जिन राज्याेे में बीजेपी ने मुख्यमंत्री थाेपे, वहां त्राहिमाम की स्थिति
इस बार लड़ाई एक तरफा नहीं है -अच्छे संकेत नहीं #राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ प्रमुख रूप से हैं. इन राज्यों को मिला दें तो 65 सीटें होती हैं. इनमें से 62 सीटें बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में जीती थीं. लेकिन इस बार इन्हीं राज्यों से बीजेपी को चुनौती मिलने वाली है. 2014 जैसा प्रदर्शन दोहरा पाना आसान नहीं हैं; बीजेपी उच्च सूत्रों के अनुसार ;; बीजेपी की ज्यादातर राज्यों में सरकारें और वहां भी इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं इनमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ प्रमुख रूप से हैं. इन राज्यों को मिला दें तो 65 सीटें होती हैं. इनमें से 62 सीटें बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में जीती थीं. लेकिन इस बार इन्हीं राज्यों से बीजेपी को चुनौती मिलने वाली है.मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी की सरकार है और वहां बीजेपी के लिए अच्छे संकेत नहीं आ रहे हैं. पीएम मोदी ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कई बड़े ऐलान किए थे लेकिन चार साल बीत जाने के बाद भी जमीनी हकीकत से दावे मेल नहीं खा रहे हैं. इस मुद्दे को इस बार विपक्षी दल जरूर हथियार बना सकते हैं.
जिन राज्याेे में चुनाव के उपरांत बीजेपी ने मुख्यमंत्री थाेपे, वहां से रिपोर्ट अच्छी नही आ रही है, वहां ठप्प पडेे विकास कार्यो की मखौल सोशल मीडिया में जम कर उड रही है, डबल इंजन – का पर्याय ही यह माना जा रहा है कि केन्द्र और राज्य सरकार विकास करने की इच्छुक नही है, वही उत्तराखण्ड में तो हालात भयंकर खराब है, यहां राज्य कर्ज पर चल रहा है, कर्ज की राशि शीघ्र 50 हजार करोड होने जा रही है, कर्ज के पैसे से नौकरशाही विदेश यात्रा कर रही है तो बडे बडे आयाेजन किये जा रहे हैं, इन सब असलियत को नजरअंदाज करना लोकसभा चुनाव में भारी पडेगा-
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2014 का लोकसभा का चुनाव, जिसे हमेशा ‘मोदी लहर’ के रूप में याद किया जाएगा, उसमें बीजेपी को अकेले ही 282 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इसे एक करिश्मा के रूप में देखा गया था। अगर इस सफलता को राज्यवार देखें तो पता चलता है कि इन 282 सीटों से आधे से भी ज्यादा, 149 सीटें सिर्फ चार राज्यों- यूपी, गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान से ही थीं। वह भी इन राज्यों की कुल सीटों के 93 फीसदी हिस्से के रूप में। उसे यूपी की 80 सीटों में 71, गुजरात की 26 में 26, राजस्थान की 25 में 25 और मध्यप्रदेश की 29 में 27 सीटों पर जीत मिली थी। जाहिर है कि इन राज्यों में बीजेपी का यह टॉप प्रदर्शन था।
बेरोजगारी से ही जुड़ा हुआ मुद्दा है आर्थिक मंदी. सरकार नोटबंदी के बाद से यह नहीं बता पा रही है कि इस फैसले से देश की अर्थव्यवस्था को क्या फायदा हुआ. बीजेपी के नेता यशवंत सिन्हा भी इस मुद्दे पर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. सरकारी आंकड़ों में भी कहते हैं भारत की अर्थव्यवस्था इस समय मंदी में है.बजट में भले ही ग्रामीण अर्थव्यस्था और किसानों के लिए बड़़े ऐलान किए गए हैं लेकिन यह इस साल पूरी तरह से लागू हो जाएंगे कह पाना मुश्किल है. किसानों को लेकर सरकार की ओर से बीते चार सालों में साफ नीति नहीं है. फसल बीमा योजना का लाभ कितने किसानों को समय पर मिला इसका भी कोई ठोस जवाब नहीं है. सरकार की ओर से मिलने वाली यूरिया भी आसानी से उपलब्ध नहीं है. फसलों के आलू किसानों ने हाल ही में अपनी फसल उत्तर प्रदेश विधानसभा के सामने फेंकी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी ने किसानों के लिए क्रांतिकारी परिवर्तन के वादे किए थे. लेकिन अभी उसमें बहुत काम होना बाकी है.
2014 के लोकसभा चुनाव में ‘मोदी लहर’ के सामने कई समीकरण धवस्त हो गए थे. जिनमें क्षेत्रीय पार्टियों का प्रदर्शन था. लेकिन बीते चार सालों में बहुत कुछ बदला सा नजर आ रहा है. गुजरात में हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर जैसे नेता उभरे हैं तो महाराष्ट्र में भी दलितों का आंदोलन हाल ही में हो चुका है. राजस्थान के उपचुनाव में भी ‘पद्मावत’ का मुद्दा स्थानीय लोगों की भावनाओं से जुड़ा था.
