पिछले 48 घंटों से देश में हड़कंप
देश के कई राज्यों में नकदी की भारी किल्लत देखी जा रही है। # नकदी की देश में कोई कमी नहीं- बहलाने को तर्क सही है # एटीएम में नकदी खत्म हो गई है। पिछले 48 घंटों से देश में हड़कंप मचा हुआ है। राजधानी दिल्ली में भी मंगलवार को लोग पैसे निकालने के लिए भटकते रहे। यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में नकदी की किल्लत देखने को मिल रही है। गुजरात समेत कई राज्यों के बैंकों में नकदी निकालने की लिमिट भी तय कर दी है। संदेह है कि दो हजार के नोटों की जमाखोरी हो रही। निपटने को 500 के नोटों की छपाई 5 गुना बढ़ाई जाएगी।
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देश में नोटबंदी के झटके के बाद करेंसी संचार को लेकर आम आदमी को दूसरा झटका लगा है. इस झटके में जहां 6 से 7 राज्यों में एटीएम खाली हो गए और देशभर में एटीएम से कैश निकालने की होड़ लग गई वहीं एक बार फिर वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक के बयानों से आपसी तालमेल की झलक दिखने लगी.
नकदी की कमी की खबर भले ही अभी फैली हो, लेकिन कोई भी अपना अनुभव बता सकता है कि पिछले डेढ़ साल से एटीएम या बैंक से पैसे निकालना उतना आसान बन नहीं पा रहा था जितना आसान नोटबंदी के पहले था. दो-तीन एटीएम से पैसा निकालने में नाकामी के बाद तीसरे या चौथे एटीएम से पैसे निकल आते थे सो पता नहीं चलता था कि नकदी की कमी है. लगता था कि मशीनें खराब होंगी. इतना ही नहीं कुछ बैंकों से एक बार में दो लाख से ज्यादा की रकम निकालने में किल्लत अभी एक महीने पहले भी दिखाई दे रही थी. बैंक कर्मचारी साफ कह देते थे कि आज पर्याप्त कैश नहीं है. हालांकि एक-दो रोज़ बाद फिर पैसे मिल जाते थे. इससे यह संदेश तो चला ही जा रहा था कि नोटबंदी के डेढ़ साल बाद भी बैंकों में पर्याप्त नकदी नहीं है. यानी यह न माना जाए कि नकदी की मांग अचानक बढ़ गई.
बुधवार को जैसे ही सोशल मीडिया में करेंसी क्रंच का कीवर्ड ट्रेंड करने लगा आनन फानन में वित्त मंत्रालय, रिजर्व बैंक, सरकारी बैंक और आर्थिक सलाहकारों समेत कई स्तर से मामले पर सफाई का दौर शुरू हो गया. केंद्र सरकार की तरफ से पहले वित्त मंत्रालय से सफाई दी गई कि करेंसी का कोई संकट नहीं है. लेकिन जिन इलाकों में इस संकट का दावा किया जा रहा है वहां जल्द से जल्द राहत पहुंचाने का काम किया जा रहा है.
नकदी की कमी की बात उठना ही कितना संवेदनशील मामला है. यानी अभी भले कोई हादसा न दिख रहा हो, लेकिन हादसे के पूर्व लक्षण जरूर दिख रहे हैं.
वित्त मंत्रालय की इस सफाई के बाद कुछ ही देर में रिजर्व बैंक ने प्रेस रिलीज जारी की कि देश के लगभग 5 राज्यों में 12-13 दिनों के दौरान अप्रत्याशित कैश निकासी के चलते कैश क्रंच का संकट पैदा हुआ है. इस संकट के चलते केंद्रीय रिजर्व बैंक ने ऐलान किया कि उसने एक अंतरराज्यीय समिति का गठन कर दिया है जो कैश संकट से ग्रस्त राज्यों को अधिक कैश वाले राज्यों से करेंसी के मूवमेंट के काम को देखेगी.
इस कॉन्फ्रेंस के सापेक्ष वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ट्वीट करते हुए जानकारी दी कि पूरे देश में करेंसी का कोई संकट नहीं है. सरकार के खजाने में पर्याप्त करेंसी उपलब्ध है. कुछ राज्यों के चुने हुए इलाकों में करेंसी संकट की बात सामने आई है जिसे 2 से 3 दिनों के समय में दुरुस्त कर लिया जाएगा.
