महाक्रोधी देवता भैरव महाराज जागरण के, जाग्रति के देवता

परम दयालु और क्षण में प्रसन्न हो कृपा करने वाले करूणानिधि भी
उज्जैन स्थित विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक श्री काल भैरव मंदिर भारत की एक अद्भुत विरासत है जो सनातन पौराणिकता को प्रमाणित करती है। यहां विराजित श्री काल भैरव की प्रतिमा अथाह मदिरा अथवा सुरा पान करती है। मान्यतानुसार यह मदिरा पान भगवान के नैवेद्य का एक भाग है और यहां मदिरा चढाने के पीछे लोगों का भाव यह होता है कि वे अपने दुर्गुणों को भगवान के सामने छोड़ रहे हैं।

स्कंध पुराण के अवन्ति खंड में काल भैरव मंदिर का उल्लेख मिलता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार ब्रम्हाजी ने शंकरजी के विरुद्ध कोई वक्तव्य दे दिया था। ब्रम्हाजी के वक्तव्य से शिवजी क्रोधित हो गए और उनके त्रिनेत्र से भैरव का जन्म हुआ। भैरव ने क्रोधित होकर ब्रम्हाजी का पांचवा शीश काट दिया जिसके कारण उन्हें ब्रम्ह हत्या का पाप लग गया। भैरव के ब्रम्ह हत्या दोष के निवारण के लिए विष्णुजी ने उन्हें पृथ्वी पर विचरण करने के लिए कहा और जहां कालाग्नि मिले वहां अपने दोष का निवारण करने का सुझाव दिया। भैरव महाराज ब्रम्हाजी का कटा हुआ शीश लिए अपने काले श्वान अर्थात कुत्ते पर सवार हो धरती पर विचरण करने लगे। विचरण करते हुए अवंतिका अर्थात उज्जैन के काला अग्नि क्षिप्रा घाट पर पहुंचे जहां उन्हें शांति मिली।

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आठ भैरव की पूजा शैव परंपरा का एक हिस्सा है और इनमें से काल भैरव को प्रधान माना जाता है। कहते हैं कि क्षिप्रा के तट पर काल भैरव के मंदिर का निर्माण राजा भद्रसेन ने करावाया था। भगवान काल भैरव को उज्जैन नगर का सेनापति भी कहा जाता है और प्रसाद के रूप में मदिरा का भोग लगाया जाता है। शत्रु नाश मनोकामना के संबंध में कहा जाता है कि यहाँ मराठा काल में महादजी सिंधिया ने युद्ध में विजय के लिए भगवान को अपनी पगड़ी अर्पित की थी। पानीपत के युद्ध में मराठों की पराजय के बाद तत्कालीन शासक महादजी सिंधिया ने राज्य की पुनर्स्थापना के लिए भगवान के सामने पगड़ी रख दी थी। उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि युद्ध में विजयी होने के बाद वे मंदिर का जीर्णोद्धार करेंगे। कालभैरव की कृपा से महादजी सिंधिया युद्धों में विजय प्राप्त होती रही। इसके बाद उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। तब से मराठा सरदारों की पगड़ी भगवान कालभैरव के शीश पर पहनाई जाती है।

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विशेष तिथियां:
श्री भैरव महाराज जागरण के, जाग्रति के देवता हैं। वे क्षेत्रपाल के रूप में पूजे जाते हैं, साथ ही कुल देवता के रूप में भी भैरव की पूजा होती है। बारह मास ही काल भैरव मंदिर में देश-विदेश से आये भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन कृष्ण पक्ष की अष्टमी, आषाढ़ मास की पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) और रविवार के दिन विशेष रूप से भैरव की पूजा का विधान है।

श्री काल भैरव क्रोध एवं अग्नि से उत्पन्न हुए हैं इसलिए वे महाक्रोधी देवता कहलाते हैं किन्तु परम दयालु और क्षण में प्रसन्न हो कृपा करने वाले करूणानिधि भी हैं। उनके क्रोध को विसराने के लिए ही उन्हें मदिरा अर्थात सुरा चढ़ाया जाता है। देश-विदेश से आये श्रद्धालु प्रतिमा को साक्षात मदिरा पान करते देख अद्भुत आश्चर्य का अनुभव करते हैं। मदिरा मूर्ति द्वारा कैसे पी ली जाती है यह आज तक कोई ना जान सका। ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने उज्जैन के काल भैरव की प्रतिमा के इर्द गिर्द खुदाई करवाई और फिर प्रतिमा को बहुत सारा मदिरापान करवाया किन्तु वो शराब कहां गई इसका कोई निशान ना मिला। इसके बाद अमेरिका की एजेंसी नासा ने भी अपने तकनीकी ढंग से इस रहस्य को जानने की कोशिश की किन्तु नासा के वैज्ञानिक भी असफल रहे। श्री काल भैरव को मदिरा पान कराने लोग दूर दूर से आते हैं और भगवान का आशीर्वाद ले मनोकामनाओं को पूर्ती हेतु प्रार्थना करते हैं।

मंदिर के चारों और बनी परकाटों वाली लम्बी पत्थर की दीवार यह बताती है कि यह परमारकालीन मंदिर है। राजा भद्रसेन द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। तत्पश्चात राजा जयसिंह ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। श्री काल भैरव मंदिर में श्री भैरव महाराज के आराध्य शिव के साथ पार्वती, विष्णु और गणेशजी की परमारकालीन मूर्तियां भी स्थापित है। इसके साथ ही मंदिर में मालवा शैली के सुन्दर चित्र भी अंकित है। मंदिर प्रांगण में एक मुख वाले भगवान दत्तात्रय भी स्थापित हैं जो कि दर्शनार्थियों को भारत की धार्मिक गाथा से परिचित करातें हैं।
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परम आदरणीय परमानंद मैदुली – जी महाराज- कहते हैं कि यात्रा पर जा रहे हैं भगवान काल भैरव का आशीर्वाद ले लीजिये ; महान ज्‍योतिषविद, प्रकाण्‍ड विद्वान, श्री परमानंद मैदुली जी ने 15 से ज्‍यादा देशों में लम्‍बे समय तक प्रवास कर ज्‍योतिष ज्ञान की अलख जगाई है- मैदुली जी से सम्‍पर्क करने के लिए हिमालयायूके न्‍यूज पोर्ट कार्यालय देदून में सम्‍पर्क करें-* मोबा0 9412932030 CS JOSHI- EDITOR

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