दिवाली; तंत्र-मंत्र की रात, अदृश्य शक्तिया जाग्रत हो जाती है
विशेष आलेख- हिमालयायूके न्यूज पोर्टल की प्रस्तुति-
दीपावली की रात- तंत्र शास्त्र की महारात्रि
दीपावली को सबसे बड़ी रात कहा माना गया है। दिवाली है तंत्र-मंत्र की रात, अदृश्य शक्तिया जाग्रत हो जाती है- श्रेष्ठ। गुरूजन अपने भक्तोि को दीपावली पर अनेक प्रकार के शास्त्रीय कवच अपनाकर व यंत्र पहनकर ऐसी नकारात्मक शक्तियों से बचाते है। इस दिन का साधक और तांत्रिक बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं। गणेश-लक्ष्मी पूजन के अलावा तंत्र-मंत्र-यंत्र की सिद्धि भी दीपावली की रात परवान चढ़ेगी। इस रात कुछ ही समय में सिद्धि प्राप्ति के लिए साधक रातभर हवन, यज्ञ, जाप आदि करेंगे। साधक दीपावली की रात को शाक्त शक्ति का विशेष रूप से आवाहन करते हैं ताकि पूजा करके अपनी शक्तियों को बढ़ा सकंे।
तंत्र शास्त्रत की महारात्रि होती है, मूहुर्तो में सर्वाधिक प्रबल मुर्हूत है धनतेरस, दीपावली की रात, दशहरा, नवरात्रि तथा महाशिवरात्रि, दीपावली की रात को तंत्र शास्त्र की महारात्रि कहा जाता है, तंत्रशास्त्र का संबंध ऋग्वेरद काल से माना जाता है, अर्थववेद में भी इसका वर्णन है ; ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यह सभी कर्म रात्रि के समय किए जाते हैं अर्थात सूर्य के अभाव में। जब महामावस्या अर्थात दीपावली पर चंद्रमा बलहीन हो जाता है तभी अभिचार कर्मा अपने परचम पर होता है।
तंत्र मंत्र साधना के लिए तो दीपावली की रात एक कुबेर का खजाना सिद्ध होती है | दीपावली पर तंत्र प्रयोग कर साधक कई तरह की सिद्धि को प्राप्त करता है | इन सिद्धि को प्राप्त कर साधक अपने मनवांछित कार्यो को पूरा करने में सक्षम हो सकता है | इस रात को किए गए किसी भी तंत्र साधना का फल अन्य किसी भी रात से अधिक मिलता है | इस लिए साधक ज्यादा बढ़ चढ़कर इस क्रिया को सम्पन्न करना चाहते हैं |
तंत्र शास्त्र के अनुसार अगर इस दिन कुछ विशेष उपाय किए जाएं या कुछ विशेष वस्तुओं को घर में रखा जाए तो मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और उपाय करने वाले को मालामाल भी कर सकती हैं।
दीपावली के पांच दिनों में खास करके धनतेरस, रूप चौदस और दीपावली के दिन कई तांत्रिक अनेक प्रकार की तंत्र साधनाएं करते हैं। वे कई प्रकार के तंत्र-मंत्र अपना कर शत्रुओं पर विजय पाने, गृह शांति बढ़ाने, लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने तथा जीवन में आ रही कई तरह की बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए विचित्र टोने-टोटके अपनाते है।
नरक चतुर्दशी को काली चौदस भी माना जाता है। इस रात कई तांत्रिक काली रात को चिरागों की रोशनी तले रोशन करके कई सफल तंत्र साधनाएं करने में कामयाब होते है।
कुबेर के संबंध में लोकमानस में एक जनश्रुति प्रचलित है। कहा जाता है कि पूर्वजन्म में कुबेर चोर थे- चोर भी ऐसे कि देव मंदिरों में चोरी करने से भी बाज न आते थे। एक बार चोरी करने के लिए एक शिव मंदिर में घुसे। तब मंदिरों में बहुत माल-खजाना रहता था। उसे ढूंढने-पाने के लिए कुबेर ने दीपक जलाया लेकिन हवा के झोंके से दीपक बुझ गया। कुबेर ने फिर दीपक जलाया, फिर वह बुझ गया। जब यह क्रम कई बार चला, तो भोले-भाले और औघड़दानी शंकर ने इसे अपनी दीपाराधना समझ लिया और प्रसन्न होकर अगले जन्म में कुबेरको धनपति होने का आशीष दे डाला।
देवी लक्ष्मी इस रात अपनी बहन दरिद्रा के साथ भू-लोक की सैर पर आती हैं। जिस घर में साफ-सफाई और स्वच्छता रहती है, वहां मां लक्ष्मी अपने कदम रखती हैं और जिस घर में ऐसा नहीं होता वहां दरिद्रा अपना डेरा जमा लेती है।
तंत्र वास्तव में एक शुद्ध विज्ञान है। सच्चाई तो यह है कि यह कोई ईश्वरीय वरदान, अलौकिक शक्ति या रहस्मयी विद्या नहीं है, वरन् सिद्धांतों, नियमों तथा साधना पर आधारित एक विशिष्ट क्रियाविधि है। तंत्र साधना एक वैज्ञानिक साधना है।
