सीएम का एलान 16 मार्च को होगा
यूपी के सीएम का एलान 16 मार्च को होगा। इसी दिन लखनऊ में बीजेपी विधायक दल की बैठक भी होगी। उत्तराखंड में भाजपा में फिलहाल चार पूर्व मुख्यमंत्री हैं. अब देखना होगा कि भाजपा उन्हीं में से किसी एक को आगे करती है या फिर महाराष्ट्र और हरियाण की तर्ज पर मोदी-शाह अपनी किसी और पसंद को सीएम की कर्सी पर बैठाते हैं. भाजपा के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक चार लोग सीएम की दौड़ में सबसे आगे बताए जा रहे हैं. भाजपा में सीएम पद के लिए अंदर ही अंदर खींचतान शुरू हो गई है. सीएम पद को लेकर भाजपा में सतपाल महाराज का नाम चर्चा में है. सतपाल महाराज पौड़ी जिले की चौबट्टाखाल से भाजपा उम्मीदवार हैं. इसके अलावा पूर्व सीएम और हरिद्वार सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक भी खुद को सीएम की दौड़ में रखने के लिए पूरी तरह जुटे हुए हैं.
ये फैसला रविवार को बीजेपी पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक में लिया गया। बीजेपी में फिलहाल यूपी में सीएम चेहरे के तौर पर दो नामों पर चर्चा चल रही है. जिन नामों की चर्चा है उनमें पहला नाम देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह का और दूसरा नाम बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य का है.
उत्तर प्रदेश में बीजेपी को दो-तिहाई बहुमत के बाद सीएम चेहरे को लेकर रविवार को दिल्ली में बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक हुई. बैठक में यूपी के लिए पर्यवेक्षक के तौर पर वेंकैया नायडू और भूपेंद्र यादव के नाम पर मुहर लगी है. इसके अलावा बीजेपी संसदीय दल की बैठक में फैसला लिया गया है कि 16 मार्च को यूपी के विधायक दल की बैठक होगी. उसी दिन यूपी के अगले सीएम की घोषणा भी होगी. बीजेपी की पार्लियामेंट्री बोर्ड ने अमित शाह को अधिकृत किया है कि वे बाकी सदस्यों से बात करके मुख्यमंत्री का नाम तय करें. माना जा रहा है कि आखिरी पसंद पर पीएम मोदी की रजामंदी के बाद ही मुहर लगेगी. इस कड़ी में अमित शाह से आज राजनाथ सिंह से उनके आवास पर मुलाकात की. अमित शाह और राजनाथ सिंह के बीच मुकालात से क्या निकला, इसका अभी तक खुलासा नहीं हो पाया है. वैसे राजनाथ सिंह के नाम भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल हैं. इससे पहले भी वो सूबे की कमान संभाल चुके हैं . कद्दावर नेता के साथ-साथ इनकी छवि-सुथरी है. हालांकि राजनाथ सिंह ने इस बारे में अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष कैप्टन अमरिंदर सिंह ने चंडीगढ़ में विधायक दल की मीटिंग के बाद गवर्नर को सरकार बनाने का दावा पेश किया। कैप्टन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री के रूप में 16 मार्च को शपथ लेंगे। इससे पहले वह 14 मार्च को दिल्ली जाएंगे और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात करेंगे। इससे पहले रविवार को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई में विधायक दल की मीटिंग हुई। बैठक में अमरिंदर को विधायक दल का नेता चुन लिया गया। जिसके बाद उन्होंने गर्वनर वीपी सिंह बदनौर से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया। चंडीगढ़ के प्रदेश कांग्रेस कमेटी में आयोजित विधायक दल की मीटिंग में नवजोत सिंह सिद्धू, परगट सिंह समेत सभी 77 विधायक मौजूद थे।
इससे पहले नरेंद्र मोदी ने 300 मीटर का रोड शो किया और बीजेपी हेडक्वार्टर में वर्कर्स को स्पीच दी। बता दें कि शनिवार को 5 राज्यों में चुनाव के आए नतीजे में बीजेपी को यूपी-उत्तराखंड में भारी बहुमत मिला। विवार देर शाम हुई पार्लियामेंट्री बोर्ड की मीटिंग में मोदी, राजनाथ सिंह, अमित शाह समेत कई बड़े नेता इसमें मौजूद थे। यूपी के सीएम के लिए राजनाथ सिंह, केशव प्रसाद मौर्य, दिनेश शर्मा, महंत आदित्यनाथ और मनोज सिन्हा के नामों की चर्चा है। सूत्रों के मुताबिक, दिनेश शर्मा को लेकर सहमति बन सकती है। ऑफिस पहुंचने से पहले पार्टी प्रेसिडेंट अमित शाह ने घर जाकर राजनाथ सिंह से मुलाकात की। बता दें कि राजनाथ का नाम यूपी के सीएम के लिए आगे है।
पीएम ने कहा, ”भारी वोटिंग के बाद अकल्पनीय भारी जीत होने से पॉलिटिकल पंडितों को हैरानी होती है। देश में इमोशनल इश्यूज पर असर दिखाई दिया है लेकिन इसके अलावा विकास एक मुश्किल मुद्दा होता है। नतीजे बताते हैं कि ये 65 फीसदी युवाओं, महिलाओं का न्यू इंडिया है। ऐसा न्यू इंडिया जो गरीबों में कुछ पाने की बजाय कुछ करने की इच्छा रखने वाला न्यू इंडिया। “ईश्वर ने हमें जितनी क्षमता दी है। उससे जनता की आशाओं को पूरा करने की कोशिश में कामयाब हो पाए हैं। पेड़-पौधे भी हमें सिखाते हैं कि फल लगने पर वह झुकने लगता है। बीजेपी पर विजय के फल लगे हैं तो हमारा झुकने और नम्र बनने का मौका देती है। इस जीत के लिए अटलजी, आडवाणी जी जैसे नेताओं ने काफी तपस्या की। उनकी आशाओं के मुताबिक, हमें ज्यादा से ज्यादा जनता की सेवा करनी है।” “मैंने तीन बातें कहीं थीं। पहली- हम नए हैं, अनुभव कम था, कभी संसद के मेंबर नहीं रहे थे। कहा था कि हमसे गलती हो सकती है, लेकिन गलत इरादे से कोई काम नहीं करेंगे। दूसरी- हम परिश्रम की पराकाष्ठा करेंगे। तीसरा- जो भी करेंगे प्रमाणिकता के साथ करेंगे।” “मुझे खुशी है कि एक ऐसा पीएम है जिससे पूछा जाता है कि इतना काम क्यों करते हो, इससे बड़ा सौभाग्य क्या हो सकता है। यह सरकार जिन्होंने वोट दिया उनकी भी है और नहीं देने वालों की भी है। सरकार सबकी है।” 2017 के चुनाव में बीजेपी ने 1991 का रिकॉर्ड तोड़ दिया। इस बार उसे 325 सीटें मिलीं। सपा-कांग्रेस गठबंधन को 54 और बीएसपी को 20 सीटें मिलीं। बीजेपी यूपी में 1985 से चुनाव लड़ रही है। पहले चुनाव में उसने यूपी में 16 सीटें जीती थीं। राम मंदिर मुद्दे पर 1991 में 221 सीटें मिलीं और कल्याण सिंह की अगुआई में सरकार बनाई थी। वहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव में वह 328 विधानसभा सीटों पर आगे थी। इस लहर को बीजेपी ने कायम रखा।
राजनाथ सिंह के नाम की चर्चा इसलिए भी जोरों पर है क्योंकि रविवार को अमित शाह और गृहमंत्री के बीच मुलाकात हुई थी. हालांकि मुलाकात का एजेंडा अभी तक साफ नहीं हुआ है पर कयास यही लगाए जा रहे हैं कि शाह वहां राजनाथ सिंह का पक्ष जानने गए थे.
बीजेपी यूपी में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती इसीलिए सोच समझ कर कदम उठा रही है. यही वजह है कि पार्टी राजनाथ सिंह के नाम पर दांव खेलना चाहती है. क्योंकि राजनाथ सिंह पार्टी के वरिष्ठ और मझे हुए राजनेता हैं. इसके अलावा राजनाथ सिंह पहले भी यूपी की सत्ता संभाल चुके हैं.
संभाली थी कल्याण की गद्दी
आपको याद दिला दें कि यूपी में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की गद्दी राजनाथ सिंह ने ही संभाली थी. हालांकि कल्याण और राजनाथ सिंह के बीच राम प्रकाश गुप्त का भी 351 दिन का कार्यकाल था. लेकिन, गुप्त से सत्ता संभल नहीं रही थी जिस वजह से पार्टी ने 28 अक्टूबर 2000 को प्रदेश की बागडोर राजनाथ सिंह के हाथों में सौंपी. साफ जाहिर है कि यूपी जैसा बड़ा राज्य संभालना सबके बस के बाहर है. हो सकता है कि यही वजह हो कि बीजेपी एक बार फिर अपने पुराने नेता पर दांव खेलना चाह रही हो.
बेहतर शासन
राजनाथ सिंह ने अपने मुख्यमंत्री काल में कल्याण सिंह की तरह ही सत्ता की बागडोर कसी रखी. इसके साथ ही उन्होंने प्रदेश के किसानों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड जैसी स्कीम भी शुरू की जिसके लिए उनकी काफी तारीफ हुई.
