प्रस्तावित राजधानी गैरसैण; “हो गए सब स्वप्न साकार, कैसे मान लें हम“
गैरसैण; थिंक टैंक स्व0 विपिन चन्द्र त्रिपाठी द्वारा दिये गये तथ्य व तर्क
“हो गए सब स्वप्न साकार, कैसे मान लें हम, टल गया धरा का भार कैसे मान लें हमें“
किसी कवि की कहीं गयी पंक्तियां उत्तराखण्ड के परिप्रेक्ष्य में सही उतरती हैं।
– हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्तराखण्ड www.himalayauk.org
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के लिए चन्द्रशेखर जोशी- सम्पादक की रिपोर्ट
गैरसैण के संबंध में उक्रांद के पूर्व अध्यक्ष स्व0 श्री विपिन चन्द्र त्रिपाठी द्वारा दिये गये तथ्य व तर्क—–
उक्रांद के थिंक टैंक स्व0 विपिन चन्द्र त्रिपाठी ने गैरसैण ही क्यों का तर्क देते हुए कहा था कि प्रस्तावित राजधानी स्थल गैरसैण, पाण्डुवाखाल से दीवालीखाल तक 25 किमी0 लम्बाई एवं दूधातोली से नारायणबगड के ऊपर की चोटी तक 20 कि0मी0 की चैड़ाई क्षेत्र में फैला है जिसमें लगभग 3 हजार एकड़ यानि 60 हजार नाली वृक्षविहीन नजूल व बेनाप भूमि स्थित है। इसके अतिरिक्त भमराड़ीसैंण, नागचूलाखाल, पाण्डुवाखाल, रीठिया स्टेट सरीखे चारों ओर फैले खुबसूरत मैदान, बुग्याल स्थित हैं। यह पूरा क्षेत्र छोटी-बड़ी नौ पहाडियों व उनके बीच स्थित घाटियों में फैला है। अतः मध्य हिमालयी राज्यों में सर्वाधिक खूबसूरत राजधानी बनेगी। गैरसैण में राजधानी बनने से इसके चारों ओर के 5000 गांवों के विकास में भी इसका सीधा लाभ मिलेगा।
भूगर्भीय संरचना की दृष्टि से रियेक्टर स्केल पैमाने पर यह उत्तराखण्ड के अन्य जोनों से सबसे कम खतरे पर है। चारों ओर खूबसूरत वनाच्छादित क्षेत्र हैं। राजधानी निर्माण में पर्यावरण का 0.5 प्रतिशत से क्षति नहीं होगी।
गैरसैण में विकास नही हो पाया; तो कौन है जिम्मेदार?
क्या इसी उत्तरांचल के निर्माण के लिए राज्य के 42 शहीदों ने जान दी थी, महिलाओं तथा युवकों ने बलिदान दिया था। स्वतंत्रता संग्राम में भी इतना बलिदान देने की जरुरत नहीं पड़ी थी। उत्तराखण्ड में सत्ता पर काबिज होते रहे नेताओं की भावना समाज सेवा नहीं रह गयी है। आज राज्य के लोग उत्तराखण्ड की वर्तमान स्थिति से बड़े दुखी है। राज्य के वयोवृद्ध व थिंक टैंक का विचार था कि भारतवर्ष में फैले उत्तरांचल के निवासी अनुभवी, सुन्दर छवि वाले अवकाश प्राप्त अधिकारी, कुछ समय उत्तरांचल में समर्पित भाव से कार्य करें तथा कार्यरत अधिकारी सेवा का व्रत लेकर उत्तराखण्ड के प्रशासनिक ढ़ांचे को चुस्त और दुरुस्त करते। हमें स्वयं निर्णय लेने का अधिकार मिल चुका है। राज्य प्राप्ति की लड़ाई समाप्त हो गयी है। अब हमें एक सशक्त मजबूत उत्तराखण्ड की नींव डालनी चाहिए। जिनकी भावनायें उत्तराखण्ड से जुड़ी हैं, उनको साथ लेकर सशक्त उत्तराखण्ड की बात सोचनी चाहिए। सामूहिक नेतृत्व पैदा करना होगा