गुजरात ; चुनाव प्रचार का कल आखिरी दिन= किस ओर बढ रहा है चुनावी रूझान
11 DEC. 2017 गुजरात में चुनाव प्रचार का कल आखिरी दिन है. राज्य में दूसरे चरण के लिए 14 दिसंबर को वोटिंग होनी है और 18 दिसंबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे. गुजरात में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. राज्य में पीएम मोदी समेत कई बड़े नेता आय दिन रैलियां, रोड शो और जनसभाएं कर रहे हैं.
आबादी के अनुसाल, मुस्लिम विधानसभा चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं, 2012 में सीमांकन के बाद, 36 सीटें ऐसी है, जहां वे पंजीकृत मतदाताओं में से 13-14% से भी ज्यादा हैं. गुजरात के 34 विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं में जनसंख्या का 15 प्रतिशत हिस्सा है. इंडिया टुडे के मुताबिक गुजरात में 20 विधानसभा सीट ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोट बहुत ज्यादा है. इन 20 में से 4 अहमदाबाद में हैं, जबकि 3 भरूच और कच्छ जिले में हैं. गुजरात की 34 सीटों पर 15 प्रतिशत से भी ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं. इसमें से 2012 में बीजेपी ने 21 सीटें जीत ली थीं. वहीं इन सीटों में कांग्रेस ने 8 सीटों पर जीत हासिल की थी. इन सीटों पर कांग्रेस ने 2012 में 7 मुस्लिम लोगों को टिकट दिया था, जबकि बीजेपी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं बनाया था.
राजनीति के जानकारों का मानना है कि इन सीटों पर कांग्रेस को फायदा मिल सकता है, जबकि भाजपा को महज सांप्रदायिक आधार पर वोटिंग से ही मदद मिल सकती है।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने दावा किया है कि गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले दौर के लिए शनिवार को हुए मतदान में वोटरों ने कांग्रेस के पक्ष में भारी मतदान किया है. लालू ने इसके साथ यह भी कहा कि गुजरात में कांग्रेस की ही सरकार बनने जा रही है. बता दें कि गुजरात में 89 विधानसभा सीटों के लिए शनिवार को हुए चुनाव में 66.75 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया. शनिवार को लालू ने गुजरात के लोगों को नसीहत देते हुए ट्विटर पर लिखा था, गुजरात वालों याद रखना कि ‘कमल का फूल’ पूरे पांच साल ‘अप्रैल फूल’ बनाता है. गुजरात में पिछले 22 सालों से बना रहा है, इसलिए सावधान रहो, सतर्क रहो और खुश रहो.’ गुजरात में दूसरे और अंतिम दौर का मतदान 14 दिसंबर को होगा. दूसरे चरण में 93 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे. मतों की गिनती 18 दिसंबर को होगी. रविवार को लालू के बेटे और बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा कि जेडीयू ने गुजरात चुनावों में अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं, ताकि वे पटेल वोटों को हासिल करके भाजपा को फायदा पहुंचा सके. तेजस्वी ने कहा, ‘नीतीश कुमार का कोई जनाधार नहीं है. मुझे विश्वास है कि जेडीयू ने यदि बिहार में अपने बलबूते चुनाव लड़ने का फैसला किया तो उसे बिहार में उतनी संख्या में ही वोट मिलेंगे जितनी कि उसे गुजरात विधानसभा चुनाव में मिलेंगे.’ पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा कि वह नीतीश कुमार सरकार की विफलताओं को उजागर करने के लिए अगले वर्ष ‘मकर संक्रांति’ के बाद नीतीश के खिलाफ एक कार्यक्रम की शुरुआत करेंगे.
राजनीति में जातिवाद हावी
देश के कई हिस्सों में राजनीति में जातिवाद हावी है. उपेंद्र कुशवाहा बिहार से आते हैं, वहां राजनीति की धुरी ही जाति तय करती है. लेकिन, केंद्र में मंत्री पद पर बैठे लोगों से ये उम्मीद तो की ही जा सकती है कि राजनीति में जाति के ध्रुवीकरण की नीति को बेशक कम ना कर पाए, लेकिन सार्वजनिक मंचों से ऐसे जातिगत बयानों से परहेज करे. जातिवाद की राजनीति करना कोई नई बात नहीं है, लेकिन चुनाव जीत कर एमपी और फिर मंत्री बनने के बाद कोई नेता जाति विशेष की सभा में बोले कि अपनी जाति की वजह से उन्हें मंत्री पद मिला, तो यब बयान चौंकाता है. हाजीपुर में केंद्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने कुशवाहा जाति की वार्षिक सभा में कहा कि उन्हें मंत्री पद कुशवाहा संघ की वजह से मिला है. कुशवाहा ने आगे कहा कि उनकी पार्टी लोक समता पार्टी को भी लोग कुशवाहा की ही पार्टी मानते है. केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई बार रालोसपा को कुशवाहा जी की पार्टी कहते हैं, तो उन्हें बेहद प्रसन्नता होती है. उपेंद्र कुशवाहा राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. हाजीपुर में कुशवाहा जाति के वार्षिक समारोह में भाग लेने के लिए मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाये गए थे. कार्यक्रम के दौरान कुशवाहा जाति के प्रगति और राजनीति में दखल बढ़ाने को लेकर भी चर्चा हुई. लेकिन, जब मंत्री जी की बारी आई तो उन्होंने ये विवादित बयान दिया है. उन्होंने ने कहा राजनीति में किसी न किसी रूप में दखल देने की बात होनी चाहिए. आज हमारा है नहीं है, लेकिन कल हमारा होगा.
