19 अक्टूबर; विष्णु, गणेश और कुबेर की पूजा ;तीन गुणा फल का विशेष योग
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः
दिवाली पर सात साल बाद शुभ संयोग बन रहा है और मां लक्ष्मी पूजन के लिए सिर्फ 51 मिनट होंगे। तीनों मुहुर्तों में मां लक्ष्मी के साथ विष्णु, गणेश और कुबेर की पूजा करने से घर में सुख-शांति व समृद्धि तीन गुणा मिलेगी। मां लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त : शाम 05:43 से 08:16 तक।
विशेष आलेख- हिमालयायूके न्यूज पोर्टल की प्रस्तुति-
दिवाली गुरुवार (19 अक्टूबर) को मनाई जा रही है। दिवाली के दिन भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। दिवाली की रात जब मां लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना हो जाए तो लोगों को हर कमरे में जाकर शंख और घंटी बजानी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में मौजूद नेगेटिव एनर्जी दूर होती है और मां लक्ष्मी का आगमन घर में होता है। इससे घर में खुशहाली पहले के मुकाबले अधिक बढ़ जाती है। माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिये इस दिन को बहुत ही शुभ माना जाता है। घर में सुख-समृद्धि बने रहे और मां लक्ष्मी स्थिर रहें इसके लिये दिनभर मां लक्ष्मी का उपवास रखने के उपरांत सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष काल के दौरान स्थिर लग्न (वृषभ लग्न को स्थिर लग्न माना जाता है) में मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिये। लग्न व मुहूर्त का समय स्थान के अनुसार ही देखना चाहिये। दीपावली के दिन झाडू खरीदना शुभ माना जाता है क्योंकि झाडू घर के अंदर से सारी नकारात्मक ऊर्जा और दरिद्रता को दूर कर देता है।
दिवाली वाली रात पर कहां-कहां दिए जलाएं, जिसके कि आप पर मां लक्ष्मी और भगवान गणेश जी की कृपा हमेशा बनी रहे। सबसे पहले एक बड़ा सा दिया आप मां लक्ष्मी की तस्वीर के सामने घी का जलाएं। उसके बाद घर को तेल के दीपक से सजाएं। आप अपने घर के मेनडोर के दोनों ओर सरसों के तेल का दीपक जलाएं। घर के आंगन में घी का दीपक रखना चाहिए। हमारे घर के आस-पास वाले चौराहे पर भी दीपक जलाकर रखना चाहिए। ऐसा करने से घर की दरिद्रता दूर होती है। घर के आस-पास यदि कोई मंदिर है तो वहां पर भी दीपक जलाना चाहिए। दीपावली की रात्रि पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती है। घर के बेडरूम में दीपक में कपूर जलाकर रखने से पति-पत्नी का संबंध और मधुर बनता है। घर की गृहणियां भी रसोई में घी का दीपक गैस के चूल्हे के दोनों ओर जलाएं, ऐसा करने से घर में कभी भी अन्न की कमी नहीं होती है।
19 अक्तूबर – लक्ष्मी पूजा मुहूर्त- 19:11 से 20:16 – प्रदोष काल- 17:43 से 20:16
वृषभ काल- 19:11 से 21:06 – अमावस्या तिथि आरंभ- 00:13 (19 अक्तूबर)
अमावस्या तिथि समाप्त- 00:41 (20 अक्तूबर)
पूजन शुरू करने से पहले चौकी को अच्छी तरह से धोकर उसके ऊपर खूबसूरत सी रंगोली बनाएं, इसके बाद इस चौकी के चारों तरफ दीपक जलाएं. मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करने से पहले थोड़े से चावल रख लें. मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए उनके बाईं ओर भगवान विष्णु की प्रतिमा को भी स्थापित करें. अगर आप किसी पंडित को बुलाकर पूजन करवा सकते हैं तो यह काफी अच्छा रहेगा. लेकिन आप अगर खुद मां लक्ष्मी का पूजन करना चाहते हैं तो सबसे पहले पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल, मिठाई, मेवा, सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर इस त्योहार के पूजन के लिए संकल्प लें. सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें और इसके बाद आपने चौकी पर जिस भगवान को स्थापित किया है उनकी. इसके बाद कलश की स्थापना करें और मां लक्ष्मी का ध्यान करें. मां लक्ष्मी को इस दिन लाल वस्त्र जरूर पहनाएं. इससे मां काफी प्रसन्न होंगी और इस दीवाली आपके घर में भी खुशियों का बसेरा होगा.
