सुप्रीम कोर्ट और मोदी सरकार के बीच टकराव? – कारण उत्तराखंड चीफ जस्टिस
उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस केएम जोसेफ़ को लेकर सरकार को एतराज
उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ़ का मामला सुप्रीम कोर्ट और मोदी सरकार के बीच टकराव का कारण बन सकता है. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस जोसेफ़ को शीर्ष अदालत का जज बनाने की अनुशंसा की है. Top Breaking; www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal)
सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार और सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम के बीच टकराव के आसार बन गए हैं. सरकारी सूत्रों के अनुसार उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस केएम जोसेफ़ को लेकर सरकार को एतराज है. सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठ जजों के विवाद से खुद को दूर रखने में कामयाब सरकार अब जजों की नियुक्ति के विवाद में फंसती नजर आ रही है. सुप्रीम कोर्ट कोलिजियम ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस के एम जोसेफ़ और वरिष्ठ वक़ील इंदु मल्होत्रा का नाम भेजा है, लेकिन सरकारी सूत्रों के अनुसार जोसेफ़ के नाम पर हरी झंडी नहीं दी गई है.
सुप्रीम कोर्ट और मोदी सरकार के बीच टकराव – उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ़ का मामला
चूंकि जस्टिस जोसेफ़ और मोदी सरकार के बीच अदावत पुरानी
उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ़ का मामला सुप्रीम कोर्ट और मोदी सरकार के बीच टकराव का कारण बन सकता है. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस जोसेफ़ को शीर्ष अदालत का जज बनाने की अनुशंसा की है.
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़ जस्टिस जोसेफ़ उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों में वरिष्ठता क्रम के हिसाब से 45वें नंबर पर आते हैं. उनसे वरिष्ठ 12 न्यायाधीश को बतौर मुख्य न्यायाधीश विभिन्न उच्च न्यायालयों में काम कर रहे हैं. बताया जताा है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार इसी आधार पर जस्टिस जोसेफ़ को सुप्रीम कोर्ट में जज बनाने का प्रस्ताव शीर्ष अदालत के कॉलेजियम काे वापस भेजने पर विचार कर रही है. अगर मोदी सरकार जस्टिस जोसेफ़ से संबंधित प्रस्ताव लौटाती है तो सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम फिर उनके नाम की अनुशंसा कर सकता है. क्योंकि जस्टिस जोसेफ़ को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने के प्रस्ताव पर कॉलेजियम में सर्वसम्मति है. सूत्रों के मुताबिक़ अगर कॉलेजियम उनके नाम की फिर अनुशंसा करता है तो सरकार के पास उसे स्वीकार करने का ही विकल्प रह जाएगा.
लेकिन चूंकि जस्टिस जोसेफ़ और मोदी सरकार के बीच अदावत पुरानी है इसलिए यह मामला इतनी आसानी से निपटने की उम्मीद भी कम है. याद दिला दें कि 2016 में मोदी सरकार ने उत्तराखंड में संवैधानिक संकट मानते हुए तत्कालीन कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया था. लेकिन अप्रैल-16 में जस्टिस जोसेफ ने राष्ट्रपति शासन हटाते हुए हरीश रावत सरकार को सदन में बहुमत साबित करने का आदेश दे दिया था.
सुप्रीम कोर्ट के दो फ़ैसलों में कहा गया है कि जजों की नियुक्ति में वरिष्ठता का ध्यान रखा जाए, लेकिन जोसेफ़ अखिल भारतीय सूची में 45वें और चीफ़ जस्टिस की सूची में 12वें क्रम पर हैं. सिफारिश में क्षेत्रीय संतुलन भी होना चाहिए. बॉम्बे हाईकोर्ट से तीन जजों के नाम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के लिए भेजे गए, जबकि गुजरात से कोई नाम नहीं आया.
