पिछले 4 वर्षों में 23,000 करोड़पति छोड़ चुके हैं देश : रिपोर्ट; सरकार में हडकम्‍प

 भाारत के अमीर क्‍यो छोड रहे है देश #भारत के सबसे ज्यादा अमीर भारत छोड़ रहे हैं, ये रफ्तार चीन और फ्रांस से भी ज्यादा है. इकनॉमिक टाइम्स ने मॉर्गन स्टेनली के रुचिर शर्मा की रिसर्च के हवाले देते हुए बताया है कि 2014 से अब तक 23 हजार करोड़पति देश छोड़ चुके हैं. इनमें 7000 अकेले 2017 में देश छोड़कर गए # हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल

यहां आसानी से कारोबार करने का माहौल नहीं है. बिजनेस करना सिर्फ मुश्किल ही नहीं, टॉर्चर भी है. जो बाहर गए हैं, वो टैक्स चुराने-बचाने के लिए गए हैं, जांच एजेंसियों के डर से गए हैं, सिर्फ ऐसा मानना, खुद को गुमराह करने जैसा होगा.

इकोनोमिक टाईम्‍स बिजनेस न्‍यूज के अनुसार- 

सरकार चिंतित है। सरकार अब जानना चाहती है कि आखिर क्या वजह है कि करोड़पति भारत छोड़कर विदेश जा रहे हैं # देश के अमीरों को भारतीय पासपोर्ट सरेंडर कर विदेश बसानेे का  धंधा जोर पकड़ रहा है# पिछले 4 वर्षों में भारत से आनेवाले एप्लिकेशंस में 40% बढ़ोतरी #अमीर भारतीयों से मोटी कमाई कर रहे हैं ऐसे छोटे देश
अपनी कमजोर माली हालत सुधारने के लिए एंटीगुआ सरीखे छोटे देशों ने ऐसी स्कीम्स बना ली हैं, जिनके तहत एक सरकारी फंड में कॉन्ट्रिब्यूशन या एक रियल एस्टेट इनवेस्टमेंट के जरिए कुछ महीनों की नागरिकता हासिल की जा सकती है। इन देशों में आवेदक को केवल 50 हजार डॉलर यानी करीब 34 लाख रुपये देने होते हैं। इन देशों में विदेशी इनकम, कैपिटल गेन, इंपोर्ट, गिफ्ट, उत्तराधिकार में मिली संपत्ति पर कोई टैक्स नहीं लगता 

सुगाता घोष, मुंबई  

पिछले 4 वर्षों में 23,000 करोड़पति छोड़ चुके हैं देश : रिपोर्ट
देश के अमीरों को भारतीय पासपोर्ट सरेंडर कर डोमिनिका, सेंट लूसिया, एंटीगुआ, ग्रेनाडा, सेंट किट्स, माल्टा या साइप्रस सरीखी जगहों की नागरिकता दिलाने का धंधा जोर पकड़ रहा है। इस काम में दुबई और दूसरे फाइनैंशल सेंटर्स से काम कर रहीं कंपनियां जुटी हुई हैं। ये कंपनियां भारत के वेल्थ मैनेजरों, टैक्स प्रैक्टिशनर्स और वकीलों के बीच अपने संभावित क्लाइंट्स ढूंढ रही हैं। 

कई मालदार भारतीय टैक्स कम चुकाने की गुंजाइश बनाने और मनमाफिक कारोबारी माहौल के लिए यह रास्ता पकड़ते हैं। कुछ अन्य अपनी कारगुजारियों की भनक भारतीय जांच एजेंसियों को लगने से पहले भारतीय अदालतों के दायरे से निकल भागने के लिए ऐसा करते हैं। इकनॉमिक टाइम्स ने ऐसी कुछ कंपनियों से संपर्क किया, जो 3-4 महीनों की सिटिजनशिप दिलाने में मदद करती हैं। इसके लिए वे क्लाइंट्स से एक लाख से लेकर 2.4 लाख डॉलर तक वसूलती हैं। 

दिल्ली की सिटिजनशिप इनवेस्ट ने पिछले नौ वर्षों में हजारों लोगों को नई नागरिकता पाने के बारे में सलाह दी है। उसकी सीईओ वेरोनिका कॉटडेमी ने कहा, ‘हमारे 10 पर्सेंट क्लाइंट्स एनआरआई और भारत में रहने वाले यहां के नागरिक हैं। पिछले 4 वर्षों में भारत से आनेवाले एप्लिकेशंस में 40% बढ़ोतरी हुई है। हमारे क्लाइंट्स हम तक ऑनलाइन या दूसरों के जरिए जानकारी जुटाकर संपर्क करते हैं। जुलाई 2017 से फरवरी 2018 के बीच ऑल्टरनेटिव सिटिजनशिप्स के बारे में एनआरआई और भारतीय नागरिकों की ओर से पूछताछ में 65 पर्सेंट बढ़ोतरी हुई है। ऐसा टैक्स कलेक्शंस के बारे में पीएम नरेंद्र मोदी के प्रशासन की ज्यादा सक्रियता के कारण भी हो सकता है।’ 

