सनसनी- चीफ जस्टिस पर यौन शोषण का आरोप ; न्यायपालिका को अस्थिर करने का षड्यंत्र- चीफ जस्टिस
भारत की न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार किसी मुख्य न्यायाधीश पर यौन शोषण का आरोप किसी महिला ने लगाया है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के ऊपर उन्हीं के दफ़्तर में काम करने वाली 35 साल की जूनियर कोर्ट असिस्टेंट ने यह सनसनीखेज आरोप लगाया है कि जस्टिस गोगोई ने अपने निवास कार्यालय पर उनके साथ शारीरिक छेड़छाड़ की और जब उन्होंने इसका विरोध किया तो उसको कई तरह से परेशान किया गया और अंत में उसे नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया गया।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि यह आरोप उन पर तब लगे हैं जब वह अगले हफ़्ते सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई करने जा रहे हैं। जस्टिस गोगोई ने कहा कि मैं इस कुर्सी पर बैठूंगा और बिना डर के अपने न्यायिक कर्तव्यों का निर्वहन करुँगा।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ एक महिला द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों पर शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में विशेष बेंच में सुनवाई हुई. इस दौरान चीफ जस्टिस गोगोई ने अपने ऊपर लगे आरोपों को बेबुनियाद बताया और कहा कि इसके पीछे कोई बड़ी ताकत होगी, वे सीजेआई के कार्यालय को निष्क्रिय करना चाहते हैं. जस्टिस गोगोई ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘मैंने आज अदालत में बैठने का असामान्य और असाधारण कदम उठाया है क्योंकि चीजें बहुत आगे बढ़ चुकी हैं. मैं इस कुर्सी पर बैठूंगा और बिना किसी भय के न्यायपालिका से जुड़े अपने कर्तव्य पूरे करता रहूंगा. 20 साल की सेवा के बाद यह सीजेआई को मिला इनाम है’.
सुप्रीम कोर्ट ने इन आरोपों के फौरन बाद इस मसले पर एक स्पेशल बेंच गठित की है। इस बेंच में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ख़ुद हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा है कि मीडिया मुख्य न्यायाधीश के ख़िलाफ़ लगे यौन शोषण के आरोपों के बारे में ख़बर देते समय अपने विवेक का इस्तेमाल करे।
चीफ जस्टिस ने कहा कि इसके पीछे कोई बड़ी ताकत होगी, वे सीजेआई के कार्यालय को निष्क्रिय करना चाहते हैं. लेकिन न्यायपालिका को बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता.रंजन गोगोई ने कहा, ‘यह अविश्वसनीय है. मुझे नहीं लगता कि इन आरोपों का खंडन करने के लिए मुझे इतना नीचे उतरना चाहिए. कोई मुझे धन के मामले में नहीं पकड़ सकता है, लोग कुछ ढूंढना चाहते हैं और उन्हें यह मिला. न्यायाधीश के तौर पर 20 साल की निस्वार्थ सेवा के बाद मेरा बैंक बैलेंस 6.80 लाख रुपये है’. जस्टिस गोगोई ने स्पष्ट कहा कि मैं इस कुर्सी पर बैठूंगा और बिना किसी भय के न्यायपालिका से जुड़े अपने कर्तव्य पूरे करता रहूंगा.
वहीं, जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि इस तरह के अनैतिक आरोपों से न्यायपालिका पर से लोगों का विश्वास डगमगाएगा.
स्क्रॉल डॉट इन वेबसाइट ने यह सनसनीखेज ख़बर छापी है। इस महिला ने 19 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट में 22 जजों को एक चिट्ठी लिखी है और इस चिट्ठी में यह आरोप लगाया है।
इस दौरान कोर्ट के अंदर जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि इसकी भी जांच होनी चाहिए कि इस महिला को यहां (सुप्रीम कोर्ट) में नौकरी कैसे मिल गई जबकि उसके खिलाफ आपराधिक केस है. अटॉर्नी जनरल ने कहा कि पुलिस द्वारा कैसे इस महिला को क्लीन चिट दी गई.
चीफ जस्टिस ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में है. इस आरोप से मैं बेहद आहत हुआ हूं. इस पूरे मामले पर मीडिया को संयम बरतने की सलाह दी गई है.
सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व महिला कर्मचारी ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है. इस महिला कर्मचारी ने शपथ पत्र देकर सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों को आरोप लगाने वाला यह पत्र भेजा था. इस पूरे मामले की सुनवाई के लिए एक स्पेशल बेंच का गठन किया गया और शनिवार को इस मसले पर सुनवाई हुई.
