बाबा जी आप रो क्यों रहे हैं ; व्यग्य-
मेरी मौत पर मातमपुर्सी के लिए आए माननीय और मैं रोने लगा…
-डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
मैं गहरी नींद से एकाएक जाग गया था, पोती को पुकारा और रोने लगा। मैं थोड़ा तेज आवाज में बोलने लगा था। पोती (10 वर्षीया) घबरा गई थी, उसने मुझसे पूँछा बाबा जी आप रो क्यों रहे हैं……? मैंने रोते हुए उसको अपने पास बुलाया- बोला मेरी प्यारी पोती तुम सच-सच बताओ क्या मैं जिन्दा नहीं हूँ या सचमुच मैं मर गया हूँ। आवो नजदीक आकर मेरे पास बैठो। वह मेरे ऊपर तरस खाकर बात मान गई थी और पास आकर बैठकर पूँछ बैठी ऐसा काहे को कह रहे हैं ‘ग्राण्ड पा’?
उसकी घबराई आवाज सुनकर मैंने कहा पहले तुम मुझे चिकोटी काटो कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा कि मैं मर गया हूँ-? वह मुझे चिकोटी काटती है (जोर से) दर्द के मारे मैं तिलमिला उठता हूँ। मैंने उसे इशारे से कहा कि एक ग्लास पानी पिलाएँ तब बताऊँ क्यों और किस लिए मैं रो रहा था। उसने ऐसा ही किया। थोड़ा चैतन्य होकर बोला मेरी प्यारी पोती मैंने सपना देखा था, कि मेरे घर माननीय लोग आए हैं और अपनी-अपनी सेल्फी फेसबुक पर पोस्ट करवा रहे हैं। कोई लिखवा रहा है कि आज मैं मरहूम कलमघसीट की अन्त्येष्टि पर घाट पर था। मृतात्मा को शान्ति के लिए परिजनों से मिलकर दुआ किया। सुन रही हो न प्यारी लाडली पोती। वह बोली व्हाट डैम बोरिंग/रबिश सब्जेक्ट मैटर दिस इज………..?
मैंने कहा हाँ पुत्तली हो सकता है कि मेरा कथन तुम्हारे लिए वैसा ही हो, लेकिन आजकल जिसके यहाँ माननीय जाएँ समझो उसके घर में जरूर ही कोई न कोई मरा होगा। मैंने सपने में देखा कि मेरे घर भी कुछेक माननीय पधारे थे। इसीलिए मुझे लगा कि शायद मैं मर गया, यदि ऐसा न होता तो माननीय क्यों आते। मेरी पोती ने प्रश्न किया बाबा जी आप ऐसा क्यों कह रहे हैं- माननीय लोग सिर्फ मातमपुर्सी मेें ही जाते हैं और सामान्य दिन/अवसरों पर क्या करते हैं। मैं उसके प्रश्न के उत्तर में कहता हूँ कि बेटा ये माननीय या तो किसी राजनीतिक पार्टी के प्रत्याशी होते हैं या फिर टिकटार्थी।
अपने कार्य क्षेत्र की सीमा पार नही करते हैं- सीमा के बाहर कोई हादसा हो जाए इनका अता-पता नहीं मिलता। यह सब ‘वोट’ का चक्कर है। एक बात है बेटा- मेरे यहाँ आज तक कोई माननीय नहीं आया। कान इधर लावो- वह अपना कान मेरे मुँह के पास सटा देती है, मैं कहता हूँ वास्तविकता यह है कि मैंने कभी भी किसी कथित माननीय को अपने यहाँ आमंत्रित ही नहीं किया और हल्लाबोल भीड़ की तरह कभी भी माननीयों के यहाँ आयोजित कार्यक्रमों में नहीं गया हूँ- हमारा उनका कोई खास रिश्ता भी नहीं है।
बाबा जी आप सिसकियाँ क्यों ले रहे हैं……? पोती ने पूँछ लिया था। उसे समझाते हुए कहना पड़ा कि पुत्तर आज कल मरनी, मैय्यत, खतना, सुन्नत, बरीक्षा, तिलकोत्सव, शादी-ब्याह, रामलीला, दुर्गापूजा महोत्सव एवं नाच-नौटंकी (जहाँ अधिसंख्य भीड़ एकत्र हो) में शिरकत करने वाले सफेदपोशों को फीता काटकर उद्घाटन करते हुए फेसबुक पर देखा जा रहा है। यह बात अलहिदा है कि ये लोग अपना हित साधने में ही लोगों के यहाँ प्रायोजित ढंग से पहुँचते हैं। अब देखो न युवा पत्रकार तूफानी को इस बात का मलाल है कि उसने एक माननीय को निमंत्रण दिया था, उसके यहाँ वह नहीं पहुँचे थे।
उसने मुझसे कहा था कि बाबा जी अमुक माननीय उसकी शादी के उपलक्ष्य में आयोजित आशीर्वाद प्रीतिभोज में नहीं पहुँचे और न ही नवदम्पत्ति को अपना आशीर्वाद दिया। यह कैसी गैर इन्साफी है। तब मैंने कहा था कि वह माननीय किसी खास प्रायोजित कार्यक्रमानुसार स्वजातीय के यहाँ गए रहे होंगे। प्रतीक्षा करो चुनाव आने दो तब देखना वह जरूर आएँगे। भगवान भला करे कि तुम्हारे ऊपर कोई विपदा न आए और न ही कोई ऐसी कैजुअल्टी हो जिसमें घर के बुजुर्ग सदस्य परलोकगमन कर जाएँ और उस मौके पर माननीय को घाट पर जाने की जहमत उठानी पड़े।
चलो छोड़ो ये सब माननीयों के चोचले हैं उन्हें तो अपना हित साधना है और उनका हित है अधिक संख्या में मतदाताओं की सिम्पैथी लेना और चुनाव के मौके पर अपने पक्ष में माहौल तैयार करना। इनके लिए इस समय सोशल मीडिया सर्वसुलभ है जिस पर ये माननीय अपने द्वारा किए गए हर छोटे-बड़े कार्यों को प्रमुखता से पोस्ट कराकर स्वयं अपनी पीठ थपथपाने के प्रयास में लगे हुए हैं। बेटा यह प्रजातन्त्र नहीं लोकतन्त्र है, जिसमें लगभग सभी सयाने हैं, कोई मूर्ख नहीं है। पता तो तब चलेगा जब चुनाव आएगा, मतदान होगा और रिजल्ट सामने आएगा। तब तक तुम धैर्य रखो…….।
पाठकों! शायद यही सब विचार मेरे दिलो-दिमाग में रहा होगा तभी मैंने रात को उक्त सपना देखा और अपने घर माननीयों की आमद देखकर रोने लगा था, क्योंकि ये माननीय प्रायः उन्हीं लोगों के यहाँ जाते हैं जिनके यहाँ कोई मौत हो गई हो, और वह मौत उनके कार्यक्षेत्र सीमा में रहने वालों के यहाँ हुई हो। मैं भी कई माननीयों की तथाकथित समाज सेवा क्षेत्र की सीमा में रहता हूँ इसीलिए सपने में उन्हें देखकर मुझे लगा कि शायद मेरी मौत हो गई…?
-डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
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