दिल्ली की सिटिजनशिप इनवेस्ट ने पिछले नौ वर्षों में हजारों लोगों को नई नागरिकता पाने के बारे में सलाह दी है। उसकी सीईओ वेरोनिका कॉटडेमी ने कहा, ‘हमारे 10 पर्सेंट क्लाइंट्स एनआरआई और भारत में रहने वाले यहां के नागरिक हैं। पिछले 4 वर्षों में भारत से आनेवाले एप्लिकेशंस में 40% बढ़ोतरी हुई है। हमारे क्लाइंट्स हम तक ऑनलाइन या दूसरों के जरिए जानकारी जुटाकर संपर्क करते हैं। जुलाई 2017 से फरवरी 2018 के बीच ऑल्टरनेटिव सिटिजनशिप्स के बारे में एनआरआई और भारतीय नागरिकों की ओर से पूछताछ में 65 पर्सेंट बढ़ोतरी हुई है। ऐसा टैक्स कलेक्शंस के बारे में पीएम नरेंद्र मोदी के प्रशासन की ज्यादा सक्रियता के कारण भी हो सकता है।’ 

उन्होंने कहा, ‘कोई भी देश ऐसे व्यक्ति को नागरिकता नहीं देता है, जो बैंक लोन का डिफॉल्टर हो या जो टैक्स चोरी के मामले से जुड़ा हो।’ हालांकि नागरिकता का आवेदन स्वीकार किए जाने, नए देश में उनके इनवेस्टमेंट को मंजूरी मिलने और नया पासपोर्ट जारी होने के काफी बाद अगर ऐसे लोगों की करतूतों का खुलासा होता है, तो उन्हें परेशानी भी नहीं होती। पिछले पांच वर्षों में 200 परिवारों को इस बारे में सलाह दे चुकी आर्टन कैपिटल ने कहा कि जनवरी 2017 के बाद से इस बारे में ज्यादा पूछताछ की जा रही है। दुबई में आर्टन की असोसिएट वाइस प्रेजिडेंट लीना मोटवानी ने कहा कि ऐसा हो सकता है कि नोटबंदी के चलते हुआ हो। 

ऐप्लिकेशन में कम खर्च आने के कारण कई लोगों ने कॉमनवेल्थ ऑफ डोमिनिका और सेंट लूसिया सरीखे करीबियाई आइलैंड्स का रुख किया। इनके पासपोर्ट पर शेंजेन जोन, ब्रिटेन, सिंगापुर, मलेशिया, हांगकांग सहित 120 देशों में वीजा-फ्री ट्रैवल की इजाजत होती है। साथ ही, इनके सिटिजनशिप प्रोग्राम्स में आवेदक को एक सरकारी फंड में एक लाख डॉलर देने होते हैं। 

 

भारत के सबसे ज्यादा अमीर भारत छोड़ रहे हैं, ये रफ्तार चीन और फ्रांस से भी ज्यादा है. माइग्रेशन कोई नई चीज नहीं है. जबसे इंसान है, तब से माइग्रेशन है. पूंजी और इंसान सतत प्रवाहमान हैं. लेकिन किसी भी ट्रेंड को देश, काल और परिस्थिति के संदर्भ में आंका जाना चाहिएइकनॉमिक टाइम्स ने मॉर्गन स्टेनली के रुचिर शर्मा की रिसर्च के हवाले देते हुए बताया है कि 2014 से अब तक 23 हजार करोड़पति देश छोड़ चुके हैं. इनमें 7000 अकेले 2017 में देश छोड़कर गए. ऑकलैंड, दुबई, मॉन्ट्रियल, तेल अवीव और टोरंटो दुनिया के अमीरों के पसंदीदा शहर बनकर उभरे हैं. भारत छोड़कर जाने वाले अमीरों की पसंदीदा जगह ब्रिटेन, दुबई और सिंगापुर है. देश छोड़ने वाले अमीरों की कैटेगरी में ऐसे लोग शामिल हैं जो छह महीने से ज्यादा से देश से बाहर हैं. देश छोड़कर जाने वाले इन अमीरों में उन लोगों को रखा गया है जिनकी संपत्ति 10 लाख डॉलर यानी करीब 6.5 करोड़रुपए से ज्यादा है. साउथ अफ्रीका की एक मार्केट रिसर्च एजेंसी न्यू वर्ल्ड वेल्थ एक दूसरी रिपोर्ट में भी यही बताया गया है कि भारत के अमीर देश छोड़ रहे हैं. पिछले तीन साल में भारत के 17 हजार अमीर (डॉलर मिलियनेयर, जिनके पास कम से कम 6.5 करोड़ रुपये से ज्‍यादा की संपत्त‍ि है) देश छोड़ गए हैं. हर साल ये रिपोर्ट निकलती है. उसकी ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में 7,000, 2016 में 6,000 और 2015 में 4,000 सुपर रिच लोगों ने भारत छोड़ा और उन्होंने अपना निवास (Domicile) किसी दूसरे देश में बना लिया.

