‘दीपावली’; अर्धरात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आती
अर्धरात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं – दीपावली की रात में “काली पूजन” भी किया जाता है तथा इस रात को “महानिशा” भी कहा जाता है |लगभग आधी रात के समय कई लोग किसी भी एक मन्त्र का एक अथवा आधे घंटे तक निरंतर जाप करते हैं जिसे अत्यंत पुण्यकारी माना गया है | Execlusive Article; www.himalayauk.org (UK Leading Digital Newsportal) CS JOSHI- EDITOR
हिंदुओं में इस दिन लक्ष्मी के पूजन का विशेष विधान है। रात्रि के समय प्रत्येक घर में धनधान्य की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मीजी विचरण करती है,
विघ्न-विनाशक गणेश जी और विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती देवी की पूजा की जाती है ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या की इस अंधेरी रात्रि अर्थात अर्धरात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध होता है वहां निवास करती है-
‘दीपावली’ हिन्दुओं का प्रसिद्ध त्यौहार है। दीवाली को ‘दीपावली’ भी कहते हैं। ‘दीपावली’ का अर्थ होता है – ‘दीपों की माला या कड़ी’। दीपावली का अर्थ है – दीपों की पंक्तियां। दीपावली के दिन प्रत्येक घर दीपों की पंक्तियों से शोभायमान रहता है। दीपों, मोमबत्तियों और बिजली की रोशनी से घर का कोना-कोना प्रकाशित हो उठता है। इस पावन-पर्व को मनाने के पीछे एक अत्यंत गौरवमय इतिहास है |कहते हैं कि त्रेता युग में अयोध्या के राजा; राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र जिन्हें संसार “मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ” के नाम से जानता है,जब पिता की वचन-पूर्ति के लिए चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके अपनी पत्नी सीता जी एवं अनुज लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे तो नगर वासियों ने उनके स्वागत के लिए, अपनी खुशी प्रदर्शित करने के लिए तथा अमावस्या की रात्रि को भी उजाले से भरने के लिए घी के दीपक जलाये थे |
दीवाली प्रकाश का त्यौहार है। यह हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह की अमावस्या को मनाई जाती है। दीवाली में लगभग सभी घर एवं रास्ते दीपक एवं प्रकाश से रोशन किये जाते हैं।
दीवाली का त्यौहार मनाने का प्रमुख कारण है कि इस दिन भगवान् राम, अपनी पत्नी सीता एवं अपने भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास बिताकर अयोध्या लौटे थे। उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने दिये जलाकर प्रकाशोत्सव मनाया था। इसी कारण इसे ‘प्रकाश के त्यौहार’ के रूप में मनाते हैं।
दीवाली के दिन सभी लोग खुशी मनाते हैं एवं एक-दूसरे को बधाईयाँ देते हैं। बच्चे खिलौने एवं पटाखे खरीदते हैं। दुकानों एवं मकानों की सफाई की जाती है एवं रंग पुताई इत्यादि की जाती है। रात्रि में लोग धन की देवी ‘लक्ष्मी’ की पूजा करते हैं। यह त्योहार अपने साथ ढेरों खुशियां लेकर आता है। एक-दो हफ्ते पूर्व से ही लोग घर, आंगन, मोहल्ले और खलिहान को दुरुस्त करने लगते हैं। बाजार में रंग-रोगन और सफेदी के सामानों की खपत बढ़ जाती है। दीपावली के दिन भारत में विभिन्न स्थानों पर मेले लगते हैं। दीपावली एक दिन का पर्व नहीं अपितु पर्वों का समूह है। दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग नए-नए वस्त्र सिलवाते हैं।…
वनवास के मध्य ही लंका का राजा रावण श्री राम की भार्या सीता जी का हरण करके उन्हें लंका ले गया था और तब हनुमान, अंगद, सुग्रीव,जामवंत एवं विशाल वानर सेना के सहयोग से समुद्र पर सेतु-निर्माण कर ,लंका पर आक्रमण करके उन्होंने रावण जैसे आततायी का वध कर धर्म की स्थापना की थी तथा सम्पूर्ण मानव जाति को यह संदेश दिया कि-
आतंक चाहे कितना भी सिर उठाने की कोशिश करे तो भी उसका अंत निश्चित है|” और “बुराई पर अच्छाई सदा भारी हुआ करती है|
इस स्मृति में हर वर्ष दशहरा मनाया जाता है जो “विजय दशमी” के नाम से भी विख्यात है और दशहरे के लगभग बीस दिन बाद ही दीपावली आती है |
इस पावन इतिहास के अतिरिक्त जैन धर्म के अनुयायिओं का मत है कि दीपावली के ही दिन महावीर स्वामी जी को निर्वाण मिला था |सिक्ख धर्म को मनानेवाले कहते हैं कि इसी दिन उनके छठे गुरु श्री हर गोविन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था | यह त्यौहार भारत के लगभग सभी प्रान्तों में अत्यंत हर्षोल्लास के साथ कार्तिक मास की अमावस्या पर, तीन दिनों तक मनाया जाता है |अमावस्या से दो दिन पहले, त्रयोदशी ‘धनतेरस’ के रूप में मनाई जाती है | घरों में स्वच्छता एवं साफ़–सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है | दरअसल, इस दिन भगवान् धन्वन्तरी जी का प्रागट्य हुआ था जो सबको आरोग्य देते हैं लेकिन कालांतर में यह दिन कोई न कोई नया बर्तन, सोना ,चांदी आदि खरीदने के रूप में विख्यात हो गया |
