हरीश्ा के चक्रव्यूह में उलझ गये किशोर और अजय भटट
#हरीश रावत का चक्रव्यूह # कांग्रेस को आपदा के मुद्द से राहत मिली # भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भटट को अपने साले साहब से घिरवा दिया #तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष को कांगेस के बागी ब्राहमण प्रत्याशी से# अजय भट्ट किशोर उपाध्याय ;दोनों की ही राह आसान नहीं # अजय भट्ट को हराने के लिए ठाकुर कार्ड # अजय भट्ट और किशोर उपाध्याय दोनों के ही लिए ये विधानसभा चुनाव बेहद महत्वपूर्ण # दोनों की हार से हरीश रावत की राजनीतिक राह निष्कंटक हो्गी# रानीखेत विधान सभा क्षेत्र में जातीय समीकरण के आधार से 45% वोट क्षत्रिय, 24% ब्राह्मण, 3% मुस्लिम और 28% अन्य जातियों के मतदाता हैं. जिस लिहाज से भी अजय भट्ट को खासा नुकसान # करण माहरा मुख्यमंत्री हरीश रावत के साले हैं जिन्हें हरीश रावत ने टिकट दिया है- # बीजेपी की सियासत की धुरी रहा केदारनाथ आपदा और कथित रेस्क्यू घोटाला मौजूदा उत्तराखंड के चुनावी माहौल में नदारद है # हरीश रावत के चक्रव्यूह में उलझी भाजपा केवल और केवल मोदी के सहारे सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रहे हैं- भाजपा नेता मोदी के साथ तथा केन्द्रीय मंत्रियो और केन्द्रीय पदाधिकारियों के साथ फोटो खिंचवा कर सोशल मीडिया में डालकर सोच रहे हैं कि बस अब सत्ता मिली, अब सत्ता मिली, भाजपा के नाकाम मीडिया रणनीतिकार घमण्ड के रावण सिद्व हो रहे हैं# www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportgal & Print Media) CS JOSHI- EDITOR
उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों पर एक ही चरण में 15 फरवरी को मतदान होगा. इन चुनावों में कुल 637 उम्मीदवार एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं. इनमें केवल 60 महिला उम्मीदवार हैं. चुनाव आयोग ने सफल और शांतिपूर्ण मतदान के लिए 10,854 मतदान केंद्र बनाए हैं. ख़ास बात यह है कि इन चुनावों में कई ऐसे दिग्गज मैदान में हैं जो राज्य के साथ-साथ केंद्र की राजनीति में भी अच्छा दखल रखते हैं. उत्तराखंड के चुनावी समर में कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने हैं, लेकिन कई जगह इन दलों के बड़े उम्मीदवारों की नींद उड़ाने के लिए कुछ निर्दलीय और छोटी पार्टियों के नेता भी चुनाव मैदान में उतर आए हैं. लंबे ज़मीनी संघर्ष और साफ़ छवि के बूते इन उम्मीदवारों को इस बार पासा पलटने की उम्मीद है.
उत्तराखंड में 70 विधानसभा सीटों पर 15 फरवरी को मतदान होना है. कांग्रेस के लिए ये चुनाव सबसे अहम माना जा रहा है, क्योंकि 2012 से वही राज्य की सत्ता में काबिज है. हालांकि अभी तक एनडी तिवारी (2002-2007) के अलावा कांग्रेस के किसी भी मुख्यमंत्री ने उत्तराखंड में बतौर सीएम पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है. कांग्रेस के हरीश रावत उत्तराखंड के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो 2 विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं.
अजय भट्ट किशोर उपाध्याय ;दोनों की ही राह आसान नहीं
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट अपनी वर्तमान सीट रानीखेत से चुनाव लड़ रहे हैं तो वहीँ कांग्रेस के कप्तान किशोर उपाध्याय टिहरी को छोड़कर सहसपुर में भाग्य आज़मा रहे हैं. दोनों ही पार्टियों के कप्तानों के लिए चुनाव बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, क्यूंकि नंबर गेम बढ़ाने लिए एक-एक सीट जीतना जरुरी है. वहीँ अपनी पार्टियों में अपना कद बढ़ाने के लिए भी दोनों ही कप्तानों के लिए जीत जरूरी है. लेकिन फिलहाल दोनों की ही राह आसान नहीं लग रही है.
अजय भट्ट को हराने के लिए ठाकुर कार्ड चला-
रानीखेत विधान सभा क्षेत्र में जातीय समीकरण के आधार से 45% वोट क्षत्रिय, 24% ब्राह्मण, 3% मुस्लिम और 28% अन्य जातियों के मतदाता हैं. जिस लिहाज से भी अजय भट्ट को खासा नुकसान हो सकता है, क्योंकि अजय भट्ट और प्रमोद नैनवाल दोनों ही ब्राह्मण उम्मीदवार हैं, जबकि करन माहरा क्षत्रीय उम्मीदवार होने के चलते भारी पड़ सकते हैं.
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष तथा पूर्व मंत्री अजय भट्ट रानीखेत से विरोधियों को चुनौती देते नजर आ रहे हैं. मगर उनके सामने कभी अपने रहे बीजेपी युवा मोर्चा के पूर्व अध्यक्ष प्रमोद नैनवाल उन्हें चुनौती दे रहे हैं. प्रमोद निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े हैं. 2012 के चुनावों में अजय भट्ट केवल 78 वोटों के अंतर चुनाव जीते थे. अजय एक सख्त नेता के रूप में जाने जाते हैं. टिकट बंटवारे के लेकर विरोध में उतरे करीब 3 दर्जन नेताओं को उन्होंने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. अजय की यह कड़क छवि भी खुद उनके सामने चुनौती देती दिख रही है. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट रानीखेत से चौथी बार विधान सभा चुनाव लड़ रहे हैं. अजय भट्ट ने साल 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के करण माहरा को 78 वोटों से चुनाव हराया था. ऐसे में जीत का अंतर ज्यादा नहीं होने के चलते अजय भट्ट को इस बार के चुनाव में खासी मेहनत करनी पड़ रही है. करण माहरा मुख्यमंत्री हरीश रावत के साले हैं. करन माहरा 2007 में अजय भट्ट को इसी सीट से चुनाव हरा चुके हैं. ऐसे में अजय भट्ट के लिए चुनौती कम नहीं है. रानीखेत में माहरा परिवार का उत्तर प्रदेश के समय से दबदबा रहा है. करण माहरा के पिता गोविन्द सिंह माहरा तत्कालीन यूपी सरकार में मंत्री रहे चुके हैं. जिसके चलते प्रदेश की राजनीति में माहरा परिवार का खासा दख़ल हर दौर में रहा है. मुख्यमंत्री के ग्रह जनपद होने के चलते इस सीट पर हरीश रावत का भी पूरा जोर है. ऐसे में अजय भट्ट के लिए मुश्किलें कम नहीं हैं. अजय भट्ट के लिए कांग्रेस के करन माहरा से ज्यादा चुनौती भाजपा के जिलाध्यक्ष रहे प्रमोद नैनवाल हैं. नैनवाल कल तक रानीखेत में उनके सिपहसालार थे और आज उनके ही खिलाफ चुनावी ताल ठोक रहे हैं. ऐसे में अजय भट्ट को अपने ही लोगों से ज्यादा नुकसान हो रहा है. संगठन में ख़ासी पकड़ रखने वाले नैनवाल के एन मौके पर चुनावी ताल ठोकने से अजय भट्ट को बड़ा नुकसान हो रहा है. क्योंकि प्रमोद नैनवाल भाजपा के वोट बैंक में ही सेंध लगाएंगे, ऐसे में फायदा केवल कांग्रेस को होता नजर आ रहा है.
किशोर उपाध्याय
सहसपुर में लगातार मिल रही चुनौतियों के चलते किशोर उपाध्याय यहाँ से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. प्रदेश अध्यक्ष होने के बाउजूद किशोर अन्य उम्मीदवारों के प्रचार में नहीं जा पा रहे हैं. ऐसे में किशोर की नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल उठ रहे हैं.
सहसपुर से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष तथा वरिष्ठ नेता किशोर उपाध्याय चुनाव लड़ रहे हैं. वे 2002 और 2007 में टिहरी सीट से विधायक चुने गए थे, लेकिन 2012 में दिनेश धनै से हार गए. इस बार किशोर के सामने उन्हीं की पार्टी के बागी अर्येंद्र शर्मा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उन्हें चुनौती दे रहे हैं. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय के हाल भी कुछ ऐसे ही हैं, टिहरी से विधान सभा टिकट नहीं मिलने पर किशोर उपाध्याय ऋषिकेश से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन राजपाल खरोला का पलड़ा भारी होने के चलते किशोर को अंतिम समय में सहसपुर भेजा गया. अब ऐसे में सहसपुर किशोर को कितना रास आता है, टिहरी के रहने वाले किशोर के लिए सहसपुर बिल्कुल नई सीट है. क्योंकि उन्हें इस बात का कतई इल्म नहीं था कि हाईकमान उन्हें यहाँ से चुनाव लड़ने को भी कह सकता है. ऐसे में किशोर को सहसपुर विधानसभा में बाहरी होने का विरोध भी झेलना पड़ रहा है. क्योंकि सहसपुर सीट पर चुनाव लड़ रहे सभी प्रमुख उम्मीदवार सहसपुर के ही रहने वाले हैं. किशोर उपाध्याय के लिए सबसे बड़ी चुनौती 2012 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार रहे आर्येन्द्र शर्मा हैं. पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के खासमखास रहे आर्येन्द्र शर्मा का सहसपुर सीट पर दबदबा रहा है. ऐसे में किशोर के लिए आर्येन्द्र से पार पाना आसान नहीं है. सहसपुर सीट पर 26% से ज्यादा मुस्लिम वोटर्स हैं, जो कांग्रेस के साथ बसपा और सपा में भी बटते हैं. वहीँ कांग्रेस के बागी आर्येन्द्र शर्मा की भी मुस्लिम वोटर्स पर ख़ासी पकड़ है. जिसके चलते किशोर की दिक्कतें कम नहीं हो रही हैं. सहसपुर सीट पर करीब 11% ब्राह्मण, 18 % ठाकुर, 18% एससी/ एसटी, 11% ओबीसी और 18% अन्य जातियों के वोटर्स हैं, जो अलग-अलग पार्टियों में बटा हुआ है.
