युद्ध की ओर खिसकती स्थितियाँ? सेना चीनी सैन्य ठिकानों को ध्वस्त करने की स्थिति में
चीन का शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व अपने विस्तारवादी कदम को पीछे हटाने को कब तैयार होता है। चीनी राजनीतिक नेतृत्व भारतीय राजनीतिक नेतृत्व के धैर्य की परीक्षा ले रहा है। भारतीय राजनीतिक नेतृत्व अपनी घरेलू लोकप्रियता खोने की कीमत पर चीनी सेना की शांति की शर्तों को नहीं मान सकता। लेकिन चीन का भी अड़ियल रुख जारी रहने के मद्देनजर भारतीय सेना के लिये दुविधा की स्थिति और जटिल हो गई है। कोविड महामारी के फैलते जाने और इस वजह से भारी दलदल में फंसी अर्थव्यवस्था से संकट में उलझी भारत सरकार की दयनीय स्थिति को देखते हुए चीन को लग रहा है कि भारतीय नेतृत्व चीन से युद्ध छेड़ने की स्थिति में नहीं है। ;;;;
भारतीय सेना ने यह संकेत दिया है कि युद्ध के लिये उकसाए जाने पर वह जवाबी हमले के लिये पूरी तरह तैयार है। थलसेना प्रमुख जनरल मनोज नरवाणे ने गत गुरुवार को ही लद्दाख के सीमांत इलाकों का दौरा कर युद्ध की तैयारी की गहन समीक्षा की है और अपने जवानों का मनोबल बढ़ाया है।
चीफ़ आफ़ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने भी कहा है कि भारतीय सेना दोनों मोर्चों पर एक साथ युद्ध लड़ने के लिये तैयार है। माना जा रहा है कि जब चीन के साथ युद्ध छिड़ जाएगा तो पाकिस्तान इस स्थिति का फायदा उठाने से नहीं चूकेगा। भारत के लिये यह स्थिति काफी भयावह, चुनौतीपूर्ण और मुश्किलों भरी होगी लेकिन इस सम्भावित हालात से निबटने के लिये भारतीय सेना अपनी रणनीति तैयार कर चुकी है और इसके अनुरूप अपने सैन्य संसाधन को आत्मरक्षा और आक्रमण के लिये तैयार कर दिया है।
चीन की ओर से भी उसके नवीनतम स्वदेशी पांचवीं पीढ़ी के जे-20 लडाकू विमान को शिनजियांग और तिब्बत के वायुसैनिक अड्डों पर तैनात कर दिया गया है और भारतीय सेना को धमकाने के लिये अक्सर उनकी उड़ाने भारतीय सीमांत इलाकों में होने लगी है। चीनी टैंक, तोपें और भारी युद्धक वाहन भी अपनी मांसपेशियाँ दिखा रहे हैं।
देखना होगा कि चीन का शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व अपने विस्तारवादी कदम को पीछे हटाने को कब तैयार होता है। चीन ने ही भारतीय इलाके में घुसपैठ की पहल की है इसलिये उसे ही पीछे जाने के कदम उठाने होंगे। गत 5 जुलाई को भारत औऱ चीन के विशेष प्रतिनिधियों की बातचीत में जो सहमति बनी थी कि सेनाएं वास्तविक नियंत्रण रेखा तक पीछे चली जाएंगी, वह अब तक अमल में नहीं लाया जा सका है।
इसके दो ही मायने निकलते हैं। या तो चीन भारत के साथ बातचीत करते रहने का नाटक कर अपनी सैन्य तैयारी और भारतीय इलाके में अपना कब्जा मजबूत करने की रणनीति पर चल रहा है या फिर चीनी राजनीतिक नेतृत्व और चीनी सैन्य नेतृत्व के बीच समुचित तालमेल नहीं है। लेकिन यह भी कहा जाता है कि चीनी सेना चीनी सैन्य आयोग के तहत ही काम करती है और चीन के राष्ट्रपति ही इस सैन्य आयोग के चेयरमैन हैं। इसलिये चीनी सेना अपने चेयरमैन के आदेशों और निर्देशों का उल्लंघन नहीं कर सकती। साफ है कि चीन की कथनी और करनी में फर्क है, जिसे यदि चीनी राजनीतिक नेतृत्व ने नहीं पाटा तो भारत और चीन के बीच खुला युद्ध छिड़ने से रोका नहीं जा सकता।
