांव खर्क में 

भगवान शिव का ऐसा ही अत्यंत प्राचीन मंदिर उत्तराखंड के छोटे से शहर लोहाघाट से कुछ किलोमीटर की दूर पर स्थित एक छोटे से गांव खर्क में मौजूद है। देवदार के घने जंगलों के बीच, पहाड़ों पर मौजूद भगवान शिव का ये रूप भी अमरनाथ की तरह ही एक प्राकृतिक शिवलिंग ही है। आमतौर पर शिवलिंग तराशे हुए गोलाकार में होते हैं लेकिन इस शिवलिंग को प्राकृतिक रूप और आकार में ही रखा गया है। कहते हैं जिस पर्वत के शिखपर ये मौजूद है ये शिवलिंग उसी पर्वत का हिस्सा है और यदि इसकी खुदाई की जाए तो इसकी जड़ पर्वत की जड़ तक ही होगी। ऐसे में यूं तो इसे अब तक का सबसे विशाल शिवलिंग कहा जा सकता है लेकिन जिस हिस्से की पूजा अर्चना होती है वो बहुत ही छोटे रूप में देखने को मिलता है। इस शिवलिंग के साथ ही एक और छोटी पिंडी मौजूद है जिसे माता पार्वती के रूप में पूजा जाता है।

चंपावत के ही एक और प्रसिद्ध मंदिर  ;मानसेश्वर महादेव का मंदिर ; इसका जिक्र स्कंद पुराण के मानस खंड में भी मिलता है। यहां के महंत रतन गिरी जी ने  बताया कि इस जगह की मान्यता है कि भगवान शिव ने स्वयं कूर्मांचल यानी वर्तमन कुमाऊं में मानसरोवर का जल यहां प्रकट किया था। यहां आज भी पानी का ये स्त्रोत मौजूद हैं जहां हमेशा पानी बना रहता है। ये पानी हमेशा साफ रहता है और इसके बारे में कहा जाता है कि ये मानसरोवर का पानी है। एक अन्य कहानी भी इस जगह के बारे में मिलती है और वो ये कि अपने पिता पांडू का श्राद्ध करने के लिए जब पांडव मानसरोवर पहुंचने में असमर्थ हो रहे थे तो इसी जगह पर अर्जुन ने अपने तीर से मानसरोवर का जल प्रकट कर दिया था।  मानसेश्वर के महंत ने  भगवान शिव के उस प्राकृतिक शिवलिंग के बारे में एक और दिलचस्प जानकारी दी  स स्थान की ये मान्यता है कि वहां कोई अनाज नहीं ले जा सकता। मान्यता ये भी है कि वहां पूजा अर्चना करने वाले भी सिर्फ फल ही खा सकते हैं। यही वजह है कि वहां पर बड़े बड़े तपस्वी निवास नहीं कर पाते हैं। कुछ एक संत ऐसे रहे हैं जो वहां सिर्फ फल खाकर अपना जीवन यापन करते रहे। इनमें से तो कई ऐसे हैं जो अब वहां नहीं रहते लेकिन अब भी फलाहार ही करते हैं। भागेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। भाग्यशालियों को इनके दर्शन होते हैं और ये भाग्योदय करने वाले महादेव हैं ऐसी मान्यताएं उनके इस नामकरण के पीछे बताई जाती हैं। बामन दा भागेश्वर महादेव के अनन्य भक्त हैं और उनका दावा है कि उन्हीं की कृपा से उन्हें भविष्य देखने की क्षमता मिली है।

गुफा के अंदर एक शिवलिंग- जोशीमठ-नीती हाईवे पर नीति से एक किमी पहले टिम्मरसैंण

जोशीमठ-नीती हाईवे पर नीति से एक किमी पहले टिम्मरसैंण में पहाड़ी पर स्थित गुफा के अंदर एक शिवलिंग विराजमान हैं. इस पर पहाड़ी से टपकने वाले जल से हमेशा अभिषेक होता रहता है. इसी शिवलिंग के पास शीतकाल के बाद बर्फ पिघलने के दौरान बर्फ का एक शिवलिंग आकार लेता है. अमरनाथ गुफा में बनने वाले शिवलिंग की तरह इस शिवलिंग की ऊंचाई ढाई से तीन फीट के बीच होती है. शीतकाल के दौरान यह गुफा पूरी तरह बर्फ से ढकी रहती है. लेकिन, मार्च में जब बर्फ पिघलनी शुरू होती है तो यहां शिवलिंग आकार लेने लगता है. स्थानीय लोग इसे बर्फानी बाबा के नाम से जानते हैं. स्थानीय लोग तो इन दिनों बाबा बर्फानी के दर्शन कर भी रहे हैं. प्रतिवर्ष मार्च से अप्रैल के द्वितीय सप्ताह तक गुफा में बर्फानी बाबा के दर्शन होते हैं. लेकिन, इस बार बर्फबारी का दौर जारी रहने के कारण अप्रैल आखिर तक बर्फानी बाबा के दर्शन हो सकते हैं. सीमांत गांव गमशाली के चंद्रमोहन फोनिया बताते हैं कि टिम्मरसैंण गुफा में वैसे तो शिवलिंग की पूजा होती है. लेकिन, शीतकाल के बाद यहां बर्फानी बाबा भी विराजमान हो जाते हैं. कहते हैं कि सरकारों की बेरुखी के चलते आज तक बर्फानी बाबा की यात्रा शुरू नहीं हो पाई है, जबकि कई बार स्थानीय लोग सरकार के सामने टिम्मरसैंण गुफा में विराजमान बर्फानी बाबा की महत्ता को रेखांकित कर चुके हैं.

गुफा में हर साल 15 मार्च से 15 अप्रैल के मध्य बर्फानी बाबा के दर्शन होते है. चीन सीमा पर तैनात आइटीबीपी (भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल) के जवान तो प्रतिवर्ष बर्फानी बाबा के दर्शनों का पुण्य लाभ अर्जित करते है. शीतकाल के दौरान नीति क्षेत्र में रहने वाले लोग हालांकि निचले स्थानों पर आ जाते हैं. लेकिन, इस दौरान बर्फानी बाबा के दर्शनों को जाते रहे हैं. इस वर्ष मौसम के बदले मिजाज के चलते जमकर बर्फबारी हुई है, इसलिए अप्रैल आखिर तक बर्फानी बाबा के दर्शन किए जा सकते है. कुछ जानकारों का कहना है कि पांडवों के समय मे भगवान शिव इसी जगह पर विराजते थे लेकिन फिर वो इस स्थान को छोड़कर कैलाश मानसरोवर में विराज गए। सबसे बड़ी बात ये है कि इस जगह से कैलाश पर्वत पर महज दो दिन में पहुंचा जाता था लेकिन साल 1962 के बाद इस स्थान को बंद कर दिया गया। बाबा के ये दर्शन महज साल में एक महीने के लिए होते हैं। मार्च तक ये जगह बर्फ से ढकी रहती है और बर्फ पिघलने के बाद अप्रैल अंतिम तक अपने आप बाबा की ना केवल गुफा खुलती है बल्कि एक महीने विराजमान रहने के बाद बाबा भोलेनाथ इस स्थान से प्रस्थान कर जाते हैं। शिवलिंग और गुफा के अंदर बैठे बाबा बर्फानी के बारे में कहा जाता है कि इस स्थान की परिक्रमा करने से ही इंसान को मुक्ति मिल जाती है।

::::: :::::::: अमरनाथ ; कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में १३५ सहस्त्रमीटर दूर 

अमरनाथ हिन्दुओ का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में १३५ सहस्त्रमीटर दूर समुद्रतल से १३,६०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। इस गुफा की लंबाई (भीतर की ओर गहराई) १९ मीटर और चौड़ाई १६ मीटर है। गुफा ११ मीटर ऊँची है।[1] अमरनाथ गुफा भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है क्यों कि यहीं पर भगवान शिव ने माँ पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था। 