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आपदा घोटाले को लेकर आक्रामक रहने वाली भाजपा ने अब आपदा घोटाले पर चुप्पी साध ली है.
बीजेपी की सियासत की धुरी रहा केदारनाथ आपदा और कथित रेस्क्यू घोटाला मौजूदा उत्तराखंड के चुनावी माहौल में नदारद है. आपदा घोटाले को लेकर कभी आक्रामक रहने वाली बीजेपी अब इस मुद्दा पर बचाव की मुद्रा में है. इसके उलट कांग्रेस भाजपा में गए बागियों के बहाने भाजपा पर निशाना साधती रही है. पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के भाजपा में शामिल होने पर कांग्रेस को आपदा के मुद्द से राहत मिली हैं, 16 जून, 2013 को केदारनाथ आपदा आई थी. आपदा में सैकड़ों स्थानीय और पर्यटक मारे गए थे. आपदा के वक्त कांग्रेस की सरकार में विजय बहुगुणा सीएम थे. लेकिन बहुगुणा पर आपदा में लापरवाही बरतने के आरोप लगे. भाजपा ने इस दौरान आपदा घोटाला को बड़ा मुद्दा बनाया था. नतीजा विजय बहुगुणा को कुर्सी छोड़नी पड़ी और उनकी जगह हरीश रावत ने फरवरी 2014 में सीएम की कुर्सी संभाली. बहुगुणा की विदाई के बावजूद भाजपा पूरी आक्रामकता के साथ आपदा को मुद्दा बनाती रही. भाजपा ने राहत और बचाव कार्यों में गड़बड़ी करने और राहत राशि की बंदरबांट के आरोप कांग्रेस पर लगाई. बीजेपी ने कथित तौर पर बदइंतजामी के चलते हजारों श्रद्वालूओं की मौत की तोहमत तत्कालीन विजय बहुगुणा पर लगाई थी. देखते ही देखते आरटीआई के जरिये करोडों का कथित रेस्क्यू घोटाला सामने आ गया. भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे पर कांग्रेस सरकार के खिलाफ विधानसभा के अंदर और बाहर सड़क पर हल्लाबोल कर दिया. विजय बहुगुणा अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं. विजय बहुगुणा के साथ तत्कालीन कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत और यशपाल आर्य भी अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं. गौरतलब है कि यशपाल आर्य ही आपदा के वक्त आपदा प्रबंधन मंत्रालय संभाल रहे थे. आपदा को मुद्दा बनाने वाली भाजपा के लिए इन्हें पार्टी में शामिल करने में कोई दिक्कत नहीं हुई. हरीश रावत ने पूर्व मुख्य सचिव एस रविशंकर से आरटीआई से सामने आए रेस्क्यू घोटाले की जांच कराई थी. चूंकि उस वक्त बहुगुणा कांग्रेस का हिस्सा थे लिहाजा जांच में लीपापोती के आरोप भी भाजपा ने लगाए थे. जांच रिपोर्ट आने के बाद नेता विपक्ष अजय भट्ट ने सार्वजानिक तौर पर कहा था कि रावत ने अपने अधीन नौकरशाह से बहुगुणा को क्लीन चिट दिलवाई है, लेकिन रात गई और बात गई. विजय बहुगुणा आपदा के दौरान अपने दो तत्कालीन कैबिनेट मंत्रियों के साथ 14 बागियों के साथ भाजपाई हो गए.
