सरकार के खिलाफ बढता जा रहा एंटी इंकम्बेंसी

शिवराज सरकार के खिलाफ है एंटी इंकम्बेंसी
भोपाल: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार की पहचान या यूं कहें कि ‘किसान हितैषी सरकार’ के तौर पर प्रचार कुछ ज्यादा ही हुआ है, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंदसौर की श्रद्धांजलि सभा में किसानों के कर्ज माफ करने का भरोसा दिलाकर ऐसा मास्टर स्ट्रोक मारा है कि बीजेपी की लगभग डेढ़ दशक पुरानी फील्डिंग ही बिखरने लगी है. मंदसौर गोलीकांड की पहली बरसी पर कांग्रेस की ओर से आयोजित श्रद्धांजलि सभा में पहुंचे राहुल गांधी ने प्रदेश की शिवराज सरकार को किसान, गरीब, मजदूर और युवा विरोधी करार दिया. साथ ही सत्ता में आने के 10 दिन के भीतर किसानों का कर्ज माफ करने का ऐलान किया.
राज्य में बीजेपी के खिलाफ तीन स्तर की एंटी इंकम्बेंसी है. पहला, स्थानीय स्तर के नेताओं की राज्य सरकार और केंद्र सरकार से नाराजगी है. दूसरा, गोलीकांड के बाद से किसानों में बेहद नाराजगी है. तीसरा, उत्तर प्रदेश के कैराना लोकसभा उपचुनाव में पार्टी की हार ने बीजेपी को सचेत किया है. वहां जातिवाद, संप्रदायवाद का जहर घोलने के बाद भी पार्टी जीत नहीं पाई.
किसानों की भीड़ देखकर बीजेपी की बड़ी टेंशन
राहुल के कर्जमाफी के ऐलान या क्रिकेट की भाषा में कहें तो मास्टर स्ट्रोक से बीजेपी की लाइन लेंथ पूरी तरह गड़बड़ा गई है. राहुल का एक तरफ बीजेपी की सबसे बड़ी ‘किसान हितैषी’ होने की ताकत पर वार और दूसरी ओर बड़ी-बड़ी बाधाओं को लांघकर बड़ी संख्या में पहुंचे किसानों के जमावड़े ने सत्ताधारी दल के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी कर दी हैं.
राहुल की सभा के बाद बीजेपी में अचानक सक्रियता बढ़ गई है. पार्टी की चुनाव प्रबंधन समिति के प्रमुख नरेंद्र सिंह तोमर ने कार्यकर्ताओं से कहा कि वे लोगों के बीच जाएं और उनकी समस्याओं को जानकर समाधान के प्रयास करें. साथ ही यह जानें कि आमजन की बेहतरी के लिए और क्या किया जा सकता है. वहीं पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह ने राहुल गांधी के किसानों के कर्ज माफ करने वाले बयान पर तंज कसा और किसानों के कर्ज के बोझ को ही झुठला दिया. उन्होंने कहा, “यहां किसानों को शून्य प्रतिशत ब्याज पर कर्ज मिलता है और 10 प्रतिशत बतौर अनुदान दिया जाता है. ऐसे में किसान कर्ज के बोझ तले कैसे दबेगा? राज्य में बीजेपी की सरकार बनने के बाद किसानों की स्थिति सुधरी है, सिंचाई सुविधा में बढ़ोतरी हुई है. यही कारण है कि पांच बार कृषि कर्मण पुरस्कार मिला है.” मुख्यमंत्री शिवराज ने तो कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने के लिए यहां तक कह दिया कि उनकी सरकार ने ऐसे काम किए हैं, जिनके उदाहरण दुनिया में कहीं नहीं मिलते.
किसान के इसी असंतोष को विपक्षी कांग्रेस भी पहचान रही है और सत्ता में बैठी बीजेपी भी. इसीलिए अनुमान लगाया जा रहा है कि शिवराज सिंह चौहान जल्द ही किसानों के लिए बड़ी घोषणाएं कर सकते हैं. ये घोषणाएं फसल पर दिए जाने वाले बोनस जैसी घोषणाओं से बड़ीं और संपूर्ण कर्ज माफी से छोटी हो सकती हैं. वहीं कांग्रेस किसानों की इस निराशा को बीजेपी के 15 साल की एंटी इनकंबेंसी को बढ़ाने में इस्तेमाल करना चाहती है. राहुल गांधी किसानों से कर्ज माफी की सीधी बात कहेंगे और किसान आत्महत्याओं को बड़ा मुद्दा बनाएंगे. प्रशासन जिस तरह किसानों से व्यवहार कर रहा है, उससे किसानों का गुस्सा और ज्यादा भड़केगा ही. ये सारे हालात मिलकर किसानों के संकट को उसकी असली समस्याओं से दूर ले जाकर पहले भावुक और फिर सियासी संग्राम में बदल देंगे. इस तरह किसानों की समस्याएं एक बार फिर सुलझाए जाने से कोसों दूर हो जाएंगी.

