‘डबल इंजन’ का नहीं मिला फायदा- सीएम ने रास्‍ता अलग किया

नीतीश ने चुनाव के लिए मास्टरस्ट्रोक खेल दिया#नीतीश ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग तेज कर दी है. #क्या नीतीश कुमार फिर से आरजेडी के साथ जाएंगे? या फिर पीएम मोदी और बीजेपी के साथ उनकी दोस्ती बनी रहेगी? हिमालयायूके  न्‍यूज पोर्टल ब्‍यूरो

बिहार में महागठबंधन की सरकार के बने हुए एक वर्ष ही हुए थे कि नीतीश कुमार ने अपना रास्ता अलग कर लिया और बीजेपी के साथ सरकार का गठन किए. जिस बैठक में महागठबंधन से अलग होने का फैसला लिया गया, उमसे अधिकांश जेडीयू विधायकों ने एक स्वर में पार्टी की छवि खराब होने की बात कही थी. इसके अलावा दोनों ही पार्टियों के समर्थकों में भी खुशी की लहर थी. लोगबाग चर्चा करने लगे थे कि ‘डबल इंजन’ (केंद्र और राज्य) वाली सरकार का फायदा बिहार को मिलेगा.
जेडीयू के नेता अक्सर यह बताते हैं कि बिहार में एनडीए की सरकार को बने एक वर्ष होने जा रहे हैं, लेकिन ‘डबल इंजन’ का फायदा देखने को नहीं मिल रहा है. अधिकांश केंद्रीय परियोजनाएं लटकी हुई हैं. बिहार के लिए घोषित विशेष पैकेज को लेकर भी केंद्र की तरफ से दरियादिली नहीं दिख रही है. नीतीश कुमार के करीबी नेता का मानना है कि देश की राजनीति में नीतीश कुमार की छवि विकास पुरुष के तौर पर बनकर उभरी है. केंद्र के इस रवैये से उनकी छवि पर ठेस पहुंच सकता है.

2015 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव ने जातिगत जनगणना और आरक्षण को अपना प्रमुख हथियार बनाया था. जिसमें एनडीए ऐसा उलझा कि महागठबंधन की सरकार बन गई. लेकिन चारा घोटाला मामले में जेल जाने के कारण लालू सक्रिय राजनीति से दूर हो गए हैं. इधर नीतीश कुमार ने चुनावी पिच पर फ्रंट फुट पर आकर बैटिंग करनी शुरू कर दी है. जन्म से लेकर ग्रेजुएशन की पढ़ाई तक लड़कियों के लिए अनुदान राशि हो या एससी/एसटी हॉस्टल में पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट के लिए अनुदान राशि, नीतीश ने चुनाव के लिए मास्टरस्ट्रोक खेल दिया है. इसके साथ ही नीतीश ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग तेज कर दी है.

बिहार की राजनीति में एक फोन कॉल ने सुर्खियां बटोर ली है. यह फोन कॉल किसी और का नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का था. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सुप्रीमो लालू यादव का हालचाल जानने के लिए उन्होंने कल (मंगलवार को) फोन किया. इस बात की पुष्टी बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के ट्वीट से हो रही है. फोन कॉल के बाद कयासों का बाजार गर्म हो गया है. लोगबाग चर्चा करने लगे हैं कि क्या नीतीश कुमार फिर से आरजेडी के साथ जाएंगे? या फिर पीएम मोदी और बीजेपी के साथ उनकी दोस्ती बनी रहेगी?

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा लालू यादव का हालचाल पूछे जाने पर तेजस्वी यादव ने कहा कि रविवार को उनका (लालू यादव) का फिस्टुला का ऑपरेशन हुआ था, ऐसे में उनके स्वास्थ्य की जानकारी लेने के लिए कॉल किया था और कुछ नहीं. अस्पताल में भर्ती होने के 4 महीने बाद आश्चर्यजनक रूप से नीतीश जी को उनके खराब स्वास्थ्य के बारे में पता चला. मैं उम्मीद करता हूं कि वह महसूस करेंगे कि वो बीजेपी/एनडीए मंत्रियों के अस्पताल में लालू जी का हालचाल पूछने वाले अंतिम राजनेता हैं.