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सतपाल महाराज
कद्दावर नेताओं की बात की जाए तो इनमें सबसे पहले बीजेपी के सतपाल महाराज आते हैं. सतपाल महाराज चौबट्टाखाल से चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस से बगावत करके बीजेपी में शामिल हुए सतपाल का चौबट्टाखाल गृहक्षेत्र भी है. लेकिन उन्हें बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष तथा वर्तमान विधायक तीरथ सिंह रावत की जगह उम्मीदवार बनाया गया है. दलबदल और टिकट कटने से बीजेपी में पनपी अंदरुनी गुटबाजी सतपाल महाराज के सामने बड़ी चुनौती हैं. हालांकि खुद का इलाका और यहां से पूर्व में दो बार उनकी पत्नी अमृता रावत राज्य विधानसभा का चुनाव जीत चुकी हैं, ये बातें सतपाल की पक्ष में जाती हैं.
पार्टी सूत्रों की मानें तो यह चुनाव उनका राजनीतिक भविष्य भी तय करेगा. अगर वे जीतते हैं और साथ में बीजेपी भी बहुमत में आती है तो वे पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार हो सकते हैं. नहीं तो उनका हाल यही होगा- ‘ना खुदा ही मिला ना विसाले सनम.’ पौड़ी जिले की इस सीट से कांग्रेस ने राजपाल बिष्ट को चुनावी मैदान में उतारा है.
हरक सिंह रावत
कोटद्वार विधानसभा सीट 2012 में वो सीट रही, जिस पर हार की वजह से बीजेपी राज्य में 5 साल के लिए सरकार बनाने से चूक गई. 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ से यहां तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी ने चुनाव लड़ा था. लेकिन कोटद्वार सीट के समीकरण और कांग्रेस नेता सुरेंद्र सिंह नेगी का यहां घर और गढ़ होना खंडूरी जैसे भारी-भरकम नेता पर भी भारी पड़ा.
हरक सिंह रावत पहले कांग्रेस में थे. वहां से बागी होकर उन्होंने बीजेपी का दामन थामा. हरक को बीजेपी ने कोटद्वार से अपना उम्मीदवार बनाया है. हरक सिंह कांग्रेस के कद्दावर और विवादित नेता रहे हैं. उन पर अबतक तीन बार महिलाओं के साथ यौन शोषण तथा दुष्कर्म के आरोप लग चुके हैं. वे कांग्रेस की तरफ से राज्य के मंत्री भी रहे हैं.
मार्च, 2016 में हरीश रावत की सरकार पर आए संकट की वजह भी हरक रावत ही थे. हरक सिंह ने अपने कुछ साथी विधायकों के साथ मिलकर हरीश रावत के खिलाफ विद्रोह कर दिया था. इससे हरीश सरकार अल्पमत में आ गई थी. इस मामले में केंद्र सरकार ने भी दखल दिया था, लेकिन बाद में उसकी खूब किरकिरी हुई. पौड़ी जिले की कोटद्वार सीट पर हरक सिंह रावत के सामने कांग्रेस ने कैबिनेट मंत्री सुरेन्द्र सिंह नेगी को अपना उम्मीदवार बनाया है. कोटद्वार नेगी की गृह सीट है. उनकी पकड़ यहां खासी मजबूत पकड़ बताई जा रही है.
2012 में बीजेपी को कोटद्वार सीट बड़ा झटका दे चुकी है. इसलिए कोटद्वार विधानसभा सीट पर इस बार बीजेपी ने कांग्रेस छोड़कर पार्टी में शामिल हुए औऱ बागियों के सरदार कहे जाने वाले हरक सिंह रावत को यहां से उम्मीदवार बनाया है. हरक सिंह रावत दावा करते हैं कि वे जहां भी जाएंगे जीतकर आएंगे. लेकिन इस बार कोटद्वार में हरक सिंह के लिए अग्निपरीक्षा है. कांग्रेस दावा कर रही है कि कोटद्वार सीट पर शैलेंद्र रावत के कांग्रेस में शामिल होने के बाद, शैलेंद्र रावत के समर्थक स्थानीय के मुद्दे पर सुरेंद्र सिंह नेगी के साथ खड़े हैं. वहीं वैश्य और मुस्लिमसमाज को भी सुरेंद्र सिंह नेगी के साथ माना जा रहा है. इस सीट पर सुरेंद्र सिंह नेगी का आत्मविश्वास इसलिए भी बढ़ा हुआ है क्योंकि उन्होंने 2012 में भुवन चंद्र खंडूरी को धूल चटाई थी. वहीं 5 साल कांग्रेस के कार्यकाल में नेगी स्वास्थ्य मंत्री रहे. लेकिन हरक सिंह रावत जैसे दिग्गज को भी हल्के में नहीं लिया जा सकता है.
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