क्या है नागरिकता संशोधन बिल 2016? विस्तार से एक रिपोर्ट
भारत देश का नागरिक कौन है, इसकी परिभाषा के लिए साल 1955 में एक कानून बनाया गया जिसे ‘नागरिकता अधिनियम 1955’ नाम दिया गया. मोदी सरकार ने इसी कानून में संशोधन किया है जिसे ‘नागरिकता संशोधन बिल 2016′ नाम दिया गया है. संशोधन के बाद ये बिल देश में छह साल गुजारने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के छह धर्मों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और इसाई) के लोगों को बिना उचित दस्तावेज के भारतीय नागरिकता देने का रास्ता तैयार करेगा. पहले’नागरिकता अधिनियम 1955’ के मुताबिक, वैध दस्तावेज होने पर ही ऐसे लोगों को 12 साल के बाद भारत की नागरिकता मिल सकती थी.
असम गण परिषद (एजीपी) के अलावा देश की कई विपक्षी पार्टियां भी इस बिल का विरोध कर रही हैं. इनमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी समेत दूसरी पार्टियां शामिल हैं. इनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. ये विधेयक 19 जुलाई 2016 को पहली बार लोकसभा में पेश किया गया. इसके बाद संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने लोकसभा में अपनी रिपोर्ट पेश की थी. जेपीसी रिपोर्ट में विपक्षी सदस्यों ने धार्मिक आधार पर नागरिकता देने का विरोध किया था और कहा था कि यह संविधान के खिलाफ है. इस बिल में संशोधन का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि अगर बिल लोकसभा से पास हो गया तो ये 1985 के ‘असम समझौते’ को अमान्य कर देगा.
इस नागरिकता संशोधन बिल में दो अपवाद जोड़े गए हैं. CAB की छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में लागू नहीं होगा (जो स्वायत्त आदिवासी बहुल क्षेत्रों से संबंधित है), जिनमें असम, मेघायल, त्रिपुरा और के क्षेत्र मिजोरम शामिल हैं वहीं ये बिल उन राज्यों पर भी लागू नहीं होगा जहां इनर लाइन परमिट है जैसे अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम. इनर लाइन परमिट ईस्टर्न फ्रंटियर विनियम 1873 के अंतर्गत जारी किया जाने वाला एक ट्रैवल डॉक्यूमेंट है. भारत में भारतीय नागरिकों के लिए बने इनर लाइन परमिट के इस नियम को ब्रिटिश सरकार ने बनाया था. बाद में देश की स्वतंत्रा के बाद समय-समय पर फेरबदल कर इसे जारी रखा गया.
असम में नागरिकता संशोधन विधेयक का जोरदार विरोध, सेना को किया तैनात
विपक्ष के नेताओं ने सवाल उठाया कि ये विधेयक किस आधार पर लाया गया है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चितंबरम ने गृह मंत्री अमित शाह से पूछा कि क्या इस संबंध में कानून मंत्रालय और अटॉर्नी जनरल से उचित राय-सलाह की गई थी. उन्होंने चुनौती देते हुए कहा कि अगर ऐसा किया गया है तो सरकार उन सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक करे और अटॉर्नी जनरल को सदन में बुलाया जाए ताकि सांसद उनसे सवाल पूछ सकें. कांग्रेस सांसद रिपुन बोरा ने ही 23 मार्च 2017 को राज्य सभा में पूछा था कि क्या सरकार के पास अफगानिस्तान और पाकिस्तान में 1947 के बाद और 1971 के बाद बांग्लादेश में किसी भी धार्मिक उत्पीड़न पर कोई रिपोर्ट है, जिसके लिए विभिन्न धर्मों के लोगों को शरण के लिए भारत आना पड़ा है. इस पर तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर ने लिखित जवाब दिया कि इस मामले में आधिकारिक आकड़े नहीं हैं. कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद पर इस पर सवाल उठाया कि अगर हमारे पर शरण मांगने वालों का उचित आंकड़ा नहीं है तो हम ये विधेयक किस आधार पर ला रहे हैं.
हालांकि इस बार भी सरकार के लिए नागरिकता संशोधन बिल पास करवाना मुश्किल होगा. विपक्ष के विरोध की वजह से इसे सरकार इसे संख्याबल के आधार पर लोकसभा में तो पास करवा लेगी लेकिन मामला राज्यसभा में फंस सकता है.सरकार के सामने राज्यसभा में इस बिल को पास कराने की चुनौती है.
दरसअल राज्यसभा में वर्तमान सांसदों की संख्या 239 है. ऐसे में अगर सभी सांसद वोट करें तो बहुमत के लिए 120 सांसदों का वोट चाहिए. सदन में बीजेपी के पास 81 सांसद हैं. ऐसी स्थिति में बीजेपी को बहुमत के लिए 39 और वोट चाहिए होंगे. अब मुश्किल ये है कि बीजेपी की सहयोगी जेडीयू हमेशा से इस बिल के ख़िलाफ़ रही है, जिसके पास 6 सांसद हैं.
बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार एक ओर लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक के पास होने के बाद राज्यसभा में इसे पास कराने की तैयारियों में जुटी है लेकिन दूसरी ओर असम और त्रिपुरा में इस विधेयक के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं। पिछले कई दिनों से जारी विरोध-प्रदर्शन के तहत बुधवार को भी गुवाहाटी में इस विधेयक के विरोध में लोग सड़कों पर हैं। हालात बिगड़ते देख असम और त्रिपुरा में सेना को तैनात कर दिया गया है।
प्रदर्शन के कारण असम के तिनसुकिया और लुमडिंग इलाक़ों में 12 व 13 दिसंबर को 12 ट्रेनों को रद्द कर दिया गया है और 10 ट्रेनों को आंशिक रूप से रद्द किया गया है। इसके अलावा असम के लखीमपुर, तिनसुकिया, डिब्रूगढ़, जोरहाट, गोलाघाट आदि जिलों में बुधवार शाम 7 बजे से बृहस्पतिवार शाम 7 बजे तक इंटरनेट बंद कर दिया गया है। प्रदर्शनकारियों ने दिसपुर में कई बसों में आग लगा दी है।
असम के लोगों का कहना है कि इस विधेयक के क़ानून बनने से असम समझौता, 1985 के प्रावधान निरस्त हो जाएंगे। पूर्वोत्तर के छात्र संगठन नॉर्थ-ईस्ट स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन (नेसो), ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने और कई अन्य संगठनों ने विधेयक के विरोध में आवाज़ बुलंद करते हुए मंगलवार को 11 घंटे का बंद बुलाया था। गुवाहाटी के अलावा डिब्रूगढ़ और कई इलाक़ों में लोग प्रदर्शन कर रहे हैं।
असम के अलावा त्रिपुरा में भी नागरिकता संशोधन विधेयक के ख़िलाफ़ लोग सड़कों पर हैं। बीजेपी के सहयोगी दल इंडीजीनस पीपल फ़्रंट ऑफ़ त्रिपुरा (आईपीएफ़टी) सहित कई संगठनों ने सोमवार को नागरिकता संशोधन विधेयक के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया था। असम और त्रिपुरा में इस विधेयक के ख़िलाफ़ हो रहे प्रदर्शन के कारण आम जनजीवनख़ासा प्रभावित हुआ है। असम के राजनीतिक दल असम गण परिषद का कहना है कि इस विधेयक के क़ानून बनने के बाद बांग्लादेशी हिंदुओं के आने से असम बर्बाद हो जाएगा।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पूर्वोत्तर में विधेयक के विरोध को लेकर उठे सवालों का लोकसभा में चर्चा के दौरान जवाब दिया था। शाह ने कहा, ‘अरुणाचल प्रदेश और मिज़ोरम इनर लाइन परमिट से सुरक्षित हैं और उन्हें इस विधेयक को लेकर डरने की ज़रूरत नहीं है। दीमापुर के छोटे इलाक़े को छोड़कर पूरा नगालैंड इनर लाइन परमिट से सुरक्षित है, इसलिए उन्हें भी डरने की ज़रूरत नहीं है।’
इस विधेयक को लेकर केंद्र सरकार का तर्क यह है कि इन देशों में हिंदुओं समेत दूसरे अल्पसंख्यकों का काफ़ी उत्पीड़न होता है, जिसके कारण वे भागकर भारत में शरण लेते हैं और मानवीय आधार पर ऐसे शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जानी चाहिए। सरकार का कहना है कि इसीलिए नागरिकता विधेयक लाया गया और इसमें इन देशों से आए हिंदू, सिख, जैन, पारसी, ईसाईयों को नागरिकता देना तय किया गया। इन देशों से आए मुसलिम शरणार्थियों को नागरिकता क़ानून से बाहर रखने के पीछे सरकार का तर्क यह है कि इन मुसलिम देशों में धर्म के आधार पर मुसलमानों का उत्पीड़न नहीं हो सकता।
नागरिकता संशोधन विधेयक का समर्थन करने के लिए सरकार ने जो तर्के दिए हैं उसे लेकर कई सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं. इस विधेयक का प्रबल समर्थन करते हुए अमित शाह ने दावा किया कि धार्मिक आधार पर प्रताणित लाखों करोड़ों लोग इससे लाभान्वित होंगे. हालांकि शाह का ये दावा तथ्यों की बुनियाद पर खरा नहीं उतरता है. कांग्रेस सांसद रिपुन बोरा ने 25 जुलाई 2018 को राज्यसभा में गृह मंत्री से पूछा था कि भारत में रह रहे विभिन्न देशों से आए कुल कितने लोगों ने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया है.