जिसमें बुद्धिजीवी, महिलायें, पूर्व सैनिक, शिक्षक, कर्मचारी, विद्यार्थी, पत्रकार हो। उन्होंने चिंता भी जाहिर की थी कि पर्वतीय क्षेत्र की आर्थिक स्थिति कमजोर है। प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग नहीं हो रहा है। रोजगार का अभाव है, युवा पीढ़ी का पहाड़ का पलायन जारी है। उत्तराखण्ड राज्य की प्राप्ति किसी राजनीतिक पार्टी के बल पर नहीं हुई बल्कि उत्तराखण्ड राज्य समग्र उत्तराखण्ड निवासियों तथा हर वर्ग की समर्पित भावना और आंदोलन का प्रतिफल है। पत्रकारों का भी राज्य गठन में महान योगदान रहा, उनकी लेखनी से राज्य की पहचान अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर पहुंची। आज उत्तराखण्ड की मुख्य व एकमात्र समस्या केवल आर्थिक पिछड़ापन है। राजधानी कुमायूं व गढ़वाल के मध्य में होनी चाहिए थी। चाहे तम्बुओं में रहना पड़ता। देहरादून जैसी आरामदायक जगह में रह कर पहाड़ का विकास नहीं हो सकता। एक ओर देहरादून में विधायक आवास, अधिकारी आवास, नहर अण्डरग्राउण्ड, सड़क आदि के निर्माण में करोड़ों रुपया व्यय किया गया वहीं दूसरी ओर राजधानी के नाम पर गैरसैण में बिल्डिंग बनाकर अरबो स्वाहा कर दिये गये, अब सत्तारूढ तथा प्रतिपक्ष कह रहा है कि गैरसैण में विकास नही हो पाया। तो कौन है जिम्मेदार?
स्व0 विपिन चन्द्र त्रिपाठी ने लिखा है कि यदि राजधानी के चयन में तनिक भी भूल की गयी या राजनैतिक स्वार्थो के दबाव में गलत निर्णय लिया गया तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम होगे। 1979 में उत्तराखण्ड क्रांति दल की स्थापना ही राज्य प्राप्ति हेतु हुई थी। अपनी स्थापना से यह दल एकमात्र क्षेत्रीय दल के रुप में उत्तराखण्ड राज्य के लिए संघर्ष करता रहा है। उक्रांद के प्रयासों से तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तराखण्ड राज्य निर्माण की संभावनाओं हेतु वर्ष 1992 में 6 सदस्यीय कैबिनेट समिति कौशिक समिति का गठन किया। उक्त सरकारी समिति ने अल्मोड़ा, पौड़ी, काशीपुर, लखनऊ में बैठकें कर उत्तराखण्ड के सांसदों, विधायकों, जिला पंचायत अध्यक्षों, ब्लाक प्रमुखों, बुद्धिजीवियों एवं आम जनता की राय, अभिमत, उत्तराखण्ड राज्य निर्माण एवं राजधानी के संदर्भ में लिया था तथा प्रस्तावित राज्य की राजधानी हेतु जनमत संग्रह करवाया था। कौशिक समिति द्वारा करवाये गये जनमत संग्रह में 67 प्रतिशत से अधिक जनता ने गैरसैण- चन्द्रनगर जनपद चमोली को राजधानी के रुप में स्वीकार किया। बाद में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल श्री मोतीलाल बोरा द्वारा गठित एक्सपर्ट कमेटी ने भी अपने व्यापक सर्वेक्षण के बाद गैरसैण क्षेत्र को राजधानी हेतु सर्वाधिक उपयुक्त पाया।
