बगावती तेवर के लिए विख्यात है हरीश रावत
कांग्रेस हाईकमान के खिलाफ भी 2 बार बगावत कर चुके है #बगावती तेवर के लिए विख्यात ठाकुर नेता ने पं0 एनडी तिवारी तथा विजय बहुगुणा की नाक में दम करके रखा# हरीश रावत की अब फिर से रणनीति- #चक्रव्यूह की तैयारी #प्रतिद्वंद्वी पंसद नही #तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की सरकार गिराने के लिए किन कांग्रेस विधायकों ने पूरी तैयारी की थी#तभी राजनीति के चाणक्य पं0 तिवारी ने बसपा सुप्रीमो से मदद लेकर बसपा विधायकों के सहारे सरकार बचायी थी#
TOP NEWS; www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal & Print Media; हिमालयायूके न्यूज पोर्टल -के लिए चन्द्रशेखर जोशी सम्पादक की विशेष रिपोर्ट
कांग्रेस हाईकमान से अपनी बात मनाने में नाकाम होने पर हरीश रावत ने समय समय पर बगावत भी की है, उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पद पर जब प0 नारायण दत्त तिवारी का नाम फाइनल हुआ था तब राजधानी देहरादून से राज्य भर में हरीश समर्थकों ने जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन किया था। रावत को तसल्ली देने के लिए हाईकमान ने उन्हें राज्य सभा में भेजा, लेकिन हरीश और उनके समर्थकों के मन से उनकी कुर्सी छीने जाने का मलाल कम न हो सका। पूरे पांच साल एनडी तिवारी को चैन से बैठने नही दिया- एक बार सदन में नारायण दत्त तिवारी की सरकार गिराने के लिए पूरी तैयारी हो गयी थी, तभी राजनीति के चाणक्य पं0 तिवारी ने बसपा सुप्रीमो से मदद लेकर बसपा विधायकों के सहारे सरकार बचायी थी-
इसके बाद 2012 में कांग्रेस हाईकमान के निर्णय का हरीश रावत तथा उनके समर्थक विधायकों ने खुल कर विरोध किया था, बहुगुणा के नाम का ऐलान होने के साथ ही दिल्ली में हरीश रावत के समर्थकों ने खूब कोहराम मचाया। कई बार तो हरीश समर्थक विधायकों ने इस्तीफे तक का माहौल बनाया, भाजपा नेताओं तक से मिले और नये समीकरण को लेकर कांग्रेस हाईकमान को खूब छकाया- किसी तरह बहुगुणा सरकार का गठन हो ही गया, लेकिन हरीश खेमे ने बहुगुणा के नाम में हमेशा ही दम करके रखा।
हरीश खेमे का गुस्सा शांत करने करने के लिए पार्टी हाईकमान ने उनका केद्र सरकार में राज्य मंत्री का कद बढ़ाकर कैबिनेट का कर दिया। इसके बाद भले ही हरीश रावत की नाराजगी प्रत्यक्ष रूप से प्रकट होनी बंद हो गई, लेकिन उनके समर्थक विधायकों को तथा उनके समर्थकों को भरपूर पद बांटे गये, परन्तु इसके बाद भी उनके रोष प्रदर्शन पर कोई खास असर नहीं पड़ा। अनमने मन से ही सही बहुगुणा को हटाकर हरीश रावत को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाने को मजबूर होना पड़ा।
साल 2012 में मार्च महीनें में हुए उत्तराखंड विधानसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री न बनाए जाने से नाराज होकर इन्होंने अपनी पार्टी से बगावत कर दी थी और उनके समर्थक विधायकों ने उत्तराखण्ड में सरकार ही गठित करने में सहयोग करने से इंकार कर दिया था और हरीश रावत के दिल्ली निवास में डेरा डालकर बैठ गये थे, इस पर सोनिया गॉधी ने कठोरता बरती थी, विजय बहुगुणा के दो वर्ष से भी कम के मुख्यमंत्री पद के कार्यकाल के दौरान ही राज्य को भीषण प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ा. उन पर हरीश रावत के कुमायू के समर्थक विधायकों ने आपदा के बाद राहत और बचाव कार्यों में लापरवाही के आरोप लगाये और लगातार प्रशासनिक अक्षमता के आरोपों के चलते कांग्रेस हाईकमान ने उनसे इस्तीफ़ा ले लिया. हरीश रावत के कुमायूं के विधायक लगातार कांग्रेस हाईकमान से उनकी विभिन्न तरीके से शिकायत करते रहे, जिससे विजय बहुगुणा को जाना पडा, विधानसभा अध्यक्ष गोविन्द सिंह कुंजवाल, विधायक हरीश धामी, रंजीत रावत ने लगातार मोर्चा खोल कर रखा-