दीपावली के एक दिन पहले यानी इस बार 18 अक्टूबर को नरक चतुर्दशी पड़ रही है. नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली भी कहा जाता है. कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है. गोवर्धन को ‘अन्नकूट पूजा’ भी कहा जाता है. सामान्य भाषा में कहा जाए तो दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है.
इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र की पूजा की बजाय गोवर्धन की पूजा शुरू करवाई थी. इस दिन गोबर घर के आंगन में गोवर्धन पर्वत की चित्र बनाकर पूजन किया जाता है. इस दिन गायों की सेवा का विशेष महत्व है. गोवर्धन पूजा का श्रेष्ठ समय प्रदोष काल में माना गया है.
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी, यम चतुर्दशी या फिर रूप चतुर्दशी कहते हैं. इस दिन दीये जलाकर घर के बाहर रखते हैं. ऐसी मान्यता है की दीप की रोशनी से पितरों को अपने लोक जाने का रास्ता दिखता है. इससे पितर प्रसन्न होते हैं और पितरों की प्रसन्नता से देवता और देवी लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं. दीप दान से संतान सुख में आने वाली बाधा दूर होती है. मंत्र – सितालोष्ठसमायुक्तं संकण्टकदलान्वितम्। हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:।।
मंत्रों से प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन जलांजलि देनी चाहिए ऊं यमाय नम:, ऊं धर्मराजाय नम:, ऊं मृत्यवे नम:, ऊं अन्तकाय नम:, ऊं वैवस्वताय नम:, ऊं कालाय नम:, ऊं सर्वभूतक्षयाय नम:, ऊं औदुम्बराय नम:, ऊं दध्राय नम:, ऊं नीलाय नम:, ऊं परमेष्ठिने नम:, ऊं वृकोदराय नम:, ऊं चित्राय नम:, ऊं चित्रगुप्ताय नम:
इस दिन यमराज की पूजा करने और उनके लिए व्रत करने का विधान है. माना जाता है कि महाबली हनुमान जी का जन्म इसी दिन हुआ था. इसीलिए आज बजरंगबली की भी विशेष पूजा की जाती है.
मां लक्ष्मी का कौड़ी से पूजन करने से मां लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न होती हैं। इसलिए लक्ष्मी पूजन के बाद दिवाली पर ये उपाय करें और मां लक्ष्मी की कृपा पाएं: दिवाली पर स्थिर लग्न में पूजा करने के बाद कौड़ियों को लाल कपड़े में बांध कर घर की तिजोरी में रखना चाहिेए। जीवन में सुख और समृद्धि के लिए दिवाली पर 11 कौड़ी का पूजन कर किसी गमले में रख दें।
19 अक्तूबर 2017 को कार्तिक मास की अमावस्या तिथि है। भले ही इस दिन अमावस्या है किन्तु हिन्दू धर्म के रोशनी के पर्व यानी ‘दिवाली’ से पूरा भारत जगमगाता रहता है। पुराणों के अनुसार उस दिन से यह त्यौहार मनाया जा रहा है जब श्रीराम लंकापति रावण को पराजित कर और अपना वनवास समाप्त कर अयोध्या वापस लौटे थे। उस दिन अयोध्यावासियों ने कार्तिक अमावस्या की रात अपने-अपने घरों में घी के दीप प्रज्वलित कर खुशियाँ मनाई थी। इस दिन दिवाली पूजन करने की विशेष महत्त्व है। दिवाली पर विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन करने की परंपरा है। माँ लक्ष्मी के साथ-साथ गणेश पूजन, कुबेर पूजन एवं बही-खाता पूजन भी किया जाता है। दिवाली पर उपासक को अपने सामर्थ्य के अनुसार व्रत करना चाहिए। उपासक या तो निर्जल रहकर या फलाहार व्रत कर सकता है।