 
कहने को मध्यप्रदेश में किसानों को शून्य ब्याज पर कर्ज दिया जाता है, लेकिन व्याहारिक स्थिति यह है कि ज्यादातर किसान इसका फायदा उठाने की पात्रता ही हासिल नहीं कर पाते. मध्य प्रदेश के एक किसान पर औसतन 14,000 रुपये का कर्ज है. कृषि विकास दर के रफ्तार पकड़ने से किसानों की कृषि आय तो बढ़ी है, लेकिन गैर कृषि आय न बढ़ने से यहां के किसान की कुल आय देश की औसत आय से कम है. पंजाब और हरियाणा के किसानों की तुलना में यह आमदनी एक तिहाई भी नहीं है. ये सारे तथ्य मिलकर एक ऐसी तस्वीर बनाते हैं जिनमें बड़ा किसान या पहुंच वाला किसान तो योजनाओं और अवसरों का लाभ उठा लेता है, लेकिन छोटा किसान दूर छिटक जाता है.
 

उन्होंने कहा, “संघर्ष का शंख बज चुका है, हमें लड़ना है और जीतना है. लड़ाई के लिए जो हथियार चाहिए, वह सरकार की उपलब्धियों के रूप में हमारे हाथ में है. सरकार ने मुख्यमंत्री जनकल्याण योजना सहित किसान, युवा और महिलाओं के हित में ऐसे-ऐसे काम किए हैं, जिनके दूसरे उदाहरण दुनिया में कहीं नहीं मिलते.”
राहुल की सभा के बाद ‘डैमेज कंट्रोल’ के लिए बीजेपी नेताओं के बयानों तक ही बात नहीं ठहरी है. पार्टी ने मीडिया में अपनी बात पूरी ताकत से उठाने के लिए पूर्व पत्रकार और सांसद प्रभात झा के हाथ में कमान सौंपी है. उन्हें प्रवक्ताओं, पैनलिस्टों के बीच समन्वय बनाने के लिए पार्टी के समग्र मीडिया का प्रभारी बनाया गया है. वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस की प्रचार समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी सरकार को ‘किसान विरोधी’ बताते हुए कहते हैं, “इस सरकार के राज में किसानों का नहीं, दलालों और बिचौलियों का फायदा हुआ है. यह किसान को लूटने वाली सरकार है.”
मध्यप्रदेश में इस साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं और अभी से साफ हो गया है कि इन चुनावों का सबसे बड़ा मुद्दा किसान होंगे. यकीन न हो तो सियासी कैलेंडर पलटकर देखिए- मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 30 मई को मंदसौर में खेतिहर मजदूरों की बड़ी सभा की तैयारी कर रहे हैं. सरकार किसानों के आंदोलन को लेकर इतनी ज्यादा दबाव में है कि पुलिस के लिए 15,000 नए डंडे खरीदे जा रहे हैं. क्या बूढ़ा और क्या जवान, हर किसान से हिंसा न करने के बॉन्ड भरवाए जा रहे हैं. किसान आंदोलन के दौरान ज्यादा दिक्कत न हो इसके लिए सब्जी से लेकर दूध तक का स्टॉक रखने की तैयारी चल रही है. और सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि सब्जी बेचने वालों को हथियारबंद जवानों के पहरे में लाया जाएगा, ताकि उन्हें कोई नुकसान न पहुंचाया जा सके.

क्या ये सारी बातें उस राज्य के लिए असामान्य नहीं हैं, जिसे पिछले 10 साल से निर्विवाद रूप से देश में खेती-किसानी में अव्वल माना जा रहा हो. जब पूरे देश की कृषि विकास दर 2 फीसदी के लिए तरस रही हो, तब उस राज्य में कृषि विकास दर कभी 10 फीसदी से नीचे ही नहीं आई. जो राज्य चुनिंदा फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के साथ ही बोनस भी देता रहा हो. जिस राज्य का मुख्यमंत्री नीति आयोग में देश की कृषि नीति तय करने वाली कमेटी का मुखिया हो. ऐसे राज्य में सामान्य मानसून के पूर्वानुमान के बावजूद किसानों की दुर्दशा अगर चुनावी मुद्दा बन जाए तो सोचना पड़ेगा कि देश ने खेती के बारे में कहीं गलत रोल मॉडल तो नहीं चुन लिया. या कहीं ऐसा तो नहीं कि खेती के बारे में हम इतने नाकाम हुए कि मध्यप्रदेश हमारी कामयाबी का सबसे बड़ा पैमाना बन गया.

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