बहुगुणा के सत्ता संभालने के बाद से लगातार प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर चक्रव्यूह रचना की गयी, आखिरकार प्राकृतिक आपदा से निपटने में राज्य सरकार की कथित नाकामी को प्रचण्ड स्तर से उठाकर सत्ता परिवर्तन कराने में कामयाब रहे।
२०१२ उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस हाईकमान ने विजय बहुगुणा को राज्य सरकार की कमान सौंपी थीं. लगभग दो साल पहले 2012 में विधानसभा चुनाव के बाद, जब मुख्यमंत्री की रेस में आगे चल रहे हरीश रावत और हरक सिंह रावत को दरकिनार कर विजय बहुगुणा को सत्ता की बागडोर सौंपी गई थी तब से ही उनकी छवि ‘पैराशूट मुख्यमंत्री’ की रही है. विरोधी ख़ेमे के विधायक और मंत्री उनके ख़िलाफ़ गोलबंदी ही करते देखे जाते रहे हैं.
हरीश रावत उत्तराखण्ड प्रदेश के आठवें मुख्यमंत्री बने. साल 2000 में उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद से शायद ये पहला ऐसा राज्य है जहां 13 वर्षों में आठ मुख्यमंत्री हुए हैं.
२०१२ उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव भारत के उत्तराखण्ड राज्य में वर्ष २०१२ में हुआ तीसरा विधानसभा चुनाव था। इससे पूर्व उत्तराखण्ड में वर्ष २००२ और २००७ में विधानसभा चुनाव हुए थे। २०१२ के विधानसभा चुनाव ३० जनवरी २०१२ को एक चरण वाले चुनाव में सम्पन्न हुए थे। २०१२ विधानसभा चुनाव उत्तराखण्ड की ७० विधानसभा सीटों पर ७८८ प्रत्याशियों द्वारा लड़े गए थे। इस विधानसभा चुनाव के लिए उत्तराखण्ड में कुल ९,८०६ मतदान केन्द्र बनाए गए थे। मतदान का समय सुबह आठ बजे से लेकर शाम पाँच बजे तक का था और इस दौरान राज्य में कुल ६३ लाख ७८ हज़ार २९२ लोगों ने मतदान किया जो कुल मतदाताओं की संख्या का लगभग ७०% था। उत्तराखण्ड की ७० सदस्यीय विधानसभा सीटों में से १३ अनुसूचित जाति और २ सीटें अनुसूचित जनजाति के प्रत्याशियों के लिए आरक्षित हैं। उत्तराखण्ड विधानसभा चुनावों के परिणाम ६ मार्च २०१२ को घोषित किए गए।
कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लडी जिसमें से 32 सीटे जीती, जिसमें वोट प्रतिशत 3379 रहा, जबकि भाजपा को 31 सीटे मिली, जिसमें वोट प्रतिशत 3313 रहा, बसपा को 3 सीटे मिली, वोट प्रतिशत 1219 रहा, उत्तराखण्ड क्रांति दल को 1 सीट मिली, वोट प्रतिशत 193 रहा, निर्दलीय को 3 सीटें मिली, वोट प्रतिशत 12;34 प्रतिशत रहा,
