सलाहकारों के कारण फिर गच्चा खा गये-हरीश
#मुस्लिम नेता ने हरीश रावत को खुला विरोध लिखा- मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड के दो निर्णय उनके गले की फांंस बन गये – हार्दिक पटेल की राजनीति जाति आधारित है- क्या उददेश्य था इसके पीछे ; हिमालयायुूके न्यूज पोर्टल सम्पादक चन्द्रशेखर जोशी की एक पडताल-
PHOTO CAPTION;हरीश रावत अपने सलाहकारों के साथ- चर्चा में हरिपाल रावत
हरीश रावत अपने सलाहकारों के कारण फिर गच्चा खा गये- हरीश रावत को सलाहकारों ने राय दी कि हार्दिक पटेल हरिद्वार है, उनकेे द्वारा मोदी के विरोध मे बयान दिये जा रहे हैं, क्यों न लगे हाथों, रोटी सेक ली जाये- बस फिर क्या था- आनन फानन में हार्दिक पटेल को राजकीय सम्मान देकर मुख्यमंत्री आवास लाकर सम्मानित करने का कार्यक्रम तय कर लिया गया- परन्तु सलाहकार यह भूल गये कि उत्तराखण्ड में हार्दिक पटेल का कोई भी उसके जाति समर्थक नही है वही पटेल द्वारा मोदी को अपशब्द कहे जाने पर उत्तराखण्ड में इसका प्रतिकूुल असर पडेगा-
हार्दिक पटेल का स्वागत कर नरेन्द्र मोदी को घेरने का प्रयास कर रहे थे परन्तु वह खुद बडे चक्रव्यूह में घिर गये और दो बार सफाई देनी पडी- वही ऐसा क्या हुआ जो मुख्यमंत्री को दोबारा स्पष्टीकरण देना पडा।वही धर्म विशेष के सरकारी कर्मचारियों को जुम्मे की नमाज के लिए 90 मिनट की छुट्टी को लेकर सरकार बैकफुट में आ गई , और कांग्रेस संगठन नेे मुख्यमंत्री के इस फैसले को गलत करार दिया-
हार्दिक पटेल को राजकीय प्रोटोकॉल देते हुए मुख्यमंत्री आवास मे सम्मान दिया गया- इस को प्रदेश में पसंद नही किया गया- जबकि उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री हरीश रावत से मुख्यमंत्री आवास न्यू कैन्ट रोड़ में मंगलवार देर सायं उत्तराखण्ड भ्रमण पर आए गुजरात पाटीदार आरक्षण आंदोलन समिति एवं पटेल नव निर्माण सेना के अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने शिष्टाचार भेंट की। मुख्यमंत्री श्री रावत ने श्री पटेल को युवा नेता बताते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना की।
ज्ञात हो कि हार्दिक पटेल की राजनीति कास्ट बेस जाति आधारित है- वह अपनी जाति पटेल के लिए गुजरात में आरक्षण की मांग कर रहा है- तभी पटेल नव निर्माण सेना गठित की गयी है- हार्दिक पटेल केे बहाने उत्तराखण्ड में भी जाति आधारित राजनीति को बढावा देने की रणनीति तो नही खेली गयी-
किशोर उपाध्याय ने कहा कि मजहब के नाम पर सरकारी कर्मचारियों के लिए आचरण नियमावली से छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। इस मामले में पार्टी का रुख एकदम साफ है। मंत्रिमंडल की ओर से लिए जाने वाले फैसले की पहले से पार्टी को कोई जानकारी नहीं थी। मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय को जुमे की नमाज के लिए दोपहर डेढ़ घंटे के विशेष अवकाश के हरीश रावत मंत्रिमंडल के फैसले की सियासी तपिश ने कांग्रेस को भी बेचैन कर दिया है। विपक्षी दल भाजपा तो इस फैसले की मुखालफत कर ही रही है, सत्तारूढ़ दल कांग्रेस भी इससे सहमत नहीं है। फैसले से नाखुश प्रदेश कांग्रेस संगठन ने सरकार से आपत्ति भी दर्ज कराई। नतीजतन राज्य सरकार को बैकफुट पर जाना पड़ा।
