सतर्क बीजेपी का मिशन बिहार शुरू – भूली नही-5 साल सत्ता पर काबिज रहने के बाद भी चारो खाने चित्त
HIGH LIGHT# बीजेपी को अपनी वो हार याद है- जब 5 साल सत्ता में रहने के बाद भी जबर्दस्त हार हुई थी- सतर्क बीजेपी संभावित विधानसभा चुनावो वाले राज्यो का गहन मंथन कर रही है, और किसी भी बडे निर्णय लेने को तैयार है # ब्राहमणो की नाराजगी लेने से बचेगी पार्टी # अब मध्य प्रदेश भाजपा में सभी अहम पदों पर ब्राह्मण नेताओं को लाया गया # संघ की प्रयोगशाला माने जाने वाले मध्य प्रदेश में संघ का एजेंडा लागू करने के लिए भी ब्राहमणो का साथ भी एक चुनौती थी- अन्यथा कमलनाथ से पार पाना मुश्किल था# Execlusive Report by Himalayauk Bureau
झारखंड में पांच साल सत्ता पर काबिज रहने के बाद बीजेपी को आशा थी कि विधानसभा चुनाव में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे का जलवा दिखेगा, लेकिन चुनाव परिणाम से बीजेपी चारो खाने चित्त हो गई. सतर्क बीजेपी ने इसी को देखते हुए मिशन बिहार शुरू किया है- दिल्ली में हार के बाद बीजेपी (BJP) अब मिशन बिहार में जुट गई है.
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HIGH LIGHT# 20 फरवरी 2020 :पंजाब: भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा पहुंचे अमृतसर के स्वर्ण मंदिर # नड्डा ने कहा कि वह अपने बेटे की शादी का व्यक्तिगत निमंत्रण देने अनुभवी नेताओ से मिलने गये थे# नडडा गुरूवार को अकाली दल के वरिष्ठ नेता प्रकाश सिंह बादल से पंजाब के बादल गांव स्थित उनके घर में मुलाकात की, दोनो नेताओ की बंद कमरे में एक घण्टा तक बातचीत चली, बादल ने कुछ दिनो पूर्व अल्पसंख्यको को साथ लेकर सरकार चलाने का बयान दिया था, # भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद नड्डा की यह पहली पंजाब यात्रा थी। बादल गाँव के बाद नड्डा अमृतसर में स्वर्ण मंदिर, दुर्ग्याणा मंदिर और राम तीरथ गए। भाजपा के एक नेता ने कहा कि नड्डा के अमृतसर में राज्य के पार्टी नेतृत्व से मिलने की भी उम्मीद है।
झारखंड विधनसभा चुनाव (Jharkhand Assembly Election 2020) में जेएमएम (JMM) गठबंधन की जीत और पांच साल सत्ता पर काबिज रहे बीजेपी (BJP) की हार के बाद से झारखंड (Jharkhand) में एक बार आदिवासी केंद्रित सियासत की सुगबुहाट शुरू हो गई है. बीजेपी ने सत्ता खोने के बाद ही यह मान लिया था कि झारखंड में गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री का प्रयोग उसके लिए भारी साबित हुआ. कहा तो यह भी जा रहा है कि चुनाव के बाद से ही बीजेपी ने एक दमदार आदिवासी चेहरे की तलाश शुरू कर दी थी. लोकसभा चुनाव में झारखंड में जबरदस्त सफलता पाने के बाद बीजेपी को आशा थी कि विधानसभा चुनाव में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे का जलवा दिखेगा, लेकिन चुनाव परिणाम से बीजेपी चारोखाने चित्त हो गई.
सतर्क बीजेपी ने इसी को देखते हुए मिशन बिहार शुरू किया है- दिल्ली में हार के बाद बीजेपी (BJP) अब मिशन बिहार में जुट गई है. बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Eleciton 2020) की तैयारियों को लेकर बीजेपी अब बिहार पर अपना फोकस केंद्रित करती नजर आ रही है. संगठन चुनाव के बाद पहली बार पटना आ रहे हैं जेपी नड्डा और चुनावी वर्ष है बिहार में ; जेपी नड्डा के आगमन को लेकर बड़े पैमाने पर पार्टी की ओर से तैयारी की जा रही है ,जगह जगह पोस्टर-होर्डिंग लगाए गए हैं
उधर झारखण्ड में विधानसभा चुनाव में हार के बाद बेचैनी में बीजेपी नेतृत्व ने बड़े आदिवासी चेहरे की तलाश में बाबूलाल मरांडी को अपनाने में तनिक भी देरी नहीं की. 14 साल से अलग हुए बीजेपीई और झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के प्रमुख बाबूलाल ने भी मौके की नजाकत को देखते हुए घरवापसी में ही अपनी भलाई समझी. कहा जा रहा है कि बाबूलाल को जहां एक कार्यकर्ताओं वाली बड़ी पार्टी की दरकार थी, वहीं बीजेपी को एक दमदार आदिवासी चेहरे की जरूरत थी, जो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को विधानसभा और सदन के बाहर भी टक्कर दे सके. झारखंड में बाबूलाल से अच्छा नेता इस पैमाने पर कोई नहीं टिक सकता था.