अमीर भारतीयों से मोटी कमाई कर रहे हैं ऐसे छोटे देश
अपनी कमजोर माली हालत सुधारने के लिए एंटीगुआ सरीखे छोटे देशों ने ऐसी स्कीम्स बना ली हैं, जिनके तहत एक सरकारी फंड में कॉन्ट्रिब्यूशन या एक रियल एस्टेट इनवेस्टमेंट के जरिए कुछ महीनों की नागरिकता हासिल की जा सकती है। इन देशों में आवेदक को केवल 50 हजार डॉलर यानी करीब 34 लाख रुपये देने होते हैं। इन देशों में विदेशी इनकम, कैपिटल गेन, इंपोर्ट, गिफ्ट, उत्तराधिकार में मिली संपत्ति पर कोई टैक्स नहीं लगता। 


ग्रेनाडा का भी जमकर रुख कर रहे अमीर भारतीय 

कॉटडेमी ने बताया कि कई भारतीय ग्रेनाडा की नागरिकता लेने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं क्योंकि यह एकमात्र करीबियाई पासपोर्ट है, जो चीन में वीजा-फ्री एंट्री देता है। यह उन भारतीयों के लिए अडवांटेज है, जिनका बिजनस चीन में है। ग्रेनाडा ने 2013 में यह प्रोग्राम दोबारा शुरू किया था। वह अपने नैशनल ट्रांसफॉर्मेशन फंड में दो लाख डॉलर के नॉन-रिफंडेबल कॉन्ट्रिब्यूशन पर नागरिकता देता है। 

भारत में दोहरी नागरिकता को मंजूरी न मिलने से मुश्किल 

हेनली एंड पार्टनर्स (मिडल ईस्ट, दुबई, यूएई) के मैनेजिंग पार्टनर मार्को गैंटेनबिन के अनुसार, आवेदक के खुद मौजूद रहने की कम से कम जरूरत वाले रेजिडेंस बाई इनवेस्टमेंट प्रोग्राम्स के लिहाज से थाईलैंड एलीट रेजिडेंस प्रोग्राम और पुर्तगाल का गोल्डन रेजिडेंस परमिट प्रोग्राम भारतीय नागरिकों के बीच ज्यादा लोकप्रिय हैं। उन्होंने कहा, ‘भारत डुअल सिटिजनशिप की इजाजत नहीं देता, लिहाजा अमीर भारतीय नागरिक दूसरे विकल्प खंगालते हैं, जिनमें उन्हें और उनके परिवार को सुरक्षा मिले। ऐसे में सबसे सीधा रास्ता है रेजिडेंस बाई इनवेस्टमेंट का।’ 

साइप्रस भी बना अमीरों के पलायन का अच्छा ठिकाना 

किसी बात का डर न रखने वाले अमीर भारतीय साइप्रस का रुख करते हैं, जो अभी एकमात्र यूरोपीय देश है, जो पूरे परिवार को छह महीने के भीतर यूरोपियन नागरिकता दे सकता है। निवेशकों को इसके लिए साइप्रस में कम से कम 20 लाख डॉलर में एक रियल एस्टेट डील करनी होती है और उसे तीन साल के लिए होल्ड करना होता है। आर्टन की मोटवानी ने कहा, ‘परंपरागत रूप से अमेरिका में ईबी-5 वीजा ज्यादा लोकप्रिय है। ब्रिटिश इनवेस्टर वीजा भी लोकप्रिय रहा है। 2015 के आसपास पुर्तगाल और हंगरी की लोकप्रियता बढ़ी क्योंकि वहां आवेदन करना कम महंगा है।’ 