यहाँ की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखो लोग यहां आते है।[3] गुफा की परिधि लगभग डेढ़ सौ फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूँदें जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूँदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है। चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि गुफा में आमतौर पर कच्ची बर्फ ही होती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाए। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग अलग हिमखंड हैं।

उत्तराखंड में ही भगवान भोले का वास है लेकिन एक स्थान है जो हजारों सालों से देश दुनिया की नजर में कभी नहीं आया था। बात चमोली जिले के सीमांत गांव की है, जिसका नाम है टिम्बरसैंण। इस गांव में ज्यादातर भोटिया प्रजाति के लोगों रहते हैं। इस जगह पर वैसे तो इस मौसम में कोई नहीं जाता है लेकिन आज भगवान भोले के भक्तों के सामने बाबा का एक अद्भुत स्वरूप सामने आ गया है। यहां का दृश्य ऐसा है कि चारों तरफ हरियाली और नीचे बहती नदी की धारा मानो मन को मोह ले। चमोली का ये वो गांव है जो साल के चार महीने बर्फबारी से खाली हो जाता है। बीच में बाबा बदरीनाथ के दर्शन और उससे आगे का गांव नीति, यहां फिलहाल सेना के अलावा कोई और नहीं रहता है।

विशालकाय पहाड़ों के बीच यहां का सफर रुक जाता है। यहां पहुंचकर दिखाई देता है कि बर्फ पूरी तरह से पिघल चुकी है। दिखाई देता है कि पहाड़ी की चोटी की गुफा में एक भगवान का मंदिर बना है लेकिन इस तरह के मंदिर होना उत्तराखंड में आम बात है। लेकिन थोड़ा सा और चलने पर देखते हैं कि चटकती धूप और गंजे हो चुके पहाड़ों के बीच बर्फ से भगवान भोले की आकृति बनी हुई है। पहली नजर में देखकर आंखों को ऐसा लगता है कि जैसे हम कहीं बाबा अमरनाथ धाम तो नहीं आ गए। ये ताज्जुब की बात ही है कि चारों तरफ जहां बर्फ के अलावा किसी का नामोनिशान नहीं, उस जगह पर भगवान भोलेनाथ इस अनोखे स्वरूप में विराजमान हैं।

 अमरनाथ- जनश्रुति प्रचलित है कि इसी गुफा में माता पार्वती को भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी, जिसे सुनकर सद्योजात शुक-शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गये थे। गुफा में आज भी श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई दे जाता है, जिन्हें श्रद्धालु अमर पक्षी बताते हैं। वे भी अमरकथा सुनकर अमर हुए हैं। ऐसी मान्यता भी है कि जिन श्रद्धालुओं को कबूतरों को जोड़ा दिखाई देता है, उन्हें शिव पार्वती अपने प्रत्यक्ष दर्शनों से निहाल करके उस प्राणी को मुक्ति प्रदान करते हैं। यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने अद्र्धागिनी पार्वती को इस गुफा में एक ऐसी कथा सुनाई थी, जिसमें अमरनाथ की यात्रा और उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन था। यह कथा कालांतर में अमरकथा नाम से विख्यात हुई।

कुछ विद्वानों का मत है कि भगवान शंकर जब पार्वती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। ये तमाम स्थल अब भी अमरनाथ यात्रा में आते हैं। अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में एक मुसलमान गडरिए को चला था।] आज भी चौथाई चढ़ावा उस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है। आश्चर्य की बात यह है कि अमरनाथ गुफा एक नहीं है। अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। वे सभी बर्फ से ढकी हैं।

 

Himalaya Research & Development Team;   

www.himalayauk.org (HIMALAYA GAURAV UTTAKHAND) Publish at Dehradun & Haridwar. Mail; csjoshi_editor@yahoo.in, himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *