जीवन में गुरूदेव आपकी कृपा बनी रहे; “गुरु को दंडवत, कोटि कोटि परनाम” -गुरु पूर्णिमा पर्व -5 जुलाई
Guru Purnima 2020: रविवार पांच जुलाई को पूरे देश में गुरु पूर्णिमा का पर्व है । आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। गुरु पूर्णिमा का सनातन धर्म में विशेष महत्व है तथा हिंदुओं में गुरु की भगवान से पहले पहले पूजा की जाती है। जीवन में गुरु का होना अत्यंत आवश्यक है। अगर आप चाहें तो इस दिन किसी ऐसे इंसान की भी पूजा कर सकते हैं, जिसे आप अपना गुरु मानते हैं। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाता है। गुरु पूर्णिमा खास तौर पर वर्षा ऋतु में मनाने के पीछे भी एक एक कारण है। यह समय अध्ययन और अध्यापन के लिए अनुकूल व सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए गुरु चरण में उपस्थित शिष्य ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति को प्राप्त करने हेतु इस समय का चयन करते हैं—–
चन्द्रशेखर जोशी मुख्य सम्पादक.हिमालयायूके वेब एण्ड प्रिन्ट मीडिया & General Secretary: Kurmanchal Parishad Dehradun & President Uttrakhand: IFSMN (National Federation) – मो0 9412932030
इसकेअलावा सोमवार 6 जुलाई से भगवान शिव महीन सावन शुरू हो जाएगा। इस बार सावन में कई विशेष योग भी बन रहे हैं। इसकी वजह इस बार सावन की शुरुआत सोमवार से होने के साथ ही सावन के महिने का अंतिम दिन भी सोमवार को ही होगा। गुरु पूर्णिमा के साथ ही सावन शुरू हो जाएंगे। वहीं सावन के महीने में सोमवार को भगवान शिव की पूजा करने के साथ ही विष्णु जी की पूजा का भी विशेष फल मिलता है। सावन के महीने में भगवान शिव और विष्णु की अराधना बहुत फलदाई मानी जाती है। सावन माह में वैसे तो सभी लोग भगवान शिव की पूजा करते हैं। पंडित जी बताते हैं कि इस माह में भगवान शिव के साथ विष्णु जी की आराधना फलदायी है। सावन में आने वाले पांच सोमवार 06, 13, 20,27 जुलाई और 03 अगस्त को हैं। इन पांचों सोमवार में शिव और विष्णु जी की आराधना से आपको महत्वपूर्ण फल मिलेंगा। इतना ही नहीं इस पूजा से मां लक्ष्मी भी खुश होती हैं। जो धन धान्य की वर्षा करती हैं। सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा करने से जीवन से सभी तरह की परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है।
गुरु पूर्णिमा एक ऐसा पर्व है, जिसमें हम श्रेष्ठजनों के लिए कृतज्ञता और आभार व्यक्त करते हैं——-हिमालयायूके के लिए चन्द्रशेखर जोशी की रिपोर्ट
गुरु को कीजे दंडवत, कोटि कोटि परनाम। कीट न जानै भृंग को, गुरु कर लें आप सामान ॥
”गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये” मंत्र का जाप करें।
आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। यह उत्सव गुरु के प्रति सम्मान और कृतज्ञता को दर्शाता है। इस साल यह पर्व 05 जुलाई को मनाया जाएगा। गुरु पूर्णिमा के मौके पर चंद्र ग्रहण भी लग रहा है। सनातन परंपरा में गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा स्थान दिया गया है।
हिन्दुओं में गुरु को प्रीत सहित और दंडवत और बारम्बार प्रणाम करना चाहिए अर्थात दीनतापूर्वक उन्हें हृदय बसाए रखना चाहिए। कीड़ा भैरे की क्षमता को तो नहीं जनता पर भैरा, जोकि क्षमतावान है, कीड़े पकड़ कर बार बार उसको डंक मरता है और अपनी गुंजार सुनाता है और कीड़ा मृतप्राय होकर सब सुनता है और सहता है जिसके फलस्वरूप कीड़ा भी भृंगी का रूप ले लेता है।
धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि गुरुओं को भगवान से भी ऊपर का दर्जा प्राप्त हैं क्योंकि गुरु ही हमें अज्ञानता के अंधेरे से सही मार्ग की ओर ले जाता है। इस वजह से देशभर में गुरु पूर्णिमा का पर्व बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। बता दें गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। हालांकि, इस साल गुरु पूर्णिमा के दिन चंद्र ग्रहण भी है।
