दीपावली पर बन रहा त्रिवेणी संयोग बेहद विशेष
#दीपावली पर बन रहा त्रिवेणी संयोग बेहद विशेष # नाम के अनुरूप यह भाग्य को उदय करने वाला #दीपावली पर 59 साल बाद गुरु और शनि का दुर्लभ योग #7 नवंबर को दीवाली, 59 साल बाद बन रहा है मंगल और शनि के दुर्लभ योग # इस दीवाली 3 राशि वालों की कुंडली पर माँ दुर्गा के पड़ रहे है चरण #Presented by- हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्तराखण्ड www.himalayauk.org
दीपावली बुधवार, 7 नवंबर को मनायी जाएगी, इस दिन कार्तिक मास की अमावस्या है। 7 नवंबर को दीपावली, 59 साल बाद बन रहे हैं मंगल और शनि के दुर्लभ योग, दिवाली पर महालक्ष्मी के साथ ही करें महाकाली की भी पूजा, दिवाली पर गुरु ग्रह मंगल के स्वामित्व वाली वृश्चिक राशि में रहेगा। मंगल ग्रह शनि के स्वामित्व वाली कुंभ राशिमें रहेगा। शनि ग्रह गुरु के स्वामित्व वाली राशि धनु में रहेगा। ये तीनों ग्रह एक-दूसरे की राशि में रहेंगे। दीपावली 2018 पर लगभग सभी बड़े ग्रहों की चाल बदलने वाली है। जिसका शुभ-अशुभ असर सभी राशियों पर रहेगा। 12 में से 8 राशियों के लिए अगला 1 साल बहुत अच्छा रहेगा। स्वाति 15वां नक्षत्र है। इसका स्वामी राहु यानी अंधकार है। कहा जाता है कि जिस प्रकार स्वाति नक्षत्र में ओस की बूंद सीप पर गिरती है तो मोती बनती है, ठीक उसी प्रकार इस नक्षत्र में जातक की ओर से किया कार्य उसे सफलता की चमक प्रदान करता है।
शुक्र अपनी खुद की तुला राशि में रहेगा। शुक्र इस राशि में होने से मालव्य योग बन रहा है। इस योग में शुरू किए गए कामों से धन-धान्य की वृद्धि होती है। इस वजह से दीपावली पर की गई पूजा बहुत जल्दी शुभ फल प्रदान कर सकती है। दीपावली की शाम गणेशजी, महालक्ष्मी और कुबेरदेव की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद हनुमानजी की पूजा करें।
राशियों का महत्व तो हर इंसान के जीवन में विशेष ही होता है, यदि ग्रहों की चाल से राशियाँ प्रभावित होती हैं तो उसके प्रभाव का सीधा असर देखने को मिलता है मनुष्यों के जीवन पर। राशियों द्वारा ही हम मनुष्य के स्वभाव और उसके आने वाले कल के बारे में जान सकते हैं उसका भविष्य कैसा होगा यह भी जान सकते हैं। इस दिवाली केवल 3 राशि वालों की कुंडली पर मां दुर्गा के चरण पड़ने वाले हैं और इसके कारण उनका आने वाला कल खुशहाल बीतने वाला है। जो कार्य अधूरे रह गए थे दिवाली में पूर्ण होने की पूरी संभावना है। देवी दुर्गा ऐसे ही किसी पर प्रसन्न नहीं होती हैं, इनकी कृपा पाने के लिए मनुष्य को बहुत कड़ी मेहनत करनी पड़ती है किंतु दिवाली पर कुछ ऐसे संयोग बन रहे हैं जिसके कारण देवी दुर्गा स्वयं इन 3 राशि वालों की कुंडली पर चरण रखने वाली है। कौन सी है वह 5 भाग्यशाली राशियाँ जिनके लिए यह दिवाली बहुत ही खास होने वाली है। उन राशियों के नाम है- मेष, कन्या और मीन। इन राशि वालों के लिए अब खुशियों के दिन आने वाले हैं।
हर इन्सान के जीवन में उसकी राशि के अनुसार ग्रहों में परिवर्तन होता रहता है. जिससे कई राशि वाले जातकों को फायदा होता है तो कई राशि के जातकों को उसका नुकसान उठाना पड़ता है. हर दिन लोगों की राशि के अनुसार उसके ग्रह बदलते हैं और जीवन में बदलाव आता है.
