मध्य प्रदेश- शिवराज सिंह चौहान ‘बेरंग’ और ‘अनमने’- बीजेपी में भारी असमंजस और उहापोह के हालात
पन्द्रह सालों की सत्ता गँवाने के बाद मध्य प्रदेश बीजेपी अपने पुराने और बुरे दौर में खड़ी नज़र आ रही है। फ़िलहाल प्रदेश बीजेपी के हाल मध्यप्रदेश की सत्ता वापसी के पहले वाली कांग्रेस खेमे जैसे बने दिख रहे हैं। लोकसभा चुनाव के लिये प्रचार ज़ोर पकड़ चुका है, लेकिन बीजेपी अपने गढ़ समेत आठ सीटों के उम्मीदवार घोषित नहीं कर पायी है। प्रदेश के नेताओं में टिकट को लेकर घमासान मचा हुआ है। पार्टी ने जिन सांसदों के टिकट काटे हैं, उनमें से कई ने बग़ावत का बिगुल फूँक कर पार्टी की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं। आलम यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश बीजेपी में बड़ी हैसियत रखने वाले शिवराज सिंह चौहान से लेकर मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष रहे नरेंद्र सिंह तोमर और प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह की नसीहतों का असर भी इन पर होता नज़र नहीं आ रहा है।
बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की कुल 29 में से 27 सीटें जीतकर इतिहास रचा था। बीजेपी ने इस बार नारा तो ‘मिशन – 29’ का दिया है, लेकिन टिकटों को लेकर मचे घमासान और संगठन में बिखराव के जो हालात हैं- उसे देखते हुए प्रदेश इकाई के कई बड़े नेता ऑफ़ द रिकॉर्ड बता रहे हैं, ‘स्थितियों को जल्दी काबू में नहीं किया गया तो मध्य प्रदेश में मोदी-शाह के प्लान पर पानी फिर जायेगा।’
वही दूसरी ओर मोदी की रैली में क्या तमाशबीन आ रहे है-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब बुधवार को कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड पर भारी भीड़ को संबोधित किया तो जो बात लोगों को चौंका रही थी, वह थी वहाँ मौजूद युवाओं की भीड़। ‘मोदी! मोदी!’ के नारे लगा रही युवाओं की टोली चर्चा के केंद्र में इसलिए है कि पश्चिम बंगाल की छात्र राजनीति में बीजेपी के संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का नामलेवा आज भी नहीं है। पश्चिम बंगाल की छात्र राजनीति पर आज भी वाम छात्र संगठनों, कांग्रेस के संगठन छात्र परिषद और उससे अलग हुए तृणमूल छात्र परिषद के लोगों का ही कब्जा है। तो क्या ये युवक तमाशबीन थे जो गाँवों से कोलकाता की मुफ़्त सैर करने आए थे या उन्हें मोदी का आकर्षण खींच लाया। इसका सही जवाब कुछ दिन बाद ही मिल पाएगा, जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आ जाएँगे।
वही ममता ने ही पश्चिम बंगाल में बीजेपी को घुसने का मौका दिया था- वाम मोर्चा ने आरोप लगाया था कि ममता ने बीजेपी जैसी पार्टी को राज्य में घुसने का मौका दिया ; नए-नए लोग बीजेपी से जुड़े हैं और अब यह ‘अछूत’ पार्टी नहीं रही। इसका श्रेय तृणमूल कांग्रेस और उसकी नेता ममता बनर्जी को ही है। अटल बिहारी वाजेपयी की सरकार में रेल मंत्री बनीं ममता बनर्जी ने तब बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया था। हालाँकि बीजेपी को कोई कामयाबी तो नहीं मिली, पर उसकी मौजूदगी दर्ज हो गई थी। उस समय तक बीजेपी का पश्चिम बंगाल में कोई आधार नहीं था। उस समय वामपंथी दलों और कांग्रेस पार्टी ने ममता को यह कह कर आड़े हाथों लिया था कि उन्होंने बीजेपी जैसी पार्टी को राज्य में घुसने का मौका दिया। तृणमूल कांग्रेस ने जल्द ही बीजेपी से नाता तोड़ लिया और अलग हो गई।