सरकार के कदम पर विपक्ष की नज़रें हैं. उसका कहना है कि सरकार को इसमें दखल नहीं देना चाहिए. कांग्रेस सांसद और वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा ने कहा कि सरकार सिर्फ सुरक्षा जांच जैसे मुद्दों पर दखल दे सकती है. अन्य किसी मुद्दे पर उसे सवाल उठाने का अधिकार नहीं है. उधर ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक कॉलेजियम सूत्रों का कहना है कि अगर सरकार उनका नाम लौटाती है तो वह उसे दोबारा सरकार के पास भेज देगी. साथ ही सरकार दो नामों को अलग नहीं कर सकती. यानी वो या तो दोनों को एक साथ मंज़ूर करे या नामंज़ूर, लेकिन एक को स्वीकार और दूसरे को अस्वीकार नहीं कर सकती.
हालांकि सरकारी सूत्रों ने कहा कि ऐसा कोई नियम नहीं है. यानी यह भी हो सकता है कि सरकार इंदु मल्होत्रा के नाम पर मुहर लगाए और जोसेफ़ के नाम को वापस भेज दे.
क्या हुआ था उस दौरान
उत्तराखंड में व्याप्त राजनीतिक संकट के बीच केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के आदेश को रोकने वाले उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीस जस्टिस केएम जोसेफ़ का तबादला आंध्र प्रदेश कर दिया गया था समाचार एजेंसी ANI के हवाले से इस खबर का भरोसा करें तो जस्टिस जोसेफ उस फेहरिस्त में शामिल हो जाते हैं, जिन्हें कथित रूप से राजनीतिक तबादला झेलना पड़ा है. इसके पहले अमित शाह के केस की सुनवाई कर रहे जज का भी तबादला गुजरात से बाहर कर दिया गया था. ज्ञात हो कि जस्टिस जोसेफ की ही बेंच ने केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा उत्तराखंड में लगाए जा रहे राष्ट्रपति शासन के आदेश को निरस्त करते हुए केंद्र सरकार की भरसक आलोचना भी की थी.
क्या हुआ था उस दौरान
उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन पर सुनवाई के दौरान नैनीताल स्थित हाईकोर्ट ने सख़्त टिप्पणी की थी। कोर्ट ने पूछा, ‘क्या इस केस में केंद्र सरकार प्राइवेट पार्टी है?’ बीजेपी के बहुमत के दावों के बीच कोर्ट ने केंद्र से एक हफ़्ते तक राष्ट्रपति शासन नहीं हटाने का भरोसा देने के लिए कहा। जब केंद्र ने कहा कि वह इस बात की कोई गारंटी नहीं दे सकते कि राज्य से राष्ट्रपति शासन हटाया जाएगा या नहीं, तो हाई कोर्ट ने कहा, ‘आपके इस तरह के व्यवहार से हमें तकलीफ हुई है।’
कोर्ट चाहता है कि उसका फैसला आने तक राज्य में राष्ट्रपति शासन बना रहे। जजों ने कहा कि उन्हें चिंता इस बात की है कि यदि ऐसा नहीं होता है, तो किसी को भी नई सरकार बनाने का मौका दिए जाने पर यह न्याय का मजाक होगा।
हाईकोर्ट के जजों ने पूछा, ‘यदि कल आप राष्ट्रपति शासन हटा लेते हैं और किसी को भी सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर देते हैं, तो यह न्याय का मजाक उड़ाना होगा। क्या केंद्र सरकार कोई प्राइवेट पार्टी है?’
उत्तराखंड हाईकोर्ट की डबल बेंच में चल रही सुनवाई में चीफ़ जस्टिस केएम जोसेफ़ ने केंद्र के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का पक्ष सुनने के दौरान कई सवाल किए।
इस मामले के साथ चल रहे 9 बागी विधायकों के मामले में उनके वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा कि यह समस्या कांग्रेस से नहीं बल्कि हरीश रावत और स्पीकर के साथ जुड़ी है, क्योंकि सभी 9 विधायक सदस्यता खत्म करने के बावजूद आज भी कांग्रेस के सदस्य हैं।
पहले भी लग चुकी है कड़ी फटकार
इससे पहले बुधवार को भी उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार के फ़ैसले पर पर बड़ी टिप्पणी करते हुए कहा था, ‘भारत में संविधान से ऊपर कोई नहीं है। इस देश में संविधान को सर्वोच्च माना गया है। यह कोई राजा का आदेश नहीं है, जिसे बदला नहीं जा सकता है। राष्ट्रपति के आदेश को भी संविधान के ज़रिए बदला जा सकता है।’
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