उत्तराखंड एक अलग राज्य के रूप में 9 नवंबर 2000 को बना था। इसके बाद राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई। यह विधानसभा उत्तराखंड बनने के बाद से 2002 में हुए विधानसभा चुनावों तक रही। इस बीच में नित्यानंद स्वामी (9 नवंबर 2000 – 29 अक्टूबर 2001) और बी. एस. कोश्यारी (30 अक्टूबर 2001 – 1 मार्च 2002) प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इस समय काल के दौरान कांग्रेस पार्टी विपक्ष में थी। प्रकाश पंत इस अंतरिम विधानसभा के स्पीकर थे। यह विधानसभा 2002 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद बनी, जो 2007 के विधानसभा चुनाव तक चली। इस दौरान भारतीय नेशनल कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी और एन. डी. तिवारी (2 मार्च 2002 – 7 मार्च 2007) प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। विपक्ष में भारतीय जनता पार्टी थी और यशपाल आर्य विधानसभा के स्पीकर थे। त्तराखंड की दूसरी विधानसभा 2007 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद बनी और 2012 तक चली। इस दौरान प्रदेश में दोबारा भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई और विपक्ष में कांग्रेस पार्टी रही। इस पूरे कार्यकाल में प्रदेश में दो मुख्यमंत्री बने। पहले बी. सी. खंडूरी (8 मार्च 2007 – 23 जून 2009) मुख्यमंत्री बने और फिर रमेश पोखरियाल (27 जून 2009 – 11 सितंबर 2011) और इनके बाद एक बार फिर से बी. सी. खंडूरी (11 सितंबर 2011 – 13 मार्च 2012) मुख्यमंत्री बने। इस दौरान हरबंस कपूर विधानसभा के स्पीकर थे।
तीसरी विधानसभा 2012 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद बनी और अब 2017 में उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं। 2012 में दोबारा से इंडियन नेशनल कांग्रेस की सरकार आई। सरकार के पूरे कार्यकाल में अब तक दो मुख्यमंत्री बन चुके हैं। पहले विजय बहुगुणा (13 मार्च 2012 – 31 जनवरी 2014) प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और फिर हरीश रावत (11 मई 2016- अब तक) प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभाला। इस दौरान विपक्ष में भारतीय जनता पार्टी रही। इसके अलावा इस कार्यकाल में गोविंद सिंह कुंजवाल विधानसभा के स्पीकर हैं। 27 मार्च 2016 से 12 मई 2016 तक उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू था।
27 मार्च को केंद्र सरकार ने उत्तराखंड में हरीश रावत की सरकार को बर्खास्त करते हुए राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। इसके बाद काफी समय तक यह मामला नैनीताल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चला। आखिरकार 10 मई को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उत्तराखंड विधानसभा में हरीश रावत ने विश्वास मत पेश किया। 11 मई की सुबह परिणाम की घोषणा की गई, जिसमें हरीश रावत के पक्ष में 33 वोट पड़े, जबकि विपक्ष में 28 वोट पड़े।
दरअसल, कांग्रेस के 9 विधायक बगावत करते हुए भाजपा के साथ हो गए थे। इसके बाद भाजपा ने 27 अपनी सीटें और 9 अन्य बागी विधायकों को साथ लेकर 35 सीटें होने पर बहुमत का दावा कर दिया था। इसके बाद 18 मार्च को बागी विधायकों ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया। 19 मार्च को राज्यपाल ने हरीश रावत को बहुमत साबित करने के लिए 28 मार्च तक का वक्त दिया, लेकिन इससे पहले ही हरीश रावत का एक स्टिंग ऑपरेशन जारी हुआ, जिसमें वह विधायकों को करोड़ों रुपए देने का ऑफर देने नजर आए, जिसके बाद 27 मार्च को हरीश रावत द्वार सदन में विश्वास मत हासिल करने से पहले ही उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
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