माता ने क्रोधवश दसों दिशाओं में दस शक्तियां प्रकट की तो

DEHRADUN में दस महाविद्या पीताम्बरा पीठ # World Famous Astrologer & Priest of Goddess ; Pandit parmanand Maiduli # दस महाविद्या की पूजा अर्चना#शास्त्रों अनुसार इन दस महाविद्या में से किसी एक की नित्य पूजा अर्चना करने से लंबे समय से चली आ रही ‍बीमार, भूत-प्रेत, अकारण ही मानहानी, बुरी घटनाएं, गृहकलह, शनि का बुरा प्रभाव, बेरोजगारी, तनाव आदि सभी तरह के संकट तत्काल ही समाप्त हो जाते हैं और व्यक्ति परम सुख और शांति पाता है। इन माताओं की साधना कल्प वृक्ष के समान शीघ्र फलदायक और सभी कामनाओं को पूर्ण करने में सहायक मानी गई है# साधक अपनी साधना योग्य गुरु के संरक्षण में ही शुरू करें।

देहरादून में दस महा विद्या पीताम्बरा पीठ , बंजारवाला, देहरादून में जल्द माँ का भव्य भवन बने, इस कामना के साथ आज 28 अप्रैल अक्षय तृतीया को विशेष पूजा मंदिर स्थल पर की गई, जिसकी आज विशेष पूजा  विश्व प्रसिद्ध ज्योतिषविद प0 परमानंद जी महाराज द्वारा कराई गई –   दस महाविद्या पीताम्बरा पीठ को बंजारावाला देहरादून में  बनाये जाने की परिकल्‍पना चन्‍द्रशेखर जोशी सम्‍पादक देहरादून द्वारा की गयी,   मॉ की प्रेरणा  तथा मेरे कुछ कार्यो से भूमि दान में प्राप्‍त हुई, इसके उपरांत भूमि पूजन भी अच्‍छे ढंग से सम्‍पन्‍न हुआ , उस दिन विशाल भंडारा कराया गया, इसके उपरांत नींव पूजन भी सम्‍पन्‍न हुआ, अब इंतजार है कि संसाधन प्राप्‍त हो, जिससे मॉ का  भवन तैैैैयार  हो जिससे जयपुर में बन रही मॉ की सुन्‍दर बडी मूर्ति एक बडे कार्यक्रम के साथ यहां विराजमान हो, और इस दस महाविद्या पीताम्बरा पीठ में विद्वान गुरूजन समय समय पर यहां आये और मानव मात्र के कष्‍ट को दूर करे- इस भावना के साथ इस पीठ का निर्माण की कल्‍पना मेरे द्वारा की गयी है, जिसमें सफलता मिलेगी, यह दस महाविद्या पीताम्बरा पीठ शक्‍तिपीठ अदभूत बन कर तैयार होगी और यहां बडी से बडी हस्‍तियां आना अपना सौभाग्‍य समझेगी- ऐसा आशीर्वाद दिव्‍य गुरूजनों का मुझे मिला है- यह शक्‍तिपीठ जल्‍द बनकर तैयार हो, जिससे मॉ के विराजमान होने के दिन हम आपको बुला सके, इस नेक कार्य में आपके हर तरह के सहयोग के आकांक्षी है-

चन्‍द्रशेखर जोशी-  मोबा0 9412932030 (www.himalayauk.org) Newsportal & Daily Newspaper; publish at Dehradun & Haridwar ; mail; csjoshi_editor@yahoo.in, himalayauk@gmail.com  