आचार्य कमल नंदलाल कहते है कि तंत्रशास्त्र गुप्त इस कारण है कि अनाधिकारी लोग इसे प्रयोग न कर सकें। साधना और उसके विधि-विधान को गुप्त रखने के अनेक आध्यात्मिक कारण है। तंत्रशास्त्र में अनेक विधान हैं जैसे की टोना, टोटका, उपाय, उतारा, साधना सिद्धि आदि। टोना का उपयोग शत्रु के अनिष्ट के लिए होता है। जबकि टोटका स्वार्थ पूर्ति के लिए ही किया जाता है। तंत्रशास्त्र का उपयोग त्यौहारों के आते ही आरंभ हो जाता है मगर तंत्रशास्त्र अनुसार दीपावली पर किए गए टोटके अत्यधिक प्रभावशाली होते हैं। दीपावली पर मंत्र जगाए जाते हैं व विशेष सिद्धियों पर विजय पाई जाती है।
संसार की रचना के साथ ही कई चीजों का अविष्कार हुआ है। जैसे-जैसे मनुष्य ने उन्नति की अपने स्वार्थ, पुरुषार्थ, परोपकार के लिए कुछ न कुछ खोजता रहा, ये जिज्ञासा संसार में सदैव प्रबल रही है। कई ऐसे सिद्धिप्रद मुहुर्त होते हैं जिनमें तंत्रशास्त्र में रुचि लेने वाले तथा इसके प्रकांड ज्ञाता तंत्र-मंत्र की सिद्धि, प्रयोग, व अनेक क्रियाएं करते हैं। इन महूर्तों में सर्वाधिक प्रबल महूर्त हैं धनतेरस, दीपावली की रात, दशहरा, नवरात्र व महाशिवरात्री। इसमें दीपावली की रात्र को तंत्रशास्त्र की महारात्रि कहा जाता है।
बदलते समय के साथ दीपावली पर होने वाले टोने-टोटके और तांत्रिक गतिविधियों में अब कई तरह के बदलाव आ गए हैं। माना जाता है कि दीपावली के पांच दिनों में खास करके दीपावली की रात्रि कई तांत्रिक अनेक प्रकार की तंत्र साधनाएं करते हैं। वे कई प्रकार के तंत्र-मंत्र अपना कर शत्रुओं पर विजय पाने, गृह शांति बढ़ाने, लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने तथा जीवन में आ रही कई तरह की बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए विचित्र टोने-टोटके अपनाते हैं।
मान्यतानुसार दीपावली की महारात्रि देवी लक्ष्मी अपनी बहन दरिद्रा के साथ भू-लोक की सैर पर आती हैं। जिस घर में साफ-सफाई और स्वच्छता रहती है, वहां मां लक्ष्मी अपने कदम रखती हैं और जिस घर में ऐसा नहीं होता वहां दरिद्रा अपना डेरा जमा लेती है। जादू-टोना, व टोटका आदि का संबंध ऋग्वेदकाल से माना जाता है। अथर्ववेद में भी इन विषयों का वर्णन है। कई स्थानों पर नवरात्र आरंभ होते ही लोग सजग हो जाते हैं तथा उनकी यह सजगता दीपावली के खत्म होने तक बनी रहती है। यहां तक की घर में बुजुर्ग स्त्रियों द्वारा भी घरेलू टोटके अपनाए जाते हैं। यह केवल गांवों ओर कस्बों तक ही सीमित नहीं बल्कि छोटे-बड़े शहरों में भी किए जाते हैं। त्यौहारों के मौसम में जब किसी दूसरे के घर से मिष्ठान आता है तो घर की महिलाएं उससे चुटकी भर पकावान निकाल कर फेंक देती हैं। इसके बाद ही वह पारिवारिक सदस्यों को खाने के लिए देती हैं। उनका मानना होता है कि अगर खाने में कोई टोना-टोटका किया गया होगा तो परिजनो पर इसका दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा।
कुछ परिवारों में नजर उतारने हेतु थोड़ा सा नमक हाथों में लेकर नजर लगने वाले से उतारा जाता है और बाद में इसे पानी में बहा दिया जाता है। मान्यता है कि इस टोटके से बुरी बलाएं पास नहीं फटकती। लड़कियों को बाल खोल कर न घूमने की हिदायत दि जाती है। यहां तक कि घर में छत या सुनसान जगहों पर खेलने की इजाजत नहीं देते।
मान्यतानुसार टोना सिद्ध करना मंत्र सिद्ध करने की अपेक्षा कठिन होता है। मंत्र को पढ़ उसे फेंका जाता है जबकि टोना केवल संकेत मात्र से काम कर जाता है। मंत्र को सिद्ध करने हेतु मांस-मदिरा की आवश्यकता पड़ती है। टोना सिद्ध करने हेतु विभिन्न जानवरों के मल-मूत्र की आवश्यकता होती है। मंत्र झाड़ने हेतु पलीते का उपयोग होता है। टोना झाड़ने हेतु मोर पंख या झाड़ू का उपयोग होता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यह सभी कर्म रात्रि के समय किए जाते हैं अर्थात सूर्य के अभाव में। जब महामावस्या अर्थात दीपावली पर चंद्रमा बलहीन हो जाता है तभी अभिचार कर्मा अपने परचम पर होता है।
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