स्व0 श्री विपिन चन्द्र त्रिपाठी ने दस्तावेज में लिखा है कि गैरसैण (चमोली) को राजधानी के रुप में चयनित करने हेतु उत्तराखण्ड की 75 प्रतिशत से अधिक जनता ने अपनी सहमति दी है। उत्तराखण्ड में कार्यरत किसी भी राजनैतिक दल ने गैरसैण का विरोध नहीं किया है। पेशावर काण्ड के महानायक उत्तराखण्ड की धरती के सपूत वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली का निरंतर यही प्रयास रहा कि दूधातोली से लेकर गैरसैंण के मध्य भावी उत्तराखण्ड राज्य की राजधानी स्थापित की जाय। जीवन के अन्तिम क्षणों में भी उस वीर सेनानी की यही अन्तिम इच्छा थी।
गैरसैण समूचे उत्तराखण्ड का केन्द्र बिन्दु है। उत्तराखण्ड के अन्तिम छोर से लेकर धारचूला, मुनस्यारी विकास खण्डों की अन्तिम सीमा से गैरसैण की दूरी लगभग बराबर है। कुमाऊॅ कमिश्नरी नैनीताल एवं गढ़वाल कमिश्नरी मुख्यालय पौड़ी से गैरसैण की दूरी समान है। उत्तराखण्ड के 13 जनपदों के जिला मुख्यालयों से गैरसैण तक बस द्वारा आसानी से 6 से 10 घण्टों में सीधे गैरसैण पहुंचा जा सकता है।
यहीं नहीं कर्णप्रयाग से रामनगर तक तथा रानीखेत तक मोटर मार्ग का चैड़ीकरण करने के पश्चात यह दूरी और कम समय में पूरी की जा सकती है। जनपद पिथौरागढ़ के धारचूला मुनस्यारी से प्रस्तावित गरूड़- धौणाई-तड़ागताल मोटर मार्ग के पूर्ण हो जाने पर इस क्षेत्र से गैरसैण की दूरी लगभग 100 किमी0 कम हो जायेगी।
हरिद्वार-कोटद्वार-रामनगर बीच के प्रस्तावित मोटर मार्ग के बन जाने से उत्तरकाशी, टिहरी व देहरादून जनपदों से भी गैरसैंण की दूरी 80 से 100 कि0मी0 कम हो जायेगी। उत्तरकाशी, टिहरी से वाया श्रीनगर, रुद्रप्रयाग होते हुए गैरसैण की दूरी मात्र 8 से 10 घण्टों में आसानी से तय की जाती है। पौड़ी कमिश्नरी मुख्यालय से गैरसैण की दूरी अभी मात्र 6 से 7 घण्टे की है। यदि पौड़ी से मराड़ीसैण-धौरसैण का निर्माण कर दिया जाए तो यह दूरी और कम हो जायेगी।
गैरसैण हरिद्वार-बद्रीनाथ मोटर मार्ग पर कर्णप्रयाग से मात्र 46 किमी0 की दूरी पर पक्के मोटर मार्ग से जुड़ा है। पिथौरागढ़ जनपद से वाया थल-बागेश्वर-गरूड़-ग्वालदम होते हुए सिमली से गैरसैण पक्के मोटर मार्ग से जुड़ा है। अल्मोड़ा-सोमेश्वर-द्वाराहाट होते हुए गैरसैण पक्के मोटर मार्ग से सम्बद्ध है। रूद्रपुर-हल्द्वानी- रानीखेत-द्वाराहाट-चैखुटिया होते हुए गैरसैण सीधे मोटर मार्ग से जुड़ा है। काशीपुर-रामनगर-भतरौंजखान भिकियासैण होते हुए वाया चैखुटिया गैरसैण तक पक्के मोटर मार्ग से सम्बद्ध है।
इस तरह गैरसैण चारों ओर से मोटर मार्गो से जुड़ा है।
—–उस समय स्व0 विपिन चन्द्र त्रिपाठी ने राजधानी निर्माण में अनुमानित व्यय भी लगाया था—
गैरसैण -चन्द्रनगर- में राजधानी निर्माण पर आने वाला वित्तीय भार
उत्तराखड की जनता की जनभावनाओं का सम्मान करते हुए यदि गैरसैण में राजधानी का निर्माण किया जाता है तो वित्तीय भार इस प्रकार होगा।
1- विधानसभा निर्माण- 25 करोड, 2- सचिवालय निर्माण- 20 करोड़, 3-मुख्यमंत्री व मंत्रियों के आवास- 5 करोड़ 4-71 विधायकों के आवास- 10.65 करोड़, 5-प्रमुख सचिव, सचिव, अपर सचिव, संयुक्त सचिव, उपसचिव कुल 150 सचिव‘ 22.50 करोड़, 6- सरकारी स्टाफ क्वाटर्स- 50 करोड़, 7- राज्यपाल भवन- ध्यान रहे कि गैरसैण से 8 से 10 किमी0 की हवाई दूरी पर नैनीताल में राज्यपाल भवन स्थित है- 1 करोड, 8- विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्षों के आवास- 15 करोड़, 9- विभागाध्यक्षों का स्टाफ- 10 करोड़, 10- पुलिस विभाग- 21 करोड़, 11- राजधानी में बाजार व्यवस्था- 10 करोड, 12- हैलीपैड़ व्यवस्था- 0.50 करोड़, 13- 10 हजार आबादी पर पावर हाऊस- 25 करोड़, 14- पिंडर नदी, नयार, रामगंगा किसी एक से पम्पिंग पेयजल योजना- नोट- वर्तमान में गैरसैण के चारों ओर पर्याप्त पानी उपलब्ध है- 50 करोड़, 15- भूमि व्यवस्था- 30 करोड़- नोट- गैरसैण के चारों ओर स्थित 9 पहाड़ियों के मध्य 3000 तीन हजार एकड़ से अधिक नजूल व भारत सरकार की वृक्ष विहीन भूमि है, 1000 एकड़ से अधिक भूमि पूर्व चाय बागानों व स्टेटों की है, भमराड़ी सैण से नागचूलाखाल, रीठिया स्टेट से दिवालीखाल व गैरसैण से पाण्डुवाखाल तक कृषकों की सहमति से 500 एकड़ भूमि क्रय की जा सकती है।
16- यातायात व्यवस्था- गैरसैण से कर्णप्रयाग 50 किमी0- 10 करोड़, गैरसैण से रानीखेत- 80 किमी0- 16 करोड़, गैरसैण से ग्वालदम-गरूड़- 100 किमी0- 20 करोड़, गैरसैण से रामनगर 120 किमी0- 24 करोड़, रामनगर-कोटद्वार- 35 करोड़, राजधानी क्षेत्र में 200 किमी0 नई सडकों का निर्माण- 70 करोड़
17- राजधानी क्षेत्र में राजकीय महाविद्यालयों व अन्य शिक्षा संस्थानों की स्थापना- 10 करोड़
18- पर्यटक आवास गृहों, विश्राम भवनों, परिवहन व्यवस्था हेतु बस स्टेशनों, पार्को, खेल मैदानों आदि की व्यवस्था हेतु- 25 करोड़, 19- राजधानी, सचिवालय व अन्य कार्योलयों की साज सज्जा व फर्नीचर आदि हेतु व्यय- 25 करोड़
इस तरह उक्रांद के थिंक टैंक श्री विपिन चन्द्र त्रिपाठी ने कुल पांच सौ पचास करोड पैसठ लाख अनुमानित व्यय का खाका खींच कर एक आदर्श व सुविधा सम्पन्न राजधानी का सपना देखा था।
आज करोडो-अरबो रूपये व्यय करके भी उत्तराखण्ड के राजनेता कह रहे है कि गैैैैरसैण में बुनियादी विकास नही हो पाया- सही तो कह रहे है- बिना नियत के विकास कैसे होता-
11 जनवरी 2001को भाजपा की अंतरिम सरकार ने उत्तराखण्ड राजधानी स्थल चयन आयोग का गठन कर न्यायमूर्ति वीरेन्द्र दीक्षित को इसका एक सदस्यीय अध्यक्ष बनाया। डेढ़ माह बाद आयोग स्थगित कर दिया गया। वर्ष 2002 में एक सदस्यीय आयोग को पुनर्जीवित कर दिया गया। 1 फरवरी 03 से आयोग ने दोबारा कार्य शुरु किया। रिपोर्ट में राजधानी के प्रस्तावित स्थल को राज्य के विभिन्न क्षेत्रों से दूरी, संचार, यातायात सुगमता, राजधानी निर्माण की दशा में आने वाले संभावित वित्तीय भार, प्रस्तावित स्थल की भूगर्भीय संरचना, पर्यावरणीय दृष्टिकोण, उपलब्ध क्षेत्रफल तथा अवस्थापना संबंधी सुझाव का प्रमुखता से उल्लेखहोना अनिवार्य किया गया।
