गुजरात में भाजपा को कमजोर आंकने की गलती ?
गुजरात में अब तक के रुझानों से ऐसा लगता है कि बीजेपी और कांग्रेस के बीच बहुत कम का अंतर सामने आ सकता है, जो कांटे की टक्कर भी हो सकता है. राजनीतिक प्रेक्षको के अनुसार बीजेपी चुनाव इस बार भी जीत जाती है तो जैसा मोदी का जैसे पहले कद था वैसा नहीं रहेगा. मोदी अब बचाव की मुद्रा में आएंगे., ऐसा क्यों हुआ – भाजपा को जीत के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पडा हैं. समाजशास्त्री शिव विश्वनाथन कहते हैं, ”भारतीय जनता पार्टी चुनाव प्रचार के लिए कई मंत्रियों को गुजरात भेज रही है. इसकी वजह ये है कि उन्हें हार का डर सता रहा है. गुजरात में भारतीय जनता पार्टी यदि अच्छे से नहीं जीती तो भी ये उसके लिए हार की तरह होगा.” वरिष्ठ पत्रकार अजय उमठ का मानना है, ”गुजरात में चुनाव प्रचार के लिए इतने केंद्रीय मंत्री इससे पहले तो कभी नहीं आए थे. साल 2007 के विधानसभा चुनाव में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चुनाव प्रचार के लिए गुजरात आए थे, तब विपक्ष ने उनका मज़ाक उड़ाया था. तब ये कहा गया था कि गुजरात में भारतीय जनता पार्टी का मुक़ाबला करने के लिए कांग्रेस को प्रधानमंत्री को मैदान में उतारना पड़ा.- अब प्रधानमंत्री ने करीबन कितनी सभा, मीटिंग की होगी, गिनती से परे हैं,
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राजनीतिक प्रेक्षक क्या कोई आम नागरिक भी गुजरात में भाजपा को कमजोर आंकने की गलती नहीं कर सकता था परन्तु ऐसा क्या हुआ जो जंग की तरह गुजरात चुनाव लडना पडा, वो गुजरात जिसे वो चुटकियो में बडी आसानी से जीतती आयी थी, वो उसके गले की फांस बन गया, पूरे विधानसभा चुनाव में बैकफुट पर रहना पडा भाजपा को तथा लोकसभा चुनाव की तरह यह गुजरात चुनाव लडा गया, इसके बाद ही अगर गुजरात में विजय मिलती है तो यह कोई बडी खुशी वाली जीत नही होगी, वही ऐसा क्यो होता गया, यह पिछले तीन सालो में वित्त मंत्री द्वारा दिये लिये गये फैसले थे जो गुजरात की जंग तगडी होती गयी, और यह जंग गुजरात के साथ खत्म नही हुई है, म0प्र0, राजस्थान समेत कई राज्यो में अगले वर्ष 2018 चुनाव होने है, वहां भी कमोवेश गुजरात वाली स्थिति बन जाये तो बडी बात नही,
इसके उपरांत गुजरात की तरह स्थिति धीरे धीरे उत्तराखण्ड में भी होती जाये तो कोई आश्चर्य नही, उत्तराखण्ड को लेकर संघ बहुत खुश नही है, गुजरात में भाजपा के लिए इतनी उर्वरा जमीन होने के बाद मुकाबला कठिन होता गया, वही उत्तराखण्ड में शून्यता की बढती स्थिति आने वाले दिनो के लिए भाजपा के लिए कठिन साबित हो सकती है, इसको लेकर नागपुर तक में चिंता जतायी जा चुकी है,
बेरोजगार युवाओं के आंदोलन से गुजरात में मुख्यमंत्री को बदलने पर मजबूर होना पडा था, गुजरात में मंदी व बेकारी शेष भारत से कहीं ज्यादा गहरी है, नोटबंदी और जीएसटी की चोट से गुजरात में भाजपा के लिए हालात कठिन होते गये, मंदी ने गांवों के लिए मौके खत्म कर दिये और ग्रामीण गुजरात का गुस्सा विधानसभा चुनाव में भाजपा की सबसे बड़ी मुश्किल बनता गया, गुजरात के नतीजे भारत के भविष्य की आर्थिक राजनीति के लिए बहुत कीमती और दूरगामी होगे
वही गुजरात विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण लोग काफी उत्साह, उल्लास के साथ वोट डालने पहुंचे. कच्छ, दक्षिणी गुजरात, सौराष्ट्र आदि इलाकों की कुल 89 सीटों वोटिंग हुई है. यह इलाका बीजेपी का गढ़ माना जाता है. वोट डालने वालों में युवाओं, महिलाओं की जबर्दस्त मौजूदगी देखी गई है. इसके मायने क्या है, यह एक बडा सवाल है,
सूरत, राजकोट, भावनगर, अंकलेश्वर, भरूच, अहमदाबाद जैसे कई इलाकों में जो पटेलों के गढ़ है. 31 सीटें ऐसी हैं जिनमें 20 फीसदी से ज्यादा पटेल हैं. बीजेपी ने 29 पटेल तो कांग्रेस ने 25 पटेल उम्मीदवार उतारे हैं. लोग काफी उत्साह से सुबह से ही वोट डालने निकले वही दूसरी ओर अहमदाबाद में कांग्रेस दफ्तर में बडी रौनक देखी गयी, ऐसी रौनल पहले कभी नहीं थी.
बिना किसी अवरोध के बिना किसी विरोध के शासन कर रही बीजेपी को सत्ताविरोधी रुख का भी सामना करना पड़ रहा है. क्या वो अपने विकास और शक्तिशाली हिंदू राष्ट्रवाद के साथ जाति और पहचान की राजनीति पर जीत पा सकेगी यह तो आने वाल वक्त ही बतायेगा.
राज्य में बीजेपी की स्थिति अब अजेय वाली नहीं है.
मोदी सरकार पर एक किताब लिख चुके वरिष्ठ पत्रकार उदय माहुरकर कहते हैं, “बीजेपी 2002 के बाद से अपने सबसे मुश्किल चुनाव का सामना कर रही है. हार्दिक पटेल सबसे बड़ा ख़तरा हैं. वो गुजरात चुनाव की सबसे बड़ी स्टोरी हैं.”
हार्दिक ; दो साल पहले पाटीदार प्रदर्शनकारियों पर हुई पुलिस फ़ायरिंग में 12 लोग मारे गये थे. हार्दिक पटेल पर राजद्रोह का आरोप लगा, उन्हें नौ महीने ज़ेल में बंद कर दिया गया और फिर उनकी ज़मानत की शर्तों के मुताबिक उन्हें छह महीने राज्य से बाहर रहना पड़ा. जेल और फिर राज्य से निष्कासन ने उन्हें पाटीदारों की आंखों में हीरो बना दिया. तालाला के छोटे शहर में समर्थक उन्हें मसीहा बुलाते हैं और उन्हें समीप के ही गिर में रहने वाले एशियाई शेर की फ्रेम की हुई तस्वीर उपहार स्वरूप देते हैं. उनमें से एक कहते हैं, “वो हमारे बीच असली शेर है.” जब चौराहे पर हार्दिक पटेल की सिल्वर एसयूवी पहुंचती है तो समर्थक उनकी एक झलक पाने को उतावले हो उठते हैं. महिलाएं उनके माथे पर तिलक लगाते हुए मिठाई देती हैं और उनके साथ सेल्फ़ी खिंचाती हैं. यह बिना पार्टी वाली निम्न वर्ग समर्थकों की फ़ौज है, लेकिन समर्थन असाधारण रूप से स्वैच्छिक है. वो एक साथ आवाज़ लगाते हैं, “भाई हार्दिक, आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं.” हार्दिक पटेल ने कहते है, “विकास का ताल्लुक युवाओं, किसानों और गांवों के विकास से है. अकेले शहरों का विकास नहीं होना चाहिए.” हार्दिक का मानना है कि इस बार बीजेपी को हराने का अच्छा मौका है. वो कहते हैं, “अगर सरकार इस बार भी नहीं बदलती है तो इसका मतलब ये है कि गुजरात की जनता बीजेपी के आगे बेबस है
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