पुराणों अनुसार जब भगवान शिव की पत्नी सती ने दक्ष के यज्ञ में जाना चाहा तब शिवजी ने वहां जाने से मना किया। इस इनकार पर माता ने क्रोधवश पहले काली शक्ति प्रकट की फिर दसों दिशाओं में दस शक्तियां प्रकट की फिर दसों दिशाओं में दस शक्तियां प्रकट कर अपनी शक्ति की झलक दिखला दी। इस अति भयंकरकारी दृश्य को देखकर शिवजी घबरा गए। क्रोध में सती ने शिव को अपना फैसला सुना दिया, ‘मैं दक्ष यज्ञ में जाऊंगी ही। या तो उसमें अपना हिस्सा लूंगी या उसका विध्वंस कर दूंगी।’ हारकर शिवजी सती के सामने आ खड़े हुए। उन्होंने सती से पूछा- ‘कौन हैं ये?’ सती ने बताया,‘ये मेरे दस रूप हैं। आपके सामने खड़ी कृष्ण रंग की काली हैं, आपके ऊपर नीले रंग की तारा हैं। पश्चिम में छिन्नमस्ता, बाएं भुवनेश्वरी, पीठ के पीछे बगलामुखी, पूर्व-दक्षिण में धूमावती, दक्षिण-पश्चिम में त्रिपुर सुंदरी पश्चिम-उत्तर में मातंगी तथा उत्तर-पूर्व में षोड़शी हैं और मैं खुद भैरवी रूप में अभयदान देने के लिए आपके सामने खड़ी हूं।’ यही दस महाविद्या अर्थात् दस शक्ति है। बाद में मां ने अपनी इन्हीं शक्तियां का उपयोग दैत्यों और राक्षसों का वध करने के लिए किया था।
दस महा विद्या : 1.काली, 2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4.भुवनेश्वरी, 5.छिन्नमस्ता, 6.त्रिपुरभैरवी, 7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी और 10.कमला।
प्रवृति के अनुसार दस महाविद्या के तीन समूह हैं। पहला:- सौम्य कोटि (त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला), दूसरा:- उग्र कोटि (काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी), तीसरा:- सौम्य-उग्र कोटि (तारा और त्रिपुर भैरवी)।

शत्रुओं से बचाने वाली माता पीताम्बरा
प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याएॅं क्रमशः काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपूरभैरवी, धुमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला है। माता बगलामुखी अष्टम महाविद्या है। माता शत्रुओं का नाश करने वाली, युद्ध, कोर्ट आदि मे ंविजय दिलाने वाली, प्रतिस्पर्धा व प्रतियोगिता में विजय दिलाने वाली, प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा करने वाली चुनाव एवं स्थानांतरण, वाद विवाद में विजय दिलाने वाली, विश्व कल्याण करने वाली तथा विशेष रूप से नवग्रहों को शांत करने वाली देवी है। देवी बगलामुखी तंत्र की अधिष्ठात्री देवी है। इनकी साधना से प्रत्येक असंभव कार्य को संभव बनाया जा सकता है। माता बगलामुखी का पूजन अर्चन व आराधना ब्रह्मास्त्र शक्ति का कार्य करता है।

माता बगलामुखी देवी की उत्पत्ति की कथा भी अत्यंत मनोहारी है। एक समय सतयुग में भयंकर वायुरूपी तूफान उत्पन्न हुआ। इस तूफान के कारण समस्त सृष्टि नष्ट होने लगी एवं भयंकर विनाश की स्थिति उत्पन्न हुई। अतएव इस चिंता से भगवान विष्णु अत्यंत व्याकुल हुए एवं इसकी निवृत्ति के लिये सौराष्ट्र प्रदेश में हरिद्रा नामक सरोवर में जगत जननी को प्रसन्न करेन के लिये घोर तपस्या प्रारंभ की। इस तपस्या से प्रसन्न होकर जगत जननी हरिद्रा नामक सरोवर से जलक्रीड़ा करते हुए माता बगलामुखी देवी के रूप में प्रकट हुई, उस दिन मंगलवार व चर्तुदशी तिथि थी। भगवान विष्णु की प्रार्थना के फलस्वरूप माता बगलामुखी ने भयंकर विनाश (प्राकृतिक आपदा) का निवारण किया एवं समस्त जगत व सृष्टि की रचना की। जब माता बगलामुखी का प्रादुर्भाव हुआ तब उसी समय माता के तेल से ब्रह्मास्त्र नामक विद्या उत्पन्न हुई। तभी से इस ब्रह्मास्त्र विद्या का प्रयोग युद्ध कला में होता आया है। ब्रह्मास्त्र विद्या सभी विद्याओं में सबसे शक्तिशाली विद्या है।
माता बगलामुखी की आराधना
माता बगलामुखी देवी पीतवर्ण होन से यह देवी पीताम्बरा कहलाती है। माता को चढ़ाई जाने वाली समस्त सामग्री जैसे वस्त्र, नैवेद्य, फल आदि पीत वर्ण होतो माता अतिप्रसन्न होती है। माता के साधक को भी पीले वस्त्र धारण कर माता की आराधना करनी चाहिए। हल्दी की गांठ की माता को अतिविशेष प्रिय है, इनकी आराधना के लिये मंगलवार का दिन होता है। माता के अनेक भक्तगण चैत्र व अश्विन माह की नवरात्री बगलामुखी जयंती व महाअष्टमी पर्व व उत्सव पर मंदिर में स्थापित माता का पूजन अर्चन व अभिषेक करतंे हैं एवं सर्वत्र यश, विजय, लाभ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। ग्रहशांति के उद्देश्य से देवी के दर्शन हेतु प्रदेश स्तर से श्रद्धालुगण आते हैं। नवरात्री पर्व में यहां पर पीताम्बरा ग्रहशांति पीठ में 9 दिनों तक माता बगलामुखी का विशेष रूप से अभिषेक व श्रृंगार किया जाता है एवं महाआरती होती है।
वैशाख शुक्ल अष्टमी को श्री बगलामुखी जयंति उत्सव मनाया जाता है। इस उत्सव के अंतर्गत श्री बगलामुखी महानुष्ठान सम्पन्न होता है। इस महानुष्ठान में महाभिषेक एवं महायज्ञ का आयोजन होता है। माता बगलामुखी देवी की श्रृंगारिक महाआरती होती है तथा पीतवर्ण का भोग अर्पण किया जाता है।
शत्रुओं से बचाने वाली माता पीताम्बरा
प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याएॅं क्रमशः काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपूरभैरवी, धुमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला है। माता बगलामुखी अष्टम महाविद्या है। माता शत्रुओं का नाश करने वाली, युद्ध, कोर्ट आदि मे ंविजय दिलाने वाली, प्रतिस्पर्धा व प्रतियोगिता में विजय दिलाने वाली, प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा करने वाली चुनाव एवं स्थानांतरण, वाद विवाद में विजय दिलाने वाली, विश्व कल्याण करने वाली तथा विशेष रूप से नवग्रहों को शांत करने वाली देवी है। देवी बगलामुखी तंत्र की अधिष्ठात्री देवी है। इनकी साधना से प्रत्येक असंभव कार्य को संभव बनाया जा सकता है। माता बगलामुखी का पूजन अर्चन व आराधना ब्रह्मास्त्र शक्ति का कार्य करता है।