आज बीजेपी उसी तृणमूल सरकार को ललकार रही है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि इसके लिए ममता बनर्जी की नीतियाँ ज़िम्मेदार हैं। ममता बनर्जी को ऐसा लग रहा है कि वाम मोर्चा को उखाड़ फेंकने के लिए मुसलमानों का वोट ज़रूरी है क्योंकि राज्य की राजनीति में उनकी ख़ास मौजूदगी है। पश्चिम बंगाल में लगभग 30 प्रतिशत मुसलिम मतदाता हैं।
मसलन, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में चुनाव अभियान समिति के मुखिया रहे निवर्तमान केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर अपना सांसद पद बचाने के लिए संघर्षरत हैं। पार्टी ने उन्हें ग्वालियर की बजाय इस बार मुरैना से टिकट दिया है। मुरैना में पार्टी के कई धड़े तोमर के विरोध में खड़े हुए हैं। तोमर के असमंजस और कुर्सी बचाने से जुड़े संघर्ष का उदाहरण स्वयं तोमर का यह बयान माना जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा है, ‘मुरैना से ही लड़ूँगा, दोबारा ग्वालियर भेज दिया जाऊँगा या फिर किसी और सीट (भोपाल सीट के लिए भी उनका नाम चर्चाओं में है) से लड़ूँगा, अभी पक्के तौर पर मालूम नहीं है।’
विधानसभा चुनाव की हार के बाद मध्य प्रदेश की राजनीति से किनारे कर दिये गये पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी ‘बेरंग’ और ‘अनमने’ दिखलाई पड़ रहे हैं। भोपाल सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ उनका नाम सुर्खियों में है, लेकिन शिवराज ने अभी तक वह अंदाज़ नहीं दिखाया है जिसके लिए पिछले तेरह-साढ़े तेरह साल वे ख्यात रहे हैं। अपने मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में शिवराज सिंह पूरे पाँच साल चुनावी मोड में नज़र आते थे। यहाँ तक कि उन्होंने स्थानीय निकाय चुनावों में पार्टी के लिए प्रचार में कभी गुरेज नहीं किया। लोकसभा चुनाव का बिगुल फूँके महीना भर होने जा रहा है, लेकिन शिवराज ने मध्यप्रदेश में उस तरह की मुस्तैदी अभी तक नहीं दिखाई है – जैसी की वह मध्य प्रदेश के सीएम रहते दिखाया करते थे। इस कथित उदासीनता के पीछे पार्टी द्वारा शिवराज को मध्यप्रदेश में पीछे कर दिया जाना भी माना जा रहा है।
भोपाल, इंदौर और विदिशा बीजेपी के अभेद गढ़ों में शुमार होते हैं। ये तीनों सीटें बीजेपी 1989 से लगातार जीत रही है। लगातार आठ-आठ चुनाव जीतने वाली तीनों ही सीटों के उम्मीदवारों को लेकर भी बीजेपी में भारी असमंजस और उहापोह के हालात हैं। विदिशा सीट से 2009 में सुषमा स्वराज सांसद थीं। वे क़रीब तीन महीने पहले ही घोषणा कर चुकी थीं कि इस बार का चुनाव नहीं लड़ेंगी। जबकि इंदौर सीट की आठ बार की सांसद सुमित्रा महाजन ‘ताई’ ने टिकट कटने के अंदेशे के चलते शुक्रवार को साफ़ कर दिया कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगी।
बीजेपी के टीकमगढ़ के प्रत्याशी वीरेंद्र कुमार, रीवा में जर्नादन मिश्रा, सीधी में रीती पाठक, शहडोल में हिमाद्री सिंह, बालाघाट में ढाल सिंह बिसेन, राजगढ़ में रोडमल नागर, उज्जैन में अनिल फिरोजिया, मंदसौर में सुधीर गुप्ता, खरगोन में गजेन्द्र पटेल, खंडवा में नंदकुमार सिंह चौहान और बैतूल में दुर्गादास का भारी विरोध हो रहा है। शहडोल में तो निवर्तमान सांसद ज्ञान सिंह नाम निर्देशन पत्र ख़रीद चुके हैं। उधर बालाघाट में टिकट कटने से दु:खी बोध सिंह भगत ताल ठोक मैदान में डट गये हैं। सागर का टिकट अभी घोषित नहीं हुआ है, लेकिन टिकट कटने के अंदेशे के मद्देनजर निवर्तमान सांसद लक्ष्मी नारायण यादव सोशल मीडिया पर नित-नयी तीखी पोस्ट डालकर पार्टी पर दबाव बनाये हुए हैं।
मंडला से उम्मीदवार बनाये गये मौजूदा सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते के टिकट पर तलवार लटकी नज़र आ रही है। ‘टीवी9 भारत वर्ष’ के कथित स्टिंग से जुड़ा कुलस्ते का वीडियो जमकर वायरल हो रहा है। वायरल स्टिंग वीडियो में वे प्रधानमंत्री मोदी समेत अन्य बड़े नेताओं को भला-बुरा कहते हुए नज़र आ रहे हैं। कथित स्टिंग के बाद से उनका टिकट कटने की संभावनाएँ जताई जा रही हैं।
मध्यप्रदेश बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय ने कहा, ‘टिकट वितरण में किसी तरह की देरी नहीं हुई है। छिंदवाड़ा में नॉमिनेशन के लिए पर्याप्त समय है। जल्द ही उम्मीदवार घोषित कर दिये जाएँगे।’ उन्होंने कहा, ‘चुनाव समिति की बैठकें नियमित हो रही हैं। प्रदेश की बची हुई सभी सीटों पर तय समय में पार्टी उम्मीदवार घोषित कर देगी। टिकटों को लेकर पार्टी में किसी तरह के असमंजस या संशय जैसे हालात क़तई नहीं हैं। रही बात टिकट कटने से नाराज़ निवर्तमान सांसद या दावेदार को टिकट नहीं मिलने के बाद असंतोष होने की तो वक्त रहते सभी को मना लिया जायेगा। कहीं कोई सेबोटेज़ नहीं होगा। अंत में बीजेपी मिशन 29 में सफल होगी।’
वही दूसरी ओर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पश्चिम बंगाल को काफ़ी पहले ही निशाने पर लिया था और उसी हिसाब से शतरंज की गोटियाँ बिठा रहे थे। सारदा चिटफंड घोटाले में फँसे ममता बनर्जी के क़रीबी मुकुल राय पर पहले सीबीआई की जाँच शुरू कराई गई। अमित शाह ने बाद में मुकुल राय को अपनी ओर खींचा। मुकुल राय के बीजेपी में शामिल होने के बाद सारदा घोटाले में उनकी भूमिका की जाँच ठंडे बस्ते में डाल दी गई। उनके शामिल होने के बाद से अब तक एक बार भी सीबीआई ने उनसे पूछताछ नहीं की है, न ही कोई सम्मन भेजा है।ममता बनर्जी को लपेटे में लेने के लिए सीबीआई ने उनके विश्वस्त पुलिस अफ़सर और कोलकाता पुलिस के प्रमुख राजीव कुमार को गिरफ़्तार करने की योजना बनाई। ममता बनर्जी ने इस पर इतना बड़ा हंगामा खड़ा कर दिया कि केंद्र सरकार को पैर वापस खींचने पड़े।आज पूरे देश में उग्रवाद का दौर है, अंध राष्ट्रभक्ति का जूनून है, पुलवामा आतंकवादी हमले और बालाकोट हवाई हमले के बल पर चुनाव लड़ा जा रहा है। पश्चिम बंगाल इससे अछूता नहीं रह सकता। नरेंद्र मोदी ने बुधवार को कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में भी ये ही मुद्दे उठाए। उन्होंने वहाँ भी कहा कि लोग बालाकोट हमले पर सवाल कर रहे हैं और सूबत माँग रहे हैं। मोदी ने पश्चिम बंगाल के विकास की कोई बात नहीं की, वहां के बंद पड़े कारखानों की कोई चर्चा नहीं की, बेरोज़गार युवाओं को नौकरी देने की कोई बात नहीं की। इसके बावजूद युवा यदि ‘मोदी! मोदी!’ के नारे लगा रहे थे तो