ब्राह्मणों के मजबूत गढ़; पूर्वांचल में कांग्रेस ने चला ट्रंप कार्ड
प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा दिल्ली के बिजनेसमैन हैं. उनकी शादी गांधी परिवार के आवास 10 जनपथ में 18 फरवरी 1997 को हुई. उनका विवाह हिंदू रीति रिवाज से संपन्न हुआ था. 2019 के लोकसभा चुनाव में योगी और मोदी को मात देने के लिए सपा-बसपा ने गठबंधन किया है. वही कांग्रेस ने अपने सबसे बड़े कार्ड को सूबे में ही चल दिया है. कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भारी जोश नजर आ रहा है. लोकसभा चुनाव से पहले प्रियंका की एंट्री को मास्टरस्ट्रोक के तौर पर भी देखा जा रहा है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि वह एक कुशल मैनेजर, मजबूत कैंपेनर और बेहतरीन आर्किटेक्ट की भूमिका निभाती रही हैं. रायबरेली और अमेठी को लेकर प्रियंका गांधी की सक्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अभी भी हर हफ्ते रायबरेली क्षेत्र के लोग दिल्ली आते हैं और प्रियंका गांधी उनसे मुलाकात करती हैं. वह अक्सर रायबरेली का दौरा करती रहती हैं. जबकि चुनाव के वक्त वहां डेरा जमा लेती हैं. रायबरेली और अमेठी के लिए कांग्रेस पार्टी एक अलग रणनीति के तहत विधानसभा और ब्लॉक स्तर पर संगठन के काम का बंटवारा करती है और प्रियंका गांधी स्वयं इस सब पर नजर रखती हैं. इसके अलावा दोनों संसदीय सीट पर पंचायत चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक में वो टिकट का फैसला करती हैं. मां और भाई के चुनावी क्षेत्रों में आने वाली हर मुश्किल का सामना करने के लिए वह स्वयं मोर्चा संभालती हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में इसका उदाहरण भी देखने को मिला जब मोदी लहर के बीच बीजेपी ने मशहूर टीवी एक्ट्रेस रहीं स्मृति ईरानी को अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव में उतार दिया. विरोधी महिला उम्मीदवार की काट के लिए प्रियंका गांधी ने अमेठी में जमकर चुनाव प्रचार किया और अपने भाई की जीत सुनिश्चित की. प्रियंका में लोगों को इंदिरा की छवि नजर आती है. चाहे उनकी हेयरस्टाइल हो या फिर बात करने का तरीका. यहां तक की कहा जाता है कि प्रियंका का स्वभाव इंदिरा की तरह ही मिलनसार है.
प्रियंका गांधी के लिए राजनीति में आने का सही वक्त है, कांग्रेस ने अपना ट्रंप कार्ड चल दिया है. 2019 लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी की सक्रिय राजनीति में एंट्री हो गई है. आलाकमान ने उन्हें कांग्रेस महासचिव पद की जिम्मेदारी है और उन्हें पूर्वी UP का प्रभार दिया गया है. प्रियंका गांधी आखिरकार सक्रिय राजनीति में उतर आई हैं. प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का कांग्रेस प्रभारी बनाया गया है. इसके साथ ही उन्हें पार्टी के महासचिव का भी पद दिया गया है. प्रियंका गांधी फरवरी 2019 के पहले हफ्ते में यह पद संभालेंगी.
