पौड़ी गढ़वाल में दोबाराा बादल फटा, भारी जनहानि
पौड़ी गढ़वाल जिले के बिडोलस्यू पट्टी के मरोड़ा गांव में आज शाम 5 बजे बादल फटा। गौशाला बहने की सूचना है। भारी जान हानि , पशुओ के दबे होने की खबर, एक महिला के लापता होने की सूचना।
श्रीनगर गढ़वाल और आसपास के क्षेत्रों में अचानक दिन में आई मूसलाधार बारिश ने जनजीवन को अस्तव्यस्त कर दिया. आकाश में अचानक गहरे काले बादलों के आने के कुछ देर बाद शुरू हुई तेज बारिश से सड़कों पर आवाजाही कर रहे लोगों को भीगने से बचने के लिए दुकानों सहित जहां जगह मिली उसने वहीं शरण ली.
मूसलाधार बारिश के साथ बादलों की तेज गड़गड़ाहट और आकाशी बिजली की चकाचौंध ने हर किसी को खौफजदा किए रखा. पहाड़ों में बादल फटने और आकाशी बिजली गिरने की घटनाओं के बीच हर कोई सहमा रहा.
तेज बारिश के कारण बद्रीनाथ और पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्गों पर जलभराव हो गया तो अचानक उफनाए नालों से बद्रीनाथ हाईवे पर घसियामहादेव मंदिर के निकट बरसाती मलबा जमा हो गया. लोक निर्माण विभाग के राजमार्ग खंड की ओर से मशीन लगाकर कुछ ही देर में मलबा साफ कर राजमार्ग को यातायात के लिए खोल दिया गया.
बारिश के साथ चली तेज हवाओं से गढ़वाल विवि के चौरास परिसर जाने वाले मार्ग सहित कुछ अन्य स्थानों पर पेड़ टूटकर सड़क पर आ गिरे. दूसरी तरफ शहर के हृदयस्थल गोला बाजार में बजीरों के बाग से आए बरसाती नाले से कुछ देर तक पानी का तालाब बना रहा जिससे लोगों को आवाजाही में दिक्कतें हुईं.
शहर में बरसाती पानी के निकासी के लिए अंग्रेजों के जमाने से बने स्क्रबरों और पुराने नालों पर किये गए अवैध निर्माण से जरासी बारिस में बरसाती पानी नागरिक क्षेत्रों में घुस रहा है. संयोग से अभी तक बरसाती पानी ने कोई व्यापक नुकसान नहीं किया है, लेकिन यदि बरसाती पानी के निकासी के बंद हुए नालों, स्क्रबरों और गदेरों के मुहानों को खोला नहीं किया गया तो किसी भी दिन बड़ी घटना होने से इंकार नहीं किया जा सकता.
उत्तराखंड बनने के बाद से यदि आज कोई काला पानी की सजा भुगत रहे हैं तो वो हैं टिहरी जिले के प्रतापनगरवासी.
उत्तराखंड बनने के बाद से यदि आज कोई काला पानी की सजा भुगत रहे हैं तो वो हैं टिहरी जिले के प्रतापनगरवासी. जी हां जिस पुल को प्रतापनगर की लाइफ लाइन कहा जाता है वो डोबरा चांठी पुल 130 करोड़ से अधिक खर्च होने के बावजूद 10 वर्षों बाद भी नहीं बन पाया है. लेकिन चुनावी दौर आते ही डोबरा का जिन्न फिर बाहर निकल जाता है और प्रतापनगर के नेताओं के लिए डोबरा चांठी एक ऐसा पैसों का पुल है, जिसका रास्ता सीधे विधानसभा तक जाता है.
टिहरी झील बनने के बाद से जिला मुख्यालय नई टिहरी की प्रतापनगर से दूरी कम करने के लिए मई 2006 में डोबरा और चांठी को जोड़कर एक पुल बनाने का फैसला लिया गया. तत्कालीन सीएम एनडी तिवारी की सरकार में पुल को स्वीकृति मिली और सर्वे का काम शुरू हुआ.
2007 में भाजपा के सत्ता में आते ही पुल के डिजाइन में फॉल्ट निकला और काम रोक दिया गया. लेकिन तब तक पुल के डिजाइन की रिस्टडी सहित सर्वे और टॉवरों के खड़े करने में करीब 120 करोड़ रूपये से अधिक खर्च हो गए. पुल निर्माण हो या ना हो करोड़ों के वारे न्यारे हो गए और चुनावों में नेताओं के मैनिफेस्टों में डोबरा चांठी पुल अमर हो गया.
डोबरा चांठी पुल बनाओं संघर्ष समिति के संयोजक राजेश्वर पैन्यूली का कहना है कि पुल निर्माण के नाम पर कभी सर्वे तो कभी रिडिजाइनिंग तो कभी ठेकेदार का भुगतान तो कभी टेस्टिंग में पैसा पानी की तरह बहता रहा, लेकिन कालापानी की सजा भुगत रहे प्रतापनगरवासियों के दर्द को कम करने का जिम्मा किसी ने नहीं उठाया.
सरकारी आई और गई डोबरा चांठी पुल के नाम पर नेताओं ने प्रतापनगर की जनता को बार बार ठगा और भोली भाली जनता डोबरा चांठी पुल बनाने के नाम पर बार बार गुमराह की गई. अब भले ही एक बार फिर से पुल निर्माण का जिम्मा कोरिया की कंपनी योसिन इंजीनियरिंग कारपोरेशन को सौंपा गया है लेकिन पुल निर्माण के नाम पर एप्रोच रोड और एंकर ब्लाक का ही निर्माण हुआ है.
वहीं प्रतापनगर विधायक विक्रम सिंह नेगी का कहना है कि भाजपा के कार्यकाल में पुल निर्माण नहीं हो सका, लेकिन कांग्रेस सरकार इस पुल के लिए गंभीर है और जल्द ही पुल निर्माण का कार्य पूरा हो जाएगा.
भले ही अभी चुनावों में कुछ समय बचा हो लेकिन डोबरा का जिन्न फिर से निकलने लगा है. ये कहना गलत नहीं होगा की अधर में लटका डोबरा चांठी पुल एक ऐसा पैसों का पुल बनकर रह गया है, जो प्रतापनगर के नेताओं को सीधे विधानसभा पहुंचाएगे. ऐसे में देखने वाली बात होगी, वर्षों से ठगी जाती रही प्रतापनगर की जनता आगामी चुनाव में इन नेताओं को काई सबक सिखाती है या नहीं.