लीडरशिप खुद मानती है कि अब इन राज्यों में वैसा प्रदर्शन दोहरा पाना आसान नहीं हैं। इसी के मद्देनजर बीजेपी ने 2019 के लिए छह ऐसे राज्यों को चुना है, जहां पिछले चुनाव में उसका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा। ये राज्य हैं- आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, वेस्ट बंगाल, केरल और ओडिशा। इन राज्यों से लोकसभा की कुल 164 सीटें आती हैं। लेकिन पिछली बार बीजेपी को इनमें से सिर्फ सात पर जीत मिल पाई थी। बीजेपी लीडरशिप को लगता है कि इन राज्यों पर ध्यान केंद्रित कर पिछले चुनाव में बेहतर प्रदर्शन वाले राज्यों में होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सकती है।
केरल ;;; 20 सीटों वाले इस राज्य में बीजेपी अपने को थर्ड फ्रंट के रूप में स्थापित करना चाहती है। इसी वजह से वह आक्रामकता के साथ मैदान में है। उसकी कोशिश यूडीएफ और एलडीएफ को एक सिक्के के दो पहलू साबित करने की है। दरअसल, यहां कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रैटिक फ्रंट (यूडीएफ) और सीपीएम के नेतृत्व वाले (एलडीएफ) गठबंधन ही बीते चार दशक से घूम फिर कर सत्ता में है। अपने लिए जगह बनाने की गरज से बीजेपी राज्य में भारत धर्मा जना सेना के साथ अपने रिश्तों को विस्तार भी देना चाहती है।
तमिलनाडु ;; 39 सीटों वाले राज्य में बीजेपी के पास कई विकल्प हैं। 14 के चुनाव में पार्टी को यहां से सिर्फ एक सीट मिली थी। उसे लगता है कि जयललिता की मौत और करुणानिधि + की बढ़ती उम्र की वजह से राज्य में इलाकाई दलों का प्रभुत्व कम हुआ है। सत्तारूढ़ एआईएडीएमके लीडरशिप बीजेपी के साथ गठबंधन को तैयार है। रजनीकांत भी बीजेपी के साथ आ सकते हैं। इसके अलावा एक संभावना विजयकांत की डीएमडीके, ईआर ईश्वरन की केएमडीके, एस रामदास की पीएमके, वायको की एमडीएमके, एसी षणमुगम की पीएनके को साथ में लेकर बड़ा गठबंधन बनाने की भी है। बीजेपी लोकसभा चुनाव में सीनियर पार्टनर और विधानसभा चुनाव में जूनियर पार्टनर बनने का दांव खेल सकती है।
आंध्रप्रदेश ;; इस राज्य से 25 लोकसभा की सीटें हैं। 2014 के चुनाव में बीजेपी को यहां दो सीटों पर जीत मिली थी। उस चुनाव में बीजेपी का यहां पर टीडीपी के साथ गठबंधन था। लेकिन अब दोनों के रास्ते अलग हो चुके हैं। बीजेपी यहां अकेले कोई ताकत नहीं रखती। इस वजह से वह अब यहां वाईएसआर कांग्रेस के साथ गठबंधन की ओर कदम बढ़ा रही है। राज्य में वाईएसआर कांग्रेस का अच्छा प्रभाव माना जाता है। 2014 में इसे टीडीपी के 15 सीटों के मुकाबले 8 सीटों पर जीत मिली थी।
तेलंगाना ;;; 17 सीटों वाले इस राज्य में 2014 में बीजेपी को महज एक सीट पर कामयाबी मिली थी। यहां टीआरएस का दबदबा है। राज्य में उसी की सरकार भी है। लोकसभा में 17 में से 11 सांसद भी उसी के हैं। बीजेपी के साथ उनका रिश्ता बहुत अच्छा नहीं है। इस वजह से दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन की कोई गुंजाइश नहीं है। बीजेपी यहां भी वाईएसआर कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने का इरादा रखती है। वाईएसआर कांग्रेस के लिए भी यहां ऐसा करना इस वजह से मजबूरी है क्योंकि राज्य में उसकी स्थिति बहुत मजबूत नहीं है।
ओडिशा ;; 21 सीटों वाले इस राज्य में बीजेपी की कोशिश अपने को विकल्प के रूप में पेश कर नवीन पटनायक सरकार के खिलाफ सत्ताजनित नाराजगी को भुनाने की है। पिछले चुनाव में यहां उसे महज एक सीट मिली थी। लेकिन उसके लिए तसल्ली की बात यह थी कि कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। बाद में स्थानीय स्तर पर होने वाले चुनावों में उसने कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन किया। पार्टी यहां अकेले चुनाव लड़ने का इरादा रखती है।
पश्चिमी बंगाल ;; 42 सीटों वाले इस राज्य में बीजेपी अकेले ही चुनाव के मैदान में उतरेगी। बीजेपी के लिए यहां सबसे बड़ा प्लस पॉइंट यह है कि उसने अपने को ममता के खिलाफ विकल्प के रूप में स्थापित कर लिया है। जो एन्टी ममता वोट है, उसके कांग्रेस या वामदलों के साथ जाने की सम्भावनाएं बहुत सीमित हो गई हैं। बीजेपी यहां के वोटर्स के जेहन में यह बिठाने में जुटी है कि ममता-कांग्रेस-वामदल सब एक हैं। अमित शाह का आकलन पश्चिम बंगाल से 22 सीट जीतने का है।
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