आयोग का कार्यकाल 11 बार बढ़ाया गया। सितम्बर 2008 को आयोग ने मुख्यमंत्री को रिपोर्ट सौंप दी। प्रस्तावित राजधानी स्थल के लिए चार स्थानों को वरियता दिये जाने की चर्चा है। जिसमें गैरसैण, रामनगर, देहरादून और आईडीपीएल (ऋषिकेश) को शामिल किया गया है। आयोग ने इसके लिए हैदराबाद के रिमोट सेसिंग इंस्टीट्यूट की मदद से सेटेलाइट मानचित्र भी हासिल किये और चारों स्थलों का विस्तृत ब्यौरा हासिल किया। आयोग ने विषय विशेषज्ञों से भी जानकारी जुटाई।
आयोग ने रिपोर्ट को गोपनीय रखा है। आयोग की संस्तुति को जनता, राजनीतिक दल, संगठन सार्वजनिक किये जाने की मांग कर रहे हैं। कालाढुंगी, हेमपुर काशीपुर, भीमताल, श्रीनगर, श्यामपुर, कोटद्वार, रानीखेत, लैंसडोन, गोचर, नैनीडांडा, नागचुलाखाल, सतपुली, जौलीग्रांट, जिम कार्बेट, सिमली आदि को राजधानी बनाने के लिए आयोग को सुझाव मिले। आठ वर्ष बाद स्थल चयन आयोग ने अपनी रिपोर्ट सांैपी।
1-कालागढ़ः- कालागढ़ राजधानी बनाने के लिए दीक्षित आयोग को 23 सुझाव मिले। दीक्षित आयोग ने फरवरी 2004 में कालागढ़ का दौरा कर जायजा लिया तथा कालागढ़ को उत्तराखण्ड की राजधानी बनाने के योग्य नहीं पाया। आयोग को कालागढ़ में ज्ञात हुआ कि रामगंगा प्रोजेक्ट के लिए वन विभाग से 904 एकड़ भूमि लीज पर ली गयी थी। निर्माण पूरा होने पर 580 एकड़ भूमि लौटा दी गयी। इस मामले में एक एनजीओ कोर्ट भी गयी है। कोर्ट ने एक केन्द्रीय कमेटी का गठन किया। यह कमेटी वन विभाग को जमीन लौटाने के प्रकरण की जांच कर रही है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सड़क के किनारे-किनारे एक बाउंड्री बाल का निर्माण किया है। इसे ही उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखण्ड की सीमा बनाया गया है। जिस क्षेत्र में राजधानी घोषित करने की बात की जा रही है वह महज 500 मीटर चैड़ा और चार किमी लम्बा भूमि का हिस्सा है। यहां कई भवन पहले से बने हुए हैं। वन विभाग के रेंज अधिकारी ने आयोग को बताया कि कालागढ़ क्षेत्र की समस्त भूमि कार्बेट टाइगर रिजर्व के अन्तर्गत आती है। हाईकोर्ट के निर्देश पर यह भूमि वन विभाग द्वारा वापस ली जा रही है। आयोग ने जमीन की अनुपलब्धता के आधार पर कालागढ़ को स्थायी राजधानी बनाने पर असमर्थता जतायी।
2- गैरसैंणः- राजधानी स्थल चयन आयोग को राजधानी बनाने के लिए कुल 268 सुझाव मिले। इसमें 192 व्यक्तिगत, 49 संस्थागत/एनजीओ, 15 संगठनात्मक/पार्टीगत और 12 ग्रुपों के सुझाव थे। इनमें से गैरसैण के पक्ष में 126, देहरादून के पक्ष में 42, रामनगर के पक्ष में चार, आईडीपीएल के पक्ष में 10 सुझाव थे।
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