 भारत से बीते साल 7,000 हाई नेटवर्थ वाले लोगों ने दूसरे देश का रुख कर लिया।  चीन के बाद धनकुबेरों के देश छोड़ने का यह दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2016 की तुलना में 16 फीसदी अधिक धनकुबेरों ने भारत की नागरिकता को छोड़कर दूसरे देश की सिटिजनशिप ले ली। न्यू वर्ल्ड वैल्थ की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में 7,000 अल्ट्रा-रिच भारतीयों ने दूसरे देश की नागरिकता ले ली।  2016 में यह आंकड़ा 6,000 का था, जबकि 2015 में 4,000 धनकुबेरों ने भारत की बजाय दूसरे देश की नागरिकता ले ली। हालांकि इस मामले में चीन को सबसे बड़ा नुकसान हुआ है। 2017 में चीन के 10,000 सुपर रिच लोगों ने दूसरे देश की नागरिकता ले ली। चीन और भारत के बाद तुर्की से 6,000, ब्रिटेन से 4,000, फ्रांस से 4,000 और रूस से 3,000 धनकुबेरों ने पलायन कर दिया। 

माइग्रेशन के ट्रेंड की बात करें तो भारत से पलायन करने वाले लोगों की पहली पसंद अमेरिका रहा है। इसके अलावा यूएई, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यू जीलैंड जैसे देश भी भारत से पलायन करने वाले धनकुबेरों की पसंद हैं। वहीं, चीनी धनकुबेरों ने अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में पलायन किया। हालांकि रिपोर्ट का कहना है कि भारत और चीन के लिए धनकुबेरों का देश से पलायन करना चिंता की बात नहीं है क्योंकि जितने लोग यहां से पलायन कर रहे हैं, उससे अधिक संख्या में नए अरबपति जुड़ रहे हैं। 

सरकार चिंतित है। सरकार अब जानना चाहती है कि आखिर क्या वजह है कि करोड़पति भारत छोड़कर विदेश जा रहे हैं। इसके लिए सरकार ने केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के 5 सदस्यीय टीम बनाई है। यह टीम करोड़पतियों के बाहर जाने के कारणों का पता लगाएगी। साथ ही यह बात भी सुनिश्चित करेगी कि माहौल ऐसा बनाया जाए कि धनकुबेर भारत से बाहर न जाने पाएं।

पहली बैठक जल्द : सीबीडीटी टीम की पहली बैठक जल्द होगी, जिसमें इस मसले से जुड़ी रिपोर्ट तैयार करने के लिए विभिन्न पहलुओं पर विचार होगा। गौरतलब है कि ग्लोबल फाइनैंशल सर्विस कंपनी ‘मॉर्गन स्टैनली’ की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014 से लेकर अब तक 23,000 करोड़पति देश छोड़ चुके हैं।

वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, सीबीडीटी टीम करोड़पतियों से इस बारे में बात करेगी और जानने की कोशिश करेगी कि आखिर क्या वजह है कि वे भारत छोड़कर जा रहे हैं या जाने की इच्छा रखते हैं। इसका कारण टैक्स का बोझ है या टैक्स भुगतान प्रणाली में खामियां। क्या यहां पर बिजनेस करने में उन्हें कोई दिक्कत आ रही है या फिर आर्थिक सुधार को लेकर उनकी उम्मीदों पर सरकारी नीतियां खरी नहीं उतर रहीं। क्या बिजनेस करने और उसे बढ़ाने को लेकर उनको लोन मिलने में कोई तकलीफ आ रही है।

असल वजह जानने की कोशिश: वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, सीबीडीटी टीम करोड़पतियों से इस बारे में बात करेगी और जानने की कोशिश करेगी कि आखिर क्या वजह है कि वे भारत छोड़कर जा रहे हैं या जाने की इच्छा रखते हैं। इसका कारण टैक्स का बोझ है या टैक्स भुगतान प्रणाली में खामियां। क्या यहां पर बिजनेस करने में उन्हें कोई दिक्कत आ रही है या फिर आर्थिक सुधार को लेकर उनकी उम्मीदों पर सरकारी नीतियां खरी नहीं उतर रहीं। क्या बिजनेस करने और उसे बढ़ाने को लेकर उनको लोन मिलने में कोई तकलीफ आ रही है।

‘घरेलू निवेश चाहिए’: मॉर्गन स्टैनली के रुचिर शर्मा का कहना है कि देश के आर्थिक विकास के लिए विदेशी निवेश जरूरी है, लेकिन साथ में घरेलू निवेश भी चाहिए। जब भारत का बिजनेस क्लास यहां पर निवेश नहीं करेगा, तो विकास आधा-अधूरा होगा। भारतीय कंपनियां अगर यहां विस्तार करेंगी, तो रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। अगर बिजनेस क्लास बाहर जाएगा या विदेशों में निवेश करेगा, तो बाहर वालों को ही फायदा होगा।

साभार-

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