अपने हलफ़नामे में महिला ने दावा किया है कि उसकी बर्खास्तगी के जो 3 कारण बताए गए उनमें से 1 कारण यह था कि उसने बिना अनुमति के 1 दिन की कैजुअल लीव ली। वेबसाइट महिला के हलफ़नामे का हवाला देते हुए आगे लिखती है कि बर्खास्तगी के बाद भी महिला की तकलीफ़ें कम नहीं हुईं, यह दावा महिला ने किया है। उसके पति और उसके देवर जो दिल्ली पुलिस में हेड कांस्टेबल के पद पर हैं, उन्हें दिसंबर 2018 में सस्पेंड कर दिया गया और कारण यह बताया गया कि 2012 में जिस कॉलोनी में वह रहते थे, वहाँ उन्होंने कोई झगड़ा किया था। हालाँकि यह झगड़ा आपसी सहमति से सुलझा लिया गया था।
वेबसाइट आगे लिखती है कि 11 जनवरी 2019 को एक पुलिस ऑफ़िसर महिला को लेकर मुख्य न्यायाधीश के घर पर गया जहाँ मुख्य न्यायाधीश की पत्नी ने उससे कहा कि वह ज़मीन पर लेटकर उनके पैरों पर अपनी नाक रगड़े और माफ़ी माँगे। महिला ने ऐसा ही किया। हालाँकि उसका दावा है कि उससे क्यों माफ़ी मंगवाई गई, यह उसे नहीं मालूम।
महिला ने यह भी दावा किया है कि उसके विकलांग देवर को 14 जनवरी को उसके पद से हटा दिया गया। यह देवर सुप्रीम कोर्ट में 9 अक्टूबर को अस्थायी जूनियर कोर्ट अटैंडेंट के पद पर बहाल किया गया था।
स्क्रॉल डॉट इन की ख़बर में यह भी लिखा है कि 9 मार्च को जब महिला और इसके पति राजस्थान के अपने गाँव में थे तो दिल्ली पुलिस की एक टीम वहाँ पहुँची और धोखाधड़ी के एक मामले में उससे पूछताछ की बात की। महिला पर यह आरोप था कि उसने 2017 में किसी से 50 हज़ार रुपये लिए थे ताकि वह सुप्रीम कोर्ट में उसे नौकरी दिला सके, जो वह नहीं कर पाई। बाद में महिला, उसके पति, उसके देवर, देवर की पत्नी और एक दूर के रिश्तेदार को तिलक नगर थाने में हिरासत में भी रखा गया।
हलफ़नामे में यह आरोप भी लगाया गया है कि उन्हें थाने में हथकड़ी लगाकर रखा गया और उन्हें यंत्रणा दी गई। ख़बर में इस बात का भी दावा किया गया है कि हथकड़ी लगा हुआ वीडियो भी हलफ़नामे के साथ सुप्रीम कोर्ट के जजों को भेजा गया है।
इस ख़बर के आने के बाद से न्यायपालिका से जुड़े हुए तबक़े में सनसनी है और लोग सकते में हैं। हम आपको बता दें कि जस्टिस रंजन गोगोई सुप्रीम कोर्ट के उन 4 वरिष्ठ न्यायधीशों में से एक थे जिन्होंने उस वक़्त के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के न्यायिक व्यवहार से दुखी होकर प्रेस कॉन्फ़्रेंस की थी और यह कहा था कि देश का लोकतंत्र ख़तरे में है। उस वक़्त जस्टिस गोगोई वरिष्ठता में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और जस्टिस चेलमेश्वर के बाद तीसरे नंबर पर थे। ऐसा भारत के इतिहास में पहली बार हुआ था जब सुप्रीम कोर्ट के जजों ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर अपनी बात रखी थी। तब इस मसले पर काफ़ी विवाद भी हुआ था। दबे-छुपे शब्दों में मोदी सरकार ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस करने को ग़लत बताया था लेकिन एक दूसरे तबक़े का मानना था कि सरकार और सरकार से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट पर अनाश्वयक दबाव डाला जा रहा है और मनमाने फ़ैसले करवाने की कोशिश की जा रही है। यह वह समय था जब लोया की मौत का मामला बहुत गर्म था और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह की तरफ़ संदेह की उंगलिया उठ रही थी। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने जज लोया के मामले में लगे सारे आरोपों को बेबुनियाद बताया था।
रफ़ाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ महीने पहले सरकार को एक तरह से क्लीन चिट दे दी थी लेकिन नए ख़ुलासे सामने आने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की दोबारा सुनवाई मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में कर रहा है। और इस मामले में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को नए सिरे से नोटिस जारी किया है। चुनाव के मौक़े पर सुप्रीम कोर्ट का इस मामले की नए सिरे से सुनवाई करना सरकार के लिए एक बड़ा झटका है। इस मामले में ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साख पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है।