निष्कंटक होगा मोदी का सफर
बीजेपी में फिलवक्त नरेन्द्र मोदी जैसा कद किसी का नहीं है. लेकिन, बीजेपी में नंबर दो के तौर पर लोग राजनाथ सिंह को ही देखते हैं. अगर राजनाथ सिंह यूपी की सत्ता संभालते हैं तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पार्टी में नंबर दो के तौर कोई और नहीं होगा क्योंकि राजनाथ के बाद सबसे ताकतवर मंत्रियों में अरुण जेटली हैं जो उनके खेमे के ही माने जाते हैं.
केशव प्रसाद मौर्य: संगठन की शक्ति
यूपी के अगले सीएम के तौर पर दूसरे नंबर चर्चा केशव प्रसाद मौर्य की है. यूपी में यह चुनाव बीजेपी ने केशव प्रसाद मौर्य के ही नेतृत्व में लड़ा था तो इस जीत का श्रेय उन्हें भी जाता है. ऐसे में बीजेपी उन्हें सीएम बनाकर यह संदेश भी दे सकती है कि ‘जो करेगा वो पाएगा’. केशव लंबे समय से संघ से जुड़े रहे हैं.
केशव प्रसाद मौर्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से बचपन से ही जुड़ गए थे. केशव संघ से बाल स्वयंसेवक के तौर पर जुड़े थे. बाद में केशव प्रसाद ने विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल के लिए भी काम किया है. केशव प्रसाद विश्व हिन्दू परिषद के लिए 12 साल तक काम करते रहे, वे वीएचपी नेता अशोक सिंघल के खास माने जाते थे. अपने भाषणों के चलते अयोध्या और गौ रक्षा आंदोलन के वक्त केशव को जेल भी हो चुकी है.
केशव ने भी बेची है चाय
आपको बता दें कि केशव प्रसाद मौर्य कौशांबी जिले के एक किसान घर में पैदा हुए हैं. उन्होंने अपना बचपन गरीबी में बिताया है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ही तरह केशव प्रसाद मौर्य ने भी अपने परिवार की मदद के लिए चाय बेची है और अखबार भी बांटे हैं. यह बात केशव को मोदी की छवि के बहुत पास ले जाती है.
अमित शाह के खास
केशव प्रसाद मौर्य को अमित शाह का खास माना जाता है. यही वजह है कि यूपी के कई वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी के बावजूद पार्टी की बागडोर उनके हाथों में आई. आपको बता दें कि केशव प्रसाद मौर्य 2012 के विधानसभा चुनावों में इलाहाबाद की शिराठु विधानसभा सीट से विधायक चुने गए थे. 2014 में वे फूलपुर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए. अप्रैल 2016 में केशव प्रसाद मौर्य को 2017 में विधानसभा चुनावों को जीतने की जिम्मेदारी देते हुए यूपी बीजेपी की सत्ता सौंपी गई.
पिछड़े वर्ग को संदेश
बीजेपी यूपी की सत्ता केशव के हाथों में देकर राज्य के पिछड़े वर्ग को साधने की कोशिश भी कर सकती है. ओबीसी वोट सपा का कोर वोट रहा है, ताजा चुनाव परिणामों से यह निष्कर्ष निकलता है कि कुछ हद तक बीजेपी इस वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल रही है. बीजेपी केशव को सीएम बना इस वर्ग को साफ संदेश दे सकती है कि बीजेपी राज में भी उनका भविष्य सुरक्षित और उज्जवल है.
इन दोनों चेहरों के अलावा इन नामों की भी है चर्चा…
मनोज सिन्हा, दूरसंचार और रेल राज्य मंत्री
ताकत: प्रशासन चलाने का अच्छा अनुभव, साफ छवि वाले नेता, पूर्वी यूपी में बीजेपी के सबसे कद्दावर नेताओं में शुमार.
कमजोरी: सिन्हा को सीएम बनाने से दलितों के रुठने का खतरा. बीजेपी का कट्टरवादी हिंदू खेमा हो सकता है नाराज.
योगी आदित्यनाथ, गोरखपुर सांसद
ताकत: मजबूत जनाधार वाले नेता हैं आदित्यनाथ, पार्टी के सबसे अहम हिंदुत्ववादी नेताओं में से एक.
कमजोरी: विवादों में रहने वाले नेता की छवि. प्रशासन चलाने का अनुभव नहीं.
महेश शर्मा, केंद्रीय मंत्री
ताकत: आरएसएस के भीतर अच्छी पैठ, ईमानदार छवि वाले नेता.
कमजोरी: नोएडा तक जनाधार सीमित. ब्राह्मण चेहरा होने के नाते दलितों और पिछड़ों के नाराज होने का खतरा.