यूं तो कहा जाता है कि इंसान अपनी किस्म त अपने कर्मों से बनाता है लेकिन सितारे और ग्रह चाल भी इसमें अहम भूमिका निभाती है। तभी तो किसी दिन बहुत मुसीबतें सामने आती हैं तो कई बार काम आसानी से बन जाते हैं।
पाँच दिन का दीवाली उत्सव धनत्रयोदशी के दिन प्रारम्भ होता है और भाई दूज तक चलता है। दीवाली के दौरान अभ्यंग स्नान को चतुर्दशी, अमावस्या और प्रतिपदा के दिन करने की सलाह दी गई है।
चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान बहुत ही महत्वपूर्ण होता है जिसे नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। यह माना जाता है कि जो भी इस दिन स्नान करता है वह नरक जाने से बच सकता है। अभ्यंग स्नान के दौरान उबटन के लिए तिल के तेल का उपयोग किया जाता है।
अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान लक्ष्मी पूजा से एक दिन पहले या उसी दिन हो सकता है। जब सूर्योदय से पहले चतुर्दशी तिथि और सूर्योदय के बाद अमावस्या तिथि प्रचलित हो तब नरक चतुर्दशी और लक्ष्मी पूजा एक ही दिन हो जाते हैं। अभ्यंग स्नान चतुर्दशी तिथि के प्रचलित रहते हुए हमेशा चन्द्रोदय के दौरान (लेकिन सूर्योदय से पहले) किया जाता है।
अभ्यंग स्नान के लिए मुहूर्त का समय चतुर्दशी तिथि के प्रचलित रहते हुए चन्द्रोदय और सूर्योदय के मध्य का होता है। हम अभ्यंग स्नान का मुहूर्त ठीक हिन्दु पुराणों में निर्धारित समय के अनुसार ही उपलब्ध कराते हैं। सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर हम अभ्यंग स्नान के लिए सबसे उपयुक्त दिन और समय उपलब्ध कराते हैं।
नरक चतुर्दशी के दिन को छोटी दीवाली, रूप चतुर्दशी, और रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है।
अक्सर नरक चतुर्दशी और काली चौदस को एक ही त्योहार माना जाता है। वास्तविकता में यह दोनों अलग-अलग त्यौहार है और एक ही तिथि को मनाये जाते हैं। यह दोनों त्यौहार अलग-अलग दिन भी हो सकते हैं और यह चतुर्दशी तिथि के प्रारम्भ और समाप्त होने के समय पर निर्भर होता है।
ये योग व्यापार शुरू करने के लिए बहुत शुभ रहता है। व्यापार में लगातार उन्नति के योग बनते हैं। शुक्र के मालव्य योग में शुरू किए गए काम ऐश्वर्य, धन और सुख प्रदान करते हैं।
ग्लेमर वर्ल्ड से जुड़े लोगों के लिए ये योग फायदेमंद रहने वाला है। शुक्र के कारण इस क्षेत्र से जुड़े लोग विशेष सफलता हासिल करेंगे।
गुरु ग्रह मंगल की राशि में होने से जमीन से जुड़े काम करने वाले लोग लाभ में रहेंगे। शनि गुरु की राशि में होने से डॉलर के भाव कमी आने संभावना है। रुपया मजबूत हो सकता है। तेल के भाव भी कम हो सकते हैं। दीपावली पर सुबह महाकाली की पूजा करनी चाहिए। दोपहर में पितरों का पूजन और श्राद्ध आदि कर्म करना चाहिए। दीपावली की शाम गणेशजी, महालक्ष्मी और कुबेरदेव की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद हनुमानजी की पूजा करें।
नवंबर का महीना सभी राशियों के लिए खास है इस महीने दिवाली का त्योहार है। इस महीने का आरंभ ऐसे समय में हुआ है जब शुक्र ग्रह की चाल सीधी यानी मार्गी हुई है। महीने के मध्य में सूर्य का वृश्चिक राशि में आगमन होगा जहां गुरु और बुध के साथ इनका संयोग बनेगा।
हर साल कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को को दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इस दिन मां काली के साथ देवी लक्ष्मी, सरस्वती, गणपति और देवताओं के कोषाध्यक्ष धनकुबेर की पूजा की जाती है। धन-बुद्धि और विद्या की कामना के साथ देवपूजन का विशेष पर्व होता है दीपावली।
##############देहरादून, इण्डिया ################
बुधवार, ०७ नवम्बर २०१८
सूर्योदय : ०६:४०
सूर्यास्त : १७:२२
चन्द्रोदय : चन्द्रोदय नहीं
चन्द्रास्त : १७:३३
शक सम्वत : १९४० विलम्बी
विक्रम सम्वत : २०७५ विरोधकृत्
गुजराती सम्वत : २०७४
अमांत महीना : आश्विन
पूर्णिमांत महीना : कार्तिक
पक्ष : कृष्ण पक्ष
तिथि : अमावस्या – २१:३१ तक
नक्षत्र : स्वाती – १९:३७ तक
योग : आयुष्मान् – १७:५९ तक
प्रथम करण : चतुष्पाद – ०९:५६ तक
द्वितीय करण : नाग – २१:३१ तक
सूर्य राशि : तुला
चन्द्र राशि : तुला
राहुकाल : १२:०१ – १३:२१
गुलिक काल : १०:४१ – १२:०१
यमगण्ड : ०८:०० – ०९:२०
अभिजितमुहूर्त : कोई नहीं
दुर्मुहूर्त : ११:३९ – १२:२२
अमृत काल : १०:५६ – १२:३१
वर्ज्य : २५:१६+ – २६:५२+
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चौघड़िया का उपयोग किसी नये कार्य को प्रारम्भ करने के लिए शुभ समय देखने हेतु किया जाता है। परम्परागत रूप से चौघड़िया का उपयोग यात्रा के मुहूर्त के लिए किया जाता है लेकिन इसकी सरलता के कारण इसे अन्य मुहूर्त देखने के लिए भी उपयोग किया जाता है।
किसी शुभ कार्य को प्रारम्भ करने के लिए अमृत, शुभ, लाभ और चर, इन चार चौघड़ियाओं को उत्तम माना गया है और शेष तीन चौघड़ियाओं, रोग, काल और उद्वेग, को अनुपयुक्त माना गया है जिन्हें त्याग देना चाहिये।
सूर्योदय और सूर्यास्त के मध्य के समय को दिन का चौघड़िया कहा जाता है तथा सूर्यास्त और अगले दिन सूर्योदय के मध्य के समय को रात्रि का चौघड़िया कहा जाता है।
वार वेला, काल वेला एवं काल रात्रि के विषय में
यह माना जाता है कि वार वेला, काल वेला और काल रात्रि के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किये जाने चाहिये। वार वेला एवं काल वेला दिन के समय प्रचलित रहते हैं जबकि काल रात्रि, रात के समय प्रचलित रहती है। ऐसा माना जाता है कि इस समय कोई भी मंगल कार्य करना फलदायी नहीं होता है।
चौघड़िया नाम कैसे पड़ा?
हिन्दु धर्मं में, सूर्योदय से सूर्यास्त तथा सूर्यास्त से सूर्योदय के बीच के समय को ३०-३० घटी में बाँटा गया है। चौघड़िया मुहूर्त के लिए, उसी ३० घटी की समय अवधि को ८ भागों में विभाजित किया गया है। जिसके परिणामस्वरूप दिन और रात के दौरान ८-८ चौघड़िया मुहूर्त होते है। चूँकि प्रत्येक चौघड़िया मुहूर्त लगभग ४ घटी का होता है, इसलिए इसे चौघड़िया = चौ (चार) + घड़िया (घटी) के रूप में जाना जाता है। चौघड़िया मुहूर्त को चतुर्श्तिका मुहूर्त भी कहा जाता है।
शुभ चौघड़िया तथा राहु काल साथ हो तो क्या करें?
यह बिल्कुल सम्भव है कि शुभ चौघड़िया तथा राहु काल साथ हों। राहु काल को अनिष्टकारी माना जाता है। दक्षिण भारत में, मुहूर्त का चयन करते समय इसे अत्यधिक महत्व दिया जाता है। हालाँकि मुहूर्त के लिए राहु काल का कोई प्रामाणिक संदर्भ नहीं है, लेकिन उस शुभ चौघड़िया मुहूर्त को त्यागना ही बेहतर है जो राहु काल के साथ ओवरलैप करता हो।
क्या करें यदि वार वेला, काल वेला और रात्रि वेला शुभ चौघड़िया के साथ आते हैं?
यह बिल्कुल सम्भव है कि शुभ चौघड़िया वार वेला, काल वेला या काल रात्रि के साथ व्याप्त हो। चौघड़िया मुहूर्त का चयन करते समय, वार वेला, काल वेला और काल रात्रि के समय को त्याग दिया जाना चाहिए।
ऐसा माना जाता है कि वार वेला, काल वेला और काल रात्रि के दौरान किए गए सभी मांगलिक कार्य फलदायी नहीं होते हैं और वान्छित परिणाम नहीं देते हैं।
अच्छे या बुरे चौघड़िया को कैसे चिह्नित करें?
प्रत्येक दिन का पहला मुहूर्त उस दिन के ग्रह स्वामी द्वारा शासित होता है। उदाहरण के लिए, रविवार का, पहला चौघड़िया मुहूर्त सूर्य द्वारा शासित होता है। इसके बाद के मुहूर्त क्रमशः शुक्र, बुध, चन्द्रमा, शनि, बृहस्पति तथा मंगल द्वारा शासित होते हैं। दिन का अन्तिम मुहूर्त भी उस दिन के ग्रह स्वामी द्वारा शासित होता है।
इसलिए प्रत्येक चौघड़िया मुहूर्त का शुभ या अशुभ प्रभाव, स्वामी ग्रह की प्रकृति के आधार पर चिह्नित किया जाता है। वैदिक ज्योतिष में, शुक्र, बुध, चन्द्रमा और बृहस्पति के प्रभाव की समय अवधि को आमतौर पर शुभ माना जाता है। जबकि सूर्य, मंगल और शनि के प्रभाव की समय अवधि को आमतौर पर अशुभ माना जाता है। उपयुक्त जानकारी के आधार पर, हम प्रत्येक चौघड़िया मुहूर्त को शुभ या अशुभ के रूप में चिह्नित कर सकते हैं। यह ध्यान दिए जानें योग्य है कि अशुभ चौघड़िया मुहूर्त भी कुछेक कार्यों के लिए उचित हो सकते हैं।
उद्वेग चौघड़िया
वैदिक ज्योतिष में, सूर्य को एक अनिष्टकारी ग्रह माना गया है। इसलिए इसका प्रभाव आमतौर पर अशुभ माना जाता है और उद्वेग के रूप में चिह्नित किया जाता है। हालाँकि, सरकारी कार्यों के लिए, उद्वेग चौघड़िया को अच्छा माना जाता है।
चर चौघड़िया
वैदिक ज्योतिष में, शुक्र को एक लाभकारी ग्रह माना गया है। इसलिए इसका प्रभाव आमतौर पर शुभ माना जाता है और चर या चन्चल के रूप में चिह्नित किया जाता है। शुक्र की चर प्रकृति के कारण, चर चौघड़िया को यात्रा उद्देश्य के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।
लाभ चौघड़िया
वैदिक ज्योतिष में, बुध को एक लाभकारी ग्रह माना गया है। इसलिए इसका प्रभाव आमतौर पर शुभ माना जाता है और लाभ के रूप में चिह्नित किया जाता है। लाभ चौघड़िया को शिक्षा शुरू करने हेतु तथा नया कौशल प्राप्त करने हेतु सबसे उपयुक्त माना जाता है।
अमृत चौघड़िया
वैदिक ज्योतिष में, चन्द्रमा को एक लाभकारी ग्रह माना गया है। इसलिए इसका प्रभाव आमतौर पर शुभ माना जाता है और अमृत के रूप में चिह्नित किया जाता है। अमृत चौघड़िया को सभी प्रकार के कार्यों के लिए अच्छा माना जाता है।
काल चौघड़िया
वैदिक ज्योतिष में शनि को एक अनिष्टकारी ग्रह माना गया है। इसलिए इसका प्रभाव आमतौर पर अशुभ माना जाता है और काल के रूप में चिह्नित किया जाता है। काल चौघड़िया के दौरान कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है। हालाँकि, धन अर्जन हेतु की जाने वाली गतिविधियों के लिए काल चौघड़िया उपयुक्त है।
शुभ चौघड़िया
वैदिक ज्योतिष में, बृहस्पति को एक लाभकारी ग्रह माना गया है। इसलिए इसका प्रभाव आमतौर पर शुभ माना जाता है और शुभ के रूप में चिह्नित किया जाता है। शुभ चौघड़िया को विशेष रूप से विवाह समारोह आयोजित करने के लिए उपयुक्त माना जाता है।
रोग चौघड़िया
वैदिक ज्योतिष में, मंगल को एक अनिष्टकारी ग्रह माना गया है। इसलिए इसका प्रभाव आमतौर पर अशुभ माना जाता है और रोग के रूप में चिह्नित किया जाता है। रोग चौघड़िया के दौरान कोई शुभ काम नहीं किया जाता है। हालाँकि, युद्ध और दुश्मन को हराने के लिए रोग चौघड़िया की अनुशंसा की जाती है।
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