25 नवंबर 2020, दिन बुधवार- इस दिन का महत्व स्वयं ब्रह्मा जी ने नारद को बताया था
देव उठनी एकादशी 25 नवंबर 2020, दिन बुधवार को है। इस बारे में विशेष जानकारी के लिए आप मो0 9412932030 पर मैसेज कर सकते हैं, जहां से आपको विस्तार से जानकारी भेज दी जायेगी,
Dev Uthani Ekadashi 2020, 25 NOV. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रीहरि विष्णु इसी दिन राजा बलि के राज्य से चातुर्मास का विश्राम पूरा करके बैकुंठ लौटे थे, इस एकादशी को कई नामों से जाना जाता है जिनमें देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी प्रमुख हैं. इस साल देवउठनी एकादशी 25 नवंबर, बुधवार को है. इस दिन से सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं. इस एकादशी तिथि को तुलसी विवाह किया जाता है. देवउठनी एकादशी के दिन से घरों में मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं.
भगवान विष्णु आषाढ़ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को सोते हैं और कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागते हैं, इसीलिए इस एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में सोने के 4 महीने बाद जागते हैं। इन चार महीनों की अवधि के दौरान, कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। इस देवउठनी एकादशी के बाद से, जब श्री हरि जागते हैं, सभी धार्मिक और शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं।
Devotthan Ekadashi 2020: देव उठनी एकादशी जिसे प्रबोधनी एकादशी भी कहा जाता है। इस एकादशी को पाप मुक्त करने वाली एकादशी माना जाता है। सभी एकादशी व्रत पापों से मुक्त होने हेतु किए जाते हैं। लेकिन इस एकादशी का महत्व बहुत अधिक माना जाता है। राजसूर्य यज्ञ करने से जिस पुण्य की प्राप्ति होती है उससे कई गुना अधिक पुण्य देव उठनी एकादशी का होता है। इस दिन से चार माह पूर्व देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और अन्य देवता क्षीर सागर में जाकर सो जाते हैं। इसी कारणवश इन दिनों में पूजा-पाठ, तप एवं दान के कार्य होते हैं और इन दिनों में शादी-विवाह, मुडंन संस्कार, नामकरण संस्कार जैसे मांगलिक और बड़े कार्य नहीं किए जाते हैं। ये सभी कार्य देव उठनी, प्रबोधनी एकादशी से शुरू होते हैं। इस दिन तुलसी विवाह का भी महत्व होता है और इस दिन तुलसी विवाह भी किया जाता है। और इस प्रकार पूरे देश में शादी-विवाह के उत्सव शुरू हो जाते हैं। कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की ग्यारस के दिन देव उठनी ग्यारस एवं प्रबोधनी एकादशी मनाई जाती है। यह दिन दिवाली के ग्यारहवें दिन आता है। और इस दिन से सभी मंगल कार्यों का प्रारंभ हो जाता है। इस साल यानि 2020 में देव उठनी एकादशी 25 नवंबर 2020, दिन बुधवार को मनाई जाएगी।
कार्तिक मास में देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु चार माह के बाद योगनिन्द्रा से जागते है। इस दौरान लोग अपने-अपने घरों और मंदिरों आदि में भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करके उनका स्वागत करते हैं। और भगवान विष्णु के योगनिन्द्रा से जागने के बाद ही हिन्दू धर्म में सभी प्रकार के मांगलिक कार्यों की शुरूआत होती है।
देव उठनी एकादशी के दिन किस लोकगीत को गाकर भगवान विष्णु का स्वागत किया जाता है।
उठो देव, जागो देव देव उठेंगे कार्तिक मास, कार्तिक मास, नई है टोकरी नई है कपास, नई है कपास जारे मूसे दाव कटाए, दाव कटाए दाव कटाए जब जेबरी बटाए, जेबरी बटाए जेबरी बटाए जब खाट बुनाए, खाट बुनाए खाट बुनाए जब बामन देयो, बामन देयो बामन देयो गोरी गाय, गोरी गाय माय पूजे धीए खिलाए वा को पुन्य अखंड जाए भाभी पूजे नंदुल खिलाए या को पुन्य महाफल होए भुडभुडइया को आयो ताज राज करें आशीष को बाप भुडभुडइया को आयो ताज राज करें अजीत को बाप ओरे कोरे धरे चपेटा, धरे चपेटा गुलाबो राज करें तेरे ही बेटा, तेरे ही बेटा ओरे कोरे धरे मजीरा, धरे मजीरा ये हैं बहनो तुम्हारे ही बीरा, तुम्हारे ही बीरा उठे देव, जगे देव, देव उठ गए कार्तिक मास।
हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का महत्व सबसे अधिक माना जाता है। इसका कारण यह है कि इस दिन सूर्य एवं अन्य ग्रह अपनी स्थिति में परिवर्तन करते हैं। जिसका मनुष्य की इंद्रियों पर प्रभाव पड़ता है। इन प्रभाव में संतुलन बनाए रखने के लिए व्रत का सहारा लिया जाता है। व्रत एवं ध्यान ही मनुष्य में संतुलित रहने का गुण विकसित करते हैं। इसे पाप -विनाशनी एवं मुक्ति देने वाली एकादशी भी कहा जाता है।
देवउठनी एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि का प्रारंभ होगी – 25 नवंबर 2020 बुधवार सुबह 2
बजकर 42 मिनट
से
एकादशी तिथि की समाप्ति होगी – 26 नवंबर 2020 गुरुवार सुबह 5
बजकर 10 मिनट
पर
देवउठनी एकादशी पारण करने का अवधि: 2 घंटे 6 मिनट का होगा जो कि 26
नवंबर (दोपहर 01:11 से
दोपहर 03:17 तक) हरि वासर अंत क्षण: 26 नवंबर,
दोपहर 11:51 पर
पुराणों में लिखा है कि इस दिन के आने से पहले तक गंगा स्नान का महत्व होता है। इस दिन उपवास रखने का पुण्य कई तीर्थों में दर्शन के पुण्य से अधिक तथा 100 अश्वमेध यज्ञ और कई राजसूर्य यज्ञ करने के बराबर माना गया है।
इस दिन का महत्व स्वयं ब्रह्मा जी ने नारद को बताया था। उन्होंने कहा था कि इस दिन एकादशी करने से एक जन्म, रात्रि बोध से दो जन्म एवं पूर्ण व्रत पालन करने से कई जन्मों के पापों का नाश होता है। इस दिन से कई जन्मों का उद्धार होता है। एवं बड़ी से बड़ी मनोकामना पूर्ण होती है। इस दिन रतजगा करने से कई पीढ़ियों को मरणोपरांत स्वर्ग मिलता है। इस दिन जागरण का बहुत अधिक महत्व होता है। इससे मनुष्य इंद्रियों पर विजय पाने योग्य बनता है। इस व्रत की कथा सुनने और पढ़ने से 100 गायों के दान के बराबर पुण्य मिलता है। किसी भी व्रत का फल तभी प्राप्त होता है जब वह नियम पूर्वक विधि विधान के साथ किया जाएं।
:हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा जी ने देव उठनी और प्रबोधनी एकादशी का महत्व नारद जी को बताया था। और नारद से कार्तिक मास में इस एकादशी के व्रत का पालन करने को कहा था। हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का महत्व सबसे अधिक माना जाता है। ऐसा बताया जाता है कि इस व्रत की कथा सुनने और पढ़ने से 100 गायों के दान के बराबर पुण्य मिलता है। तो आइए आप भी जानें देव उठनी एकादशी की तिथि और पूजा विधि के बारे में। देव उठनी एकादशी 2020 साल 2020 में देव उठनी एकादशी 25 नवंबर 2020, दिन बुधवार को मनाई जाएगी। देव उठनी एकादशी की पूजा विधि देव उठनी एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्य कर्म, स्नान आदि करना चाहिए। सूर्योदय के पूर्व ही व्रत का संकल्प लेकर, पूजा करके सूर्योदय होने पर भगवान सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए।
वामन पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी थी। भगवान ने पहले पग में पूरी पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरा पग बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर रखने को कहा। इस तरह दान से प्रसन्न होकर भगवान ने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया और वर मांगने को कहा। बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में निवास करें। तब भगवान ने बलि की भक्ति देखते हुए चार महीने तक उसके महल में रहने का वरदान दिया। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी एकादशी तक पाताल में बलि के महल में निवास करते हैं।