भारत और चीन के बीच सैन्य तनातनी जारी रहने के चार महीने पूरे होने के साथ ही भारत और चीन के रक्षा मंत्रियों की सीधी बातचीत के बाद दोनों ओर से साफ संकेत दिया गया है कि उनकी सेनाओं ने अपनी म्यानों से तलवारें निकाल ली हैं और अब वे इसे भांजने के लिये पूरी तरह तैयार हैं। इस बातचीत की पहल हालांकि चीन की ओर से की गई और भारतीय रक्षा मंत्री ने इस बातचीत को लेकर अपनी अरुचि दिखाई कि उनका मास्को में काफी व्यस्त कार्यक्रम है। चीनी पक्ष द्वारा बातचीत की पहल करना यह संकेत देता है कि पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाके में भारतीय सेना ने सैन्य दबाव काफी बढ़ा दिया है।
भारत ने पैंगोंग झील के दक्षिणी छोर पर स्थित 15 हज़ार फीट से अधिक उंचाई वाली चोटियों काला टाप, मगर टाप, गुरुंग हिल और हेलमेट टाप पर 29-30 अगस्त की रात कब्जा कर लिया, जिससे चीनी सेना इसलिये तिलमिला गई है। उसे लगता है कि चीन के कब्जे वाले इलाके पर भारतीय सेना इस तरह निगरानी रख सकती है कि किसी संघर्ष की स्थिति में उस पर एकतरफा हमला कर उसे सिर उठाने का मौका नहीं देगी। इस इलाके में भारतीय सेना ने अपनी तोपों और मशीनगनों को तैनात कर दिया है और दूर तक चीनी सैन्य ठिकानों को ध्वस्त करने की स्थिति में आ गई है। ;;;; रंजीत कुमार
लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर चीनी सेनाओं को सबक सिखाने में यहां रहने वाले भारतीयों ने सेना की भरपूर मदद की. पिछले महीने की 31 तारीख को चीन की तरफ से घुसपैठ की कोशिश के बाद भारतीय सेना ने चीन के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करते हुए न सिर्फ चीनियों को वापस ढकेल दिया, बल्कि इंडियन आर्मी ने पैंगोंग झील के दक्षिणी छोर पर स्थित कई ऊंचे पहाड़ों पर कब्जा भी जमा लिया. इस बड़े ऑपरेशन में भारतीय सेना के साथ-साथ लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर रहने वाले गांव वालों ने भरपूर मदद की. इन दुर्गम इलाकों के हर एक चप्पे से वाकिफ गांव वालों ने सेना का सामान, राशन और दूसरी जरूरी चीजें कंधों पर उठाकर पहाड़ों पर पहुंचा दीं. यहां के स्थानीय लोगों ने भारतीय सेना को भरोसा दिलाया कि चीन के खिलाफ किसी भी कार्रवाई में वह भारतीय सेना के साथ खड़े रहेंगे. इन लोगों ने भारतीय सेना की मदद करने के एवज में किसी तरह की मजदूरी लेने से भी इनकार कर दिया और कहा कि चीन के खिलाफ हर अभियान में वे भारतीय सेना के साथ हैं.
चीन की अड़ंगेबाजी से यहां रहने वाले लोग भी प्रभावित हो रहे हैं. चीन की गतिविधियों की वजह से इनकी रोजाना की जिंदगी पर असर पड़ा है. अब उन्हें पहाड़ों पर कहीं भी आने-जाने में सावधानी रखती पड़ती है. उनका कहना है कि जिन पहाड़ों पर उनके पूर्वज दशकों से मवेशी चराते आए हैं उनपर वे कभी भी चीन का कब्जा नहीं देखना चाहते हैं. आम लोगों की तरफ से यह सहयोग मिलने के बाद भारतीय सेना का मनोबल भी काफी बढ़ा है.
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