वित्त मंत्री के इस ट्वीट के तुरंत बाद वित्त राज्य मंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में जानकारी दी गई कि वित्त मंत्रालय ने पांच राज्यों में करेंसी संकट को देखते एक समिति बनाई है. यह समिति इन राज्यों में करेंसी क्रंच की समस्या का मूल्यांकन करते हुए करेंसी संकट को दूर करने के काम में मदद करेगी. यह काम युद्धस्तर पर किया जाएगा और वित्त मंत्री के बयान के मुताबिक इस संकट को 2-3 दिनों के समय में दूर कर दिया जाएगा. वित्त राज्य मंत्री की इस प्रेस कॉन्फ्रेंस तक कई राज्यों में अप्रत्याशित कैश निकासी का जिक्र नहीं किया गया. इस निकासी का जिक्र दोपहर बाद तब हुआ जब एक टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में वित्त मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार ने दावा किया कि जहां आमतौर पर एक महीने के दौरान देश में 20,000 करोड़ रुपये की निकासी बैंकिंग से की जाती है, महज अप्रैल के पहले दो हफ्तों के दौरान कुल 45,000 करोड़ रुपये की निकासी हो चुकी है. इसके चलते कुछ राज्यों में एटीएम खाली हो गए हैं हालांकि दावा किया गया कि सरकार जल्द से जल्द स्थिति को सामान्य कर लेगी. खास बात है कि इन सभी संवादों के बीच एक बात बार-बार कही गई कि देश के सरकारी खजाने में पर्याप्त मात्रा में करेंसी उपलब्ध है. इसके बावजूद बुधवार दोपहर बाद केंद्र सरकार की तरफ से कहा गया कि उसने रिजर्व बैंक को जल्द से जल्द 500 रुपये की मुद्रा की प्रिंटिंग शुरू करने का निर्देश दे दिया है. सवाल खड़ा होता है कि जब दोपहर तक सरकार और केंद्रीय बैंक के आकलन में पर्याप्त मात्रा में करेंसी उपलब्ध थी फिर क्यों तेज रफ्तार से करेंसी की प्रिंटिंग का फरमान दिया गया?
बिहार में मांग से 35% तक ही करेंसी सप्लाई हो रही है। औरंगाबाद जिले में कैश नहीं मिलने पर लोगों ने सड़क जाम कर दी। नवीनगर में भीड़ ने पीएनबी पर ताला जड़ दिया। एक घंटे बैंककर्मी बंधक बने रहे। पटना के 1500 में से 650 एटीएम ठप हैं। जो चल रहे हैं, उनमें भी अक्सर कैश नहीं रहता। एसबीआई के एक कैश मैनेजर ने बताया कि नकदी जमा करने वाले कम और निकालने वाले अधिक आ रहे हैं। 10 साल में पहली बार ऐसा ट्रेंड दिखा है।
क्या एक बार फिर नोटबंदी के दौर की तरह इस करेंसी क्रंच के समय वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक के बीच संवाद में कोई कमी थी या फिर दोनों ही संस्थाएं एक ही मसले को सुलझाने की कोशिश एकांत में कर रहे थे? यदि ऐसा है तो क्या वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक में ऐसी संवादहीनता इन संस्थाओं को किसी छोटे-बड़े आर्थिक संकट से निपटने में कमजोर नहीं कर रही है?
तर्क दिए जा रहे हैं कि नकदी की देश में कोई कमी नहीं. कहा जा रहा है कि अचानक नकदी की मांग बढ़ गई. लेकिन इस ‘अचानक‘ को भी तो बताना पड़ेगा. एक अजीब तर्क है कि फसल बिकने के दिन हैं. क्या पिछले साल इन दिनों ऐसे ही दिन नहीं थे. या पिछले दस-बीस साल में ऐसे ही दिन नहीं थे. यानी नकदी की मांग अचानक बढ़ने की बात बिल्कुल फिजूल लगती है. बल्कि बात उलटी है. नोटबंदी के पहले जितनी नकदी थी उससे भी 50 हजार करोड़ से ज्यादा नकदी इस समय बाजार और बैंकों में है. यानी देश में किसानों को नकदी की जरूरत की बजाए कुछ और नया हुआ है. एक और अजीब तर्क जो सुनने को मिल रहा है वह ये है कि नोट छापने के लिए स्याही और कागज़ का इंतजाम करने में दिक्कत आ रही है. जब नकदी पहले से ज्यादा है तो ये बात उठी ही कैसे कि नोटों की छपाई में दिक्कत है? यानी इस मामले में कुछ और हुआ है.
क्या इस बात से कोई इनकार कर सकता है कि बैंकों की खस्ता हालत, खासतौर पर सरकारी बैंकों की खस्ता हालत की खबरें अभी पिछले एक साल से ही ज्यादा सुनी जा रही थीं. जिन लोगों को, खासकर सेवानिवृत्त लोगों को पीएफ और ग्रेच्युटी के दस-बीस-पच्चीस लाख रुपए एकमुश्त मिलते हैं वे सरकारी बैंकों में ही मियादी जमा करते हैं. बैंकों की हालत सुनकर क्या उनमें हौका नहीं बैठता होगा? ऊपर से मियादी जमा पर ब्याज दरें इतनी घटती चली गईं कि मियादी जमा में जोखिम लेने की प्रवृत्ति भी घटती जा रही थी. अगर पता करेंगे तो तीन-चार महीनों से बैंकों में मियादी जमा को आगे जमा करने की बजाए नकदी घर ले आने की प्रवृत्ति का पता चलेगा. ये कोई छोटी मोटी बात नहीं है. लेकिन इसे देखने की जहमत कोई उठा नहीं रहा था. लोगों में दुविधा और आशंका इतनी बढ़ गई कि आज से चालीस-पचास साल पहले जिस तरह से लोग घरों में पर्याप्त नकदी रखते थे वैसे ही हालात बनने लगे. बैंकों में जमा पैसा डूब न जाए इस डर से लोग अपना पैसा बैंकों से निकालकर घर पर रखते हुए देखे जा रहे हैं. नोटबंदी के समय के अनुभव के बाद खुलकर खर्च करने की प्रवृत्ति भी बदली है. अफेदफे की आशंका के मद्देनज़र घर में पैसा जमा रखने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है.
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