श्रीमहा-विद्या -कवच
विनियोग –
ॐ अस्य श्रीमहा-विद्या -कवचस्य श्रीसदा-शिव ॠषि:, उष्णिक छन्द:, श्रीमहा-विद्या देवता, सर्व-सिद्धी-प्राप्त्यर्थे पाठे विनियोग: ।
ॠष्यादी न्यास – श्रीसदा-शिव-ॠषये नम: शिरसी, उष्णिक-छन्दसे नम: मुखे, श्रीमहा-विधा-देवतायै नम: ह्रीदी, सर्व-सिद्धी-प्राप्त्यार्थे पाठे विनियोगाय नम: सर्वाङ्गे।
मानस-पुजन –
ॐ पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमहा-विधा-प्रीत्यर्थे समर्पयामी नम: । ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीमहा-विधा-प्रीत्यर्थे समर्पयामी नम:। ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धुपं श्रीमहा-विधा-प्रीत्यर्थे घ्रापयामी नम: । ॐ रं अग्नी-तत्त्वात्मकं दीपं श्रीमहा-विधा-प्रित्यर्थे दर्शयामी नम: । ॐ वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेधं श्रीमहा-विधा-प्रीत्यर्थे निवेदयामी नम: । ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बुलं श्रीमहा-विधा-प्रित्यर्थे निवेदयामी नम:।
श्रीमहा-विद्या -कवच
ॐ प्राच्यां रक्षतु मे तारा, काम-रुप-निवासिनी ।
आग्नेयां षोडशी पातु, याम्यां धुमावती स्वयम ।।१।।
नैर्ॠत्यां भैरवी पातु, वारुण्यां भुवनेश्वरी ।
वायव्यां सततं पातु, छिन्नमस्ता महेश्वरी ।।२।।
कौबेर्यां पातु मे देवी, श्रीविधा बगला-मुखी ।
ऐशान्यां पातु मे नित्यं महा-त्रिपुर-सुन्दरी ।।३।।
उर्ध्वं रक्षतु मे विधा, मातङ्गी पिठ-वासिनी ।
सर्वत: पातु मे नित्यं, कामाख्या कालिका स्वयम ।।४।।
ब्रह्म-रुपा-महा-विधा, सर्व-विधा-मयी स्वयम ।
शिर्षे रक्षतु मे दुर्गा, भालं श्रीभव-गेहिनी ।।५।।
त्रिपुरा भ्रु-युगे पातु, शर्वाणी पातु नासिकाम ।
चक्षुषी चण्डिका पातु, श्रीत्रे निल-सरस्वती ।।६।।
मुखं सौम्य-मुखी पातु, ग्रिवां रक्षतु पार्वती ।
जिह्वां रक्षतु मे देवी, जिह्वा-ललन-भीषणा ।।७।।
वाग्-देवी वदनं पातु वक्ष: पातु महेश्वरी ।
बाहु महा-भुजा पातु, करांगुली: सुरेश्वरी ।।८।।
पृष्ठमत: पातु भिमास्या, कट्यां देवी दिगम्बरी ।
उदरं पातु मे नित्यं, महा-विधा महोदरी ।।९।।
उग्र-तारा महा-देवी, जंघोरु परी-रक्षतु ।
गूदं मुष्कं च मेढुं च, नाभीं च सुर-सुन्दरी ।।१०।।
पदांगुली: सदा पातु, भवानी त्रिदशेश्वरी ।
रक्तं-मांसास्थी-मज्जादिन, पातु देवी शवासना ।।११।।
महा-भयेषु घोरेषु, महा-भय-निवारीणी ।
पातु देवी महा-माया, कामाख्या-पिठ-वासिनी ।।१२।।
भस्माचल-गता दिव्य-सिंहासन-कृताश्रया ।
पातु श्रीकालिका-देवी, सर्वोत्पातेषु सर्वदा ।।१३।।
रक्षा-हिनं तु यत स्थानं, कवचेनापी वर्जितम ।
तत्-सर्व सर्वदा पातु, सर्व-रक्षण-कारीणी ।।१४।।