##मुस्लिम नेता गुलफाम अली ने हरीश रावत को सोशल मीडिया में खुले आम पत्र लिखकर उनसे मुस्लिम त्रुष्टिकरण के फैसले को वापस लेने की मांग कर दी
परम आदरणीय माननीय मुख्यमंत्री श्री हरीश रावत जी ,
आपको यह कहते मुझे जरा भी संकोच नहीं है कि आपने हाल ही में सरकारी मुस्लिम मुलाजिमों को जुमे की नमाज में 90 मिनट की जो छुट्टी दी है वो आपका आपकी नजर में या आपके सलाहकार की नजर में मुसलमानों के हित में लिया गया सही फैसला हो सकता है ,मगर इससे मुसलमानों का कोई भला नहीं होने वाला ।वैसे भी जो मुस्लिम मुलाजिम जुमे की नमाज पढता है उसे किसी ने आज तक नहीं रोका है ।मुख्यमंत्री जी आप कुछ ऐसा कदम उठाते जो शिक्षित मुस्लिम बेरोजगारों के हित में होता।हो सके तो इस फैसले को वापस ले लीजियेगा ।इससे मुस्लिम समाज का कोई भला होने वाला नहीं है।कुछ ठोस कार्य किये जाने की जरुरत है ।और आपसे हमें उम्मीद थी और है व आगे भी रहेगी ।इन मुस्लिम शिक्षित बेरोजगार युवकों को प्रदेश की मुख्यधारा से जोड़ने हेतु कोई कार्यक्रम लाइए ।
धन्यवाद
गुलफाम अली
जिला अध्यक्ष कांग्रेस पार्टी
पंचायत प्रकोष्ठ देहरादून
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कांग्रेस की बीते सोमवार को हरिद्वार से शुरू हुई जनाशीष यात्रा से ऐन पहले राज्य मंत्रिमंडल ने अल्पसंख्यक समुदाय को लुभाने के लिए जुमे के दिन दोपहर 12.30 बजे से दो बजे तक डेढ़ घंटे के लिए विशेष अवकाश को मंजूरी दी। सरकार के इस फैसले ने सूबे में सियासत को गर्मा दिया। हालांकि इसकी आंच से खुद कांग्रेस को भी हाथ जलने का अंदेशा सता रहा है।
धर्म विशेष के सरकारी कर्मचारियों को जुम्मे की नमाज के लिए 90 मिनट की छुट्टी को लेकर सरकार बैकफुट में आ गई है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि अन्य धर्मों के कर्मचारियों को भी त्योहार, पूजा अर्चना और विशेष धार्मिक अवसरों पर विशेष अल्प अवकाश दिया जाएगा। हाल ही में कैबिनेट ने जुम्मे की नमाज के दिन अल्पसंख्यक कर्मचारियों को दोपहर 12.30 से 2 बजे तक विशेष अल्प अवकाश की सुविधा दिए जाने का निर्णय लिया था। भाजपा ने किया था हमलानमाज के लिए छुट्टी के फैसले की देहरादून से लेकर दिल्ली तक आलोचना शुरू कर दी थी। भाजपा ने सरकार पर आरोप लगाया कि चुनावी लाभ के लिए अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का यह फैसला किया। अन्य धर्म और जाति के सरकारी कर्मचारियों ने भी इसके विरोध में आवाज उठानी शुरू कर दी थी। मुख्यमंत्री भांप गए मूड भाजपा और कर्मचारियों के विरोध को देखते हुए मुख्यमंत्री हरीश रावत को कैबिनेट के