तत्पश्चात् ,अगला दिन चतुर्दशी- ‘नरक-चतुर्दशी’ या छोटी दीपावली के नाम से प्रसिद्ध है |कहते है कि इस दिन भगवान् श्री कृष्ण ने नरकासुर नाम के दैत्य का वध किया था | तीनों ही दिन रात्रि में दीप जलाए जाते हैं |दीपावली के दिन लक्ष्मी जी एवं गणेश जी का पूजन अत्यंत श्रद्धा एवं आस्था के साथ किया जाता है| तरह–तरह के व्यंजन एवं खील बताशों से उन्हें भोग लगाया जाता है | सब लोग नये वस्त्र पहनते हैं |खूब पटाखे चलाते हैं | अपने रिश्तेदारों एवं मित्रों को शुभ-कामनाएं एवं उपहार देते हैं, मिठाई खिलाते हैं |
दीपावली की रात में “काली पूजन” भी किया जाता है तथा इस रात को “महानिशा” भी कहा जाता है |लगभग आधी रात के समय कई लोग किसी भी एक मन्त्र का एक अथवा आधे घंटे तक निरंतर जाप करते हैं जिसे अत्यंत पुण्यकारी माना गया है | दीपावली-पूजन के साथ ही व्यापारी नये बही-खाते प्रारम्भ करते हैं और अपनी दुकानों, फैक्ट्री ,दफ़्तर आदि में भी लक्ष्मी-पूजन का आयोजन करते हैं |खूब मिठाइयाँ बांटते हैं | एक बात अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि दीपावली पर एक दीये से ही दूसरा दीया जलाया जाता है और यह संदेश स्वतः ही प्रसारित हो जाता है कि-
जोत से जोत जलाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो|
भले ही यह त्यौहार पूरे भारत में बेहद भव्य रूप से मनाया जाता है फिर भी गुजरात में दीपावली की छटा निराली ही होती है | दीपावली से चार दिन पहले; एकादशी से प्रारम्भ करके, दीपावली के दो दिन बाद तक यानि कि भाई-दूज तक दीपावली की रोशनी से हर घर ,गली,चौराहा जगमगाते रहते हैं | पकवान तो इतने बनाये जाते हैं कि जैसे माँ अन्नपूर्णा ने अपने भंडार ही खोल दिए हों |
रंग-बिरंगी ‘रंगोली’ हर द्वार की शोभा में चार चाँद लगाती है | फूलों, आम के अथवा अशोक वृक्ष के पत्तों से बने तोरणों से घरों के मुख्य द्वार सजाये जाते हैं | पटाखों की भी काफी भरमार होती है | दीपावली से अगला दिन “नव वर्ष” के रूप में मनाया जाता है ,सब एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं |
स्मरणीय है कि नववर्ष के दिन सूर्योदय से पूर्व ही गलियों में नमक बिकने आता है जिसे “बरकत” के नाम से पुकारते हैं और वह नमक सभी लोग खरीदा करते हैं | उससे अगले दिन “भाईदूज” का त्यौहार मनाया जाता है | बहन अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगाकर उसकी सलामती की प्रार्थना करती हैं |यह त्योहार उत्तर भारत में भी बड़ी आस्था से सम्पन्न होता है तथा इस त्योहार को “यम द्वितीया” के नाम से भी जाना जाता है |
तमिलनाडु में दीपावली का यह त्यौहार कुछ अलग लेकिन अनोखे तरीके से मनाया जाता है |यहाँ अमावस्या की बजाये “नरक-चतुर्दशी” वाले दिन , भगवान् श्री कृष्ण द्वारा नरकासुर को मारे जाने की खुशी में स्थानीय लोग दीपावली मनाते हैं | लोग, इस दिन बड़े उत्साहपूर्वक ब्रह्ममूर्त में जाग कर ,तेल से मालिश करके , स्नानोपरांत मन्दिरों में जाकर भव्य पूजा-अर्चना करते हैं |नये वस्त्र पहनने का इस दिन एक विशेष महत्त्व होता है |सबसे पहले घर का मुखिया स्नान करता है और तब वह, वे नये वस्त्र जो कि पहले से ही खरीद कर घर के पूजा स्थल में रखे गये होते हैं ,घर के सभी अन्य सदस्यों को देता है ताकि वे सब इन्हें धारण कर सकें | अन्य प्रान्तों की तरह यहाँ, इस त्योहार पर अपने-अपने घरों में न तो लक्ष्मी पूजन किया जाता है और न दीये अथवा मोमबत्तियां जलाई जाने की ही परम्परा है |पकवानों की भरमार होती है तथा हर द्वार चावल के आटे से बनाई गयी रंगोली से अति मन मोहक दिखाई देता है | खूब पटाखे चलाये जाते हैं |
अन्ततः, मैं यही कहना चाहती हूँ कि हम दीपावली का परम-पावन त्यौहार खूब उत्साह से मनाकर अपनी संस्कृति को बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं लेकिन ऐसे सुंदर अवसरों पर यह चर्चा करना अक्सर भूल जाया करते हैं कि कैसे भगवान् श्री राम ने अपने जीवन में संघर्षों का बहादुरी से सामना किया और सत्य एवं धर्म के मार्ग पर चलने के लिए जीवन के सब सुखों को दाँव पर लगा दिया | सच मानिये त्यौहार के माध्यम से यदि हम आपसी वैमनस्य को छोड़कर, अपने जीवन में एक भी दिव्य गुण को विकसित कर ; उसे निरंतर पोषित करते रहने का उत्साह बनाये रख सकें, तभी हम सच्चे अर्थों में त्यौहार मनाते हैं |
कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए।…
जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है। सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मन्दिर का…
नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है। पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ।