अस्पताल में फर्श पर बच्चे को जन्म -जच्चा और बच्चे की मौके पर ही मौत
HIGH LIGHT; उत्तराखंड की स्वास्थ्य सेवाओं की हालत # महिला ने अस्पताल में फर्श पर बच्चे को जन्म — जच्चा और बच्चे की मौके पर ही मौत # देहरादून में पांच दिन से बरामदे में पड़ी रही और गुरुवार की सुबह साढ़े चार बजे उसने बाहर खुले में ही बच्चे को जन्म दे दिया # डॉक्टर ने जच्चा-बच्चा को देखने से इन्कार कर दिया और बरामदे में पड़े-पड़े ही दोनों की मौत हो गई # प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि अस्पताल का नर्सिंग स्टाफ़ इतना संवेदनहीन है कि देर रात गर्भवती को शौचालय जाने की ज़रूरत महसूस हुई तो उसे स्ट्रेचर तक उपलब्ध नहीं करवाया गया #नर्सिंग स्टाफ अपने कमरे में फोन पर फिल्म देखने में मस्त रहा और बाहर बरामदे में तड़प-तड़क पर उनकी बीवी की मौत हो गई
दून महिला अस्पताल में मसूरी की एक महिला ने फर्श पर बच्चे को जन्म दे दिया। जच्चा और बच्चे की मौके पर ही मौत हो गई। परिजनों का आरोप है कि जच्चा करीब 20 मिनट तक तड़पते रही, लेकिन डाक्टर और अस्पताल स्टॉफ ने उसे उपचार नहीं दिया। उन्हें उपचार दिया जाता तो उनकी जान बचाई जा सकती थी। मृतका को चार दिन अस्पताल में रहने के बाद भी बेड नहीं मिला था। वह बरामदे में ही सो रही थी।
पांच दिन पहले टिहरी के सूदूर गांव धनसाड़ी, बासर से सुरेश सिंह राणा अपनी पत्नी सुचिता को लेकर राजधानी के बड़े कहे जाने वाले सरकारी दून महिला अस्पताल पहुंचे थे. 27 साल की सुचिता को 31 हफ़्ते का गर्भ था और डॉक्टरों के अनुसार वह बेहद कमज़ोर थी. लेकिन उससे भी कमज़ोर निकली अस्पताल की हालत. सुचिता को अस्पताल में एक अदद बेड तक नहीं मिला और वह देहरादून के बदलते मौसम में पांच दिन से बरामदे में पड़ी रही और गुरुवार की सुबह साढ़े चार बजे उसने बाहर खुले में ही बच्चे को जन्म दे दिया. प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि उनके कहने के बावजूद डॉक्टर ने जच्चा-बच्चा को देखने से इनकार कर दिया और बरामदे में पड़े-पड़े ही दोनों की मौत हो गई.
राजधानी के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में हुए इस शर्मनाक घटनाक्रम के बाद दून महिला अस्पताल की सीएमएस मीनाक्षी जोशी ने अपनी ज़िम्मेदारी से हाथ झाड़ लिए. उन्होंने कहा कि अस्पताल में बेड की सख़्त कमी है और इसके लिए वह कई बार शासन को लिख भी चुकी हैं. डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ़ के बर्ताव की शिकायत पर वह कहती हैं कि इस मामले की जांच की जा रही है और उसके बाद ही वह कुछ कह पाएंगीं. लेकिन अपनी बीवी-बच्चे को खो चुके सुरेश सिंह राणा ही नहीं अस्पताल में मौजूद लोगों को भी इस जांच से किसी तरह की उम्मीद नहीं है. फूट-फूट कर रो रहे राणा को अब अपनी पांच साल की बच्ची का भी ख़्याल रखना है जिसकी मां और छोटे भाई को इस सिस्टम ने मार दिया है.
पांच दिन से अस्पताल की बदइंतज़ामी झेल रहे और गर्भवती की दुर्दशा देख रहे लोगों का गुस्सा जच्चा-बच्चा की मौत के बाद फूट गया और उन्होंने अस्पताल में हंगामा कर दिया. इसके बाद स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को आना पड़ा. प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि अस्पताल का नर्सिंग स्टाफ़ इतना संवेदनहीन है कि देर रात गर्भवती को शौचालय जाने की ज़रूरत महसूस हुई तो उसे स्ट्रेचर तक उपलब्ध नहीं करवाया गया. मौके पर मौजूद लोग परेशान पति की मदद के लिए आगे आए और उसे कंबल में उठाकर शौचालय तक ले गए. लोगों में डॉक्टरों के बर्ताव को लेकर भी बेहद गुस्सा था. वह कहते हैं कि डॉक्टरों ने महिला को देखने से यह कहकर इनकार कर दिया कि उससे बदबू आ रही है.
मारी गई महिला के पति सुरेश सिंह राणा कहते हैं कि रात सुचिता दर्द से तड़क रही थी लेकिन उनके बार-बार आग्रह करने पर भी नर्सिंग स्टाफ़ ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया. राणा कहते हैं कि नर्सिंग स्टाफ़ अपने कमरे में फ़ोन पर फिल्म देखने में मस्त रहा और बाहर बरामदे में तड़प-तड़क पर उनकी बीवी की मौत हो गई.
मूल रूप से उत्तरकाशी के चिन्यालीसौड़ निवासी रमेश सिंह काफी दिनों से मसूरी में पत्नी सुचिता (27) और बेटी ऋषिता (9) के साथ रहता है। यहां मजदूरी कर वह अपने परिवार का पालन पोषण करता है। विगत 15 सितंबर को उन्होंने अपनी सात महीने की गर्भवती की पत्नी सुचिता को दून महिला अस्पताल में भर्ती कराया था। सुचिता के भाई गांव घनशाली, कपूरगांव टिहरी ने बताया कि अस्पताल प्रबंधन ने बेड खाली न होने की बात कहकर उसी दिन से बेड नहीं दिया था। वह बाहर ही फर्श पर सो रही थी। डाक्टर और स्टॉफ ने उन्हें दो माह बाद प्रसव होने की बात कही थी। डाक्टरों के खून की कमी बताने पर उसको किसी तरह खून का प्रबंध कर चार यूनिट खून चढ़वाया। आरोप है कि दो यूनिट खून डाक्टरों ने बचा लिया, जो उसे नहीं चढ़ाया गया। गुरुवार अलसुबह करीब चार बजे उसकी तबीयत बिगड़ गई। उसने बाहर ही बरामदे में फर्श पर बच्ची को जन्म दे दिया। आरोप है कि वह मदद के लिए स्टॉफ से गुहार लगाते रहे, लेकिन उनकी मदद नहीं की गई। बच्चे की मौत हो जाने पर स्टॉफ से जच्चा को बचाने के लिए कोशिश करने की अपील की गई, लेकिन करीब बीस मिनट तक तड़पने और उपचार न मिलने के कारण उसने भी दम तोड़ दिया।
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