हमला आदि ख़बरों के बीच एक बडी ख़बर दब गई
पुलवामा आतंकवादी हमला, बालाकोट आतंकवादी शिविर पर भारत की कार्रवाई और विंग कमांडर अभिनंदन की वापसी की ख़बरों के बीच एक ख़बर दब गई कि अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी हो गई है। बहुप्रचारित चुनाव और उसकी भांति-भांति की सरकारी विज्ञापनों और प्रचार के शोर में भारतीय अर्थव्यवस्था ने अपनी रफ्तार खोना शुरू कर दिया है। सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफ़िस का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2018-19 की तीसरी तिमाही अक्तूबर-दिसंबर में विकास दर 6.6 प्रतिशत रह गई है। गुज़री पांच तिमाहियों में यह सबसे कम रफ़्तार है। अभी और कम होने का अनुमान है।
उल्लेखनीय है कि आंकड़ों के मामले में यह सरकार बिल्कुल पारदर्शी नहीं है। आंकड़ों को लेकर विवाद होते रहे हैं। और आंकड़े ही क्यों सरकारी दस्तावेज़ों में गलत फ़ोटो के उपयोग के मामले हैं। विदेश राज्य मंत्री एम.जे. अकबर को हटाए जाने के बावज़ूद इलाहाबाद में हुए प्रवासी भारतीयों के सम्मेलन के लिए छपी बुकलेट में उनकी तस्वीर थी। इसलिए सरकारी दावों को काटना मुश्किल है, पर ये दावे तो सरकारी ही हैं।
सरकार ने अगस्त में जारी अपने ही आंकड़ों को नवंबर में ख़ारिज कर दिया था और नए आंकड़े देकर बताया कि 2014 से 2018 के बीच एनडीए के पहले चार साल में विकास की रफ़्तार यूपीए के दौर से ज़्यादा रही है। नीति आयोग और सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार पिछली सरकार के समय जीडीपी वह नहीं थी जो बताई गई। इसके लिए पिछली सरकार के समय के आंकड़े वेबसाइट से हटा दिए गए।
नए आंकड़ों के मुताबिक 2005-06 के बीच जिस विकास दर को 8 फ़ीसदी से ऊपर माना जा रहा था, वह 6.7 फ़ीसदी ही थी। इस संबंध में नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने कहा था कि इसमें नई विधि का इस्तेमाल किया गया है जो पुरानी विधि से बेहतर है। मामला यहीं ख़त्म नहीं हुआ। राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के दो सदस्य – पीसी मोहनन जो आयोग के कार्यकारी चेयरपर्सन भी थे और जेवी मीनाक्षी ने जनवरी में सरकार के साथ कुछ मुद्दों पर असहमति होने के चलते इस्तीफ़ा दे दिया था।
इसका पता इस बात से भी चलता है कि कार बनाने वाली मशहूर कंपनी टोयोटा ने फ़रवरी महीने में 11760 गाड़ियों की बिक्री की है। कंपनी ने पिछले साल इसी महीने 11864 गाड़ियाँ बेची थीं। कंपनी ने पिछले साल इसी महीने में 841 गाड़ियों का निर्यात किया था और इस साल यह सिर्फ़ 737 गाड़ियाँ रहीं। यानी निर्यात भी कम रहा। इसका चौतरफा असर आगे मालूम होगा।
वैसे तो कार बाज़ार का मानना है कि चुनाव से पहले नकदी की कमी रहती है और ख़रीदारी प्रभावित होती है। लेकिन सरकार जब दावा कर रही है कि भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया है और डिजिटल लेन देन हो रहा है तो कैसी नकदी और कैसी कमी। यही नहीं, रेडियो पर धुंआधार प्रचार आ रहा है कि देश के नौजवान अपने पैरों पर खड़े होकर स्वरोज़गार से आगे बढ़ रहे हैं। गावों के बेरोज़गार युवक कौशल केंद्रों में प्रशिक्षण पा रहे हैं और मनरेगा का पैसा खाते में जा रहा है। इसलिए भ्रष्टाचार कम हुआ है।
मनरेगा का पैसा खातों में देना तकनीक सुलभ होने और इंटरनेट के साथ डिजिटल लेन-देने का विस्तार होने से संभव हुआ है। लेकिन सरकार इसका भी प्रचार कर रही है। और तो और, प्रधानमंत्री दावा कर रहे हैं कि भ्रष्टाचार कम हुआ है। भ्रष्टाचार का विकास दर से सीधा संबंध भले न हो। लेकिन विकास दर कम होने की ख़बर, कारों की बिक्री कम होने की ख़बर से पुष्ट होती है। भ्रष्टाचार कम होने का दावा बेरोज़गार आदमी के लिए बहुत मतलब का नहीं है।
सच्चाई पर पर्दा डालते प्रचार! दावा किया जा रहा है कि गाँवों में कौशल केंद्रों और मुद्रा योजना से स्वरोज़गार बढ़ा है पर विकास दर कम हो रही है तो इस दावे की सत्यता पर शक होना स्वाभाविक है। दूसरी ओर, ऐसे में चुनाव से पहले किए जा रहे धुंआधार सरकारी विज्ञापनों का क्या मतलब है? विज्ञापनों का हाल यह है कि सुबह आठ से नौ बजे के बीच एक घंटे में 17 सरकारी विज्ञापन आए। ज्यादातर में प्रधानमंत्री की आवाज़ भी थी।
इन विज्ञापनों में यही दावा किया जा रहा है कि सब कुछ बढ़िया है। बेहतर हुआ है। दूसरी ओर, सीएसओ के अधिकारियों का कहना है कि पूर्वानुमान में कमी करने का मतलब है कि साल की अंतिम या चौथी तिमाही में विकास दर और कम होगी। अनुमान है कि यह 6.4 प्रतिशत रह जाएगी। अप्रैल-जून की पहली तिमाही के लिए विकास दर 8.2 प्रतिशत से कम करके 8 प्रतिशत कर दी गई थी, जबकि जुलाई से सितंबर की दूसरी तिमाही के लिए इसे 7.1 प्रतिशत से 7 प्रतिशत कर दिया गया था।
खेती के क्षेत्र में हालत और ख़राब है। इसका पता इस बात से लगता है कि सरकार किसानों को नकद दे रही है। अगर स्थिति ठीक होती या कुछ भी करने की स्थिति होती तो नकद बांटने की कोई ज़रूरत नहीं थी। एक तरफ़ तो सरकार किसानों की सहायता के लिए उन्हें नकद बांट रही है, दूसरी ओर डीजल, बिजली, खाद, बीज आदि के दाम बढ़ा कर, खेती के काम आने वाले ट्रैक्टर और फसल कटाई की मशीनों पर जीएसटी लगा कर और किसानों को उनकी फसल का उचित दाम न देकर खेती का हाल और खराब कर रही है। अनुमान है कि खेती के क्षेत्र में विकास पिछले साल के 5 प्रतिशत के मुकाबले इस साल (2018-19) में 2.7 प्रतिशत ही रह जाएगा।
वही दूसरी ओर केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़ों के मुताबिक कृषि क्षेत्र में उत्पादन अक्टूबर-दिसंबर 2018 में 2.7 फीसदी की दर से बढ़ा है. इस दौरान अक्बटूृर से दिसंबर की तिमाही में ये वृद्धि दर पिछले 11 महीनों में सबसे नीचे रही. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के द्वारा जारी ये आंकड़े आधार वर्ष 2011-2012 पर आधारित हैं. इस दौरान ये अपने न्यूनतम स्तर 2.04 फीसदी तक भी आ पहुंचा था जो कि 1999-2000 जीडीपी सीरीज के अनुसार अक्टूबर-दिसंबर 2004 में 1.1 फीसदी तक गिर गया था . साल 2018 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही लगातार दूसरी तिमाही रही जहां कृषि से सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) वास्तविक की तुलना में कम रही है. इसका मतलब है कि अक्टूबर से दिसंबर 2017 की तुलना में पिछली तिमाही के दौरान कृषि उत्पादन 2.67 फीसदी अधिक था. लेकिन कीमतों में गिरावट के चलते यह केवल 2.04 फीसदी रहा. इस दौरान कीमतों में 0.61 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. यह अपस्फीति की स्थिति है जो 2016 के जनवरी-मार्च तिमाही में नहीं हुई थी. इस तिमाही में तो कृषि उत्पादन वृद्धि दर 1.07 फीसदी तक आ गई थी. इसकी वजह उत्पादन लागत 6.79 फीसदी तक पहुंच जाना था. 2018 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही लगातार सातवीं ऐसी तिमाही रही जब कृषि क्षेत्र के जीवीए की वृद्धि दर एक अंक में ही रही. जीवीए वह उत्पादन है जो हर तरह की लागत को कुल उत्पादन से घटाने के बाद प्राप्त होता है. एक तरह से ये उस उत्पादन का अंतिम भाग है जो किसान अपने घर लेकर जाता है. जीवीए की एक अंक में वृद्धि निश्चित तौर पर निराशाजनक है.