पौराणिक कथा
कथा के अनुसार जब सती के पिता दक्ष प्रजापति ने महायज्ञ का आयोजन किया तो उसने भगवान शिव को यज्ञ में आने का निमंत्रण नहीं दिया। शिव के मना करने और समझाने पर भी सती बिना निमंत्रण के ही पिता के यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए आ गईं। इस समय दक्ष ने सती के समक्ष अनुपस्थित भगवान शिव को बड़ा बुरा-भला कहा और उन्हें कठोर अपशब्द कहे। अपने पति का अपमान सहन न कर पाने के कारण सती ने यज्ञ की अग्निकुंड में कूद कर स्वयं को भस्म कर लिया। उनके बलिदान करने के बाद शिव विचलित हो उठे और सती के शव को अपने कंधे पर लेकर आकाश मार्ग से चल दिए तथा तीनों लोकों में भ्रमण करने लगे। उनके क्रोध से सृष्टि के समाप्त होने का भय देवी-देवताओं को सताने लगा। सभी ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शव को खंडित कर दिया। सती के शरीर के टुकड़े जहाँ-जहाँ गिरे, वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। माना जाता है कि तारापीठ वह स्थान है, जहाँ सती के तीसरे नेत्र का निपात हुआ था।
महिमा
प्राचीन काल में महर्षि वशिष्ठ ने इस स्थान पर देवी तारा की उपासना करके सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। उन्होंने इस स्थान पर एक मंदिर भी बनवाया था, जो अब धरती में समा गया है। वर्तमान में तारापीठ का निर्माण ‘जयव्रत’ नामक एक व्यापारी ने करवाया था। एक बार यह व्यापारी व्यापार के सिलसिले में तारापीठ के पास स्थित एक गाँव पहुँचा और वहीं रात गुजारी। रात में देवी तारा उसके सपने में आईं और उससे कहा कि- “पास ही एक श्मशान घाट है। उस घाट के बीच में एक शिला है, उसे उखाड़कर विधिवत स्थापना करो। जयव्रत व्यापारी ने भी माता के आदेशानुसार उस स्थान की खुदाई करवाकर शिला को स्थापित करवा दिया। इसके बाद व्यापारी ने देवी तारा का एक भव्य मंदिर बनवाया, और उसमें देवी की मूर्ति की स्थापना करवाई। इस मूर्ति में देवी तारा की गोद में बाल रूप में भगवान शिव हैं, जिसे माँ स्तनपान करा रही हैं।[1]
सदैव प्रज्वलित अग्नि
तारापीठ मंदिर का प्रांगण श्मशान घाट के निकट स्थित है, इसे ‘महाश्मशान घाट’ के नाम से जाना जाता है। इस महाश्मशान घाट में जलने वाली चिता की अग्नि कभी बुझती नहीं है। यहाँ आने पर लोगों को किसी प्रकार का भय नहीं लगता है। मंदिर के चारों ओर द्वारका नदी बहती है। तारापीठ मंदिर में ‘वामाखेपा’ नामक एक साधक ने देवी तारा की साधना करके उनसे अनेक सिद्धियाँ हासिल की थीं। यह भी रामकृष्ण परमहंस के समान ही देवी माता के परम भक्तों में से एक थे।
मान्यताएँ
तारापीठ में देवी सती के नेत्र गिरे थे, इसलिए इस स्थान को ‘नयन तारा’ भी कहा जाता है। इस स्थान के बारे में यह माना जाता है कि यहाँ तंत्र साधकों के अतिरिक्त जो भी लोग मुराद माँगने आते हैं, वह अवश्य पूर्ण होती है। देवी तारा की सेवा आराधना से हर रोग से मुक्ति मिलती है। इस स्थान पर सकाम और निष्काम दोनों प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। ‘त्रिताप’ को जो नाश करती है, उसे तारा कहते हैं। ताप चाहे कोई सा भी हो, विष का ताप हो, दरिद्रता का ताप हो या भय का ताप, देवी तारा सभी तापों को दूर कर जीव को स्वतंत्र बनाती हैं। यदि किसी का शरीर रोग से ग्रस्त हो गया है या कोई प्राणी पाप से कष्ट भोग रहा है,
मन्दिर में माँ तारादेवी की मूर्ति
वह जैसे ही हृदय से तारा-तारा पुकारता है, तो ममतामयी तारा माता अपने भक्तों को इस त्रिताप से मुक्त कर देती है। तारा अपने शिव को अपने मस्तक पर विराजमान रखती हैं। वे जीव से कहती है- “चिंता मत करो, चिता भूमि में जब मृत्यु वरण करोगे तो मैं तुम्हारे साथ रहूँगी, तुम्हारे सारे पाप, दोष सभी बंधन से मैं मुक्त कर दूंगी।”[1]
तंत्र साधना का स्थल
माँ तारा दस विद्या की अधिष्ठात्री देवी हैं। हिन्दू धर्म में तंत्र साधना का बहुत महत्व है। तंत्र साधना के लिए विंध्यक्षेत्र प्राचीन समय से ही बहुत प्रसिद्ध है, जहाँ साधक वामपंथी साधना की अधिष्ठात्री देवी माँ तारा की साधना करके सिद्धि प्राप्त करते हैं। तंत्र साधना का स्थल तारापीठभारत के अनेक क्षेत्रों में स्थापित है, जहाँ वामपंथ की साधना की जाती है। यह पीठ विशेष स्थान ‘मायानगरी’ (बंगाल) और असम (मोहनगरी) में भी है। आद्यशक्ति के महापीठ विंध्याचल में स्थित तारापीठ का अपना अलग ही महत्व है। विंध्य क्षेत्र स्थित तारापीठ गंगा के पावन तट पर श्मशान के समीप है। श्मशान में जलने वाले शव का धुआं मंदिर के गर्भगृह तक पहुँचने के कारण इस पीठ का विशेष महत्व माना गया है। इस पीठ में तांत्रिकों को शीघ्र ही सिद्धि प्राप्त होती है, ऐसा साधकों की मान्यता है। इस मंदिर के समीप एक प्रेत-शिला है, जहाँ लोग पितृपक्ष में अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं। इसी स्थल पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने भी अपने पिता का तर्पण, पिंडदान किया था। यह विंध्याचल के शिवपुर के ‘रामगया घाट’ पर स्थित है। यहाँ स्थित माँ तारा, आद्यशक्ति माँ विंध्यवासिनी के आदेशों पर जगत कल्याण करती है। इस देवी को माँ विंध्याचल की प्रबल सहायिका एवं धाम की प्रखर प्रहरी की भी मान्यता प्राप्त है। देवीपुराण के अनुसार, माँ तारा देवी जगदम्बा विंध्यवासिनी की आज्ञा के अनुसार विंध्य के आध्यात्मिक क्षेत्र में सजग प्रहरी की तरह माँ के भक्तों की रक्षा करती रहती है।
साधक साधना की प्राप्ति के लिए प्राय: दो मार्ग को चुनता है- प्रथम मंत्र द्वारा साधना, द्वितीय तंत्र (यंत्र) द्वारा साधना। सतयुग एवं त्रेतायुग में मंत्र की प्रधानता थी। प्राय: मंत्रों की सिद्धिसाधक को हो जाती थी। हालाँकि द्वापर से अब तक साधना का सर्वोत्तम स्वरूप तंत्र को माना जाने लगा है। तंत्र साधना के लिए ‘नवरात्रि’ में तारापीठ आकर माँ तारा को श्रद्धा से प्रणाम करके तांत्रिक साधना प्रारंभ होता है। इसके लिए आवश्यक है कि साधक अपनी साधना योग्य गुरु के संरक्षण में ही शुरू करें।