फैसले में बदलाव करना पड़ा। मुख्यमंत्री कहा कि हर धर्म-जाति के सरकारी कार्मिक को विशेष अल्प अवकाश दिए जाने की सुविधा देने का निर्णय लिया गया है। यह सुविधा कर्मचारियों को अनुरोध पर मिलेगी। सीएम के मीडिया सलाहकार सुरेंद्र कुमार ने बताया कि अलग-अलग धार्मिक और त्योहार के अवसर पर विभिन वर्गों, धर्मों, जातियों के कर्मचारियों की अवकाश की मांग को नियंत्रित करने के लिए मुख्यमंत्री ने यह निर्णय लिया है। अल्प अवकाश कितने समय का होगा, इसका निर्णय संबंधित कर्मचारी के विभागाध्यक्ष करेंगे। जुम्मे की नवाज के समय छुट्टी दिए जाने की घोषणा को लेकर मचे बवाल के बीच सीएम हरीश रावत ने एकबार फिर स्थिति साफ की। कहा कि कैबिनेट के पूरे फैसले को नहीं पढ़ा जा रहा है। नवाज को छुट्टी सिर्फ रमजान के दौरान होने वाली जुम्मे की नवाज के लिए ही दी गई है। यूजेवीएनएल मुख्यालय में एक कार्यक्रम के दौरान मीडिया के नवाज के अवकाश पर पूछे गए सवाल पर सीएम ने कड़ा एतराज जताया। कहा कि पूरा आदेश पढ़ा ही नहीं जा रहा है। कैबिनेट के आदेश,लाल कागज को सही तरह से पढ़ा ही नहीं जा रहा है। हर आदमी सिर्फ अपने मतलब की बात को पढ़ रहा है। सीएम ने स्पष्ट किया कि नवाज के लिए अवकाश सिर्फ रमजान के महीने में होने वाली जुम्मे की नवाज के लिए यदि कोई व्यक्ति छुट्टी मांगता है, तो उसे अतिरिक्त आधा घंटे की छुट्टी दी जाएगी। सिर्फ नवाज के लिए ही नहीं, बल्कि हर धर्म के मुख्य पर्व, पूजा अर्चना के लिए भी अवकाश व छुट्टी की व्यवस्था है। कैबिनेट के आदेश में कोई संशोधन नहीं किया जा रहा है। कहा कि कोई आधा ही आदेश पढ़ना चाह रहा है, तो उसके लिए मैं क्या कर सकता हूँ।
##भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी ने सीएम हरीश रावत पर प्रदेश को शरिया कानूनों के तहत चलाने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि रावत उत्तराखंड के मूल चरित्र और पहचान को खत्म करने पर जुटे है। बलूनी ने कहा कि रावत की तुष्टिकरण की नीति बार-बार सामने आयी है। रावत उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे राज्य के कस्बों और नगरों में संप्रदाय विशेष के डेढ़ लाख अवैध वोट बनवाने में लिप्त रहे हैं। अवैध मतदाताओं के कारण राज्य की 22 सीटों का वास्तविक रुझान और जनादेश प्रभावित होगा। बलूनी ने चुनाव आयोग को पत्र भी लिखा कि उत्तर प्रदेश के मतदाता उत्तराखंड में भी भारी संख्या में अवैध रूप से दर्ज हुए हैं। कैबिनेट में मुस्लिम कर्मचारियों को जुमे की नमाज के लिए छुट्टी का प्रावधान करते हैं, लेकिन चौतरफा और विरोध के कारण अन्य धर्मों को भी पूजा अर्चना की छुट्टी की घोषणा करते है। उन्होंने सवाल खड़ा किया कि नये आदेशों को लेकर जो बयान दिए जा रहे हैं क्या उन्हें कैबिनेट ने पास किया है? उन्होंने कहा कि राज्य का मुख्यमंत्री ने धर्म के आधार पर वोट पाने के लालच ने राज्य को पूरे देश में कलंकित किया है।