बहुत अधिक मंगलकारी दिन-14 अगस्त – दूर्वा गणपति व्रत

दूर्वा गणपति व्रत में दूर्वा का बेहद खास महत्व है। दूर्वा गणपति व्रत विघ्नहर्ता गणेशजी की आराधना के लिए बहुत अधिक मंगलकारी मानी जाती है। यह व्रत सावन शुक्ल चतुर्थी को पड़ती है। इसलिए इसे वरद चौथ भी कहा जाता है। इस महीने दूर्वा गणपति व्रत 14 अगस्त 2018 को है। इस दिन भगवान गणपति के ‍भक्त विभिन्न प्रकार से उनकी आराधना करते हैं। श्रीगणेश को अति प्रिय दूर्वा को अमृता, शतपर्वा व भार्गवी की उपाधि प्राप्त है। तंत्र उपासना में 2, 3 या 5 दुर्वा अर्पण की जाती है। यज्ञ कार्य में 3 दूर्वा का प्रयोग आणव, कार्मण व मायिक रूपी अवगुणों को भस्म करने हेतु होता है। 
‘श्री गणेशाय नमः दूर्वांकुरान् समर्पयामि।’

CHANDRA SHEKHAR JOSHI- हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्‍तराखण्‍ड
मंत्र के साथ श्रीगणेशजी को दूर्वा चढ़ाने से जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। साथ ही श्रीगणेश अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें सुखी जीवन और संपन्नता का आशीर्वाद प्रदान करते है। णेशजी को तुलसी छोड़कर सभी पत्र-पुष्प प्रिय हैं।

इन सब में भगवान गणेश को को दूर्वा सर्वाधिक प्रिय है। इसलिए दूर्वा गणपति व्रत की पूजा में इन्हें सफेद या हरी दूर्वा चढ़ानी चाहिए। शास्त्रों में दूर्वा के विषय में कहा गया है कि दूः+अवम्‌, इन शब्दों से दूर्वा शब्द बना है।
‘दूः’ यानी दूरस्थ व ‘अवम्‌’ यानी वह जो पास लाता है। दूर्वा वह है, जो गणेश के दूरस्थ पवित्रकों को पास लाती है। भगवान गणेश को अर्पित की जाने वाली दूर्वा कोमल होनी चाहिए।

ऐसी दूर्वा को बालतृणम्‌ कहते हैं। सूख जाने पर यह आम घास जैसी हो जाती है। दूर्वा की पत्तियां विषम संख्या में (3, 5, 7) अर्पित करनी चाहिए। पूर्वकाल में गणपति की मूर्ति की ऊंचाई लगभग एक मीटर होती थी, इसलिए समिधा की लंबाई जितनी लंबी दूर्वा अर्पण करते थे। मूर्ति यदि समिधा जितनी लंबी हो, तो लघु आकार की दूर्वा अर्पण करना चाहिए। लेकिन यदि मूर्ति बहुत बड़ी हो, तो समिधा के आकार की ही दूर्वा चढ़ाएं। गणेशजी पर तुलसी कभी भी नहीं चढ़ाई जाती है। इसके अलावा चांदनी, चमेली या पारिजात के फूलों की माला बनाकर पहनाने से भी गणेश जी प्रसन्न होते हैं। गणपति का वर्ण लाल है, उनकी पूजा में लाल वस्त्र, लाल फूल व रक्तचंदन का प्रयोग किया जाता है।

धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि ‘गणेश तुलसी पत्र दुर्गा नैव तु दूर्वाया’ यानि गणेशजी की तुलसी पत्र और दुर्गाजी की दूर्वा से पूजा नहीं करनी चाहिए। भगवान गणेश को गुड़हल का लाल फूल विशेष रूप से प्रिय है। पुराणों में गणेशजी की भक्ति शनि सहित सारे ग्रहदोष दूर करने वाली भी बताई गई हैं। हर बुधवार के शुभ दिन गणेशजी की उपासना से व्यक्ति का सुख-सौभाग्य बढ़ता है और सभी तरह की रुकावटे दूर होती हैं।

धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि ‘गणेश तुलसी पत्र दुर्गा नैव तु दूर्वाया’ यानि गणेशजी की तुलसी पत्र और दुर्गाजी की दूर्वा से पूजा नहीं करनी चाहिए। भगवान गणेश को गुड़हल का लाल फूल विशेष रूप से प्रिय है। पुराणों में गणेशजी की भक्ति शनि सहित सारे ग्रहदोष दूर करने वाली भी बताई गई हैं। हर बुधवार के शुभ दिन गणेशजी की उपासना से व्यक्ति का सुख-सौभाग्य बढ़ता है और सभी तरह की रुकावटे दूर होती हैं।


हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश का एक रूप धूम्रकेतु है कहा जाता है ।भगवान गणेश के इसरूप की पूजा करने से मनोकामना पूर्ण हो सकती है इसलिए बड़ी आस्था से भगवान गणेश की पूजा की जाती है। भगवान गणेश का दूसरा रूप है ।जिसमे गणेश जी हाथ में अंकुश, दूसरे हाथ में पाश, तीसरे हाथ में मोदक व चौथे में आशीर्वाद देते हुए देखे जा सकते है। आज हम बात करने जा रहे है भगवान गणेश की पूजा और दूर्वा का महत्व के बारे में। ज्योतिष के अनुसार दूर्वा केतु गृह को संबोधित करती है। गणपति जी धुम्रवर्ण गृह केतु के देवता है ।और केतु गृह से पीड़ित जातकों को गणेशजी को दूर्वा चढ़ाना शुभ माना जाता है। 11 दूर्वा या 2 दूर्वा का गणेश भगवान को अर्पित करना चाहिए दूर्वा बुधवार के दिन शाम सूर्यास्त पूर्व गणेशजी को अर्पित करना अच्छा माना जाता है। इस प्रयोग को करने से भगवान गणेश आपके जीवन को संकल्प के साथ सुख-सफलता व शांति तथा ऊर्जा से भर देते है।
”त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय। नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्” इस मंत्र का जाप भी कर सकते है भगवान गणेश के सम्मुख इससे मानसिक शांति और सुख समृधि की प्राप्ति होती है

अनेक श्लोक, स्तोत्र, मंत्र और जाप द्वारा गणेशजी की आराधना की जाती है। दूर्वा गणपति व्रत पर श्रीगणेश का पूजन कर उन्हें दूर्वा अर्पित करने का विशेष महत्व है। इसके अलावा प्रतिदिन भगवान गणेश को दूर्वा अर्पित की जानी चाहिए। भगवान गणेश के कुछ खास दिनों में जैसे बुधवार, विनायकी चतुर्थी, संकष्टी चतुर्थी और श्रीगणेश चतुर्थी, गणेश जन्मो‍त्सव के दिन उन्हें विशेषतौर पर दूर्वा चढ़ाकर उनका पूजन-अर्चन करना चाहिए, ताकि हमारे जीवन के समस्त कष्टों का निवारण शीघ्र हो सके। अपने जीवन की सभी संकटों से मुक्ति के लिए इस ‍दिन शिव परिवार का पूजन करना लाभदायी माना गया है। इस दिन श्रीगणेश का पूजन करते समय निम्न मंत्र बोलकर गणेश जी को दूर्वा अर्पण करना चाहिए।

सूर्य का सिंह राशि में गोचर हुआ है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को पिता का स्थान दिया गया है। साथ ही सूर्य को बड़ा भाई, पिता और पूर्वज का प्रतिनिधित्व का कारक ग्रह माना गया है। सूर्य को अन्य ग्रह की अपेक्षा सबसे उंचा माना जाता है। सूर्य जिस जातक की कुंडली में मजबूत रहता है उसे न सिर्फ केवल अपने परिवार बल्कि समाज में भी अधिक सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।

कोई भी नकारात्मक शक्ति घर में प्रवेश नहीं कर पाती
गणपूज्यो वक्रतुण्ड एकदंष्ट्री त्रियम्बक:।

नीलग्रीवो लम्बोदरो विकटो विघ्रराजक:।।

धूम्रवर्णों भालचन्द्रो दशमस्तु विनायक:।

गणपर्तिहस्तिमुखो द्वादशारे यजेद्गणम्।।

परिवार और व्यक्ति के दुःख दूर करते हैं यह सरल उपाय
बुधवार के दिन घर में सफेद रंग के गणपति की स्थापना करने से समस्त प्रकार की तंत्र शक्ति का नाश होता है। धन प्राप्ति के लिए बुधवार के दिन श्री गणेश को घी और गुड़ का भोग लगाएं। थोड़ी देर बाद घी व गुड़ गाय को खिला दें। ये उपाय करने से धन संबंधी समस्या का निदान हो जाता है। परिवार में कलह कलेश हो तो बुधवार के दिन दूर्वा के गणेश जी की प्रतिकात्मक मूर्ति बनवाएं। इसे अपने घर के देवालय में स्थापित करें और प्रतिदिन इसकी विधि-विधान से पूजा करें। घर के मुख्य दरवाजे पर गणेशजी की प्रतिमा लगाने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। कोई भी नकारात्मक शक्ति घर में प्रवेश नहीं कर पाती है।