नीतीश कुमार के फोन कॉल से किसी राय पर पहुंचने से पहले यह समझना होगा कि बिहार की राजनीति के केंद्र बिंदु बन चुके नीतीश कुमार, लालू यादव, रामविलास पासवान और सुशील मोदी ने साथ ही राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी. धूर विरोधी होने के बावजूद इनके बीच शिष्टाचार भेंट-मुलाकात और बातचीत चलती रहती है. इसका ताजा उदाहरण है बीते बारह मई को लालू यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप की शादी में नीतीश कुमार और रामविलास पासवान आशीर्वाद देने पहुंचे थे. बात यहीं खत्म नहीं होती है. सुशील मोदी के बेटे की शादी में भी लालू यादव वर-वधु को आशीर्वाद देने पहुंचे थे.
बिहार की राजनीति में तीन फोर्स
90 के दशक से बिहार की राजनीति में तीन फोर्स हमेशा से रही है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू). तीन में से जो दो साथ आए हैं उनकी सरकार बनी है. अगर हम बात 2005 और 2010 विधानसभा चुनाव की करें तो बीजेपी और जेडीयू ने मिलकर चुनाव लड़ा और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने. दोनों ही चुनाव में जेडीयू सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. 2010 के गठबंधन में तो एनडीए को 243 में से 206 सीट जीतने में सफलता मिली थी.
2015 में हुए विधानसभा चुनाव में भी यही समीकरण फिट बैठी थी. बीजेपी को रोकने के लिए महागठबंधन का गठन हुआ. नाम भले ही इसका महागठबंधन रखा गया हो लेकिन इसमें प्रमुख दो ही दल थे. आरजेडी और जेडीयू. दोनों के कुल 151 विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. ऐसे में नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू को नजरअंदाज करना बीजेपी के लिए भी आसान नहीं होगा.

सीट शेयरिंग पर BJP को करनी होगी पहल
बिहार में बीजेपी लगातार चेहरा को लेकर संघर्ष करती नजर आयी है. आज भी बीजेपी के पास कोई ऐसा सर्वमान्य चेहरा नहीं है. जेडीयू नेता लगातार बिहार में नीतीश कुमार को चेहरा बता रहे हैं. वहीं, बीजेपी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कहती है. अगर मौजूदा सरकार की बात करें तो जेडीयू सबसे बड़ी पार्टी है. जेडीयू के 71 और बीजेपी के 53 विधायक हैं. ऐसे में गठबंधन पर फंसे पेंच को सुलझाने के लिए बीजेपी को पहल करनी होगी.
BJP के केंद्रीय नेतृत्व ने बयानवीरों पर लगा रखा है लगाम!
बीजेपी की नजर भी बिहार के चालीस लोकसभा सीटों पर है. 2019 लोकसभा चुनाव में अधिक से अधिक सीट लाने के लिए जेडीयू का अलग होना नुकसानदेह साबित हो सकता है. शायद बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व भी इसको लेकर सजग है. यही वजह है कि अपने बयानों को लेकर सदैव सुर्खियों में रहने वाले गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे सरीखे नेता गठबंधन और नीतीश कुमार को लेकर कोई बयान नहीं दे रहे हैं. नीतीश कुमार भी बीजेपी को आंख तो दिखाते हैं, लेकिन आरजेडी और कांग्रेस को भी नहीं बख्सते हैं. दोनों ही दलों के समर्थकों की बात करें तो अधिकांश बीजेपी-जेडीयू को साथ देखना चाहते हैं. साथ ही वह गठबंधन का फायदा बिहार के हित में भी देखने की तमन्ना पाले हुए हैं.

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