प्रियंका गांधी का सीधे मुकाबला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से माना जा रहा है, क्योंकि बीजेपी के ये दोनों दिग्गज नेता पूर्वांचल का प्रतिनिधित्व करते हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को मात देने के लिए सपा-बसपा ने कांग्रेस को अलग रखकर गठबंधन किया था. ऐसे में कांग्रेस ने अपने सबसे बड़े कार्ड को सूबे में ही चल दिया है. उन्हें पूर्वांचल की जिम्मेदारी सौंपने के पीछे कांग्रेस की सोची समझी रणनीति है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्वांचल की वाराणसी लोकसभा सीट से सांसद हैं. इसके अलावा यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पूर्वांचल से आते हैं. वे गोरखपुर की संसदीय सीट से लंबे समय तक सांसद रहे हैं और फिलहाल सूबे की सत्ता पर काबिज हैं. बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को वाराणसी संसदीय सीट से उतारकर पूर्वांचल में सभी दलों का सफाया कर दिया था. महज आजमगढ़ सीट थी जहां सपा जीत सकी थी. इसी तरह से 2017 के विधानसभा चुनाव में भी नरेंद्र मोदी ने तीन दिनों तक पूर्वांचल में डेरा जमाकर सपा-कांग्रेस गठबंधन को भी धूल चटा दी थी.
पूर्वांचल ब्राह्मणों का मजबूत गढ़ माना जाता है. पूर्वांचल की अधिकतर सीटों पर ब्राह्मण मतदाताओं की खासी भूमिका रहती है. एक दौर में ब्राह्मण पारंपरिक तौर पर कांग्रेस के समर्थक थे, लेकिन मंडल आंदोलन के बाद उनका झुकाव बीजेपी की ओर हो गया. बाद में ब्राह्मण मतदाताओं के एक बडे़ हिस्से का झुकाव मायावती की बसपा की तरफ भी हुआ और 2014 के लोकसभा चुनाव में इस तबके का झुकाव फिर बीजेपी की ओर हो गया.
माना जा रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में इन्हीं ब्राह्मणों को एकजुट करने और अपनी तरफ लाने की रणनीति के तहत प्रियंका गांधी को पूर्वांचल की जिम्मेदारी सौंपी गई है. हालांकि, पूर्वांचल एक दौर में कांग्रेस का मजबूत दुर्ग हुआ करता था. पूर्वांचल के प्रयागराज, वाराणसी, बलरामपुर, बहराइच, भदोही, फूलपुर, कुशीनगर, देवरिया, मिर्जापुर, जौनपुर, सुल्तानपुर, फैजाबाद, गोंडा, बस्ती, सिद्धार्थनगर जैसे तमाम इलाके एक दौर में कांग्रेस का गढ़ माने जाते थे. माना जा रहा है कि इसी किले को फिर से दुरुस्त करने के लिए कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को कमान दी है.
प्रियंका गांधी को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अक्स के तौर पर देखा जाता है. सख्त छवि और कड़े फैसले लेने की क्षमता के साथ प्रभावशाली भाषण देने वाली इंदिरा गांधी की तरह प्रियंका गांधी को भी बेहतर वक्ता के तौर पर ख्याति प्राप्त है. इसके अलावा उनका स्टाइल भी अपनी दादी और पूर्व पीएम इंदिरा की तरह नजर आता है. देश के सबसे बड़े परिवार में जन्म लेने वाली प्रियंका गांधी के अंदाज और बातचीत के लहजे में सुनने वाले जुड़ाव महसूस करते हैं. वो बेहतर ढंग से हिंदी बोल लेती हैं. यहां तक कि मंचों से भाषण देते वक्त भी वह बहुत ही सहज नजर आती हैं. वह बिना कोई स्क्रिप्ट देखे भाषण देती हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए उन्होंने गुजरात मॉडल पर तंज किया था. प्रियंका ने कहा गुजरात मॉडल में कौड़ियों के दाम पर हजारों एकड़ जमीन दोस्तों को दे दी गई. लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस पार्टी और नेताओं की तरफ से प्रचार के लिए प्रियंका वाड्रा की मांग मजबूती से की जाती है.
प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आने से सियासी सुगबुगाहट शुरू हो गई है. माना जा रहा है कि प्रियंका के राजनीति में आने से कांग्रेस मजबूत होगी और उसका प्रभाव पूरे देश की राजनीति पर पड़ेगा. इस घोषणा के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया बहुत ताकतवर नेता हैं. यूपी की राजनीति बदलने के लिए हम युवा नेताओं को आगे लाना चाहते हैं. मुझे बहुत खुशी हो रही है. मेरी बहन काबिल और कर्मठ हैं. एक अच्छा कदम लिया गया है. इस कदम से बीजेपी घबराई हुई है. हम फ्रंट फुट पर खेलेंगे. राहुल गांधी ने कहा कि मायवती जी और अखिलेश जी से हमारी कोई दुश्मनी नहीं है, असल में हम उनकी बहुत इज्जत करते हैं. हम उनके साथ सहयोग के लिए तैयार हैं. हमारा तीनों का उद्देश्य बीजेपी को हराना है, हमारी लड़ाई कांग्रेस की विचारधारा बचाना है.
प्रियंका का व्यक्तित्व का इतना करिश्माई क्यों है और क्यों राजनीति में उनके आने को इतनी अहमियत मिलती हैं? साथ ही प्रियंका की निजी जिंदगी अब तक कैसी रही है,
– प्रियंका गांधी का जन्म 12 जनवरी 1972 को हुआ. वो राहुल गांधी से 2 साल छोटी हैं. – प्रियंका गांधी ने मार्डन स्कूल, कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी कॉ़लेज से पढ़ाई की है. वो दिल्ली यूनिवर्सिटी से सायकॉलजी में ग्रेजुएट हैं.
– दादी इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रियंका गांधी को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. वो हमेशा भारी सुरक्षा गार्डों के साए में रहीं. – कॉलेज का ज्यादातर वक्त उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के जीसस एंड मैरी कॉलेज में बिताया. बाद में उन्होंने 2010 में बुद्धिस्ट स्टडीज में एमए की डिग्री ली – प्रियंका गांधी ने एक बार मीडिया से कहा था कि उनकी शक्लो-सूरत दादी इंदिरा गांधी से मिलती है. प्रियंका गांधी के बालों के स्टाइल से लेकर चाल-ढाल तक में इंदिरा गांधी की छाप दिखती है. प्रियंका गांधी को कई बार अपनी दादी की तरह सूती साड़ी में देखा गया है. रायबरेली और अमेठी के दौरे में वो अक्सर इसी वेशभूषा में नजर आती हैं.
ईरानी को कांग्रेस पर धारदार हमले के लिए प्रवक्ता बनाया गया है, क्योंकि वह हाजिरजवाब और स्पष्ट वक्ता हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में ईरानी ने कांग्रेस के गढ़ अमेठी में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को चुनौती दी थी. नेहरू-गांधी परिवार के सदस्यों पर आरोपों के संबंध में भाजपा की ओर से हमला करने में वह हमेशा मुखर रही हैं. विवादित राफेल विमान सौदे को लेकर सरकार पर कांग्रेस द्वारा लगाए जा रहे आरोपों पर उन्होंने कई बार स्पष्ट तरीके से पार्टी का नजरिया पेश किया है.
– प्रियंका गांधी ने एक बार कहा था कि उन्होंने अपने जीवन का पहला भाषण 16 साल की उम्र में दिया था. – प्रियंका गांधी का बुद्धिज्म में विश्वास है. वो अनुशासनप्रिय हैं. अपनी निजी जिंदगी को लेकर वो एक आवरण रखती हैं. – प्रियंका गांधी को एक अच्छी आर्गेनाइजर माना जाता है. रायबरेली और अमेठी में ही नहीं कांग्रेस के दूसरे कार्यक्रमों के आयोजन में वो रूचि लेती हैं. परिवार को भी वो व्यवस्थित रखना पसंद करती हैं.
– प्रियंका गांधी ने अपनी मर्जी से शादी की है. उनके पति रॉबर्ट वाड्रा दिल्ली के बिजनेसमैन हैं. उनकी शादी गांधी परिवार के आवास 10 जनपथ में 18 फरवरी 1997 को हुई. उनका विवाह हिंदू रीति रिवाज से संपन्न हुआ. प्रियंका गांधी को कुकिंग, फोटोग्राफी और किताबें पढ़ने का शौक है. प्रियंका गांधी के बच्चे अपनी मां को प्यारी लेकिन एक सख्त टीचर जैसा बताते हैं. वो बच्चों के लिए खुद खाना बनाती हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रियंका को प्रभारी बनाने पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि उन्होंने प्रियंका को केवल दो महीने के लिए नहीं भेजा है बल्कि कांग्रेस ने प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया को मिशन सौंपा है. बता दें कि सिंधिया को पश्चिमी यूपी का प्रभार दिया गया है.
हालांकि प्रियंका के चुनाव लड़ने के सवाल पर राहुल गांधी ने कहा कि इसका फैसला प्रियंका गांधी को ही करना है. राहुल ने कहा, मेरी बहन कर्मठ है, सक्षम है. मुझे बहुत खुशी है कि वो अब हमारे साथ काम करेंगी. प्रियंका के राजनीति में आने के फैसले से बीजेपी घबराई हुए है.
प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा ने उनके राजनीति में उतरने पर बधाई दी है. फेसबुक पोस्ट में उन्होंने बधाई देते हुए कहा, ‘जीवन के हर मोड़ पर आपके साथ हूं.’ इस समय रॉबर्ट वाड्रा विदेश में हैं.
वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा ने कहा कि उन्हें काफी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है. प्रियंका को भले ही पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी गई हो लेकिन इसका असर प्रदेश भर में पड़ेगा.
कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने बताया कि प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आने से कांग्रेस को न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि समूचे देश में फायदा होगा. प्रियंका विदेश से लौटने के बाद 1 फरवरी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार संभालेंगी.
बीजेपी ने प्रियंका की एंट्री को वंशवाद की राजनीति करार दिया है. बीजेपी नेता संबित पात्रा ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि यह पूर्व निर्धारित फैसला है. वो परिवार को ही पार्टी मानते हैं जबकि बीजेपी पार्टी को अपना परिवार मानती है. कांग्रेस ने ऐसा करके मान लिया है कि राहुल गांधी असफल हो गए हैं. वहीं शिवसेना ने इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, कांग्रेस ने प्रियंका गांधी पर फैसला लेने में देरी कर दी.
जनता दल युनाइटेड के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने प्रियंका को राजनीति में उतरने पर बधाई दी है. उन्होंने ट्वीट कर कहा, भारतीय राजनीति में यह एक बहुप्रतीक्षित फैसला था. लोग इसकी टाइमिंग, निश्चित भूमिका और पद को लेकर बहस कर सकते हैं. मगर मेरे लिए सबसे बड़ी खबर यह है कि उन्होंने आखिरकार राजनीति में उतरने का फैसला कर लिया.
गांधी परिवार के राजनीति में आने का सिलसिला मोतीलाल नेहरू से शुरू होता है. 1940 के दशक में मोतीलाल नेहरू कांग्रेस सदस्य के रूप में काम किया और अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में उनके परिवार से कई लोगों ने भाग लिया था. मोती लाल नेहरू 1919-1920 और 1928-1929 के दौरान 2 बार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे.
मोतीलाल नेहरू के बाद नाम आता है उनके बेटे जवाहरलाल नेहरू का. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से ग्रैजुएशन करने वाले नेहरू ने 1912 में राजनीति में कदम रखा. 1923 में नेहरू को कांग्रेस का महासचिव बनाया गया. आगे चलकर नेहरू स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के पद पर रहे. यह पद उनकी मौत के बाद खाली हुआ.