36 विधानसभा क्षेत्र- मुस्लिम मतदाता प्रभाव
गुजरात के 36 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां चुनाव के नतीजों पर मुस्लिम मतदाता प्रभाव डाल सकते हैं. उनमें भी एक है दभोई विधानसभा क्षेत्र, जहां भारतीय जनता पार्टी को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. यहां का सामाजिक ताना-बाना और एक पार्टी का दोबारा नहीं जीतने की परंपरा कांग्रेस के पक्ष में है. लिहाजा बीजेपी ने यहां मतदाओं का ध्रुवीकरण करने के इरादे से मुस्लिम विरोधी सरगर्मी को उभारने की चेष्टा की है. भाजपा उम्मीदवार शैलेश मेहता ऊर्फ सोट्टा भाई ने कुछ दिनों पहले सांप्रदायिक बयान देकर सुर्खियां बटोरी थीं. पाटीदार, मुस्लिम और अनुसूचित जनजातीय (ज्यादातर वसावा समुदाय के लोग) मतदाताओं के समर्थन से कांग्रेस उम्मीदवार और पूर्व विधायक मजबूत स्थिति में दिखाई दे रहे हैं. 1962 से यहां एक पार्टी के उम्मीदवार को दोबारा जीत नहीं हासिल हुई है. इस परंपरा का फायदा सिद्धार्थ पटेल के पक्ष में जाता है, क्योंकि यहां 2012 में भाजपा के बालकृष्ण भाई पटेल चुनाव जीते थे. दभोई में कभी एक पार्टी या एक उम्मीदवार को लगातार दूसरी बार जीत हासिल नहीं हुई है, जिसके चलते भाजपा को अपना उम्मीदवार बदलना पड़ा है
सिद्धार्थ पटेल पूर्व मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल के पुत्र और कांग्रेस के चुनाव अभियान टीम के प्रमुख हैं. वह इस सीट पर 2007 और 1998 में विजयी रहे थे. दभोई विधानसभा क्षेत्र वड़ोदरा जिले और छोटा उदयपुर लोकसभा क्षेत्र में आता है. यहां पाटीदार मतदाताओं की संख्या 45,854 है. वहीं मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 22,321 है. यहां एसटी के 47,040, बक्शी पंच (ओबीसी) मतदाता 44,026, एसएसी 10,413, राजपूत 9,443 और ब्राह्मण 5,642 हैं. माना जाता है कि पाटीदार, एसटी और मुस्लिम मतदाताओं के समर्थन से सिद्धार्थ पटेल मजबूत स्थिति में हैं, क्योंकि अधिकांश एसटी मतदाता वसावा समुदाय के हैं. जनता दल (यूनाइटेड) के पूर्व नेता व भारतीय ट्राइबल पार्टी के नेता छोटूभाई वसावा की यहां अच्छी छवि है और उन्होंने कांग्रेस से हाथ मिला लिया है. भाजपा को यहां ऊंची जातियों के वोट के साथ-साथ 44,000 बक्शी पंच के वोट मिलने का भरोसा है. चूंकि पाटीदार भाजपा से नाराज हैं, इसलिए समुदाय के बड़े हिस्से की ओर से भाजपा को वोट मिलने की उम्मीद कम है. कांग्रेस के पक्ष में सामाजिक ताने-बाने को देख चिंतित शैलेश सोट्टा ने प्रथम चरण के मतदान से कुछ दिन पहले एक चुनावी रैली में कहा था -‘दाढ़ी और टोपी वाले अपनी आवाज व आखें नहीं चढ़ाएं’. बाद में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में सोट्टा ने यह कहते हुए अपने रुख को दोहराया कि इन ‘असामाजिक तत्वों’ का अवश्य दमन किया जाना चाहिए.
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