चर्चा है कि बाबूलाल विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता के रूप में विधानसभा में हेमंत के खिलाफ कमान संभालेंगे. बीजेपी जहां चुनाव हारकर झारखंड के नब्ज को पहचान पाई, वहीं कांग्रेस झारखंड की सियासत को चुनाव पूर्व ही भांपकर अपने संगठन में बदलाव कर लिया था, जिसका उसे चुनाव में लाभ भी मिला. कांग्रेस गैर आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए अजय कुमार को चुनाव से कुछ समय पहले हटाकर आदिवासी नेता रामेश्वर उरांव को पार्टी के प्रदेश नेतृत्व की कमान थमाई. इसका नतीजा भी चुनाव परिणाम देखने को मिला और कांग्रेस पहली बार 16 सीटों पर जीत दर्ज की.
झारखंड की राजनीति को नजदीक से समझने वाले रांची के वरिष्ठ पत्रकार संपूर्णानंद भारती भी कहते हैं कि झारखंड की सियासत में आदिवासी चेहरे को नहीं नकारा जा सकता है. उन्होंने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि झारखंड में आदिवासियों की सुरक्षित विधानसभा सीट भले ही 28 है, लेकिन 27 फीसदी आबादी के साथ आदिवासी समुदाय राज्य के आधे से अधिक विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों की जीत हार में निर्णायक भूमिका निभाता है. उन्होंने दावा करते हुए कहा कि कई शहरी इलाकों में भारी आदिवासी मतदाता चुनाव परिणाम को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. ऐसे में यह भी नहीं कहा जा सकता है कि आदिवासी मतदाता केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही प्रभावी हैं.
इधर, गौर से देखा जाए तो सत्ता पाने के बाद ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपनी पहली मुलाकात में ही झारखंड में ट्राइबल यूनिवर्सिटी खोलने की मांगकर आदिवासियों के युवा वर्ग को आकर्षित करने की कोशिश की. यह दीगर बात है कि सरकार ने भी आम बजट में यूनिवर्सिटी नहीं देकर ट्राइबल म्यूजियम झारखंड को देकर यहां के आदिवासियों को खुश करने की कोशिश की. झारखंड में एकबार फिर आदिवासी केंद्रित सियासत की रूपरेखा तैयार हो गई है अब देखना होगा कि इस सियासत से झारखंड के विकास को कितनी गति मिलती है, या फिर केवल यह सियासत भी सत्ता तक पहुंचने का माध्यम ही साबित होता है.
कांग्रेस में किसी जमाने में ब्राहमण नेताओ का वर्चस्व था और पूरे देश में कांग्रेस छाई हुई थी, ब्राहमण नेता साइड लगते गये और कांग्रेस लुप्त होती गई, यही हाल भाजपा का है,
मध्य प्रदेश में सवर्णों का गुस्सा शांत करने के लिए किसी ब्राह्मण नेता को प्रदेशाध्यक्ष बनाने का फैसला हुआ. ब्राह्मण नेताओं में संघ के चहेते एकमात्र वीडी थे. वही मोदी-शाह के बढ़ते कद के चलते संघ में खुद को प्रासंगिक बनाए रखने की सोच भी हावी थी, इसी का नतीजा था कि म0 प्रदेश विधानसभा चुनावों में ब्राहमण क्षेत्रो में भाजपा का प्रदर्शन सबसे लचर रहा था, 34 में से 27 सीटों पर हार झेलनी पड़ी थी. हार का एक बड़ा कारण सवर्ण आंदोलन था इसलिए वीडी के जरिए पार्टी अपने ऊपर लगे सवर्ण विरोधी के दाग को धोकर चंबल में फिर से अपनी धाक जमाना चाहती है. वही संघ की प्रयोगशाला माने जाने वाले मध्य प्रदेश में संघ का एजेंडा लागू करने के लिए भी ब्राहमणो का साथ भी एक चुनौती है. ब्राहमणो की नाराजगी म0प्रदेश में भाजपा के लिए मुश्किल दौर है. शायद इसी को देखते हुए मध्य प्रदेश में मंथन हुआ, और अब मध्य प्रदेश भाजपा में सभी अहम पदों पर ब्राह्मण नेताओं का कब्जा हो गया है. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव हैं, मुख्य सचेतक नरोत्तम मिश्रा हैं और अब प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा हैं.