वित्त वर्ष 2018-19 की तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर) में आर्थिक वृद्धि दर (जीडीपी) घटकर 6.6 फीसदी हो गई है. यह दर पिछली पांच तिमाही यानी 15 महीनों में सबसे कम है. गुरुवार को जारी सरकारी आकंड़ों से यह जानकारी मिली. कृषि और विनिर्माण क्षेत्र के कमजोर प्रदर्शन और उपभोक्ता मांग घटने से जीडीपी की रफ्तार कम हुई है. हालांकि, तीसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर धीमी पड़ने के बावजूद भारत अब भी दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना हुआ है. चीन की आर्थिक वृद्धि दर दिसंबर में समाप्त तिमाही में 6.4 प्रतिशत रही. इसके साथ ही 31 मार्च को समाप्त होने जा रहे चालू वित्त वर्ष में जीडीपी के सात फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है जबकि इससे पहले जीडीपी के 7.2 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया था. जीडीपी का संशोधित अनुमान यानी सात प्रतिशत वृद्धि का अनुमान अगर सही साबित होता है तो यह पिछले पांच साल की सबसे कम वृद्धि होगी. तीसरी तिमाही की वृद्धि दर इससे पिछली तिमाही के संशोधित अनुमान 7 फीसदी और अप्रैल-जून तिमाही में 8 फीसदी के अनुमान से कम है.
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर तिमाही में उपभोक्ता व्यय 8.4 फीसदी रहा जो पिछली तिमाही में 9.9 फीसदी था. कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर आलोच्य तिमाही में कम होकर 2.7 फीसदी रही जो दूसरी और पहली तिमाही में क्रमश: 4.2 फीसदी और 4.6 फीसदी रही. वहीं दूसरी तरफ रिफाइनरी उत्पादों और बिजली उत्पादन में कमी से आठ बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर जनवरी 2019 में कम होकर 19 महीने के न्यूनतम स्तर 1.8 प्रतिशत रही जो दिसंबर 2018 में 2.7 फीसदी थी. वहीं पिछले साल के जनवरी महीने में यह 6.2 फीसदी थी. बिजली क्षेत्र में जनवरी महीने में 0.4 प्रतिशत की गिरावट आयी जो 71 महीने में सबसे कम है. फरवरी 2013 के बाद क्षेत्र में गिरावट हुई है.
इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र कुमार पंत ने कहा कि अर्थव्यवस्था का आकार 2018-19 में 190.54 लाख करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है. पूर्व में इसके 188.41 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान रखा गया था. इससे सरकार को 2018-19 में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी. हालांकि, चालू वित्त वर्ष में जनवरी तक राजकोषीय घाटा इसके तय लक्ष्य का 121.5 फीसदी तक पहुंच गया. उन्होंने कहा, ‘वित्त वर्ष 2018-19 में जीडीपी दर सात फीसदी रहने का अनुमान बताता है कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार कुछ हल्की हो रही है. चौथी तिमाही में 6.5 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि हासिल होने पर 2018-19 में वृद्धि दर 7 प्रतिशत हो पाएगी.’ सीएसओ के अनुसार, वित्त वर्ष 2018-19 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 2.7 फीसदी, विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर 8.1 फीसदी रहने का अनुमान है. हालांकि व्यापार, होटल और परिवहन क्षेत्र की वृद्धि दर कम होकर 6.8 प्रतिशत रहने की संभावना है. पंत ने बुनियादी उद्योग की वृद्धि दर के बारे में कहा, ‘अक्टूबर महीने से बुनियादी उद्योग की वृद्धि दर में गिरावट औद्योगिक गतिविधियों में कमजोर रुख और दूसरी छमाही में सुस्त आर्थिक वृद्धि का संकेत देता है। जनवरी 2019 में औद्योगिक वृद्धि दर में कमी की आशंका थी.’