नेहरू के जीवित रहते हुए ही गांधी परिवार से एक अन्य सदस्य ने राजनीति में कदम रखा और वो थीं उनकी बेटी इंदिरा गांधी. 1958 में उन्हें कांग्रेस के केंद्रीय संसदीय बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया. वो लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष रहीं. भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित इंदिरा आगे चलकर देश की प्रधानमंत्री बनीं. इसके अलावा वह कैबिनेट में भी कई पदों पर रहीं. 1984 में उनकी हत्या कर दी गई थी.
इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी भी राजनीति में काफी सक्रिय थे. स्वतंत्रता सेनानी और लोकसभा के प्रभावशाली सदस्य फिरोज गांधी ने रायबरेली से आम चुनाव में जीत दर्ज की और संसद पहुंचे. ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में सक्रिय भूमिका निभाने वाले फिरोज ‘नेशनल हेराल्ड’ के प्रबंध निर्देशक के पद पर भी रहे. सितंबर, 1960 में उनका निधन हो गया.
इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की 1980 में राजनीति में एंट्री हुई, हालांकि ऐसा कहा जाता है कि इंदिरा की कैबिनेट में संजय गांधी का सीधे तौर पर दखल था. उन्होंने उत्तर प्रदेश के अमेठी से आम चुनाव जीता. जिसके बाद 1980 में अल्पआयु में एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में उनकी मौत हो गई.
संजय गांधी की मृत्यु के बाद, इंदिरा गांधी ने राजनीति में दिलचस्पी नहीं रखने वाले राजीव गांधी को पायलट की नौकरी छोड़कर फरवरी, 1981 में राजनीति में प्रवेश के लिए प्रेरित किया. राजीव इंदिरा के निधन के बाद भारी बहुमत के साथ चुनाव जीते और 1984 में देश के प्रधानमंत्री बने. हालांकि, इसी दौरान बोफोर्स कांड उछला और अगले चुनाव में कांग्रेस को हार मिली. 1991 में एक बम धमाके में राजीव गांधी की हत्या कर दी.
राजीव गांधी की मौत से पहले 1988 में संजय गांधी की पत्नी और वर्तमान की केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी की राजनीति में एंट्री हुई, उन्हें जनता दल का महासचिव बनाया गया. 1989 में वो सांसद चुनी गईं. संजय गांधी की मौत के बाद मेनका गांधी परिवार से अलग हो गईं थीं. 1996 में उन्होंने पीलीभीत से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. 1999 में उन्होंने भाजपा का साथ दिया और 2004 में भाजपा का दामन थाम लिया.
राजीव गांधी के निधन के बाद गांधी परिवार की तरफ से राजनीति में उनकी पत्नी सोनिया गांधी ने कदम रखा. रायबरेली से सांसद सोनिया ने शुरुआत में कहा था कि मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूंगी, लेकिन मैं राजनीति में कदम नहीं रखूंगी. हालांकि, 1997 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की. 1998 में उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. 1999 में उन्होंने लोकसभा चुनाव जीता. उन्होंने लंबे समय तक कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभाला. इस समय वह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की प्रमुख हैं.
सोनिया गांधी के बाद गांधी परिवार से वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राजनीति में कदम रखा. उन्होंने मार्च, 2004 में उन्होंने अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ा और भारी मतों के अंतर से जीत दर्ज की. इस समय उनके नेतृत्व में कांग्रेस लोकसभा चुनाव की तैयारी में है और इसी कड़ी में उन्होंने अपनी बहन प्रियंका को राजनीति में उतारने का फैसला किया है.
प्रियंका के अलावा उनके चचेरे भाई और मेनका गांधी के बेटे वरुण गांधी ने 2004 में राजनीति में भाजपा का दामन थामा. इसके बाद वो 2009 में पीलीभीत से चुनाव लड़े और जीत भी दर्ज की. 2014 में उन्होंने सुल्तानपुर से लोकसभा चुनाव लड़ा और यहा भी जीत दर्ज की. वरुण का नाम बीजेपी के कद्दावर नेताओं में शामिल है.
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