World Famous Astrologer & Priest of Goddess 

Pandit parmanand Maiduli, astrologer, experienced 35 years to Maharshi Mahesh Yogi Vedic Organization as astrologer and also worked as astrologer in many foreign countries like Holland, Ger..many, Switzerland, U.S.A,Latvia, Stonia, Litvania .

Name -Pandit Parmanand Maiduli 
Date Of Birth=15-2-1968
Father Name=Late Pandit Mahidar Prasad Maiduli 
Education = High school and 12th from Nanda Devi Sanskrit Vidhalaya, Nandprayag.
Collage study -Shri Badrinath Vedh Vedank Sanskrit Mahavidhalaya, joshimath.
And post Graduation from Sampoornanand Sanskrit VishvaVidhalaya, Varanasi..
Worked as astrologer since 1989 to 2007 in Meharshi Mahesh Yogi Vedic Organization,New Delhi.. 
Experienced about 10 years in Foreign Countries like U.S.A, Switzerland, Germany, Latvia, Litvania, Stonia,and Holland as Astrologer.
Experience– 10 year of experience in Astrology. 
As a Research Astrologer- Worked in foreign countries as a Research Astrologer. various papers on Astrology written by Pt. Maiduli. during his research on Astrology Pt. Maiduli went to number of foreign countries like USA, Switzerland, Germany, Holland, Latvia & Stonia.

Experience– 10 year of experience in Astrology. 
As a Research Astrologer- Worked in foreign countries as a Research Astrologer. various papers on Astrology written by Pt. Maiduli. during his research on Astrology Pt. Maiduli went to number of foreign countries like USA, Switzerland, Germany, Holland, Latvia & Stonia.

Pt. Maiduli has perfect prediction about Astrology. He is expert in Kundli Vigyan, Palmistry Science, Zodiac Sign & all things related to astrology.

Pt. Maiduli has perfect communication skill while counselling. he is a easy going person. he likes to keep his profile general. he has two principal of life- Simple living & high thinking. he likes to solve common peoples problem related to life.

He likes reading books related to Astrology. he has read number of books by various international writers. he devotes his life to astrology science. 
According to Pt. Maiduli- Astrology is a Science of life by which we can predict our futuristic problem in upcoming years. & we can tackle these problems easily.

 

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