इस पर तत्कालीन गृह राज्यमंत्री किरन रिजिजू ने बताया कि उस समय तक इस तरह के कुल सिर्फ 4044 आवेदन लंबित थे. इसमें से 1085 आवेदन गृह मंत्रालय की प्रक्रिया के तहत लंबित थे और बाकी के 2959 मामले विभिन्न राज्य सरकारों/केंद्रशासित प्रदेशों के यहां लंबित थ. इसमें से अफगानिस्तान से सिर्फ 687 आवेदन थे. इसके अलावा पाकिस्तान से कुल 2508 और बांग्लादेश से कुल 84 आवेदन लंबित थे. बांग्लादेश से ज्यादा अमेरिका से 101 लोगों, श्रीलंका से 71 लोगों और देशविहीन 195 लोगों ने भारतीय नागरिकता मांगी थी. मालूम हो कि इस विधेयक में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है. नागरिकता संशोधन विधेयक में उन मुसलमानों को नागरिकता देने के दायरे से बाहर रखा गया है जो भारत में शरण लेना चाहते हैं.
इसके अलावा बोरा ने यह भी पूछा कि नागरिकता के लिए आवेदन करने वालों का धर्म-वार और देश-वार आंकड़ा दिया जाए. इस पर गृह मंत्रालय ने कहा कि केंद्रीय स्तर पर ऐसा कोई आंकड़ा तैयार नहीं किया जाता है. कांग्रेस सांसद ने इसी सवाला में यह भी पूछा था कि 1990 से लेकर अब तक में भारतीय नागरिकता के लिए भारत आए लोगों का कुल आंकड़ा वर्ष-वार दिया जाए. इस पर किरन रिजिजू ने कहा कि मंत्रालय के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है. मालूम हो कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस विधेयक को लेकर बार-बार यह दावा किया कि भारी संख्या में हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोग भारतीय नागरिकता मांग रहा है. हालांकि सरकारी आंकड़ों से ही ये स्पष्ट हो जाता है कि खुद केंद्र पास इसे लेकर आंकड़ा नहीं है कि पिछले कुछ सालों में कुल कितने लोगों ने भारतीय नागरिकता मांगी है.
राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पर शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि जो विरोध कर रहे हैं और जो समर्थन कर रहे हैं, वे सभी देश के नागरिक हैं. हम कितने कठोर हिन्दू हैं, यह हमें बताने की जरूरत नहीं हैं. आप (भाजपा) जिस स्कूल में पढ़ रहे हो, हम वहां के हेडमास्टर हैं. पड़ोसी देशों के शरणार्थियों को नागरिकता देने के मामले में सरकार को राजनीति नहीं करने की नसीहत देते हुए शिवसेना ने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक (कैब) का विरोध करने वाले भी देश के नागरिक हैं और उन्हें ‘देशद्रोही’ नहीं कहा जा सकता. राज्यसभा में बुधवार को कैब पर चर्चा में भाग लेते हुए शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि यह कहा जा रहा है कि जो इस विधेयक का विरोध कर रहा है वह ‘देशद्रोही’ है और जो इसका समर्थन कर रहा है वह ‘देशभक्त’ है.
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लिए बिना इस विधेयक को लेकर उनके एक बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि इस विधेयक का विरोध करने वालों को ‘पाकिस्तान की भाषा ’ बोलने वाला बताया जा रहा है. उन्होंने राज्यसभा की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह ‘पाकिस्तान की संसद’ नहीं है. यहां जो लोग भी हैं, उन्हें भारत के नागरिकों ने चुन कर भेजा है. सूत्रों के अनुसार, भाजपा संसदीय दल की बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कैब का विरोध करते हुए कुछ राजनीतिक दलों के नेता ऐसी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं जैसी भाषा पाकिस्तान बोलता है. राउत ने कहा कि यदि सरकार को पाकिस्तान की भाषा इतनी खराब लगती है तो वह ‘पाकिस्तान को खत्म क्यों नहीं कर देती?’ उन्होंने कहा कि हमारे इतने मजबूत प्रधानमंत्री, मजबूत गृह मंत्री हैं… यदि वे ऐसा करते हैं तो हम उनका साथ देंगे.
उन्होंने कहा कि आज असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम सहित देश के कई हिस्सों में इस विधेयक को लेकर विरोध हो रहा है. हिंसा हो रही है. जो विरोध कर रहे हैं और जो समर्थन कर रहे हैं, वे सभी देश के नागरिक हैं. शिवसेना नेता ने कहा ‘इसलिए हमें किसी से देशभक्ति का प्रमाणपत्र लेने की जरूरत नहीं है. हम कितने कठोर हिन्दू हैं, यह हमें बताने की जरूरत नहीं हैं. आप (भाजपा) जिस स्कूल में पढ़ रहे हो, हम वहां के हेडमास्टर हैं. हमारे स्कूल के हेडमास्टर बाला साहब ठाकरे, अटल बिहारी वाजपेयी और श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे.’ उन्होंने कहा कि इस विधेयक पर धार्मिकता के आधार पर नहीं बल्कि मानवता के आधार पर विचार होना चाहिए.
राउत ने कहा कि हम मानते हैं कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं बांग्लादेश में हिन्दू, ईसाई बौद्ध आदि अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होता है. उन्हें मानवता के आधार पर शरण दी जानी चाहिए. किंतु उसमें कोई राजनीति नहीं की जानी चाहिए. शिवसेना नेता ने सलाह दी कि जिन भी शरणार्थी लोगों को नागरिकता दी जाए, उन्हें 20-25 साल तक वोट डालने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए.