Diwali 2020 ;महालक्ष्मी- कुबेर पूजन ;इस बार है विशेष- इस तरह करे पूजा
सुख-समृद्धि स्वरूपा देवी महालक्ष्मी का शनिवार को घर-घर आह्वान होगा। मंगलकारी आयुष्मान-सौभाग्य योग और स्वाति नक्षत्र के त्रिवेणी संगम में कार्तिक अमावस्या की अंधेरी रात रोशन होगी, विधि-विधान से पूजन किया जाएगा। ज्योर्तिविदो के अनुसार इस बार तिथियों की घट-बढ़ के चलते रूप चतुर्दशी और दीपावली पर महालक्ष्मी पूजन 14 नवंबर को एक ही के दिन होगा। दोपहर 2.18 बजे तक चतुर्दशी तिथि रहेगी। इसके बाद अमावस्या लगेगी जो अगले दिन 15 नवंबर को सुबह 10.37 बजे तक रहेगी। अमावस्या तिथि जिस दिन प्रदोष वेला में हो उस दिन महालक्ष्मी पूजन करना शास्त्र सम्मत बताया गया है। इसलिए शनिवार को एक मत से महालक्ष्मी पूजन किया जाएगा।
ऊँ महालक्ष्मयै च विद्यमहे, विष्णुं पत्नी चं धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात’
Diwali 2020: इस साल 2020 के दीपोत्सव पर्व पर एक ही दिन दो दो तिथि पड़ने से जहां धनतेरस दो दिन मनाया जा रहा है, वहीं रूप चतुर्दशी और दीपावली एक ही दिन मनाएंगे। शनिवार को सुबह रूप चौदस पर शरीर में उबटन लगाकर रूप निखारा जाएगा वहीं रात्रि में माता महालक्ष्मी की पूजा करके सुख समृद्धि का वरदान मांगेंगे। नरक चतुर्दशी या यम चतुर्दशी कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि और अमावस्या एक ही दिन होने से दोनों पर्व शनिवार को मनाए जाएंगे। नरक चतुर्दशी को मृत्यु के देवता यमराज की पूजा व तर्पण करने का विधान है।
दीपावली पर लक्ष्मी पूजा करते समय कौन-कौन सी चीजें अनिवार्य रूप से रखनी चाहिए।
दीपावली पर लक्ष्मी पूजा करते समय कौन-कौन सी चीजें अनिवार्य रूप से रखनी चाहिए। दीपावली पर लक्ष्मीजी की ऐसी फोटो खरीदें, जिसमें वे भगवान विष्णु के चरणों के पास बैठी हैं। इस तस्वीर की पूजा करना बहुत शुभ माना गया है। मां लक्ष्मी के चांदी से चरण चिह्न खरीदना चाहिए। इसे लक्ष्मी पूजा में रखें और इसके बाद घर की तिजोरी में रखना चाहिए। श्रीयंत्र देवी लक्ष्मी का प्रतीक है। इसे घर के मंदिर में स्थापित करना चाहिए। कुबेर धन के देवता और देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं। इनकी प्रतिमा घर की उत्तर दिशा में रखनी चाहिए। विष्णुजी और महालक्ष्मी की पूजा में दक्षिणावर्ती शंख का महत्व काफी अधिक है। दीपावली पर शंख खरीदें और इस शंख में केसर मिश्रित दूध भरकर विष्णु-लक्ष्मी का अभिषेक करें। ये एक दुर्लभ शंख है। दिखने में बहुत ही सुंदर होता है। दीपावली पर मोती शंख खरीदें और पूजा के बाद इसे अपनी तिजोरी में रखें।दिवाली पर लक्ष्मी पूजा के लिए पारे से बनी लक्ष्मी प्रतिमा बहुत शुभ मानी गई है। दीपावली पर पारद लक्ष्मी की मूर्ति खरीदनी चाहिए। लक्ष्मीजी समुद्र से प्रकट हुई थीं और कौड़ी भी समुद्र से ही मिलती है। इसी वजह से लक्ष्मी पूजा में पीली कौड़ियां रखने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। देवी लक्ष्मी की पूजा में कमल का फूल रखना अनिवार्य है। कमल के पौधे से कमल गट्टा भी मिलता है। कमल गट्टे से बनी माला से लक्ष्मी मंत्र का जाप करना चाहिए। दीपावली पर कमल गट्टे की माला भी खरीद सकते हैं। आम नारियल से थोड़ा छोटा होता है लघु नारियल। दीपावली पर इस नारियल की पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी में रख सकते हैं।
रूप चौदस पर उबटन युक्त स्नान करने के बाद तिलयुक्त जल से ‘ऊँ यमाय नम: अथवा ऊँ धर्मराजाय नम:” मंत्र का उच्चारण करके यम को जल अर्पण करना चाहिए और शाम को यमराज के नाम से दीपदान भी करना चाहिए।नरक चौदस प्रात:व्यापिनी होती है , इसलिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शरीर पर तेल, उबटन व औषधि का लेप करके सूर्योदय के समय स्नान करने से स्वास्थ्य उत्तम होता है। इसी मान्यता के चलते सुबह नदी-तालाबों में नरक चौदस का स्नान करने की परंपरा निभाई जाएगी।
14 नवंबर को कार्तिक महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के साथ अमावस्या तिथि भी है। इस दिन रूप चतुर्दशी और दीपावली पूजन किया जाएगा। इसके अगले दिन यानी 15 तारीख को सूर्योदय के समय अमावस्या तिथि होने से इस दिन स्नान और दान करने का महत्व है। धर्म ग्रंथों में इसे पर्व कहा गया है। इस तिथि में पितरों के उद्देश्य से की गई पूजा और दान अक्षय फलदायक देने वाला होता है। अमावस्या पर भगवान शिव और पार्वती जी की विशेष पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
महालक्ष्मी-कुबेर पूजन व यमदीपदान के मुहूर्त चौघड़ियानुसार -शुभ : सुबह 08:02 से 09:24 और रात 8:52 से 10:31बजे तक। -चर : दोपहर 12:08 से 01: 30 और रात 12:09 से 01:47 बजे तक। -लाभ : दोपहर 01:30 से 02.52 और शाम 05:36 से 07:14 बजे तक। -अमृत : दोपहर 02:52 से 04:14 और रात 10:31 से 12:09 बजे तक। स्थिर लग्न में पूजन वृश्चिक : सुबह 06:51से 09:07 बजे तक। -कुंभ : दोपहर 12:59 से 02:33 बजे तक। -वृषभ : शाम 05:44 से 07:42 बजे तक। -सिंह : रात 12:11 से 02:23 बजे तक। अभिजीत मुहूर्त – सुबह 11:44 से दोपहर 12:32 बजे तक। प्रदोष वेला -शाम 05:36 से 07:47 बजे तक। महानिशिथ काल -रात 11:45 से 12:33 बजे तक।
यम दीपदान शुक्रवार की शाम को करना चाहिए
कार्तिक महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को रूप चतुर्दशी या नरक चौदस के रूप में मनाया जाता है। स्कंद पुराण के मुताबिक, इस तिथि में शाम को यमराज के लिए दीपदान देने से अकाल मृत्यु नहीं होती। वहीं, भविष्य और पद्म पुराण का कहना है कि चतुर्दशी तिथि में सूर्योदय से पहले उठकर अभ्यंग यानी तेल मालिश कर के औषधि स्नान करना चाहिए। ऐसा करने से बीमारियां खत्म होती हैं और उम्र बढ़ती हैं। ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र का कहना है कि चतुर्दशी तिथि 13 नवंबर को दोपहर करीब 3 बजे से शुरू होकर 14 की दोपहर 2 तक रहेगी। इसलिए यम दीपदान शुक्रवार की शाम को करना चाहिए और औषधि स्नान 14 नवंबर को सूर्योदय से पहले करना शुभ रहेगा।
भविष्यपुराण के मुताबिक, कार्तिक महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को नहाने से पहले तिल के तेल की मालिश करनी चाहिए। तिल के तेल में लक्ष्मीजी और जल में गंगाजी का निवास माना गया है। इससे रूप बढ़ता है और सेहत अच्छी रहती है। पद्मपुराण में लिखा है कि जो सूर्योदय से पहले नहाता है, वो यमलोक नहीं जाता। इसलिए इस दिन सूरज उदय होने से पहले औषधियों से नहाना चाहिए।
दीवाली की पूजा में कुछ खास चीजों को अवश्य शामिल किया जाना चाहिए। इनके बिना पूजा अधूरी मानी जाती हैं।
खीर: दीपावली पर लक्ष्मी पूजा में मिठाई का चलन बढ़ गया है। मगर इसके साथ ही पूजा में घर में बनी खीर को अवश्य प्रयोग करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार खीर मां लक्ष्मी का प्रिय प्रसाद है। इससे माता लक्ष्मी प्रसन्ना होती हैं।
बंदनवार: आम और अशोक के नए कोमल पत्तों की माला (श्रंखला) को बंदनवार कहा जाता है। इसे दीपावली पर घर, दुकान व संस्थान के मुख्य द्वार पर बांधना चाहिए। मान्यता है कि इन पत्तियों की महक से आकर्षित होकर सभी देवी देवता घर-दुकान में प्रवेश करते हैं। वहीं इन पत्तियों के लगे होने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं होता।
गन्ना: मां लक्ष्मी का एक रूप गजलक्ष्मी भी है और इस रूप में वे एरावत हाथी पर सवार दिखाई देती हैं। लक्ष्मी एरावत हाथी की प्रिय खाद्य सामग्री गन्नाा है। एरावत हाथी की प्रसन्नाता से मां लक्ष्मी प्रसन्ना होती हैं। वहीं पूजा उपरांत गन्नो को सभी श्रद्धालुओं द्वारा खाने से वाणी में मिठास बनी रहती है।
पीली कौंड़ी: पीली कौंड़िया धन और श्री की प्रतीक होती हैं। पूजा के बाद इन कौड़ियों को तिजोरी में रखने से मां लक्ष्मी कृपा सदा बनी रहती है।
पान: पान खाने से जिस प्रकार हमारे पेट एवं मुख की शुद्धि होती है। उसी प्रकार पूजा के समय पान रखने पर घर की शुद्धि होती है। घर का वातावरण सकारात्मक बनता है।
स्वास्तिक:- किसी भी पूजा में स्वास्तिक अवश्य बनाया जाता है। स्वास्थ्य की चार भुजाएं उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम चारों दिशाओं को दर्शाती हैं। साथ ही चार भुजाएं ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास आश्रम का भी प्रतीक मानी गई हैं। इसके प्रभाव से श्री गणेश के साथ ही महालक्ष्मी की प्रसन्नाता भी प्राप्त होती है।
तिलक:-पूजा में तिलक लगाया जाता है ताकि मस्तिक में बुद्धि, ज्ञान और शांति का प्रसाह सके। तिलक लगाकर पूजा करने से मन एकाग्र चित्त होता है और पूजा निर्विघ्न संपन्ना होती है।
अक्षत यानि चावल:- चावल को अक्षत कहा जाता है अर्थात जो खंडित ना हो। इसी वजह से चावल को पूर्णता का प्रतीक माना जाता है। पूजा में चावल रखने से समाज में हमारी प्रतिष्ठा और मान सम्मान बढ़ता है।
बताशे और गुड़:- लक्ष्मी पूजन के बाद गुड़ और बताशे का दान करने से धन की वृद्धि होती है।
कलावा मौली:- कलावा (रक्षासूत्र) कई धागे से मिलकर बनता है, इसलिए यह संगठन का प्रतीक है, जिसे पूजा के समय कलाई पर बांधा जाता है। रक्षा सूत्र को बांधने से कलाई पर हलका सा दबाव बनता है, जो स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।
रंगोली:- लक्ष्मी पूजन के स्थान, प्रवेश द्वार तथा आंगन में रंगों से धार्मिक चिन्ह कमल स्वास्तिक, फूल-पत्ति आदि की रंगोली बनाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि देवी लक्ष्मी रंगोली की ओर जल्दी आकर्षित होकर हमारे घर में प्रवेश करती हैं।
खड़ा धनिया: लक्ष्मी पूजन में खड़ा धनिया रखने से अन्नापूर्णा मां और लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। जिससे घर में किसी तरह के अनाज की कमी नहीं होती।
सक्षम लोग पंडित, पुजारियों के द्वारा विधिवत पूजा करवाते हैं , लेकिन आम आदमी सक्षम ना होने के कारण स्वयं सादगी से पूजा अवश्य करते हैं । ऐसे लोग भले ही ज्यादा पूजन सामग्री से पूजा ना कर पाएं तो कोई बात नही, किंतु वे यदि महालक्ष्मी मंत्र का जाप करें तो निश्चित रूप से मा लक्ष्मी प्रसन्न होकर सुख समृद्धि का आशीष देती हैं। पूजा के वक्त छींकना, खांसना, थूकना, जम्हाई लेना, क्रोध करना, गुटखा, पान खाना, नशा करना, इन सभी से बचना चाहिए। धनतेरस व दीापावली के दिन रसोई में जो भी भोजन बना हो, सर्वप्रथम उसमें से गाय के लिए कुछ भाग अलग कर दें। ऐसा करने से घर में स्थिर लक्ष्मी का वास होगा। दक्षिणावर्ती शंख में लक्ष्मी मंत्र का जाप करते हुए चावल के दाने या लाल गुलाब की पंखुड़ियां डालें।दक्षिणावर्ती शंख में लक्ष्मी मंत्र का जाप करते हुए चावल के दाने या लाल गुलाब की पंखुड़ियां डालें। लघु नारियल को मां लक्ष्मी के चरणों में रखकर ऊँ महालक्ष्मयै च विद्यमहे, विष्णुं पत्नी चं धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात मंत्र की 2 माला जाप करें। किसी लाल कपड़े में नारियल को लपेटकर तिजोरी में रख दें। दीवाली के दूसरे दिन किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दें ऐसा करने से लक्ष्मी चिरकाल तक विद्यमान रहती है। लघु नारियल पीले कपड़े में बांधकर रसोई घर के पूर्वी कोने में बांध दे तो अन्न धन का भंडार भरपूर रहेगा।
ऊँ महालक्ष्मयै च विद्यमहे, विष्णुं पत्नी चं धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात’
15 को
स्नान-दान अमावस्या
स्कंद और भविष्य पुराण के मुताबिक कार्तिक महीने की अमावस्या पर किए
गए तीर्थ स्नान और दान से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। इस पर्व पर घर पर ही
पानी में गंगाजल मिलाकर नहाने से तीर्थ स्नान का फल मिल सकता है। साथ ही श्रद्धा
अनुसार दान करने से हर तरह के रोग,
शोक और दोष से छुटकारा मिलता है। इस दिन खासतौर से ऊनी कपड़ों का दान
करना चाहिए। भविष्य, पद्म
और मत्स्य पुराण के मुताबिक इस दिन दीपदान के साथ ही अन्न और वस्त्र दान भी करना
चाहिए। कार्तिक महीने की अमावस्या पर किया गया हर तरह का दान अक्षय फल देने वाला
होता है।
पुराणों में कार्तिक अमावस्या
ब्रह्म पुराण में बताया है कार्तिक अमावस्या पर लक्ष्मीजी पृथ्वी पर
आती हैं। पद्म पुराण का कहना है कि इस दिन दीपदान करने से अक्षय पुण्य मिलता है।
स्कंदपुराण के मुताबिक कार्तिक महीने की अमावस्या को गीता पाठ और अन्न दान करना
चाहिए। इसके साथ ही भगवान विष्णु को तुलसी भी चढ़ानी चाहिए। इससे हर तरह के पाप
खत्म हो जाते हैं। अन्नदान करने से सुख बढ़ता है। ऐसा इंसान चिरंजीवी होता है।
अन्नदान करने से हजारों गाय दान करने जितना फल मिलता है।
मत्स्य पुराण: अमावसु पितर के कारण अमावस्या नाम
पड़ा
मत्स्य पुराण के 14वें
अध्याय की कथा के मुताबिक पितरों की एक मानस कन्या थी। उसने बहुत कठिन तपस्या की।
उसे वरदान देने के लिए कृष्णपक्ष की पंचदशी तिथि पर सभी पितर आए। उनमें बहुत ही
सुंदर अमावसु नाम के पितर को देखकर वो कन्या आकर्षित हो गई और उनसे विवाह करने की
इच्छा करने लगी। लेकिन अमावसु ने इसके लिए मना कर दिया। अमावसु के धैर्य के कारण
उस दिन की तिथि पितरों के लिए बहुत ही प्रिय हुई। तभी से अमावसु के नाम से ये तिथि
अमावस्या कहलाने लगी।
20 नवंबर 2020 को गुरु राशि परिवर्तन कर धनु से मकर राशि में प्रवेश करेंगे। मकर पृथ्वी तत्व की मूलभूल नकारात्मक राशि है, और इसके स्वामी शनि हैं। जहां से गुरु 6 अप्रैल 2021 को कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे। वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति अर्थात गुरु को काल पुरुष के ज्ञान का प्रतीक माना गया है। सनातन धर्म के पौराणिक मान्य ग्रन्थों में भी बृहस्पति को देवों के गुरु के रूप में स्थान प्राप्त है। वैदिक ज्योतिष में गुरु को अमृत समान मान गया है। गुरु अन्य सभी ग्रहों में सबसे विशाल और विस्तृत हैं। उन्हें सूर्य की एक परिक्रमा पूर्ण करने में लगभग ग्यारह साल और नौ महीने का समय लगता है। वहीं एक राशि का भ्रमण पूरा करने में उन्हे लगभग तेरह महीनों का समय लगता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार गुरु कर्क में उच्च स्थान प्राप्त करते हैं और मकर में नीच। गुरु यानी बृहस्पति का नीच राशि में परिवर्तन आप सभी के जीवन पर क्या प्रभाव डालेगा, गुरु जब नीच के होगे तो देश मे सरकार से लोग नफरत करेंगे जनता मे आक्रोश दिखाई देगा।