देव उठनी एकादशी के दिन स्नान के लिए नदी अथवा कुंए पर जाएं तो अति उत्तम होता है। और इस दिन निराहार व्रत किया जाता है। दूसरे दिन ग्यारस की पूजा करने के बाद व्रत पूर्ण माना जाता है। एवं उसके बाद ही भोजन ग्रहण किया जाता है। कई लोग इस दिन रतजगा करके हंसते-गाते और भजन करते हैं। इस दिन बेलपत्र, शमी पत्र और तुलसी पत्र चढ़ाने का महत्व होता है। देव उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधनी एकादशी तुलसी विवाह का भी महत्व होता है। और इस दिन के बाद से शादी-विवाह के शुभ मुहूर्त शुरू हो जाते हैं। बहुत से लोग इस दिन गन्नों की झोपड़ी बनाकर भी पूजा करते हैं। और इस सीजन में जितने भी फल आते हैं उन सब की भी पूजा इस देव उठनी ग्यारस के दिन की जाती है।
देवउठनी एकादशी की कथा
एक समय देवी लक्ष्मी ने भगवान नारायण से पूछा- हे भगवान! या तो आप दिन-रात जागते रहते हैं, या लाखों वर्षों तक गहरी नींद में रहते हैं! यह दुनिया को असंतुलित करता है और सब कुछ नष्ट कर देता है, आगे बढ़ रहा है या नहीं। इसलिए, बेहतर होगा कि आप हर साल समय पर सोएं। इससे मुझे कुछ समय के लिए आराम भी मिलेगा। नारायण मुस्कुराए और देवी लक्ष्मी से कहा- देवी! आपने सही कहा! मेरे कारण सभी देवताओं और विशेष रूप से आपको समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आप आराम करने और सोने के लिए भी समय नहीं निकाल पाते। इसलिए, अब से, मैं हर साल बारिश के मौसम में चार महीने तक सोऊंगा। उस अवधि के दौरान, आप और अन्य भगवान आराम कर सकते हैं। प्रलय कालीन काल (जब दुनिया खत्म होगी) को मेरी गहरी नींद (महा निंद्रा) कहा जाएगा। चार महीने की नींद मेरी छोटी नींद (अल्पा निंद्रा) होगी और मेरे भक्तों के लिए बहुत शुभ होगी। इस समय के दौरान, जो भक्त मेरे सोने और जागने के उत्सव का आयोजन करते हुए मुझे समर्पित और जोश से सेवा करेंगे; मैं तुम्हारे साथ उनके घरों में निवास करूंगा।
क्यों भगवान विष्णु ने किया था तुलसी से विवाह?
शंखचूड़ नामक दैत्य की पत्नी वृंदा अत्यंत सती थी. बिना उसके सतीत्व को भंग किए शंखचूड़ को परास्त कर पाना असंभव था. श्री हरि ने छल से रूप बदलकर वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया और तब जाकर शिव ने शंखचूड़ का वध किया. वृंदा ने इस छल के लिए श्री हरि को शिला रूप में परिवर्तित हो जाने का शाप दिया. श्री हरि तबसे शिला रूप में भी रहते हैं और उन्हें शालिग्राम कहा जाता है. इन्ही वृंदा ने अगले जन्म में तुलसी के रूप में पुनः जन्म लिया था. श्री हरि ने वृंदा को आशीर्वाद दिया था कि बिना तुलसी दल के कभी उनकी पूजा सम्पूर्ण ही नहीं होगी. जिस प्रकार भगवान शिव के विग्रह के रूप में शिवलिंग की पूजा की जाती है. उसी प्रकार भगवान विष्णु के विग्रह के रूप में शालिग्राम की पूजा की जाती है. शालिग्राम एक गोल काले रंग का पत्थर है जो नेपाल के गण्डकी नदी के तल में पाया जाता है. इसमें एक छिद्र होता है और पत्थर के अंदर शंख, चक्र, गदा या पद्म खुदे होते हैं. श्रीमद देवी भागवत के अनुसार जो व्यक्ति कार्तिक महीने में भगवान विष्णु को तुलसी पत्र अर्पण करता है. 10,000 गायों के दान का फल निश्चित रूप से प्राप्त करता है. वैसे भी नित्य शालिग्राम का पूजन भाग्य और जीवन बदल देता है. शालिग्राम का विधि पूर्वक पूजन करने से किसी भी प्रकार की व्याधि और ग्रह बाधा परेशान नहीं करती हैं. शालिग्राम जिस भी घर में तुलसीदल ,शंख और शिवलिंग के साथ रहता रहता है, वहां पर सम्पन्नता रहती ही है.
Yr. Contribution Deposit Here: HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND
Bank: SBI CA
30023706551 (IFS Code SBIN0003137) Br. Saharanpur Rd Ddun UK