“पेड़ों की छांव तले रचना पाठ” की पैंतीसवीं साहित्य गोष्ठी
“देश भक्ति और राष्ट्र प्रेम प
दिनांक 27 अगस्त 2017 , रविवार, वैशाली,गाजियाबाद
“पेड़ों की छांव तले रचना पाठ” की पैंतीसवीं साहित्य गोष्ठी सम्पन्न-
“देश भक्ति और राष्ट्र प्रेम पर” के ओजस्वी गीतों , छंदों और गजलों से परिपूर्ण “पेड़ों की छांव तले रचना पाठ” की पैंतीसवीं साहित्य गोष्ठी वैशाली सेक्टर चार, स्थित हरे भरे मनोरम सेंट्रल पार्क में सम्पन्न हुई । हिन्दी साहित्य से संबन्धित अभिनव प्रयोग की यह श्रंखला प्रत्येक माह के अंतिम रविवार को पूर्व निर्धारित कार्यक्रम अनुसार ही मध्यान्ह उपरांत 4 .30 बजे से प्रारंभ हुई।
कितना धैर्य रखें , कितना संयम बरते , दुश्मन सीमा लाँघ , हमें ललकार रहा “
आओ चलो मिलकर हम समझे / एक सैनिक के जज्बातों को / जो सरहद पर गुजरे / उसके उन लम्हों उन हालातों को “
” हजार रंग फूल हैं / मगर चमन तो एक है / सितारे हैं हजारों / पर गगन तो एक है / भिन्न भिन्न धर्म है / अलग अलग है साधना / अनेक जाति वर्ण हैं / मगर वतन तो एक है। “
” गोली का गोली से बस आखिरी हो संवाद / पी ओ के पर कब्ज़ा कर भारत हो आबाद / भारत हो आबाद करे यहीं ख़त्म कहानी / आर पार की जंग लडें हम जंगी हिन्दुस्तानी “
” गोली का गोली से बस आखिरी हो संवाद / पी ओ के पर कब्ज़ा कर भारत हो आबाद / भारत हो आबाद करे यहीं ख़त्म कहानी / आर पार की जंग लडें हम जंगी हिन्दुस्तानी “
घने गुलाचीन के पेड़ों और हरियाली के शीतल मनोरम सानिध्य में पार्क की हरी भरी दूब पर आयोजित इस साहित्य गोष्ठी में इस बार बाहर से पधारे नव गीत कारों और गजल कारों ने श्रोताओं को आनंदित किया और देर शाम तक चली गोष्ठी को “देश भक्ति और राष्ट्र प्रेम के शौर्य त्याग बलिदान से जुडी गाथा पर” नयी बुलंदियों से स्पर्श कराया ।
गोष्ठी में पधारे नवगीत विधा के सशक्त हस्ताक्षर वरिष्ठ नवगीत कार जगदीश पंकज ने सरहद की सरगर्मियों के बीच शहीदों की याद करते हुए कहा ” कितना धैर्य रखें , कितना संयम बरते , दुश्मन सीमा लाँघ , हमें ललकार रहा “। वहीं वरिष्ठ कवि ईश्वर सिंह तेवतिआ ने फौजी के त्याग और बलिदान को नए रूप से प्रस्तुत किया और कविता “आओ चलो मिलकर हम समझे / एक सैनिक के जज्बातों को / जो सरहद पर गुजरे / उसके उन लम्हों उन हालातों को ” का पाठ किया। इस क्रम में उमेश श्रीवास्तव “राही ” ने पढ़ा ” हजार रंग फूल हैं / मगर चमन तो एक है / सितारे हैं हजारों / पर गगन तो एक है / भिन्न भिन्न धर्म है / अलग अलग है साधना / अनेक जाति वर्ण हैं / मगर वतन तो एक है। ” गोष्ठी के संयोजक अवधेश सिंह ने ललकार की भाषा में कहा ” गोली का गोली से बस आखिरी हो संवाद / पी ओ के पर कब्ज़ा कर भारत हो आबाद / भारत हो आबाद करे यहीं ख़त्म कहानी / आर पार की जंग लडें हम जंगी हिन्दुस्तानी ” मनोज दिवेदी ने देश प्रेम की भावना से ओत प्रोत गीत पढ़ा ” ईमान पुकारे है / अभिमान पुकारे है / चेत जाओ देश का / सम्मान पुकारे है ” अन्य प्रमुख कवियों में परमजीत यादव “कम दिल ” ने गजल पढ़ी ” जश्न आजादी की शान तिरंगा है , खुद्दार वतन हर शख्स का अरमान तिरंगा है। ,
कार्यक्रम को गति प्रदान करते हुए कवि व टीवी एंकर अमर आनंद ने कविता “अँधेरों का , अंधेरगर्दी का ना कभी भी डेरा हो / ऐसा संदेश , ऐसा परिवेश ,ऐसा देश ही मेरा हो”पढ़ी , व पत्रिका सृजन से की संपादिका मीना पाण्डेय ने राष्ट्र प्रेम से ओत प्रोत गीत “आसमां छू कर पुकारें/ सर्व आजादी / हमारा मर्म आजादी /मनाएँ पर्व आजादी ….” का पाठ किया तथा टीवी एंकर नवोदित रिंकू मिश्रा ने देश भक्ति की भावना से ओत प्रोत कविता “ मैं गीत हूँ संगीत हूँ मैं रीत हूँ और जीत हूँ मैं प्यार हूँ मैं भाव हूँ मैं प्रीत हूँ और शीत हूँ किस सोंच में पड़े हो …..” का पाठ किया। अन्य प्रमुख कवियों में कृष्ण मोहन उपाध्याय , रामेश्वर दयाल शास्त्री , डॉ वरुण कुमार तिवारी ने भी काव्य पाठ किया इस अवसर पर प्रसिद्ध कहानी कार मनीष कुमार सिंह ने लघु कथा का वाचन किया और उनके नए उपन्यास “आँगन वाला घर ” पर चर्चा हुई। गोस्ठी का सफल संचालन संयोजक अवधेश सिंह ने व अध्यक्षता डा वरुण कुमार तिवारी ने की ।
इस अवसर पर सर्व श्री कैलाश पांडेय प्रबंध संपादक सृजन से साहित्यिक पत्रिका , समाज सेवी दयाल चंद्र , राजदेव सिंह , शत्रुघ्न प्रसाद , शिव चरण कुशवाहा , आर के शर्मा , उमाशंकर प्रसाद गुप्त , जे बी सिंह ,गुप्तेश्वर प्रसाद ,लक्ष्मी नारायण गुप्त , ए.एस रमन , एस. पी त्यागी , आर पी सिंह आदि प्रबुध श्रोताओं ने रचनाकारों के उत्साह को बढ़ाया । गोस्ठी के समापन पर आभार व्यक्त करते हुए इस गोस्ठी के संयोजक कवि लेखक अवधेश सिंह ने इस गोष्ठी की निरंतरता को बनाए रखने का अनुरोध करते हुए सबको धन्यवाद दिया