दिवाली या कहें दीपावली भारतवर्ष में मनाया जाने वाला हिंदूओं का एक ऐसा पर्व है जिसके बारे में लगभग सब जानते हैं। प्रभु श्री राम की अयोध्या वापसी पर लोगों ने उनका स्वागत घी के दिये जलाकर किया। अमावस्या की काली रात रोशन भी रोशन हो गई। अंधेरा मिट गया उजाला हो गया यानि कि अज्ञानता के अंधकार को समाप्त कर ज्ञान का प्रकाश हर और फैलने लगा। इसलिये दिवाली को प्रकाशोत्सव भी कहा जाता है। दिवाली का त्यौहार जब आता है तो साथ में अनेक त्यौहार लेकर आता है। एक और यह जीवन में ज्ञान रुपी प्रकाश को लाने वाला है तो वहीं सुख-समृद्धि की कामना के लिये भी दिवाली से बढ़कर कोई त्यौहार नहीं होता इसलिये इस अवसर पर लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है। दीपदान, धनतेरस, गोवर्धन पूजा, भैया दूज आदि त्यौहार दिवाली के साथ-साथ ही मनाये जाते हैं। सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक हर लिहाज से दिवाली बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है। वर्तमान में तो इस त्यौहार ने धार्मिक भेदभाव को भी भुला दिया है और सभी धर्मों के लोग इसे अपने-अपने तरीके से मनाने लगे हैं। हालांकि पूरी दुनिया में दिवाली से मिलते जुलते त्यौहार अलग-अलग नामों से मनाये जाते हैं लेकिन भारतवर्ष में विशेषकर हिंदूओं में दिवाली का त्यौहार बहुत मायने रखता है।
सर्वप्रथम माँ लक्ष्मी व गणेशजी की प्रतिमाओं को चौकी पर रखें। ध्यान रहें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम दिशा की ओर रहें और लक्ष्मीजी की प्रतिमा गणेशजी के दाहिनी ओर रहें।
कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में लपेट कर उसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक होता है।
एक दीपक को घी और दूसरें को तेल से भर कर और एक दीपक को चौकी के दाईं ओर और दूसरें को लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमाओं के चरणों में रखें।
लक्ष्मी-गणेश के प्रतिमाओं से सुसज्जित चौकी के समक्ष एक और चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। उस लाल वस्त्र पर चावल से नवग्रह बनाएं। साथ ही रोली से स्वास्तिक एवं ॐ का चिह्न भी बनाएं।
पूजा करने हेतु उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे।
तत्पश्चात केवल प्रदोष काल में ही माता लक्ष्मी की पूजा करें। माता की स्तुति और पूजा के बाद दीप दान भी अवश्य करें।
लक्ष्मी पूजन के समय लक्ष्मी मंत्र का उच्चारण करते रहें – ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:
लक्ष्मी पूजन प्रदोष काल में ही करना चाहिए और यह समय संध्याकाळ के पश्चात आरंभ होगा। हालाँकि इसमें भी स्थिर लग्न में माँ लक्ष्मी की पूजा करना सर्वोत्तम माना जाता है। स्थिर लग्न में पूजन कार्य करने से माँ लक्ष्मी घर में वास करती है। वृषभ लग्न को स्थिर लग्न माना जाता है।
दीपावली शुभ मूहूर्त
शुभ दिवाली तिथि – 19 अक्तूबर 2017, बृहस्पतिवार
लक्ष्मी पूजन मुहूर्त – सायं 07:11 से 08:16 बजे तक
प्रदोष काल – सायं 05:43 से 08:16
वृषभ काल – सायं 07:11 से रात्रि 09:06 बजे तक
अमावस्या तिथि प्रारंभ – मध्यरात्रि 00:13 बजे, 19 अक्तूबर 2017
अमावस्या तिथि समाप्त – मध्यरात्रि 00:41 बजे, 20 अक्तूबर 2017
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