उत्तराखंड; प्रमुख धामों के नाराज पुजारी यह कैसा श्राप दे बैठे?
High Light# चारधाम देवस्थानम एक्ट सरकार की मुश्किलें बढ़ा सकता हैं.# हाईकोर्ट ने पूरे मामले पर सुनवाई कर केंद्र सरकार, राज्य सरकार व सीईओ चारधाम देवस्थानम बोर्ड को नोटिस जारी# पुजारियों ने श्रद्धालुओं को यह चेतावनी भी दे दी है कि वे इन धर्मस्थलों पर न जाएं क्योंकि यहां 2013 से भी भयानक त्रासदी हो सकती है। करीब सात साल पहले भीषण बाढ़ ने इस राज्य को तहस-नहस कर दिया था# वरिष्ठ भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी का कहना है कि हाईकोर्ट में देवस्थानम प्रबंधन एक्ट के खिलाफ दायर की याचिका का फैसला उनके पक्ष में आएगा। इससे पहले भी वह तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में ऐसे कई केस जीत चुके हैं# सुब्रह्मण्यम स्वामी जब वह याचिका तैयार करा रहे थे तभी सरकार ने चारधाम मामले में सीईओ नियुक्त कर दिया # Himalayauk Execlusive
शांत रहने वाला पर्वतीय राज्य उत्तराखंड इन दिनों अशांत है। देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड के प्रमुख धामों के पुजारी वहां की राज्य सरकार के एक फ़ैसले से बेहद नाराज़ हैं। राज्य में बीजेपी की सरकार है और उसने हाल ही में अपनी विधानसभा में चार धाम देवस्थानम मैनेजमेंट एक्ट पास किया है। इस एक्ट के पास होने का मतलब यह है कि राज्य के लगभग 50 मंदिरों का नियंत्रण राज्य सरकार के हाथों में आ जाएगा। इन 50 मंदिरों में चार धाम कहे जाने वाले केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री भी शामिल हैं।
तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी महापंचायत के प्रवक्ता बृजेश सती ने कहा कि ये चार धाम श्राइन बोर्ड प्रबंधन विधेयक चार धाम समेत 51 मंदिरों को आईएएस अधिकारियों के मनमर्ज़ी से चलाने के लिए ही बनाया गया है. विधेयक में आईएएस अधिकारियों की भरमार है और खानापूर्ति के लिए तीर्थ पुरोहितों को रखा गया है. बोर्ड के सीईओ को असीमित अधिकार दे दिए गए हैं. वह तीर्थ पुरोहितों को रखने, निकालने, उनकी आमदनी सब तय करेंगे और इसकी वजह से भविष्य में संघर्ष होना तय है. जिस बोर्ड में सीईओ के फ़ैसलों को चुनौती दी जानी है वह भी सरकार के ही नियंत्रण में रहेगा इसलिए तीर्थ पुरोहितों और हक-हकूकधारियों को वहां से कोई राहत मिलने की उम्मीद नहीं है.
इन चार धामों के पुजारियों ने श्रद्धालुओं को चेताया है कि वे इस साल इन पवित्र मंदिरों में न आयें वरना वे 2013 से भी ख़तरनाक आपदा का शिकार हो सकते हैं। 2013 में उत्तराखंड में भयावह आपदा आई थी और इसमें केदारनाथ मंदिर के आसपास ख़ासा नुक़सान पहुंचा था। इसके अलावा राज्य के बाक़ी हिस्सों में भी जबरदस्त नुक़सान हुआ था और राज्य अभी तक इस आपदा से पूरी तरह नहीं उबर पाया है। इस आपदा में कई घर तबाह हो गये थे।
इन धामों के पुजारियों ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ कर रही है। उत्तरकाशी में स्थित गंगोत्री मंदिर के मुख्य पुजारी (रावल) शिव प्रकाश ने अंग्रेजी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया (टीओआई) से मंगलवार को कहा, ‘इस क़ानून के द्वारा मंदिरों को अपने अधिकार में लेकर राज्य सरकार धर्म और लोगों की भावनाओं के साथ खेल रही है। अगर सरकार इस क़ानून को रद्द नहीं करती है तो 2013 की आपदा से भी ज़्यादा भयावह घटना इस बार होगी।’
शिव प्रकाश ने इस मामले में गुजरात, राजस्थान और दिल्ली का दौरा किया है और लोगों से इस साल चार धाम की यात्रा पर नहीं जाने के लिये कहा है। शिव प्रकाश ने बताया कि इसके बाद वह असम के दौरे पर जायेंगे।
गंगोत्री धाम के एक और पुजारी राजेश सेमवाल ने बताया, ‘अगर राज्य ने कानून वापस नहीं लिया तो पुजारी मंदिर के कर्मकांडों का बहिष्कार करेंगे और श्रद्धालु पूजा नहीं कर सकेंगे और उनकी यात्रा अधूरी ही रहेगी।’
गंगोत्री धाम के दूसरे पुजारी राजेश सेमवाल ने टीओआई से कहा कि अगर राज्य सरकार इस क़ानून को वापस नहीं लेती है तो पुजारी इस साल मंदिर के धार्मिक संस्कारों का बहिष्कार करेंगे और इस वजह से श्रद्धालु पूजा नहीं कर पायेंगे और उनकी यात्रा अधूरी रह जाएगी। सेमवाल ने कहा कि सरकार के क़दम से श्रद्धालुओं में सकारात्मक संदेश नहीं गया है।
इस मामले में बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यन स्वामी भी मुखर हैं और उन्होंने इस क़ानून के ख़िलाफ़ उत्तराखंड हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। हाई कोर्ट ने स्वामी की जनहित याचिका पर जवाब देने के लिये राज्य सरकार को तीन हफ़्ते का समय दिया है। स्वामी ने मांग की है कि अदालत को इस क़ानून पर रोक लगा देनी चाहिए।
