*दियाली* की ज्योति से आलोकित लोक

मारवाडी भाषा में ‘ दियाली ‘ नाम से अभिहित

*डॉ कामिनी वर्मा*

‘ दीपावली ’ हिन्दुस्तान के साथ साथ लगभग सम्पूर्ण विश्व एशिया , अफ्रीका , यूरोप एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में हिंन्दुओ द्वारा श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है। दीपो का विशेष पर्व होने के कारण इसे दीपावली या दीवाली के नाम से सम्बोधित किया जाता है। दीपावली शब्द संस्कृत के दो शब्दो ‘ दीप ’ अर्थात ‘ दिया ’ और ‘ आवली ’ से मिलकर बना है, जिसे मारवाडी भाषा में ‘ दियाली ‘ नाम से अभिहित किया जाता है । जिसका अभिप्राय है दीपो की पंक्तियों से धरा को सुशोभित करके मनाया जाने वाला त्योहार ।

राजेश्वर के काव्य मीमांसा में इसे ‘ दीप मालिका ‘ कहा है , जिसमे घरों मे , पुताई की जाती थी, और रात में तेल के दीयो से सड़कों और बाजार को सजाया जाता था।

वैश्विक स्तर पर दृष्टि डाले तो नेपाल में इस दिन को नया वर्ष आरम्भ होने के उपलक्ष मे मनाते है।नेपाल संवत के अनुसार यह वर्ष का अन्तिम दिन होता है। इसी दिन व्यापारी अपने खातो को बन्द कर पुनः नया आरम्भ करते है। घरों , दुकानों औेर मन्दिरों की सफाई करके समृ़िद्ध की देवी लक्ष्मी की पूजा करते है, तथा कौवा , कुत्ता ,गाय और बैल को सजाकर उनकी पूजा करते है। इस दिन सोना , कपड़ा एवं मूल्यवान उपकरण खरीदने का भी प्रचलन है। श्रीलंका में यह पर्व विशेष रूप से तमिल समुदाय द्वारा धन की देवी लक्ष्मी की पूजा , अर्चना करके मनाया जाता है। इस दिन लोग नये वस्त्र धारण करके विभिन्न प्रकार के खेल , आतिशबाजी , नृत्य ,गायन ,और भोज का आयेाजन करके जश्न मनाते है। मलेशिया में इस दिन संघीय सार्वजनिक अवकाश रहता है,ओपन हाउसेस मे आयोजित उत्सव में विभिन्न धर्माें सम्प्रदायों के लोग एकत्रित होकर धार्मिक , साम्प्रदायिक सोैहार्द का विकास करते है। सिंगापुर में भी इस दिन राजपत्रित सार्वजनिक अवकाश रहता है। यहां अल्पसंख्यक भारतीय तमिल समुदाय द्वारा विशेष रूप से सजावट , करके प्रदर्शनी , परेड और संगीत समारोह का आयोजन किया जाता है।
आस्ट्रेलिया के मेलबर्न में भारतीय मूल के निवासियो द्वारा 2006 से ‘ सेलिब्रेट इण्डिया इंकापोरेशन ’ केे तत्वाधान में फेडरेशन स्कवायर पर आयेाजित किया गया । नृत्य ,संगीत पारम्परिक कला शिल्प का यह उत्सव यारा नदी पर भव्य आतिशबाजी के साथ लगभग एक सप्ताह तक चलता है। फिजी में 19 वी शताब्दी के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप से आयातित गिरमिटिया मजदूरों केे द्वारा इसे मनाया जाता है, तथा न्यूजीलेैण्ड में दक्षिण एशियाई प्रवासी लोगो का बड़ा समूह दीवाली मनाता है।
ब्रिटेन में बसे भारतीय ‘ दीया ’ नामक विशेष प्रकार की मोमबत्ती और दीये जलाकर तथा मिठाई बांटकर इस त्योहार को मनाते है। ब्रिटेन में स्थित स्वामीनारायण मंदिर में विशेष प्रकार का आयेाजन होता है। यहाॅ 2009 के बाद से प्रतिवर्ष ब्रिटिश प्रधानमंत्री के निवास स्थान डाउनिंग स्ट्रीट पर मनाया जा रहा है। वर्ष 2013 में ब्रिटिश प्रधान मंत्री डेविड कैमरन और उनकी पत्नी ने इसमें भाग लिया । संयुक्त राज्य अमेंरिका में 2003 मे व्हाइट हाउस में पहली बार मनाया गया । 2009 में राष्ट्रपति बराक ओबामा इस उत्सव में शामिल हुए । सिंगापुर में सरकार के साथ ‘ हिन्दू बस्ती बोर्ड ’ इस दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयेाजन करता है।

भारत में यह त्योहार लगभग सभी प्रान्तो में सभी वर्ग के लोगो द्वारा अत्यंत उल्लास , उमंग और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है । हर प्रांत व क्षे़त्र में दीवाली भिन्न -भिन्न कारणो व तरीको से मनायी जाती है। हिन्दू धर्म में यह पर्व पांच दिनो तक चलता रहता है। खूब साफ- सफाई की जाती है।

कार्तिक मास की अमावस्या के दो दिन पूर्व त्रयोदशी को ‘ धनतेरस ’ के रूप में सोना, चाॅदी, बर्तन , बहुमूल्य उपकरण खरीद कर मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है, सबको स्वास्थ्य और संमृद्धि के प्रदाता धनवन्तरी जी इसी दिन प्रकट हुये थे, । अगले दिन चतुर्दशी (नरक चतुर्दशी ) या छोटी दीवाली के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है , कि – श्रीकृष्ण ने नरकासुर नाम के देैत्य का इसी दिन वध किया था, उनकी इस विजय के उपलक्ष में रात्रि में दीप जलाये जाते है। दीपावली की रात को धनधान्य , सुख संमृद्धि की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी, विध्न विनाशक गणेश तथा विद्या और कला की देवी सरस्वती का पूजन अत्यन्त श्रद्धा और आस्था से किया जाता है। लोग नये वस्त्र पहनकर विभिन्न प्रकार के व्यंजन और खील बताशे से भोग लगाते है। दीये तथा आतिशबाजी जलाते है।

भारत केे पूर्वी क्षेत्र उडीसा और पश्चिम बंगाल में ‘ काली पूजन ’ किया जाता है । इस रात को ‘ महानिशा ’भी कहा जाता है। मंन्त्रो का जाप किया जाता है । दीपावली पर एक दिये से ही दूसरा दिया जलाया जाता है, जो प्रेम सौहार्द और भाईचारे के संवहन का प्रतीक है, दीयों की ज्योति आमावस्या की कालीरात को प्रकाशमय कर देती है। रंगविरंगे रंगो, फूलों,पत्तो से बनी रंगोली और तोरण बरबस मन को आकर्षित करते है। ब्रह्मपुराण में उल्लिखित है, कार्तिक अमावस्या की अंधेरी रात्रि में महालक्ष्मी स्वयं धरती पर आती है, और प्रत्येक गृहस्थ के घर का अवलोकन करती है, तथा हर प्रकार से स्वच्छ , शुद्ध , ओैर सुंदर तरीके से सुसज्जित प्रकाश युक्त घर में अंश रूप में विराजमान हो जाती है।

ऐसी मान्यता है जिसका उल्लेख प्राचीन हिन्दू ग्रन्थ रामायण में भी मिलता है कि अयोध्या केे राजकुमार राम 14 वर्ष के बनवास के पश्चात इसी दिन पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ वापस अयोध्या लौटे थे, तथा यहाँ की प्रजा ने दिये प्रज्जवलित कर तथा पटाखे जलाकर उनका स्वागत किया था, अतः तब से प्रत्येक वर्ष दीये जलाकर पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
दीपावली का अगला दिन नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गोबर का पर्वत बनाकर गोवर्धन पूजा का विधान है।अगले दिन भाई दूज ’ या ‘ यम द्वितीया ‘ को भाई और बहन द्वारा गांठ जोडकर यमुना में स्नान करके बहन द्वारा भाई के मस्तक पर तिलक लगाकर मंगल कामना की जाती है। इसी दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक हुआ था , तथा विक्रम संवत का प्रारम्भ हुआ था।व्यापारी बही खाता इसी दिन बदलता है।
जैन और सिख मतावलम्बी भी इस त्योहार को बड़े धूम धाम से मनाते हेै, । जैनियो के अनुसार इसी दिन चौबीसवें तीर्थंकर महाबीर स्वामी को मोक्ष की प्राप्ति या उनके प्रथम शिष्य गणधर को कैवल्य की प्राप्ति हुई थी। सिखो के लिये यह इसलिये महत्वपूर्ण है ,क्योकि इसी दिन अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मंन्दिर का शिलान्यास हुआ था, तथा 1619 दीवाली के दिन छठे गुरू हरगोविन्द सिंह को कारागार से मुक्त किया गया था। इतिहास पर दृष्टि डाले तो मुगल शासक अकबर , जहाॅगीर , शाहआलम द्वितीय के शासन में दीवाली बहुत ही उत्साह पूर्वक मनाया जाता था। अकबर के शासन काल मे दौलत खाने के सामने 40 गज ऊँचे बाॅस पर एक बडा़ आकाशदीप दीवाली के दिन सजाया जाता था। शाह आलम द्वितीय के समय सम्पूर्ण शाही महल दीयो से प्रकाशित किया जाता था।तथा लालकिले मेें आयोजित कार्यक्रमो में हिन्दू और मुस्लिम समान रूप से शामिल होते थे।

इस प्रकार कार्तिक मास में अमावस्या की काली रात को दीपो की रोशनी से आलोकित करता हुआ यह पर्व जहां यह संदेश देता है कि समस्या चाहे कितनी ही बड़ी क्यो न हो पर आशा ओैर संगठन की शक्ति से उसे दूर किया जा सकता है। भले ही हर प्रान्त और हर संम्प्रदाय मेें इस दिन को मनाने केे कारण भिन्न- भिन्न है, परन्तु व्यक्तिगत और समष्टिगत रूप से मनाया जाने वाला यह त्योहार समाज में साम्प्रदायिक , सद्भाव , प्रेम , भाई चारा, सामाजिक समरसता के विस्तार को प्रेरित करता है, तथा वाह्य जगत को प्रकाशित करने के साथ- साथ अंतस के अंधकार को दूर करने का संदेश देता है।
इस पर्व मे स्वच्छता का बहुत महत्व है, ऐसी मान्यता है कि साफ सुथरे घर में धन की देवी लक्ष्मी का निवास होता है , जिससे निश्चित ही पर्यावरण शुद्ध होता है, परन्तु इस दिन व्ृहद मात्रा में आतिशबाजी जलाये जाने से तथा अत्यधिक शोर करने वाले पटाखे फोडने का भी प्रचलन है जो पर्यावरणीय दृष्टिकोण से घातक होने के साथ करोडो रूपये को अग्नि के सुपुर्द करने वाला भी है। भारत जैसे देश में जहां बहुसंख्यक जनता गरीबी के कारण आत्महत्या कर रही है, वहाँ इस प्रकार धन का अपव्यय कहाँ तक उचित है , विचारणीय है।
*डॉ कामिनी वर्मा*
एसोसिएट प्रोफेसर
काशी नरेश राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय , ज्ञानपुर , भदोही ( उत्तर प्रदेश )

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