बीजेपी में राज्यो को लेकर मंथन? राज्यों में हार का सिलसिला रोक पाएगी बीजेपी?
HIGH LIGHT# बीजेपी: लोकसभा की जीत के बाद राज्यों में हार क्यों? राज्यों में हार का सिलसिला रोक पाएगी बीजेपी? दिल्ली में चुनाव से पहले ही चुनाव से बाहर ? CS JOSHI- Editor for Himalayauk Newsportal Mail: csjoshi_editor@yahoo.in
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाईं. साथ ही सरकार की प्राथमिकताओं पर भी प्रकाश डाला. अरविंद केजरीवाल ने कहा कि हमने 5 साल पूरी इमानदारी के साथ काम किया और लोगों की जिंदगी को बेहतर करने की कोशिश की. अभी बहुत सारे काम करने बाकी हैं. दिल्ली की सफाई, यमुना की सफाई, ट्रांसपोर्ट आदि को दुरुस्त करना है. उन्होंने कहा कि हमारी प्राथमिकता सफाई, प्रदूषण और ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था को दुरुस्त करना है. केजरीवाल ने कहा कि लोग लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अलग-अलग तरीके से वोट करते हैं. ऐसे में विधानसभा चुनाव पर लोकसभा चुनाव के नतीजों का कोई असर नहीं होगा.
क्या झारखंड में हार के बाद बीजेपी हिल गई है और पार्टी में मंथन शुरू हो गया है? क्या पार्टी को रणनीति बदलनी पड़ी है? क्या उसको अब सहयोगियों के एनडीए छोड़ने का एहसास हो गया है? कहा जा रहा है कि झारखंड में आजसू के अलग होने से बीजेपी को बड़ी हार हुई है। महाराष्ट्र में भी शिवसेना के अलग होने से बीजेपी सत्ता से दूर हो गई है। और अब नागरिकता क़ानून व एनआरसी जैसे विवादास्पद मुद्दों पर दूसरे सहयोगी दल नाराज़ हैं। इसी बीच रिपोर्टें हैं कि जिस जदयू को केंद्र सरकार में शामिल करने को बीजेपी राज़ी नहीं हुई थी वही अब उसे न केवल शामिल करने को तत्पर है, बल्कि दो मंत्रियों का पद देने को तैयार है
मार्च 2018 तक बीजेपी की भारत के 21 राज्यों में सरकार थी. कुछ राज्यों में बीजेपी अपने दम पर सरकार में थी और कुछ जगह सहयोगी दलों की मदद से. 2019 में जम्मू-कश्मीर के दो केंद्र शासित प्रदेशों में बँटने से पहले भारत में कुल 28 राज्य थे.महाराष्ट्र में एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस की सरकार बनने के बाद बीजेपी एक और राज्य में सत्ता से बाहर हो गई है. 2018 के विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हारने के बाद महाराष्ट्र बीजेपी के लिए सबसे बडा झटका लगा.
2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने से पहले भारतीय जनता पार्टी सात राज्यों में सत्ता संभाल रही थी. मार्च 2018 आते-आते बीजेपी तेज़ी से बढ़ते हुए 21 राज्यों में सरकार बनाने में सफल रही. यानी चार साल में तिगुना विस्तार. 2015 में जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने के लिए बीजेपी ने पीडीपी से हाथ मिलाया था. इन चुनावों में पीडीपी 28, बीजेपी 25, नेशनल कॉन्फ्रेंस 15 और कांग्रेस 12 सीटें जीत सकी थी. राज्य में कुल 87 विधानसभा सीटें थीं. ये पहली बार था, जब पंजाब को छोड़कर पूरे उत्तर भारत में बीजेपी अकेले या अपने सहयोगी दलों के साथ सरकार में थी. लेकिन बीजेपी का विजयरथ 2018 से रुकना शुरू हुआ, जब कर्नाटक में कांग्रेस गठबंधन ने सरकार बना ली. हालांकि ये सरकार ज़्यादा दिन नहीं चली और कुछ वक़्त बाद बीजेपी ने फिर से राज्य में सरकार बना ली. महाराष्ट्र के ताजा नतीजों के बाद ये साफ़ है कि बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की राज्यों में पकड़ कम हो रही है.
अरविंद केजरीवाल ने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा को लेकर हम बहुत चिंतित हैं. इसको मिशन के रूप में लेकर काम कर रहे हैं. सबको अपना रोल अदा करना पड़ेगा. सरकार ने सीसीटीवी कैमरे लगवाए हैं. और कैमरे लगाए जा रहे हैं. बसों में मार्शल नियुक्त किये गए हैं. डार्क स्पॉट खत्म किये जा रहे हैं. चुनाव के बाद लास्ट माइल कनेक्टिविटी पर और काम करेंगे. केजरीवाल ने कहा कि पुलिस में और सुधार करने की जरूरत है, ताकि लोगों के अंदर भरोसा जगे. उन्होंने कहा कि दिल्ली के कोने-कोने में जाकर सड़क, पानी, नाली, सीवर और सीसीटीवी लगावाए गए.
हालांकि एक साल में बीजेपी जिन राज्यों में सत्ता से बाहर हुई है, वो संख्या बहुत ज़्यादा नहीं है. लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि बीजेपी देश के बड़े राज्यों महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में हारी है. ये ऐसे राज्य हैं, जिनमें बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की पकड़ मज़बूत रही है. इन राज्यों की जनसंख्या भी दूसरे कई राज्यों के मुक़ाबले काफ़ी ज़्यादा है.
2011 जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से बात करें तो 2018 में बीजेपी जिन राज्यों में सरकार में थी, वहां की कुल आबादी क़रीब 84 करोड़ थी. यानी देश की कुल जनसंख्या का 70 फ़ीसदी. हालिया चुनावों में हार के बाद बीजेपी की राज्य सरकारें देश की कुल 47 फ़ीसदी आबादी पर राज कर रही हैं. यानी 2018 से क़रीब 23 फ़ीसदी की गिरावट.
भारतीय मज़दूर संघ (BMS) ने मोदी सरकार को चेतावनी दी है कि बजट 2020 में उनकी मांगों को अगर शामिल नहीं किया गया तो वो सरकार के खिलाफ आंदोलन करेंगे. भारतीय मज़दूर संघ इस संकल्प के साथ सड़क पर उतरा है कि एक फरवरी के बजट में विनिवेश, निजीकरण और श्रम-सुधार के नाम पर मज़दूरों के शोषण की नीतियों को वो मंज़ूर नहीं करेगा.