सरकार की ओर से पेश हुए वकीलों ने अदालत में इस क़ानून का बचाव करते हुए कहा कि इस क़ानून को देश के संविधान के नियमों का पालन करते हुए ही बनाया गया है और इसके विरोध में अदालत में दायर की गई याचिका महज राजनीतिक स्टंट है और इसलिये इसे रद्द कर दिया जाना चाहिए। इस साल चार धाम यात्रा अप्रैल में शुरू होगी।
इस कानून के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी के राज्य सभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी पहले ही उत्तराखंड हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं। उन्होंने कहा है, ‘चीफ जस्टिस रमेश रंगनाथन और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की डिविजन बेंच ने सरकार को तीन हफ्ते के अंदर जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।’ उन्होंने एक्ट पर स्टे लगाने की मांग भी कोर्ट के सामने रखी। सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल एसएन बाबलुकर और चीफ स्टैंडिंग काउंसिल परेश त्रिपाठी ने कानून का बचाव करते हुए कहा कि देश के संविधान का पालन करते हुए यह कानून पास किया है। उन्होंने इसके खिलाफ दाखिल की गई याचिका को राजनीतिक स्टंट करार दिया है और इसे रद्द करने की मांग की है।
हाईकोर्ट ने पूरे मामले पर सुनवाई कर केंद्र सरकार, राज्य सरकार और सीईओ चारधाम देवस्थानम बोर्ड को नोटिस जारी किया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन एवं न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की खंडपीठ ने सभी पक्षकारों से कहा है कि वो तीन हफ्ते के भीतर अपना जवाब दाखिल करें।
बीजेपी के राज्यसभा सांसद ने भी इस एक्ट को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार का यह एक्ट असंवैधानिक है और सुप्रीम कोर्ट के 2014 के आदेश का उल्लंघन करता है। मंदिर चलाना सरकार का काम नहीं है। मंदिर को भक्त या फिर उनके लोग ही चला सकते हैं, लिहाजा एक्ट निरस्त किया जाना चाहिए।
तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी महापंचायत के प्रवक्ता बृजेश सती ने कहा कि आईएएस अधिकार जब तक अपने पद पर रहेगा तभी तक वह श्राइन बोर्ड में शामिल रहेगा. चूंकि आईएएस अधिकारियों के भी शासन की ज़रूरत के अनूसार ट्रांस्फ़र होते रहते हैं इसलिए इस बात की संभावना कम ही है कि वह सदियों पुरानी परंपराओं को समझ पाएगा. तीर्थ पुरोहित महापंचायत के प्रवक्ता ने आज ही अल्मोड़ा में एएसआई अधिकारियों के जूते पहनकर जागेश्वर धाम में घूमने का उदाहरण दिया. जागेश्वर के पुजारियों के विरोध पर एएसआई अधिकारियों ने उनसे बदतमीजी भी की और जिस अंगीठी से वह आग सेक रहे थे उसे फिंकवा दिया.सती कहते हैं कि करोड़ों हिंदुओं की आस्था के केंद्रों का महत्व न समझने, ऐसे मामलों की संवेदनशीलता से परिचित न होने और समाज की भावनाओं का आदर न करने की वजह से ही ऐसी घटनाएं होती हैं और बोर्ड बनने के बाद इसकी आशंका बहुत बढ़ जाएगी.
सती याद दिलाते हैं कि आईएएस अधिकारियों के धार्मिक संस्थाओं में
अत्यधिक दखल की वजह से इसी साल मई में बदरीनाथ में भी बवाल हो चुका है. 24 मई को जोशीमठ के एसडीएम वैभव गुप्ता बदरीनाथ धाम
में गुजरात धर्मशाले स्थित सीईओ के कक्ष में पहुंचे और उनकी कुर्सी पर बैठ गए और
उनसे मंदिर से जुड़ी पत्रावलियां भी तलब कीं. सीईओ के इस पर ऐतराज़ जताने के बाद
दोनों में तीखी बहस हुई थी.
बदरीनाथ धाम के इतिहास में पहली बार भगवान को
भोग के लिए दो घंटे इंतज़ार करना पड़ा था. सती कहते हैं कि क्योंकि आईएएस
अधिकारियों का बोर्ड में दबदबा होगा तो वह मनमानी करेंगे और ऐसी घटनाएं बढ़ना तय
हो जाएगा. बोर्ड के गठन के बाद चार धाम और सभी 51 धार्मिक स्थलों पर सारी सरकारी संपत्तियां बोर्ड
के अधिकार में आ जाएंगी. हालांकि विधेयक में अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इन सभी
मंदिरों और धार्मिक स्थलों के आस-पास निजी संपत्तियों का क्या होगा लेकिन
तीर्थ-पुरोहितों और हक-हकूकधारियों को इस बात की आशंका बहुत ज़्यादा है कि सरकार
बरसों की मेहनत से बनाई गई उनके गेस्ट हाउस, ढाबों, होटलो पर भी कब्ज़ा कर लेगी.
सती
कहते हैं कि इस बात की आशंका बहुत ज़्यादा है और देवभूमि उत्तराखंड में धार्मिक
पर्यटन पर स्थानीय लोगों की निर्भरता को देखते हुए यह बहुत घातक सिद्ध होने वाला.
जब अपने घरों के पास से रोज़गार का ज़रिया छिन जाएगा तो पलायन और बढ़ेगा.