भगवान गणेश विघ्नहर्ता माने जाते हैं। किसी भी कार्य के करने से पहले सर्वप्रथम भगवान गणेश का नाम लिया जाता है यहां तक शुरुआत करने को ही श्री गणेश कहा जाता है। गणपति की महिमा को सभी जानते हैं और यह भी जानते हैं कि वे माता पार्वती और भगवान शिव के पुत्र हैं। लेकिन बहुत कम लोग हैं जो इससे आगे गणेश के परिवार के बारे में जानते हैं, उनकी पत्नी और बच्चों के बारे में जानते हैं। जी हां भगवान श्री गणेश की पत्नियां भी हुई और बच्चे भी। मान्यता है कि यदि बुधवार के दिन इनके परिवार की पूजा की जाये तो भगवान श्री गणेश की कृपा अवश्य मिलती है।
कौन हैं भगवान श्री गणेश की पत्नियां और पुत्र
किसी भी मांगलिक कार्य में, घरों के द्वार पर, पूजाघर में, धार्मिक तस्वीरों, पोस्टरों आदि में अक्सर आपने शुभ और लाभ लिखा देखा होगा। दरअसल इन्हें भगवान गणेश की संतान माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार शुभ और क्षेम भगवान गणेश की संतान है जिन्हें शुभ-लाभ भी कहा जाता है। रिद्धी और सिद्धी भगवान गणेश की पत्नियां मानी जाती हैं। ब्रह्मा ने दो कन्याओं ऋद्धि और सिद्धी का सृजन किया और भगवान गणेश से उनका विवाह करवाया। ब्रह्मा जी योग में लीन हुए जिससे दो कन्याएं अवतरित हुई। इन्हें ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहा गया।
गणेश परिवार की पूजा
भगवान गणेश जहां विघ्नहर्ता हैं वहीं रिद्धि और सिद्धि से विवेक और समृद्धि मिलती है। शुभ और लाभ घर में सुख सौभाग्य लाते हैं और समृद्धि को स्थायी और सुरक्षित बनाते हैं। सुख सौभाग्य की चाहत पूरी करने के लिये बुधवार को गणेश जी के पूजन के साथ ऋद्धि-सिद्धि व लाभ-क्षेम की पूजा भी विशेष मंत्रोच्चरण से करना शुभ माना जाता है। इसके लिये सुबह या शाम को स्नानादि के पश्चात ऋद्धि-सिद्धि सहित गणेश जी की मूर्ति को स्वच्छ या पवित्र जल से स्नान करवायें, लाभ-क्षेम के स्वरुप दो स्वस्तिक बनाएं, गणेश जी व परिवार को केसरिया, चंदन, सिंदूर, अक्षत और दूर्वा अर्पित कर सकते हैं।

गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने से गणेशजी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।  

श्री गणपति अथर्वशीर्ष
> ॐ नमस्ते गणपतये।   त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि   त्वमेव केवलं धर्ताऽसि
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि  त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि
त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।   ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।
अव त्व मां। अव वक्तारं।   अव श्रोतारं। अव दातारं।
अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं।   अव पश्चातात। अव पुरस्तात।
अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्।  अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।।
सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात्।।3।।   त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:।
त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:।   त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।    त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।4।।
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।   सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।   सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:।   त्वं चत्वारिवाक्पदानि।।5।।
त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।  त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं।   त्वं शक्तित्रयात्मक:।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।   त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं
रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं   वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं
ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।   गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।
अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं।   तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं।
गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं।   अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं।
नाद: संधानं। सं हितासंधि:   सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि:
निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता।   ॐ गं गणपतये नम:।।7।।
एकदंताय विद्‍महे।    वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।।    एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्।
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।   रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।।
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।   आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृ‍ते पुरुषात्परम्।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।  
नमो व्रातपतये। नमो गणपतये।     नम: प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय।   विघ्ननाशिने शिवसुताय।
श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।   एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।
स ब्रह्मभूयाय कल्पते।   स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते।
स सर्वत: सुखमेधते।    स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।।11।।
सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।  प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।
सायंप्रात: प्रयुंजानोऽपापो भवति।   सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।
धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति।।12।।    इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्।
यो यदि मोहाद्‍दास्यति स पापीयान् भवति।  
सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।13।।
अनेन गणपतिमभिषिंचति   स वाग्मी भवति
चतुर्थ्यामनश्र्नन जपति   स विद्यावान भवति।
इत्यथर्वणवाक्यं।    ब्रह्माद्यावरणं विद्यात्
न बिभेति कदाचनेति।।14।।
यो दूर्वांकुरैंर्यजति    स वैश्रवणोपमो भवति।
यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति    स मेधावान भवति।
यो मोदकसहस्रेण यजति    स वाञ्छित फलमवाप्रोति।
य: साज्यसमिद्भिर्यजति    
स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।।
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा   सूर्यवर्चस्वी भवति।
सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ    वा जप्त्वा सिद्धमंत्रों भवति।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते।   महादोषात्प्रमुच्यते।
महापापात् प्रमुच्यते।   स सर्वविद्भवति से सर्वविद्भवति।
य एवं वेद इत्युपनिषद्‍।।16।।
अथर्ववेदीय गणपतिउपनिषद समाप्त।।

Presented by- हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्‍तराखण्‍ड

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CHANDRA SHEKHAR JOSHI- EDITOR

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