इसीलिए ऐसा माना जाता है कि इसी दिन आदिगुरु, महाभारत के रचयिता और चार वेदों के व्याख्याता महर्षि कृष्ण द्वैपायन व्यास अर्थात महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। महर्षि व्यास संस्कृत के महान विद्वान थे। महर्षि परासर इनके पिता माने जाते हैं। महाभारत जैसा महाकाव्य उनके द्वारा ही लिखा गया था। और सभी 18 पुराणों का रचयिता भी महर्षि वेदव्यास को ही माना जाता है। इसके साथ ही वेदों को विभाजित करने का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है।
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस साल गुरु पूर्णिमा पांच जुलाई 2020 दिन रविवार का को मनाई जाएगी। गुरु पूर्णिमा का महत्व गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु की पूजा करने का विशेष महत्व है।
गुरु की पूजा करना इसलिए भी जरूरी है जिससे जीवन में गुरू की कृपा बनी रहे। क्योंकि उनकी कृपा से व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है। गुरु के बिना किसी भी व्यक्ति को जीवन में ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती है। इस वजह से गुरु को भगवान से भी ऊपर का दर्जा प्राप्त है। इस दिन केवल गुरु ही नहीं बल्कि घर में अपने बड़ों जैसे माता-पिता, भाई-बहन आदि का आशीर्वाद लिया जाता है.
गुरु पूर्णिमा की पूजा विधि गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और बाद में स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद घर के मंदिर में किसी चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर व्यास-पीठ बनाएं। इसके बाद ”गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये” मंत्र का जाप करें। इसके बाद अपने गुरु या उनकी फोटो की पूजा करें। यदि आप अपने गुरु के सामने हैं तो सबसे पहले उनके चरण धोएं। उन्हें तिलक लगाएं और फूल अर्पण करें। और उन्हें भोजन कराएं। इसके बाद दक्षिणा देकर उनके पैर छुएं और उन्हें विदा करें। अगर आप चाहें तो इस दिन किसी ऐसे इंसान की भी पूजा कर सकते हैं, जिसे आप अपना गुरु मानते हैं।
गुरु के महत्व को बताते हुए संत कबीर का एक दोहा बड़ा ही प्रसिद्ध है। जो इस प्रकार है –
गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥
इसके अलावा संस्कृत के प्रसिद्ध श्लोक में गुरु को परम ब्रह्म बताया गया है –
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
हिंदू धर्म में गुरु और ईश्वर दोनों को एक समान माना गया है। गुरु भगवान के समान है और भगवान ही गुरु हैं। गुरु ही ईश्वर को प्राप्त करने और इस संसार रूपी भव सागर से निकलने का रास्ता बताते हैं। गुरु के बताए मार्ग पर चलकर व्यक्ति शान्ति, आनंद और मोक्ष को प्राप्त करता है। शास्त्रों और पुराणों में कहा गया कि अगर भक्त से भगवान नाराज हो जाते हैं तो गुरु ही आपकी रक्षा और उपाय बताते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, गुरु पूर्णिमा पर गुरु की पूजा-आराधना की जाती है। देश में गुरु पूर्णिमा का बहुत ही महत्व है। गुरु पूर्णिमा को लोग बड़े उत्साह और जोश के साथ मनाते हैं। भारत ऋषियों और मुनियों का देश है जहां पर इनकी उतनी ही पूजा होती है जितना भगवान की। महर्षि वेद व्यास प्रथम विद्वान थे, जिन्होंने सनातन धर्म के चारों वेदों की व्याख्या की थी। साथ ही सिख धर्म केवल एक ईश्वर और अपने दस गुरुओं की वाणी को ही जीवन का वास्तविक सत्य मानता आ रहा है। गुरु पूर्णिमा महाकाव्य महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। वेदव्यास संस्कृत के महान ज्ञाता थे। सभी 18 पुराणों का रचयिता भी महर्षि वेदव्यास को माना जाता है। वेदों को विभाजित करने का श्रेय भी वेद व्यास को दिया जाता है। इसी कारण इनका नाम वेदव्यास पड़ा था। इसलिए गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।